हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पुराने नेताओं को फिर सक्रिय राजनीति में लाने की कोशिशें हो रही है। कम से कम पार्टी के पुराने चांवल कहे जाने वाले इंदौर के महेश जोशी में अचानक आए उभार से तो यही लगता है। करीब-करीब राजनीतिक अज्ञातवास में चले गए जोशी फिर मैदान में दिखाई दिए! आते ही उन्होंने अपने परिचित अंदाज में जो कहा वो उनकी सक्रियता के साथ उनकी प्रतिबद्धता में बदलाव का भी इशारा है। वे दिग्विजय सिंह के खिलाफ खुलकर बोले! कमलनाथ को लेकर भी वे बहुत ज्यादा आशांवित नहीं लगे! पर, ज्योतिरादित्य सिंधिया में उन्हें संभावनाएं नजर आई! प्रदेश में पार्टी को नए सिरे से फिर खड़ा करने का जिन्हें दायित्व सौंपा गया है, उनमें एक वे भी हैं। उन्हें प्रदेश में इंदिरा गांधी जन्मशताब्दी समारोह के नाम पर कांग्रेसियों को इकट्ठा करना है। इस बहाने वे पार्टी को ताकत देने की जुगत लगा रहे हैं। मुद्दे की बात यह है कि इंदौर में महेश जोशी की सक्रियता से कई नेताओं का राजनीतिक वजूद खतरे में आ सकता है। क्योंकि, उनकी दवा बहुत कड़वी होती है, जिसे आजकल के नए कांग्रेसी शायद हजम न कर सकें!
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प्रदेश में 'मिशन-2018' के लिए कांग्रेस को एकजुट करने के लिए कभी कद्दावर नेता रहे महेश जोशी को एक बार फिर संगठन ने जिम्मेदारी सौंपी है। कई सालों से वे खामोश थे। पिछले कुछ समय से वे राजधानी के संगठन कार्यालय में दिखाई दे रहे थे। पर, कोई समझ नहीं पा रहा था कि उनकी भूमिका क्या है? कुशलगढ़ से भोपाल उन्हें क्यों बुलाया गया? 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही उन्होंने खुद को सक्रिय राजनीति से मुक्त कर लिया और अपने पैतृक गांव कुशलगढ़ जा बसे थे। सालों बाद पहली बार उन्हें झाबुआ-रतलाम लोकसभा उपचुनाव के दौरान देखा गया था। लेकिन, अब ये स्पष्ट हो गया कि पार्टी ने उनका लक्ष्य तय कर दिया। वे प्रदेश स्तर पर पुराने कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का काम शुरू कर रहे हैं। 'मिशन 2018' को देखते हुए कांग्रेस जो बदलाव कर रही है, उस रणनीति में पुराने नेताओं को फिर सक्रिय करने का काम शुरू किया गया है। महेश जोशी पार्टी कि इस रणनीति में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। बताया जा रहा है कि वे युवा नेताओं से समन्वय बनाकर पुराने नेताओं को भी जोड़ने की जिम्मेदारी निभाएंगे।
मध्यप्रदेश की राजनीति में लंबे समय से ख़म ठोंककर राजनीति करने वाले महेश जोशी की संगठन क्षमता बेजोड़ रही है। उनकी इस कार्यशैली से सभी बड़े नेता उनके कायल भी रहे। पिछले चुनाव के बाद कुछ मामलों में सैद्धांतिक विरोध के बाद वे खामोश हो गए थे और इंदौर से बाहर ही रह रहे थे। उन्होंने सभी प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप भी बंद कर दिए थे। इंदौर में भी वे नजदीकी साथियों के यहाँ कभी-कभार आते-जाते दिख जाते! लेकिन, कांग्रेस के बड़े नेताओं ने महसूस किया कि महेश जोशी को संगठन के काम में फिर लगाया जाना जरुरी है! उनके अनुभव का लाभ लेकर उन्हें 'मिशन 2018' के लिए सक्रिय किया जाए। इसलिए कि इंदौर में पार्टी जिस स्थिति में है, उससे उबारना आसान नहीं है।
नए सिरे निर्धारित की गई महेश जोशी की सक्रियता के बाद इंदौर शहर कांग्रेस में क्या बदलाव होगा, ये देखने वाली बात होगी! उन्होंने आते ही मीडिया के सामने खुद जिस तरह प्रोजेक्ट किया और सीधे मुख्यमंत्री पर हमले किए, वो उनकी राजनीतिक तैयारी का संकेत है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, भाजपा को कहाँ और कैसे घेरना है, ये भी वे अच्छी तरह जानते हैं। अभी भाजपा की नई पीढ़ी के नेता शायद नहीं जानते कि महेश जोशी की राजनीतिक शैली क्या है? महेश जोशी जितना अंदर से अपनी पार्टी के नेताओं को जानते हैं, उतनी ही जानकारी उन्हें भाजपा के बड़े नेताओं की भी होती है। वे हर नेता की गहराई से वाकिफ हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के उथले नेता तो महेश जोशी के फिर जागने से तो परेशान हैं ही, भाजपा के नेताओं की भी नींद में खलल पड़ा है।
उनकी सक्रियता और मुखरता का इशारा तब दिखा, जब उन्होंने पत्रकारों के सामने दिग्विजय सरकार के दूसरे कार्यकाल की खुलकर आलोचना की! उन्होंने कहा कि दूसरे कार्यकाल में दिग्विजय सिंह का व्यवहार ही नहीं, नीतियां भी खराब हो गई थीं। यही कारण था कि कांग्रेस मध्यप्रदेश की सत्ता से बाहर हो गई। चुनाव से करीब सालभर पहले उन्होंने शासकीय कर्मचारियों से पंगा लिया। ऐसे काम वही कर सकता है, जिसे प्रदेश में फिर से सरकार नहीं बनाना हो। महेश जोशी ने जिस तरह दिग्विजय सिंह की आलोचना की, वो पार्टी की किसी रणनीति का ही हिस्सा हो सकता है। जबकि, दिग्विजय सरकार में महेश जोशी पार्टी की धुरी थे। उन्हें 'किंग मेकर' कहा जाता है। मानने वाले यहाँ तक कहते हैं कि उनकी वजह से ही दिग्विजय सिंह दूसरी बार सरकार बना सके थे।
महेश जोशी के मुताबिक प्रदेश में पार्टी को फिर खड़ा करना है तो सभी बड़े नेताओं को सारे मतभेद छोड़कर एक साथ मैदान उतरना होगा। तभी निष्क्रिय हो चुके कार्यकर्ताओं में उत्साह जागेगा। प्रदेश में अध्यक्ष बदले जाने के मुद्दे पर भी उनके विचार स्पष्ट हैं। उनका कहना है कि किसी को भी कमान सौंपो चौथे दिन उसे बदलने की मुहिम शुरू हो जाती है।
लोगों को याद है कि इंदौर में महेश जोशी की तूती किस तरह बोलती थी! अपनी बेबाकी और बात करने की शैली के कारण वे लोगों और कांग्रेसियों के बीच हमेशा धुरी बने रहे। शहर में तैनात होने वाले हर अफसर को उनके दरबार में सबसे पहले हाजिरी लगाना पड़ती थी। प्रदेश और शहर कांग्रेस से हटने के बाद भी लम्बे समय तक उनका रुतबा कायम रहा। वे सही मायने में इंदौर शहर की राजनीति की धुरी रहे। सारे छोटे-बड़े ग्रह उनके आसपास ही चक्कर लगाते थे। वे सही वक़्त पर सही सलाह के लिए भी जाने जाते रहे है। अब वे इंदिरा गांधी के बहाने पार्टी को फिर जिन्दा करने की कोशिश कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह के बाद महेश जोशी संभवतः अकेले ऐसे नेता है, जो प्रदेश के बड़े इलाके के कार्यकर्ताओं को उनके नाम से जानते हैं। उनके भोपाल निवास पर कार्यकर्ताओं का सरकार न रहने के बाद भी आने का क्रम नहीं टूटा था! भाजपा सरकार बनने के बाद भी वे इस बात का ध्यान रखते थे, कि कार्यकर्ताओं के कोई काम न रुकें!
महेश जोशी की खासियत है कि वे राजनीति की शतरंज में हर मोहरे की अहमियत को समझते हैं। वे चाल चलना और दूसरे को उसी के घर में घेरकर पटखनी देना भी अच्छी तरह जानते है। उनके बारे में प्रचलित है कि वे राजनीति की हर चाल भांप लेते हैं और उसका तोड़ निकालने में देर नहीं करते! आज भी माना जाता है प्रदेश में दिग्विजय सिंह को स्थापित करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। दिग्विजय सिंह ने भी बतौर सलाहकार उनको पूरी तवज्जो दी! लेकिन, पार्टी की फिलहाल जो हालत है, उस पर लगाम लगाने का काम सिर्फ महेश जोशी ही कर सकते हैं। पार्टी के हर नेता की खूबियों और खामियों का उन्हें बखूबी से अंदाजा है। इसकी वे जानकारी रखते हैं ताकि उसका सही जगह पर सही उपयोग किया जाए।
यदि वे फिर अपने पुराने अंदाज में आ गए, तो शहर कांग्रेस की कई कमजोरियों का निपटारा हो जाएगा। इंदौर में कांग्रेस जिस तरह खेमों में बंटी है, उससे पार पाना किसी नए नेता के लिए आसान नहीं था। सभी खेमों के क्षत्रपों को एक जाजम पर लाना और उन्हें पार्टी के लिए सक्रिय करने का जिम्मा अब महेश जोशी के हवाले है। उनके होने से सबसे बड़ा बदलाव तो पार्टी के बूथ मैनेजमेंट में आएगा। इसलिए कि महेश जोशी का चुनाव संचालन बेजोड़ है। उनकी निगरानी में कांग्रेस सही टीम के साथ मैदान में मोर्चा संभालती है तो पार्टी को वे नई ताकत देने में पूरी तरह सक्षम हैं। देखा जाए तो ये पार्टी का सही समय पर सही फैसला है। पर, रणनीति बनाना और उसपर अमल होना, दो अलग-अलग मुद्दे हैं। नई पीढ़ी के खबरबाज नेता महेश जोशी की कड़वी दवा को हजम कर पाते हैं या नहीं, सारा दारोमदार इस बात पर टिका है।
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