Thursday, November 10, 2016

'पंडितजी' के बहाने भी इंदौर में कांग्रेस ने 'अमृत' नहीं मिला!

- हेमंत पाल 

 मध्यप्रदेश में इंदौर की राजनीति का एक अलग ही अंदाज है। भोपाल भले राजधानी है और प्रदेश से जुड़े सारे फैसले वही होते हैं, पर नेताओं और अफसरों की पसंदीदा जगह इंदौर ही है। फिर सत्ता चाहे जिस पार्टी की हो, इंदौर का दबदबा कभी कम नहीं होता! सिर्फ प्रदेश में ही नहीं, केंद्र की सत्ता में भी इंदौर की छाप बनी रहती है। लेकिन, मुद्दा ये कि इतने महत्वपूर्ण शहर में किसका सिक्का चलता है? ऐसा कौनसा नेता है, जिसके नाम की तूती बोलती है? आज भले ही ऐसा कोई नाम याद नहीं आता हो, पर इंदौर लंबे अरसे तक कांग्रेस के नेता महेश जोशी और कृपाशंकर शुक्ला उर्फ़ 'पंडितजी' के नाम का डंका बजता रहा! इनमें भी 'पंडितजी' की आवाज की अपनी अलग खनक और अंदाज रहा, जैसा कभी किसी और किसी नेता में नहीं दिखा! 75 साल के इस नेता का जोश आज भी कम नहीं हुआ! कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा पर उंगली नहीं उठाई जा सकती! लेकिन, जिंदगीभर राजनीति करने वाले इस नेता के 'अमृत महोत्सव' पर भी जमकर राजनीति हुई! हाशिए पर खड़ी कांग्रेस के नेताओं ने इस बहाने अपनी एकता दिखाने के बजाए सिर फुटव्वल को ही उजागर किया! इसके बाद भी 'पंडितजी' को शुभकामना देने वालों की कमी नहीं थी! कांग्रेस के बड़े नेता नदारद थे, पर 'पंडितजी' को चाहने वाले मौजूद थे। 


    जब कभी इंदौर में कांग्रेस की राजनीति का जिक्र होता है, बात दो नाम पर आकर टिक जाती है। ये नाम हैं महेश जोशी और कृपाशंकर शुक्ला यानी 'पंडितजी।' इन नेताओं ने जिस दमदारी से राजनीति की है, ऐसा कभी कोई दूसरा नहीं कर सकता! दोनों नेताओं ने अपने दम पर कई सालों तक कांग्रेस को बाँधे रखा! इनके ज़माने में न तो कोई गुटबाजी थी न सिर फुट्टवल जैसे हालात! महेश जोशी की राजनीतिक शैली का आलम तो ये था कि हर बड़े अफसर को इंदौर में ज्वाइन करने के बाद उनके यहाँ हाजरी लगाने जाना पड़ता था। इसी धारा पर 'पंडितजी' की राजनीतिक शैली विकसित हुई। ये दोनों नेता चुनावी राजनीति में अपना ख़म भले न ठोंक पाए हों, पर इन्होंने कई नेताओं को गढ़ा! महेश जोशी तो चुनाव जीते और मंत्री भी बने, पर कृपाशंकर शुक्ला चुनाव लड़े तो पर जीत नहीं सके! महेश जोशी ने अब तो एक तरह से खुद को राजनीति से अलग ही कर लिया है। लेकिन, पंडितजी इस उम्र में भी सक्रिय हैं। हर सरकारी और राजनीतिक कार्यक्रम में पंडितजी कहीं न कहीं दिख ही जाते हैं।
  महेश जोशी और कृपाशंकर शुक्ला के बाद तो इंदौर की कांग्रेस राजनीति ध्वस्त सी हो गई! इस कद का और कोई नेता उभर ही नहीं सका! गुटों और क्षत्रपों के सिपहसालारों में बंटी कांग्रेस के पास आज न तो सर्वमान्य नेता है और न कोई इच्छाशक्ति! इंदौर में किसी नए नेता के उभर न पाने का ही नतीजा है कि सुमित्रा महाजन लगातार 8 बार से लोकसभा चुनाव जीत रही है। महेश जोशी के साथ अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले कृपाशंकर शुक्ला ने पार्टी के अलावा दोस्ती में भी अपनी निष्ठा नहीं बदली। महेश भाई साथ कई बार उनके मतभेद सामने आए, पर मनभेद की स्थिति कभी नहीं बनी! अभी तक कभी सुनने में नहीं आया कि पंडितजी की किसी नेता से ऐसी ठनी हो कि उससे बातचीत ही बंद हो गई हो! जबकि, आज इंदौर में कांग्रेस आधा दर्जन खेमों में बंटी है।  
 इसी माहौल में 6 नवम्बर को इंदौर में कृपाशंकर शुक्ला के अमृत महोत्सव का आयोजन हुआ। जब इस कार्यक्रम की घोषणा हुई, तो कई बड़े नेताओं के आने की ख़बरें सामने आई। लगा कि इंदौर में अंतिम साँस गिन रही कांग्रेस को इस बहाने ऑक्सीजन भी मिलेगी! पार्टी के कुछ नेताओं ने इस बहाने आगे की रणनीति भी जमा ली थी, कि इस मौके के कैसे भुनाना है! लेकिन, अमृत महोत्सव के दौरान जो कुछ हुआ उसने पार्टी को आगे बढ़ाने के बजाए पीछे धकेल दिया! इस महोत्सव में कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह समेत कई बड़े नेताओं को आमंत्रित किया गया था! लेकिन, इनमें से कोई नहीं पहुंचा! सबके पास अपने बहाने थे! फिर भी आयोजन में जो भीड़ उमड़ी उसने 'पंडितजी' की लोकप्रियता का जलवा दिखा दिया।
 पहले कमलनाथ को इस अमृत महोत्सव मुख्य अतिथि बनाया गया था। लेकिन, वे नहीं आए! कहा गया कि कमलनाथ के न आने के पीछे इंदौर में कांग्रेस की गुटीय लड़ाई सबसे बड़ा कारण है। पंडितजी के समर्थक और अमृत महोत्सव के संयोजक सज्जनसिंह वर्मा के खिलाफ जो लॉबी काम कर रही है, उसने कमलनाथ को न आने देने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। बताते हैं कि कभी सज्जन वर्मा के नजदीक रहे पूर्व मंत्री हुकुमसिंह कराड़ा ने कमलनाथ को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाई! जब कमलनाथ को लगा कि इंदौर में गुटीय राजनीति के समीकरण बिगड़ रहे हैं, तो वे पीछे हट गए। लेकिन, इस आयोजन में जिस तरह की भीड़ उमड़ी, उसने सज्जन वर्मा की धाक जमा दी! वे सोनकच्छ क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं, इसलिए उन्हें अभी तक उन्हें बाहरी नेता कहा जाता था। पर, पंडितजी के 'अमृत महोत्सव' की सफलता ने उन सबकी जुबान पर ताले डाल दिए। कमलनाथ या किसी और बड़े नेता के न आने से आयोजन की सफलता पर कोई फर्क नहीं पड़ा, पर कांग्रेस की एकजुटता का  मौका जरूर हाथ से निकल गया।
  इस अमृत महोत्सव में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और उनके पुराने साथी महेश जोशी मौजूद थे। जबकि, भाजपा से विक्रम वर्मा, सत्यनारायण सत्तन, रमेश मेंदोला, महेंद्र हार्डिया, कैलाश शर्मा भी पंडितजी से अपने निजी संबंधों के चलते दिखाई दिए। मोहन प्रकाश ने कहा कि शिव के अनेक रूप हैं। लेकिन, उनके साथ कृपा जुड़ जाए तो कृपाशंकर हो जाता है। यह उन्हीं की पुण्याई है कि जितने लोग हॉल के अंदर हैं, उससे ज्यादा बाहर भी खड़े हैं। वे शताब्दी वर्ष भी मनाएं यह शुभकामना है। उन्होंने कहा कि जिन संस्कारों से पंडितजी राजनीति करते थे वह समाप्त हो चुकी है, पर पंडितजी आप अलख जगाए रखो और एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता में लाओ। लोगों के कान पकड़कर उनसे काम करवाओ।
 अपने राजनीतिक जीवन में पंडितजी की छवि हमेशा मस्तमौला नेता की रही! इंदौर की भाषा में कहा जाता है कि राजनीति में जो झांकी कभी 'पंडितजी' की थी, वो कभी किसी की नहीं हो सकती! कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण पर भी कभी सवाल खड़े नहीं हुए। सक्रिय राजनीति में उनके तेवर पार्टी के अन्य नेताओं से हमेशा अलग ही देखने को मिले! इतने पर भी कभी 'पंडितजी' कभी विवाद में नहीं पड़े! हां, उनसे जुड़े किस्सों की कमी भी कभी नहीं रही! जब वे चुनाव लड़े, विरोधियों ने उनपर जिंसी की एक मस्जिद से घडी चोरी का आरोप लगाकर माहौल गरमा दिया था। फिर भी मस्तमौला पंडितजी  बुरा नहीं माना! कहा जाता है कि राजनीति में किसी नेता को कितना माइक प्रेमी होना चाहिए, ये 'पंडितजी' से अच्छा किसी से नहीं सीखा जा सकता! आज भी वे जब किसी कार्यक्रम में जाते हैं, बोलने का मौका नहीं छोड़ते। उनकी भाषण शैली भी ऐसी है उसे गंभीरता के बजाए रस लेकर ही सुना जाता है। किन्तु, पार्टी के प्रति उनकी गंभीरता, समर्पण और निष्ठा पर कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा! उनका पूरा राजनीतिक जीवन कांग्रेस के लिए राजनीतिक दुर्भावना से पर रहा।
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