Friday, May 19, 2017

लोगों को नाकारा बना देगी, 5 रुपए की सरकारी थाली!

- हेमंत पाल 


   तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा चलाई गई 'अम्मा कैंटीन' की तर्ज पर मध्यप्रदेश सरकार ने भी 'दीनदयाल रसोई योजना' की शुरुआत 7 अप्रैल से कर दी गई। इसके तहत गरीबों को 5 रुपए में एक थाली भोजन मिल रहा है। यह योजना प्रदेश के सभी जिला मुख्यालय में चल रही है। ये तो हुई गरीबों के प्रति सरकार की संवेदना वाली बात! लेकिन, असल सवाल कुछ और ही हैं! क्या वास्तव में इस योजना का लाभ उन गरीबों को मिल रहा है, जिनके लिए ये शुरू की गई है! इस योजना का नकारात्मक पक्ष ये भी है कि आसानी से इतना सस्ता भोजन मिल जाने से क्या लोग नाकारा नहीं हो जाएंगे? जब गरीबों को खाने का पैसा बचने लगेगा तो क्या वे व्यसन के आदी नहीं हो जाएंगे? इससे भी बड़ा सवाल ये कि नियोजित धनराशि के अभाव में ये योजना कब तक चल सकेगी? क्या सिर्फ राजनीतिक वाह-वाही लूटने के लिए किसी सरकार को ऐसी योजनाएं संचालित करना चाहिए? जाने-माने रंगकर्मी और नुक्कड़ नाटककार सफ़दर हाशमी के एक नाटक का संवाद था 'पेट भरने के बाद जो रोटियां बच जाती हैं, वो शराब का काम करती हैं।' वास्तव में 5 रुपए की सरकारी थाली गरीबों के लिए कुछ ऐसा ही न करे!   
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   मध्यप्रदेश में 'दीनदयाल अंत्योदय रसोई' योजना के अंतर्गत 5 रुपए में एक थाली भोजन दिया जा रहा है। देश में इस तरह की योजना सबसे पहले तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने ‘अम्मा कैंटीन’ के नाम से शुरू की थी, जिसे काफी सराहा भी गया था। इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश सरकार ने लोकलुभावन ‘दीनदयाल रसोई योजना’ की शुरुआत की! अब तो उत्तरप्रदेश और पंजाब में भी ऐसे ही सरकारी भंडारे शुरू हो गए! मध्यप्रदेश सरकार का इस तरह की रसोई खोलने का मकसद शहरों में गांवों और दूसरे राज्यों से आए मजदूरों और गरीबों को सस्ते में एक वक़्त का खाना उपलब्ध कराना है। शुरू में यह योजना 51 में से 49 जिलों में शुरू की गई थी। भिंड और उमरिया जिले में विधानसभा उपचुनाव के कारण इसे बाद में शुरु किया गया। कहा गया कि इसके माध्यम से न सिर्फ कम कीमत पर पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध है, बल्कि इससे समाज को अपना दायित्व निभाने का अवसर भी मिलेगा। यानी योजना में चंदा देकर लोग पुण्य कमा सकते हैं। ये राशि सीधे बैंक खाते में जाएगी।
  इस योजना की व्यवस्था की निगरानी जिला स्तरीय समन्वय समिति को सौंपी गई है। समिति में अधिकारियों के अलावा अनाज व्यापारी संघ तथा सब्जी मंडी एसोसिएशन के अध्यक्ष भी सदस्य होंगे। इन रसोई केन्द्रों को गेहूं और चावल एक रुपए प्रति किलो की दर से उचित मूल्य की दुकान से मुहैया करवाया जाएगा। पानी तथा बिजली की व्यवस्था नगर निगम नि:शुल्क करेगी। केन्द्रों की स्थापना मुख्यमंत्री शहरी अधोसंरचना योजना से की गई है। ये तो वो ख्याली पुलाव हैं जो सरकार ने पकाए हैं! पर, लगता नहीं कि ये योजना अपने शुरुवाती स्वरुप में ज्यादा दिन चल सकेगी। सरकार का ये कदम महज अपना मानवीय चेहरा सामने रखने से ज्यादा कुछ नहीं है। ये कोशिश भी इसलिए कि उसे दूसरे राज्यों से अलग समझा जाए। प्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया ने जब वर्ष 2017-18 के लिए बजट पेश किया था, तभी शहरी गरीबों के लिए बजट में 5 रुपए में भोजन, विधवा महिलाओं के लिए पेंशन जैसे कई लोकलुभावन वादे शामिल किए थे। ‘दीनदयाल रसोई योजना’ के तहत शहरी गरीबों को पांच रुपए में भोजन की थाली के अधोसंरचना निर्माण के लिए बजट में 10 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। 
  आज स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश खैराती प्रदेश बनकर रह गया। मुक्त हस्त से कई तरह की पेंशनें बांटी जा रही है। गरीबों को एक रुपए में गेहूँ, चांवल मिल रहा है। किसानों को मुआवजे बांटने में देर नहीं की जाती। महिलाओं और कन्याओं के नाम पर तो खजाने खुले हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों को भी मुफ्तखोरी करने का पूरा मौका दिया जा रहा है। मजदूरी करने वालों की मजदूरी भी लगातार बढ़ रही है। अब इसी श्रृंखला में 5 रुपए में भोजन दिए जाने की योजना ने गरीबों की अकर्मण्यता को और ज्यादा बढ़ा दिया। जब उनकी कमाई बढ़ेगी, पर खर्च कम होगा तो उनमें व्यसन की आदत बढ़ेगी। पैसा जेब में होगा तो वे शराब आदी होने लगेंगे या फिर कोई और नशा करेंगे। सरकार दिव्यांगों, वृद्धों, असहायों और विधवाओं को पेंशन दे और उनके उद्धार के लिए योजनाएं बनाए तो सरकार की कोशिशें सही दिशा में उठाया कदम लगती है। असहायों की सहायता सरकार का कर्तव्य भी है और ये किया भी जाना चाहिए। लेकिन, गरीबों की मदद के नाम पर उन्हें नाकारा बना देना, ये सही फैसला कैसे हो गया?  
  सरकार हाथ खोलकर खैरात तो बाँट रही है, पर उसके उत्तरोत्तर नतीजों को नहीं देख रही। युवाओं को रोजगार के बजाए बेरोजगारी पेंशन देने तक का वादा किया गया था। ऐसा करके लोगों को नाकारा बना देना स्वावलंबन तो कतई नहीं है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को नाकारा बनाने की शुरुवात 2013 से ही हो गई थी, जब प्रदेश सरकार ने गरीब परिवारों को एक रुपए प्रति किलो के भाव से गेहूं दिए जाने की घोषणा की थी। ये योजना भी दक्षिणी राज्यों से आयातीत थी। तब मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि गरीब परिवारों को जून 2013 से दो रुपए किलो चावल, एक रुपए किलो गेहूं और एक रुपए किलो आयोडीनयुक्त नमक उपलब्ध कराने की सभी जरूरी तैयारियां पूरी की जाएं। यदि संभव हो तो जरूरतमंद परिवारों की सहूलियत के लिए एक साथ सौ किलो गेहूं, चावल देकर के भंडारण के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके बाद अब 5 रुपए में खाना देकर सरकार क्या करना चाहती है, ये समझ से परे है। सरकार  संवेदनशील होना अच्छा है, पर लोकलुभावन फैसलों के नतीजों का अनुमान लगाया जाना भी बहुत जरुरी है। 
   2013 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद में 'फूड सिक्यॉरिटी बिल' पारित करवा दिया था। इस बिल के पारित होने के बाद देश की दो तिहाई आबादी को हर महीने सस्ते अनाज पाने का हक मिल गया! इस फूड बिल से देश की 82 करोड़ आबादी को सस्ते आनाज का फायदा मिल गया। कहा गया था कि दुनियाभर में भूख के खिलाफ लड़ाई में भारत का यह सबसे सही प्रोग्राम है। यदि वास्तव में ऐसा था तो आज 4 साल बाद देश में भुखमरी जैसी समस्या ही नहीं होना थी! लेकिन, फ़ूड बिल के बाद भी लोग भूख से मर ही रहे हैं। मुद्दे की बात तो ये है कि क्या फ़ूड बिल, एक रुपए किलो में गेहूँ, चांवल और 5 रुपए में भोजन की थाली परोसकर देने से क्या गरीबी दूर हो जाएगी? क्या हर गरीब की भूख मिट जाएगी और क्या ये किसी समस्या का स्थाई हल हो सकता है? 
  अब जरा ये भी जान लिया जाए कि 'दीनदयाल रसोई' में वास्तव में गरीब ही भोजन कर रहे हैं या यहाँ मुफ्तखोरी करने वालों का भी जमघट लगने लगा है। भिंड के एक बिजली लाइनमेन ने तो घर से लाए टिफिन का खाना ही जब छोड़ दिया तो पत्नी ने सच्चाई पता लगाई! उसे आश्चर्य हुआ कि उसका पति 'दीनदयाल रसोई' में 5 रुपए में खाना खा रहा है। घर से पत्नी जो खाने का टिफिन देती वो भरा हुआ लौटता! बाद में पत्नी ने इस पर रोक लगाई। ख़बरें बताती है कि इस रसोई में 5 रुपए देकर खाने वालों में संपन्न और सरकारी नौकरी में पदस्थ लोग भी पहुंचते हैं। कई लोग शराब, गांजा, स्मैक का नशा करके भी यहाँ खाने पहुँचने लगे हैं। ये लोग विवाद भी करते हैं, जिससे कई जगह व्यवस्था बिगड़ने की भी ख़बरें आने लगीं!  
 पांच रूपए में गरीबों के लिए चलाई गई इस भोजन योजना का फ़ायदा गरीबों के अलावा सम्पन्न तबका और स्कूल ,कॉलेज के छात्र भी उठाने लगे हैं। एक कस्बे में सामाजिक सम्मेलन के दौरान करीब साढ़े सात सौ लोगों ने इस रसोई सेंटर में पांच रूपए की थाली से अपना पेट भरा। वास्तव में जिस मकसद से सरकार ने इस योजना को शुरू किया है, उसका लाभ गरीब कम और सम्पन्न लोग ज्यादा उठाते नजर आ रहे हैं। जिसके चलते भोजन व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली संस्थाओं को परेशानी आएगी। क्योंकि, इस सरकारी रसोई में किसी के खाने पर कोई पाबंदी तो है नहीं! गरीब सस्ता खाकर अकर्मण्य तो बनेंगे ही, सम्पन्नों की भी आदत बिगड़ जाएगी!
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