Friday, May 5, 2017

कांग्रेस में अब बड़े बदलाव की जरुरत

- हेमंत पाल 
   तीन साल बाद कांग्रेस में फिर कायाकल्प की बात चल पड़ी। मध्यप्रदेश में लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारने के बाद चौथे चुनाव में भी पार्टी हालत बहुत ज्यादा बेहतर नहीं लग रही! कांग्रेस यदि चौथा चुनाव हारना नहीं चाहती, तो उसे कुछ नया सोचना होगा। प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिभा का उपयोग जितना होना था, वो हो चुका! प्रदेश में कांग्रेस दो दशकों से जिन तीन-चार हाथों में कठपुतली बनी है, उनका वक़्त पूरा चुका! पार्टी के चिंतकों को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि प्रदेश में पार्टी की सेकंड लाइन को आगे आने का मौका मिले! दिग्विजय सिंह के पास अब पार्टी को पुनर्जीवित करने का कोई नया फार्मूला होगा, ऐसा नहीं लगता! कमलनाथ से भी बहुत ज्यादा उम्मीद लगाना बेमानी होगी। क्योंकि, अभी तक उनकी राजनीति छिंदवाड़ा के दायरे से बाहर नहीं निकली। ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिभा को पिछले विधानसभा चुनाव में प्रचार प्रमुख बनाकर परखा जा चुका है। 

 सार्वजनिक रूप से भी स्वीकारा जाने लगा है कि प्रदेश में कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है। पार्टी में हालत में सुधार की सारी कोशिशें अब तक असफल रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों में भी भाजपा के हाथों कांग्रेस मात खा रही है। पहले झाबुआ लोकसभा उपचुनाव और हाल ही में अटेर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत को मतदाताओं  में बदलाव नहीं माना जा सकता! क्योंकि, ये उम्मीदवार की अपनी व्यक्तिगत जीत रही, न कि कांग्रेस की। रणनीति बनाने में भी पार्टी पिछड़ने लगी है। कांग्रेस जो भी करना चाहती है, वो कहीं  प्रतिद्वंदी भाजपा के लिए फायदे की बात हो जाती है। लब्बोलुआब यही है कि कांग्रेस हाईकमान को मध्यप्रदेश के संदर्भ में वही तीन-चार पत्ते फैंटने की आदत छोड़ना होगी। यदि वास्तव में पार्टी को प्रतिद्वंदी के सामने मुकाबले में खड़ा करने की स्थिति में लाना है तो नए प्रयोग करना होंगे! थके और चुके नेताओं को जब तक घर नहीं भेजा जाएगा, किसी चमत्कार की उम्मीद करना बेमानी होगा! 

   प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह तीन-चार नेताओं के इर्द-गिर्द सीमित हो गई! इस कारण सेकंड लाइन के नेताओं को आगे आने का मौका नहीं मिल रहा। जब भी पार्टी कोई बड़ा फैसला करती है, उसके सामने दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कोई और सशक्त नाम नहीं होता! यही दावेदार होते हैं और यही पार्टी हाईकमान के सलाहकार भी बन जाते हैं! लम्बे समय से पार्टी ने इन नेताओं से हटकर कोई बड़ा फैसला किया हो, ऐसा नहीं लगा! जहाँ ये तीनों नेता सामने दिखाई नहीं देते, वहाँ परदे के पीछे इनकी राजनीति होती हैं। प्रदेश के सभी कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता भी मज़बूरी में इन तीनों के खेमों में बंटकर रह गए! जो इसके गुट से बाहर हैं, वो इसलिए खामोश है कि उसे बागी न मान लिया जाए! पूर्व मंत्री और सांसद सज्जन वर्मा ने सोनिया गाँधी को हाल ही में एक चिट्ठी लिखकर उन्हें अपनी व्यथा बताई है। उन्होंने इस चिट्ठी में अपनी बात कही हो, पर ये हर कांग्रेसी की पीड़ा है। इसके बाद भी पार्टी हाईकमान का मन बदलेगा, इस बात के आसार कम हैं! अब वो हालत आ गई, जब कांग्रेस हाईकमान को नए चेहरों पर दांव लगाना होगा। 
   यहाँ मुद्दा किसी नेता की राजनीतिक योग्यता की कसौटी का नहीं है। सारा मसला पार्टी में पसरी उस गुटबाजी का है, जो प्रदेश में कांग्रेस को एक नहीं होने दे रही! इसका फ़ायदा भाजपा उठाती है और पार्टी में सेंध लगाने में सफल हो जाती है। पूरे देश में कांग्रेस के लगातार कमजोर होने से पार्टी हाईकमान के लिए इस तिकड़ी की बात मानना मज़बूरी बन जाता है। मामला पार्टी में बनते-बिगड़ते समीकरणों तक ही सीमित नहीं है। प्रदेश में आज की स्थिति में ये भी आकलन करना होगा कि आज मध्यप्रदेश में कांग्रेस जिस मुकाम पर है, क्या वो भाजपा और शिवराजसिंह के लिए चुनौती बन सकती हैं?
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