- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश को शांति का टापू कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के लिए इंदौर में बढ़ रहे अपराध एक धब्बा हैं। सरेआम लूटपाट, गुंडागर्दी, हफ्ता वसूली, पुलिस पर हमले, जमीन पर कब्जे से लगाकर ब्याज पर पैसा देकर जबरन वसूली के किस्से रोज हो रहे हैं। लेकिन, इसमें सबसे जघन्य वारदातें हैं नशा करके अपराध करना। बिना किसी विवाद के राह चलते लोगों को चाकू मार देना, पैसे लूट लेना और अपनी गुंडागर्दी का असर दिखाना! पिछले करीब पांच सालों में शहर में ऐसी कई वारदातें हो चुकी हैं। नाइट्रावेट, कोरेक्स, फेंसिड्रिल जैसी दवाइयां खाकर सड़क पर अपराध करना आम होता जा रहा है। सबसे संगीन मामले ये हैं कि अब अपराधी पुलिस वालों की भी पिटाई करने में देर नहीं करते! पिछले दिनों पुलिस वालों पर हमले की घटनाएं बढ़ी है। इसके जवाब में गुंडों के खिलाफ रातों रात अभियान भी चला, लेकिन फिर ठंडा हो गया!
इंदौर में इन दिनों पुलिस पिट रही है। गुंडों के हौंसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वर्दी का खौफ उन पर कहीं नजर नहीं आता। पंद्रह दिनों में दो बार पुलिस की बुरी तरह पिटाई के बाद एक बार फिर अधिकारी जागे और गुंडा विरोधी अभियान शुरू किया। पुलिस के ऐसे अभियान नए नहीं हैं, यदि कुछ नया है तो वह है पुलिस की पिटाई। करीब पंद्रह दिन पहले किसी शिकायत पर देर रात विवाह समारोह में शोर मचाते डीजे को बंद कराने पहुंचे पुलिसकर्मी को गुंडों ने इतना पीटा था कि उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इसके बाद परदेशीपुरा में सड़क पर चाकू लेकर घूम रहे दो गुंडों को पकड़ने पहुंचे दो आरक्षकों को दोनों गुंडों ने जमकर पीटा। एक आरक्षक का सिर फोड़ दिया। उसे गंभीर चोटें आई हैं। इसके बाद अधिकारी जागे और देर रात गुंडा विरोधी अभियान शुरू किया गया। लिस्टेड गुंडों के घरों पर दबिश दी गई और उन्हें बाहर निकालकर पीटा गया। इसके बाद उन्हें थाने पहुंचाया।
सामान्यतः गुंडे कभी पुलिस पर हमला नहीं करते, भले ही कोई कितना भी बड़ा गैंगस्टर हो! क्योंकि, उन्हें पता है कि यदि पुलिस से पंगा लिया तो बहुत भारी पड़ेगा। इंदौर में अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की बहुत बड़ी फौज है। कई नवआरक्षकों के चेहरे सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर पुलिस क्यों पिट रही है? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब अधिकारी नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन जनता जानती है और उसके पास जवाब भी मौजूद है। आम लोगों का कहना है कि पुलिस अब जनता से दूर हो चुकी है। थाना प्रभारी हो या उसके ऊपर के स्तर के अधिकारी लोग किसी को नाम या चेहरे से नहीं जानते। इसका खामियाजा जनता को भी भुगतना पड़ता है। जब कोई परेशानी हो, तो किसके पास जाएं! थाने जाओ तो वहां मौजूद स्टाफ आवेदन लेकर चलता कर देता है। इसी बात का खामियाजा पुलिस को भी भुगतना पड़ रहा है। जनता से जो जरूरी सूचनाएं पुलिस तक पहुंचना चाहिए वे नहीं पहुंच पा रही हैं। मुखबिर तंत्र भी कमजोर होता जा रहा है।
पुलिस विभाग में ही यह चर्चा आम है कि इंदौर में पोस्टिंग 'यूं हीं' नहीं मिलती है। दरअसल इस 'यूं हीं' ने ही मामला बिगाड़ रखा है। कुछ पुलिस वाले बरसों से थाने बदल बदलकर इंदौर में जमे हैं। यही कारण है कि यहाँ असामाजिक तत्वों को मदद मिलती रहती है। अपराधियों और पुलिस के बीच के गठजोड़ में राजनीति की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका हल भी पुलिस के पास ही है। यही कारण है कि इंदौर में पुलिस की फ़ौज इतनी बड़ी फ़ौज है, पर उनकी मौजूदगी का अपराधों पर असर नजर नहीं आता। आश्चर्य है कि पुलिस फौज होने के बावजूद लोग गली-कूचे के मामूूली गुंडों से खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं और अब तो पुलिस भी पिट रही है।
इंदौर में बढ़ते अपराध और पुलिस की पिटाई से जुड़ा मुद्दा है नाइट्रावेट का नशा! शराब में दवाई मिलाकर नशाखोरी करने वाले बदमाश सुरूर में सब भूल जाते हैं कि जिसपर वो हमला कर रहे हैं, वो कौन है! सामान्यतः शराबी भी पुलिस की वर्दी पहचानता है। सड़क झूमते हुए उसे जब किसी शराबी को खाकी वर्दी वाला दिख जाता है तो उसकी चाल ही बदल जाती है। लेकिन, जब शराब में नाइट्रावेट की गोली मिला दी जाती है तो दिमाग शून्य हो जाता है। पिछले करीब पाँच सालों में इंदौर में नाइट्रावेट का नशा करने वालों की संख्या बढ़ने से अपराध भी उसी गति से बढे हैं। हर साल कम से कम दो बड़ी घटनाएं नाइट्रावेट के नशेबाज करते हैं। अभी कुछ दिन पहले भी चार बदमाशों ने नाइट्रावेट का नशा करने के बाद दोपहर 2.20 से शाम 4.45 बजे तक करीब सवा तीन घंटे तक इंदौर के छोटा बांगड़दा से लसूड़िया तक जमकर आतंक मचाया। एक व्यवसायी की हत्या कर दी, तीन को चाकू मारे। देर रात को पुलिस ने घेराबंदी करके इनमें से दो बदमाशों को पकड़ा।
पूर्वी शहर के द्वारकापुरी समेत कुछ इलाकों में नाइट्रावेट के नशाखोरों ने कई बार रात में कारों के कांच फोड़ने की भी वारदातें की है। एक बार तो एक गली में रात में सड़क किनारे खड़े आठ चार पहिया वाहनों के कांच फोड़ दिए थे। इन बदमाशों ने वहां खड़ी दो एंबुलेंस के भी कांच फोड़ दिए। रहवासियों ने बताया कि बदमाशों ने सिर्फ तोडफ़ोड़ की। गाडिय़ों में से कोई सामान चोरी नहीं हुआ है, लोगों का मानना है कि नशेडिय़ों ने ये हरकत की है। लोगों का कहना हैं कि ये सब पुलिस की निष्क्रियता के कारण ही होता है। नाइट्रावेट का नशा करने वाले बदमाश सरेआम घूमकर चोरी और मारपीट की वारदातें करते रहते हैं। रात होते ही ये नशेड़ी मंडराने लगते हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। पुलिस ने एक बार होटल लूटने की साजिश रचते हुए चार बदमाशों को पकड़ा था। ये सभी नाइट्रावेट और शराब के नशे में 12 महिलाओं से चेन लूट चुके थे।
नाइट्रावेट और अपराध का रिश्ता कितना गहरा गया है, इसका सबूत ये है कि इंदौर के पुलिस रिकॉर्ड में तो एक बदमाश का नाम ही मनोज नाइट्रा दर्ज है। जो लम्बे अरसे से जेल में था। जब छूटा तो फिर अपराध करने लगा और पिछले साल ही उसने नशे में पीथमपुर में एक हत्या करके पुलिस को अपनी सक्रियता का इशारा दिया था। उसके खिलाफ दो दर्जन से ज्यादा अपराध इंदौर के थानों में दर्ज है तथा एक थाने के अपराध रिकॉर्ड में तो फरार है, जिस पर 5 हजार का इनाम घोषित है। इसका नाम मनोज नाइट्रा पड़ने के का कारण है कि वो नाइट्रावेट गोली का नशा करता है, और उसी नशे में राह चलते लोगों को चाकू मारकर अपना शिकार बनाता है।
डिप्रेशन, तनाव दूर करने, खांसी ठीक करने दवा और नींद की गोलियों को शराब के साथ मिलाकर नशा करने की बढ़ती प्रवृत्ति खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। इस नशे के बाद बदमाश राह चलते लोगों पर अंधाधुंध वार करते हैं, जब तक उनका नशा उतरता है तब तक लोग या तो जान गंवा चुके होते हैं या गंभीर हालत में होते हैं। इंदौर में प्रशासन ने बगैर डॉक्टर की पर्ची के इन दवाओं की बिक्री पर रोक लगा रखी है, लेकिन चोरी-छुपे ये आसानी से बिक रही हैं। नाइट्रावेट अवसाद के मरीजों की दवा है। इसका इस्तेमाल मरीजों की घबराहट दूर करने में होता है, लेकिन अपराधियों के हाथ लगने के बाद इससे लोगों की घबराहट बढ़ाने लगी है।
यह मूलतः नींद की गोली है। इसे लेने के बाद मरीज को खुशनुमा अहसास होने लगता है। क्योंकि, अवसाद के मरीज को अज्ञात भय सताता है कि सबकुछ खत्म हो गया! छोटी सी घटना से भी उसे घबराहट होने लगती है, लेकिन इस गोली के इस्तेमाल के बाद मरीज का डर दूर हो जाता है। लेकिन, नाइट्रावेट की गोली को शराब में मिलाकर इस्तेमाल करने से इसका असर तेजी से बढ़ता है। ऐसे नशाखोरों का डर खत्म हो जाता है और उसकी प्रवृत्ति हिंसक हो जाती है। उसे लगता है कि वह जो भी कर रहा है सही है। ऐसी स्थिति में वह बगैर सोचे हमले शुरू कर देता है। अब ये सरकार, प्रशासन और पुलिस के हाथ में है कि नशाखोरों को नाइट्रावेट से दूर रखे या फिर अपनी और जनता की सुरक्षा पुख्ता इंतजाम करे।
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