Saturday, May 13, 2017

गीतों से जागी अलख ने इंदौर को बनाया देश का सबसे साफ़ शहर!

- हेमंत पाल 
  जब भी गीत, संगीत और फिल्मों के अवार्ड्स का मौसम आता है तो अकसर बातचीत में जिक्र होता है कि इस साल कौनसा गीत सबसे ज्यादा सुना गया या कौनसी फिल्म सबसे ज्यादा पसंद की गई! इस साल इंदौर में सोशल मीडिया पर ये जोक्स खूब चला कि इंदौर में सबसे ज्यादा सुना जाने वाला गीत वो है जो कचरा इकट्ठा करने वाली गाड़ियों में अलसुबह से देर रात तक बजता सुनाई देता है। बात सही भी है। इस गीत को सुन-सुनकर लोग भले ही बोर हो चुके हों, पर कैलाश खेर और शान के गाये इन दो गीतों ने इंदौर में सफाई के प्रति लोगों को जागरूक तो किया! सफाई के मामले में आज इंदौर देश में नंबर-वन जरूर है, पर ये सब आसान नहीं था। ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2017’ के तहत 434 शहरों की स्वच्छता रैंकिंग में पहली पायदान पर इंदौर का पहुँचना कड़ी मेहनत का नतीजा है। इसे सिर्फ सरकारी डंडे का भी कमाल नहीं कहा जा सकता! सफाई इंतजामों में लगे कर्मचारियों के अलावा इसका श्रेय हर इंदौरी के खाते में भी जाता है। लेकिन, स्वच्छ इंदौर का श्रेय लेने में भी राजनीतिक किस्सों की कमी नहीं है। कुछ नेता खुद ही इसका मैडल गले में डालने का मौका नहीं छोड़ रहे। 
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    इंदौर कभी इतना साफ़ हो सकता है कि उसे देश में सबसे ज्यादा साफ़ शहर का तमगा मिल जाए, ये बात कुछ साल पहले तक ये बात गले नहीं उतरती थी। सड़कों के किनारे लगे कचरे के ढेर, सड़क पर उड़ती पॉलीथिन, धूल और पेड़ों से गिरे सूखे पत्तों से भरी सड़कें शहर की पहचान बन गई थीं। इसके अलावा जो गंदगी होती है, उसके तो क्या कहने! लेकिन, सफाई का काम तब भी होता था, पर सिर्फ दिखावे के लिए! इसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब किसी बाहरी एजेंसी को साफ़-सफाई का जिम्मा सौंपा गया! नगर निगम के फैसले का बहुत हो-हल्ला हुआ! नई-नई गाड़ियों शहर में दिखाई देने लगी। लेकिन, कुछ दिनों बाद ये सब भी ढोंग निकला। शहर का कचरा उठा नहीं और एजेंसी का बिल बढ़ता गया। कुछ इलाकों में सफाई की पुरातन जागीरदारी प्रथा तब भी चलती रही। लेकिन, इसके बाद का परिदृश्य एकदम बदला! खुद नगर निगम ने ही सफाई की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली! निगम आयुक्त ने इसे मुहिम तरह लिया और सिलसिला चल पड़ा! एक वार्ड में घर-घर से कचरा इकट्ठा करने का जो प्रयोग शुरू किया, कुछ महीनों में वो पूरे शहर में फ़ैल गया।
    किसी शहर की सफाई व्यवस्था का गीत-संगीत से क्या सीधा संबंध हो सकता है! इस सवाल का जवाब देने में किसी को शायद वक़्त लगे, किंतु इंदौर के लोग जानते हैं कि ये जागरूकता फैलाने का सबसे बड़ा माध्यम बना! शहर के हर घर के दरवाजे से कचरा इकट्ठा करने के लिए सुबह से देर रात तक चलने वाली साढ़े तीन सौ से ज्यादा गाड़ियों पर बजते दो खास गीतों ने इंदौर को देश का सबसे साफ शहर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। कुछ महीनों से तो सुबह लोगों की आँख इन्हीं गीतों को सुनकर खुलती है। शहर को स्वच्छ रखने के लिए ये गाड़ियां गली-मोहल्लों और सड़कों के फेरे लगाती रहती हैं। धीमी गति से गली-गली में घूमती और घर के सामने रूकती इन गाड़ियों में बजता कैलाश खेर का गाया ‘स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने’ और शान की आवाज में ‘हल्ला-हो हल्ला ... इंदौर को स्वच्छ बनाना है, अब हमने ये ठाना है’ बजता रहता है। बच्चों से लेकर बड़ों तक को इन दोनों गीतों के बोल रट गए हैं।
  इन ‘सुरीले’ सफाई वाहनों के चलाए जाने के पीछे एक व्यावहारिक कारण है, जिससे देश के कई छोटे-बड़े शहर जूझ रहे हैं। समस्या ये थी कि लोग अपने घरों से रोज निकला कचरा कहाँ फेंके? क्या सड़कों किनारे लगी कचरा पेटियों डालें या किसी खाली पड़ी किसी जमीन पर? अभी तक यही हो भी रहा था! इसी का हल इन गाड़ियों से निकला, जिनसे घरों का कचरा जमा करके सीधे शहर बाहर ट्रेंचिंग ग्राउंड में फेंका गया! लोगों को गाड़ियों के आने की सूचना मिल जाएं, इसके लिए उनमें गाने बजाये जाने लगे! जब सड़कों के किनारे रखी कचरा पेटियां हटा दी गईं, तो लोगों के लिए कचरा गाड़ियों में डालना मज़बूरी हो गया! लेकिन, परंपरागत मेहतर व्यवस्था ने इसमें भी रुकावटें डालीं, पर प्रशासन अडिग रहा तो धीरे-धीरे सब ठीक होता चला गया। देशभर में इंदौर के सबसे स्वच्छ शहर होने कहानी इसलिए भी मायने रखती है कि पिछले साल देश के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर 25वें नंबर पर था। साल 2011-12 में सफाई के मामले में शहर 61वें स्थान पर था। करीब सवा दो साल बाद अब इंदौर ने स्वच्छता के मामले में जो मिसाल पेश की है, उसे उल्लेखनीय माना जा सकता है।
    कचरे की समस्या से निपटने के अलावा खुले में शौच की लोगों की आदत से शहर को मुक्त कराना भी आसान नहीं था। नगर निगम ने इसके लिए दो साल पहले अभियान छेड़कर लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता फैलाई। साढ़े 12 हज़ार सिंगल शौचालय बनाए गए। 174 सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों की हालत सुधारी गई दुरस्त की गई और 17 चलित शौचालयों का इंतजाम किया गया। दो साल में सुलभ इंटरनेशनल संस्था की मदद से 61 नए सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों बनाए गए। इसी सब का नतीजा था कि केंद्र सरकार ने जनवरी में इंदौर के शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया। नगर निगम ने सैकड़ों कर्मचारियों और मशीनों से सफाई व्यवस्था को सुचारू बनाने में बड़ा योगदान दिया है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर भी इंदौर में काम हुआ। शहर और जिला दोनों ही खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। शहरी व ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया गया।
  इंदौर में साफ़-सफाई की ये बड़ी उपलब्धि भी राजनीति से मुक्त नहीं रह सकी। शहर के पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे ने इसका श्रेय सफाई कर्मचारियों को देते हुए इसे अपने कार्यकाल से जोड़ने में भी संकोच नहीं किया। फिलहाल वे मप्र गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष हैं।इंदौर को मिली राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि पर उनका कहना था कि जब मैं महापौर बना था, तब साफ़-सफाई के मामले में इंदौर का नंबर देश में 271वां था। मैंने सफाई व्यवस्था में सुधार किया। जिसका नतीजा यह रहा कि इंदौर देश में 25वें स्थान पर पहुंच गया। वे यहीं नहीं रुके और कहा कि शहर को देश में पहले स्थान तक पहुंचाने में सफाईकर्मियों का बड़ा योगदान है। उनका नागरिक अभिनंदन किया जाना चाहिए।
   यहाँ तक तो ठीक है पर मोघे जो बोल रहे है उसमें कितनी सच्चाई है, ये भी परखा जाना चाहिए। कृष्णमुरारी मोघे का महापौर पद का कार्यकाल 10 जनवरी 2015 को समाप्त हुआ था। 2014 मे इंदौर 149वें स्थान पर था। वर्तमान महापौर मालिनी गौड़ ने फरवरी 2015 में शपथ ली। इसके बाद सर्वे के जो नतीजे आए उसमें इंदौर को 61वां स्थान मिला। 2016 में इंदौर 25वें स्थान पर तथा 2017 में देश में पहले स्थान पर आया! दरअसल, सफाई एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें सुधार किए जाते रहना चाहिए। लंबे समय से किए जा रहे प्रयासों का ही नतीजा है कि आज साफ़-सफाई में इंदौर शिखर पर पहुँच गया। लेकिन, अब कैलाश खेर और शान के उन गानों को बदला जाना जरुरी हो गया! क्योंकि, अब 'इंदौर स्वच्छ बनाना है ... अब हमने ये ठाना है!' ये बात अब मौजूं नहीं है। इंदौर तो अब स्वच्छ हो गया अब तो इसे 'ग्रीन शहर' बनाना है।
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