Sunday, January 29, 2017

निरर्थक विरोध की वेदना झेलते फिल्मकार

- हेमंत पाल 
  हमारे देश में अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है और उतनी ही आजादी विरोध करने की भी! लेकिन, कई बार विरोध का अतिरेक इतना बढ़ जाता है कि वो हिंसा में परिवर्तित हो जाता है। जयपुर के जयगढ़ किले में फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ हुई मारपीट की घटना न तो अभिव्यक्ति की आजादी का प्रतीक है और न विरोध का! ये शब्दशः कथित करणी सेना की गुंडागर्दी है। भंसाली के खिलाफ उनकी नाराजी का कारण 'पद्मावती' में अलाउद्दीन खिलची और रानी पद्मावती के बीच कथित रूप से फिल्माए जा रहे प्रेम दृश्यों को लेकर था। खिलची का किरदार रणवीर सिंह और पद्मावती का किरदार दीपिका पादुकोण ने निभाया हैं। अभी न तो किसी को फिल्म के कथानक की जानकारी है और न खिलची और पद्मावती के बीच प्रेम प्रसंग का ही कोई दावा किया गया। फिर विरोध की ये हिंसक परिणति किसलिए, ये सोचने वाली बात है!  

    फिल्मों के रिलीज़ से पहले उनका विरोध आजकल फैशन बनता जा रहा है। कभी फिल्म के कलाकारों को लेकर मुट्ठियां तन जाती है, कभी उनके नाम या कथानक लेकर! हाल ही में अक्षय कुमार की फिल्म ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ को लेकर भी विवाद गहराया! विरोध करने वालों की दलील है कि फिल्म में अक्षय कुमार ने नंदगांव के रहने वाले एक शख्स का किरदार निभाया है। जबकि, अभिनेत्री भूमि पेडणेकर बरसाना की रहने वाली युवती है। फिल्म के एक दृश्य में नंदगांव के रहने वाले युवक को बरसाना की लड़की से शादी करते दिखाया गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ये कृष्ण और राधा के गाँव हैं, इसलिए लोगों को इस प्रेम कथा से आपत्ति है। संतों ने बरसाना में महापंचायत बुलाकर फिल्म के विरोध का आह्वान किया। फिल्म के शीर्षक एवं कहानी में नंदगांव-बरसाना की वर्षों प्राचीन परंपरा को तोडऩे का आरोप लगाया गया है। कहा गया कि उन्होंने फिल्म का ऐसा नाम क्यों दिया! 

  इससे पहले आमिर खान की फिल्म 'पीके' में धर्म गुरुओं के कथित चित्रण को लेकर लोगों की नाराजी सामने आई थी! सलमान खान की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' के नाम को लेकर भी आवाज उठी थी! संजय लीला भंसाली की ही एक फिल्म 'रामलीला' का नाम भी विरोध के बाद बदला गया! अक्षय कुमार की फिल्म 'ओह माय गॉड' को लेकर तो लोग अदालत पहुँच गए थे! मामला सिर्फ धार्मिक भावनाओं तक ही सीमित नहीं है! अमिताभ बच्चन की फिल्म 'सरकार' के कथानक को भी पहले बाल ठाकरे पर केंद्रित समझकर उनके समर्थकों ने बाहें चढ़ा ली थी! लेकिन, बाद में जब फिल्म में ऐसा कुछ नहीं दिखा तो लोग शांत हो गए! सबसे ताजा मामला 'उड़ता पंजाब' का है। ये एक सामाजिक समस्या पर बनी फिल्म है, लेकिन उसे पंजाब के खिलाफ दर्शाकर लोगों को सड़क पर खड़ा कर दिया गया था!    

  फिल्मों के नाम, उनके कथानक और काम करने वाले कलाकारों को लेकर जिस तरह विरोध की परंपरा पनप रही है, ये अच्छा संकेत नहीं है! सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए चंद लोग जेबी संगठन बनाकर ऐसे काम करने के मौके ढूंढते रहते हैं। दरअसल, अभिव्यक्ति की आजादी का आशय कानून को हाथ में लेना या दूसरे की अभिव्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण नहीं होता! यदि किसी को कुछ पसंद नहीं है, तो वे अपनी आलोचना कि अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र हैं। वे सार्थक विरोध करें, लेख लिखें, कविताएँ करें, नुक्कड़ नाटक करें! हिंसा कभी किसी विरोध का सही तरीका कभी नहीं हो सकता! फिल्म के व्यापक दृष्टिकोण को न समझते हुए उसके किसी एक दृश्य की आलोचना कुत्सित मानसिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। पर, हो वही रहा है!  
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