Tuesday, May 23, 2017

फिल्मों को इस नजरिए से तो मत देखिए!

- हेमंत पाल
   बॉलीवुड कभी सम्प्रदायों में बंट सकता है, ये शायद किसी ने कभी नहीं सोचा होगा। लेकिन, धीरे-धीरे ऐसा बदलाव आ भी गया! बड़े परदे के तीन खानों की सल्तनत को जब 'बाहुबली' से शह मिली तो उसे हिंदूवादी नजरिए देखा गया। 'बाहुबली' श्रृंखला की दूसरी फिल्म की जबरदस्त सफलता को उसके प्रोडक्शन, एक्टिंग और कल्पनातीत दृश्यों के अदभुत फिल्मांकन के बजाए उसे हिंदू माइथोलॉजी से जोड़कर देखा गया। श्रृंखला की पहली फिल्म में हीरो प्रभाष के शिवलिंग उठाने के दृश्य को लेकर जो चर्चा चली थी, उसे फिल्म के सीक्वेल की सफलता ने और हवा दे दी।
  हिंदू कट्टरपंथी लंबे समय से बॉलीवुड में तीन खानों के राज से खुश नहीं थे। लगता है उनको फिल्मी दुनिया की धर्मनिरपेक्षता रास नहीं आ रही! यही कारण है कि 'बाहुबली-2' की सफलता ने उन्हें हिंदू जश्न मनाने का मौका दे दिया। फ़िल्मी दुनिया में कभी किसी एक्टर या एक्ट्रेस के धर्म को मुद्दा बनाकर उसकी फिल्मों का मूल्यांकन किया गया हो, ऐसा नहीं हुआ। दिलीप कुमार और मीना कुमारी जैसे नामी एक्टर और एक्ट्रेस मुस्लिम रहे, पर कभी इस बात को मुद्दा बनाकर उनकी फ़िल्में नहीं देखी गई! नब्बे के दशक तक न तो ऐसा सोच भी नहीं था, शायद इसलिए कि तब ये हिंदू कट्टरपंथी कम थे और इन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा भी नहीं माना जाता था। याद किया जाना चाहिए कि जब ऋतिक रोशन की फिल्म 'कहो न प्यार है' ने कामयाबी के झंडे गाड़े, तब संघ परिवार ने एक हिंदू सितारे के उदय का जश्न मनाया था।
  वो समय आडवाणी की रथयात्रा, बाबरी मस्जिद के ढहने और मुंबई के दंगों और बम धमाकों के बाद का दौर था। देश सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। लेकिन, तब भी हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने फिल्मों और एक्टरों को हिंदू-मुस्लिम के खांचे में बांटकर देखने की शुरुआत नहीं की थी। 2006 में जब आमिर खान ने नर्मदा बचाओ आंदोलन को लेकर अपनी राय रखी, तब से वे संघ परिवार के निशाने पर आ गए। गुजरात में उनके पुतले जलाए गए और उनकी 'फना' फिल्म का प्रदर्शन रोका गया। 2010 में आईपीएल से पाकिस्तानी खिलाड़ियों को अलग रखने का विरोध करके शाहरुख खान, शिवसेना का निशाना बन गए!
  सोशल मीडिया पर उस वक्त तूफान सा आ गया जब आमिर खान और शाहरुख खान ने देश में बढ़ती असहिष्णुता पर चिंता जताई थी। सोशल मीडिया के हिंदूवादी पैरोकार इन सितारों खिलाफ खड़े हो गए थे। इनकी नीयत पर बहस छेड़ दी गई थी। इसके बाद फिल्मों को धर्म के चश्मे से देखना भी शुरू किया जाने लगा। 'ओह माय गॉड' और 'पीके' को हिंदू विरोधी कहा गया। वे कथित हिंदूवादी जो फिल्मीं कथानक को एक्टर से जोड़कर देखते हैं, उन्हीं ने हाल ही में शाहरुख खान की 'रईस' और ऋतिक रोशन की 'काबिल' में इसलिए मुकाबला करवा दिया था कि एक फिल्म का एक्टर मुस्लिम था, दूसरी का हिंदू! संघ लॉबी ने सोशल मीडिया पर तो मुहिम ही छेड़ दी थी। लेकिन, सही दर्शक तब भी नहीं बंटे और दोनों फ़िल्में हिट हुई। इन कट्टरपंथियों के पसंदीदा हीरो हैं ऋतिक रोशन, अजय देवगन और अक्षय कुमार! हालांकि, सलमान खान कभी हिंदूवादियों के नफरत भरे अभियान का शिकार नहीं हुए। इसका कारण उनका पारिवारिक बैकग्राउंड भी माना जा सकता है।
  फिल्मों में हिंदूवाद की बात को तब ज्यादा हवा मिली, जब पाकिस्तानी दर्शकों ने 'बाहुबली-2' को इसलिए नकार दिया। वहां फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई! जबकि, पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों का अच्छा खासा बाजार है। फिल्म के पाकिस्तान में अच्छा बिजनेस न कर पाने के पीछे फिल्म के साथ हिंदू-टैग को जिम्मेदार माना जा रहा है। पाकिस्तान के फिल्म जानकार फिल्म की तारीफ तो कर रहे हैं, लेकिन वे फिल्म के हिंदू माइथोलॉजी से प्रभावित होने और हिंदू कल्चर को बढ़ावा देने से खुश नहीं लगते! देखा जाए तो मनोरंजन के नजरिए से ये दौर बहुत खतरनाक सुरंग है, जहाँ से जल्दी निकलना ही होगा।
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