- हेमंत पाल
इस उपचुनाव की घोषणा के बाद नोटबंदी से जिस तरह के हालात बने थे, ये समझा जाने लगा था कि जनता का आक्रोश भाजपा को ले डूबेगा! नोट बदलाने के लिए बैंक के सामने लगी लाइनों में खड़े लोग सरकार के इस फैसले से बनी स्थिति का आंकलन करने लगे हैं! हर व्यक्ति अर्थशास्त्री की तरह टिप्पणी करने लगा! कालेधन और नकली नोटों के खिलाफ अचानक हुए केंद्र सरकार के इस फैसले ने रातों-रात लोगों की दिनचर्या और प्राथमिकताएं बदल दी थी! इसी नजरिए से ये आकलन किया जाने लगा था कि जो लोग लाइन में खड़े हैं, उनको यदि मतदान का मौका मिला, तो नतीजा सरकार के खिलाफ जाएगा। शहडोल और नेपानगर के संभावित नतीजों को भी इसी प्रतिक्रिया से देखा जा रहा था! लेकिन, मतदाताओं ने नतीजों ने सारे अनुमान बदल दिए। इन नतीजों को सहजता से नहीं लिया जा सकता! क्योंकि, जब लोग व्यक्तिगत रूप में सरकार के फैसले से परेशान हों, तो तय है कि वे सत्ताधारी दल की सरकार को सबक सिखाने का मौका भी नहीं छोड़ेंगे! किन्तु, ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि लोग तात्कालिक परेशानी के बावजूद देशहित समझ रहे हैं! शहडोल और नेपानगर दोनों सीटों के मतदाता आधुनिक विचारधारा से कटे हैं, पर नोटबंदी बाद सुधरने वाले हालातों से वाकिफ भी हैं।
जिन लोगों ने ये अनुमान लगाया था कि नोटबंदी से होने वाली परेशानी को लोग उपचुनाव के नतीजों से जाहिर करेंगे, वे गलत थे! देश का मतदाता इतना नासमझ नहीं कि वह पीओके पर सर्जिकल स्ट्राइक से खुश हो जाए और नोटबंदी से उसकी नाराजी सामने आ जाए। वैसे भी केंद्र सरकार के फैसलों की सजा मतदाता स्थानीय नेतृत्व को नहीं देता! ये बात सही है कि सरकार के अचानक बड़े नोट बंद करने के फैसले से लोग निजी तौर पर परेशान तो हुए, पर उन्हें संतोष था कि सरकार के इस कदम से भ्रष्ट लोग बेनकाब हो जाएंगे! उनका करोड़ों रुपया रद्दी हो जाएगा! यही वो मानसिकता थी, जिसने लोगों को नोटबंदी के समर्थन में सोचने लिए मजबूर किया। प्रदेश की दो सीटों के उपचुनाव के नतीजों को इस प्रतिक्रिया से देखा जाए तो जो फैसला आया है, वो सही लगेगा। फिर एक बड़ा कारण ये भी है कि लोग मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के कामकाज से नाराज नहीं है। वे नहीं चाहेंगे कि विपरीत नतीजे देकर प्रदेश सरकार कमजोर किया जाए।
इसे कोई कारण माने या एंटी इनकंबेंसी का असर कि शहडोल लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की का अंतर घटकर एक चौथाई रह गया! जबकि, नेपानगर में सहानुभूति कारण ये अंतर बढ़कर दोगुना हो गया। शहडोल लोकसभा सीट आम चुनाव में भाजपा ने 2 लाख 41 हजार वोट से जीती थी। जबकि, उपचुनाव में जीत का अंतर 60 हजार रह गया। नेपानगर में जरूर 22 हजार 178 वोटों का अंतर 42,198 हो गया है। भाजपा की सफलता का एक बड़ा श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सक्रियता और पार्टी की रणनीति को भी दिया जाना चाहिए। जैसा कि देखा गया है, शिवराज सिंह ने अपने कार्यकाल में कभी किसी चुनाव को कमतर नहीं आंका! झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में मिले झटके के बाद तो वे कुछ ज्यादा ही सजग हो गए हैं! इस बात से इंकार नहीं कि शहडोल में भाजपा स्थिति अच्छी नहीं थी! भाजपा उम्मीदवार ज्ञानसिंह तो चुनाव लड़ने के मूड में ही नहीं थी, फिर भी एक रणनीति उन्हें टिकट दिया गया। मुख्यमंत्री ने सभी दावेदारों को किनारे करके ज्ञानसिंह को मंत्रिमंडल से उठाकर चुनाव मैदान में उतारा। वह भी उस दशा में जबकि ज्ञानसिंह स्वयंं भी चुनाव में उतरना नहीं चाहते थे। इसके बाद मुख्यमंत्री ने चुनावी जमावट शुरू की। इसलिए ज्ञानसिंह की जीत को चमत्कार माना जा रहा है। शहडोल उपचुनाव में पुष्पराजगढ़ के निवासी को हराकर उमरिया इलाके के उम्मीदवार को जीत मिली। भाजपा ने इस उपचुनाव को पूरी दमदारी से लड़ा।
इस चुनाव का सबसे बड़ा प्रभाव ये हुआ कि राजघराने से जुडी कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह का राजनीतिक भविष्य उदय होने के पहले अस्त हो गया। शहडोल और नेपानगर उपचुनाव में भाजपा पर से जीत की खुमारी तो जल्दी उतर जाएगी, पर कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के लिए ये चुनाव लिटमस टेस्ट साबित हो गए। लगता नहीं कि अब वे ज्यादा दिन अपनी डांवाडोल कुर्सी बचा पाएंगे। इसके लिए भी जिम्मेदार भी कांग्रेस के वे क्षत्रप हैं, जिन्हें पार्टी का कर्णधार माना जा रहा है। ये हार कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव के ही खाते में दर्ज होगी। किसी ने भी चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। प्रचार की भी औपचारिकता ही निभाई और अंतिम दिनों में तो क्षेत्र से ही गायब हो गए। भाजपा के ही पूर्व विधायक सुदामा सिंह के तेवर अपनी ही पार्टी के खिलाफ थे। अनूपपुर से भाजपा विधायक रामलाल रौतेल भी नाराज थे! जबकि, उमरिया सीट से भी भाजपा के उम्मीदवार ज्ञान सिंह की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा रही थी। सबसे ज्यादा चुनौती पुष्पराजगढ़ में थी और माना जा रहा था कि कांग्रेस के लिए यहां एक तरफा वोट पड़ेंगे। लेकिन, कांग्रेस प्रतिद्वंदी के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब नहीं हुई! इन नतीजों से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की मुश्किलें अब बढ़ सकती हैं। पार्टी में बढ़ते असंतोष को ठंडा करने के लिए अब पार्टी को कोई गंभीर फैसला लेना पड़ सकता है। क्योंकि, नोटबंदी मामले में भी कांग्रेस लोगों की नाराजी को केश नहीं कर सकी।
इस उपचुनाव में मतदाता का रुझान शुरु से ही समझ नहीं आ रहा था! सबसे ज्यादा असमंजस भाजपा खेमे में था। नोटबंदी के केंद्र के फैसले ने इस असमंजस को और बढ़ा दिया था, जिसे लेकर भाजपा पूरे समय ठीक करने में लगी रही। उसी का नतीजा है कि परिणाम भाजपा के पक्ष में गया। वहीं मतदाता का मूड कांग्रेस के पक्ष में दिख तो रहा था, पर पार्टी के ही जिम्मेदार लोग ही कन्नी काटते रहे। शहडोल में भाजपा की जीत के कई मायने हैं। चुनाव नतीजों से पहले तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि भाजपा उम्मीदवार ज्ञानसिंह जीत जाएंगे। लेकिन, नतीजा आते ही सभी सर्वे और आंकलन फेल हो गए। मतदान के पहले तक शहडोल क्षेत्र में ज्ञानसिंह के खिलाफ चल रही हवा और मतदाताओं के रूझान भाजपा के पक्ष में नहीं थे। ऐसा क्या हुआ कि भाजपा ने कांग्रेस को चित कर दिया। इसकासिर्फ कारण है कि ज्ञानसिंह के राजनीतिक अनुभव के सामने कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह नया चेहरा थी, जिसे लोग ठीक से पहचानते भी नहीं थे। जबकि, नेपानगर विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार मंजू दादू की जीत सहानुभूति खाते के खाते में गई! मंजू ने कांग्रेस उम्मीदवार अंतर सिंह बर्डे को 40 हजार से भी ज्यादा अंतर से हराया। यह सीट उनके पिता राजेंद्र सिंह दादू के निधन की वजह से खाली हुई थी। बुरहानपुर जिले के तहत आने वाली इस सीट पर भाजपा की जीत तय ही मानी जा रही थी।
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शहडोल की लोकसभा और नेपानगर की विधानसभा सीटें जीतकर भाजपा ने ये संदेश दे दिया कि नोटबंदी की नाराजी और सर्जिकल स्ट्राइक पर सरकार की पीठ थपथपाने का असर चुनाव पर। नोटबंदी के बावजूद मतदाताओं ने उनके प्रति भरोसा बनाये बनाए रखा! बैंक के सामने नोट बदलाने की लाइन में खड़े लोगों तात्कालिक नाराजी को सरकार के खिलाफ आक्रोश समझना गलती है। नेपानगर में भाजपा को उम्मीदवार के साथ जुडी सहानुभूति का फ़ायदा जरूर मिला! लेकिन, शहडोल में भाजपा की जीत के साथ कई किन्तु, परंतु हैं! सबसे बड़ी कमजोरी तो कांग्रेस की मानी जाएगी कि उसने जीत की कोशिश से पहले ही हार मान ली! उपचुनाव में दोनों सीटों पर भाजपा की जीत से कांग्रेस का ग्राफ गिरा है। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के खाते में जाएगा, जो अपने घर की नेपानगर सीट नहीं बचा सके! कांग्रेस के क्षत्रपों की आपसी तनातनी ने पार्टी को इस हालत में ला दिया है कि उसमें सर उठाने की भी गैरत नहीं बची!
जिन लोगों ने ये अनुमान लगाया था कि नोटबंदी से होने वाली परेशानी को लोग उपचुनाव के नतीजों से जाहिर करेंगे, वे गलत थे! देश का मतदाता इतना नासमझ नहीं कि वह पीओके पर सर्जिकल स्ट्राइक से खुश हो जाए और नोटबंदी से उसकी नाराजी सामने आ जाए। वैसे भी केंद्र सरकार के फैसलों की सजा मतदाता स्थानीय नेतृत्व को नहीं देता! ये बात सही है कि सरकार के अचानक बड़े नोट बंद करने के फैसले से लोग निजी तौर पर परेशान तो हुए, पर उन्हें संतोष था कि सरकार के इस कदम से भ्रष्ट लोग बेनकाब हो जाएंगे! उनका करोड़ों रुपया रद्दी हो जाएगा! यही वो मानसिकता थी, जिसने लोगों को नोटबंदी के समर्थन में सोचने लिए मजबूर किया। प्रदेश की दो सीटों के उपचुनाव के नतीजों को इस प्रतिक्रिया से देखा जाए तो जो फैसला आया है, वो सही लगेगा। फिर एक बड़ा कारण ये भी है कि लोग मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के कामकाज से नाराज नहीं है। वे नहीं चाहेंगे कि विपरीत नतीजे देकर प्रदेश सरकार कमजोर किया जाए।
इसे कोई कारण माने या एंटी इनकंबेंसी का असर कि शहडोल लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की का अंतर घटकर एक चौथाई रह गया! जबकि, नेपानगर में सहानुभूति कारण ये अंतर बढ़कर दोगुना हो गया। शहडोल लोकसभा सीट आम चुनाव में भाजपा ने 2 लाख 41 हजार वोट से जीती थी। जबकि, उपचुनाव में जीत का अंतर 60 हजार रह गया। नेपानगर में जरूर 22 हजार 178 वोटों का अंतर 42,198 हो गया है। भाजपा की सफलता का एक बड़ा श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सक्रियता और पार्टी की रणनीति को भी दिया जाना चाहिए। जैसा कि देखा गया है, शिवराज सिंह ने अपने कार्यकाल में कभी किसी चुनाव को कमतर नहीं आंका! झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में मिले झटके के बाद तो वे कुछ ज्यादा ही सजग हो गए हैं! इस बात से इंकार नहीं कि शहडोल में भाजपा स्थिति अच्छी नहीं थी! भाजपा उम्मीदवार ज्ञानसिंह तो चुनाव लड़ने के मूड में ही नहीं थी, फिर भी एक रणनीति उन्हें टिकट दिया गया। मुख्यमंत्री ने सभी दावेदारों को किनारे करके ज्ञानसिंह को मंत्रिमंडल से उठाकर चुनाव मैदान में उतारा। वह भी उस दशा में जबकि ज्ञानसिंह स्वयंं भी चुनाव में उतरना नहीं चाहते थे। इसके बाद मुख्यमंत्री ने चुनावी जमावट शुरू की। इसलिए ज्ञानसिंह की जीत को चमत्कार माना जा रहा है। शहडोल उपचुनाव में पुष्पराजगढ़ के निवासी को हराकर उमरिया इलाके के उम्मीदवार को जीत मिली। भाजपा ने इस उपचुनाव को पूरी दमदारी से लड़ा।
इस चुनाव का सबसे बड़ा प्रभाव ये हुआ कि राजघराने से जुडी कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह का राजनीतिक भविष्य उदय होने के पहले अस्त हो गया। शहडोल और नेपानगर उपचुनाव में भाजपा पर से जीत की खुमारी तो जल्दी उतर जाएगी, पर कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के लिए ये चुनाव लिटमस टेस्ट साबित हो गए। लगता नहीं कि अब वे ज्यादा दिन अपनी डांवाडोल कुर्सी बचा पाएंगे। इसके लिए भी जिम्मेदार भी कांग्रेस के वे क्षत्रप हैं, जिन्हें पार्टी का कर्णधार माना जा रहा है। ये हार कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव के ही खाते में दर्ज होगी। किसी ने भी चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। प्रचार की भी औपचारिकता ही निभाई और अंतिम दिनों में तो क्षेत्र से ही गायब हो गए। भाजपा के ही पूर्व विधायक सुदामा सिंह के तेवर अपनी ही पार्टी के खिलाफ थे। अनूपपुर से भाजपा विधायक रामलाल रौतेल भी नाराज थे! जबकि, उमरिया सीट से भी भाजपा के उम्मीदवार ज्ञान सिंह की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा रही थी। सबसे ज्यादा चुनौती पुष्पराजगढ़ में थी और माना जा रहा था कि कांग्रेस के लिए यहां एक तरफा वोट पड़ेंगे। लेकिन, कांग्रेस प्रतिद्वंदी के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब नहीं हुई! इन नतीजों से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की मुश्किलें अब बढ़ सकती हैं। पार्टी में बढ़ते असंतोष को ठंडा करने के लिए अब पार्टी को कोई गंभीर फैसला लेना पड़ सकता है। क्योंकि, नोटबंदी मामले में भी कांग्रेस लोगों की नाराजी को केश नहीं कर सकी।
इस उपचुनाव में मतदाता का रुझान शुरु से ही समझ नहीं आ रहा था! सबसे ज्यादा असमंजस भाजपा खेमे में था। नोटबंदी के केंद्र के फैसले ने इस असमंजस को और बढ़ा दिया था, जिसे लेकर भाजपा पूरे समय ठीक करने में लगी रही। उसी का नतीजा है कि परिणाम भाजपा के पक्ष में गया। वहीं मतदाता का मूड कांग्रेस के पक्ष में दिख तो रहा था, पर पार्टी के ही जिम्मेदार लोग ही कन्नी काटते रहे। शहडोल में भाजपा की जीत के कई मायने हैं। चुनाव नतीजों से पहले तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि भाजपा उम्मीदवार ज्ञानसिंह जीत जाएंगे। लेकिन, नतीजा आते ही सभी सर्वे और आंकलन फेल हो गए। मतदान के पहले तक शहडोल क्षेत्र में ज्ञानसिंह के खिलाफ चल रही हवा और मतदाताओं के रूझान भाजपा के पक्ष में नहीं थे। ऐसा क्या हुआ कि भाजपा ने कांग्रेस को चित कर दिया। इसकासिर्फ कारण है कि ज्ञानसिंह के राजनीतिक अनुभव के सामने कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह नया चेहरा थी, जिसे लोग ठीक से पहचानते भी नहीं थे। जबकि, नेपानगर विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार मंजू दादू की जीत सहानुभूति खाते के खाते में गई! मंजू ने कांग्रेस उम्मीदवार अंतर सिंह बर्डे को 40 हजार से भी ज्यादा अंतर से हराया। यह सीट उनके पिता राजेंद्र सिंह दादू के निधन की वजह से खाली हुई थी। बुरहानपुर जिले के तहत आने वाली इस सीट पर भाजपा की जीत तय ही मानी जा रही थी।
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