हेमंत पाल
फिल्म बनाना कभी एक बड़ा कारोबार बन सकता है, ये शायद तब नहीं सोचा गया होगा जब फ़िल्में बनना शुरू हुई थी। आजादी से पहले ये लोगों में क्रांति की अलख जगाने, धार्मिक कहानियाँ बताने और समाज सुधार के लिए किया जाने वाला प्रयास भर था। आजादी के बाद लम्बा वक़्त ऐसी फ़िल्में बनाने में बीता जिसमें आजादी के आंदोलन से जुड़ी कहानियां थीं। इसी दौर में समाज सुधार की बातें भी फिल्मों में दिखाई देने लगीं। लेकिन, तब भी ये पूरी तरह कारोबार नहीं बन सका। फ़िल्मकार की लागत निकल जाती तो उसे लगता सब मिल गया! लेकिन, इस दौर में भी दादा साहेब फालके की धार्मिक फिल्म 'लंका दहन' ने कमाई का डंका बजाया था। दर्शकों के टिकट से मिले सिक्कों को बैलगाड़ियों में लादकर तक लाना पड़े थे। लेकिन, धीरे-धीरे सिनेमा को सपनों की दुनिया में बदलते देर नहीं लगी। सत्तर के दशक से सिल्वर और गोल्डन जुबली का सिलसिला चल पड़ा। 25 हफ्ते यानी 6 महीने फिल्म चली तो सिल्वर जुबली और 50 हफ्ते चली तो गोल्डन जुबली। अब तो वो सब भी पुरानी बात हो गई! अब फ़िल्मी कारोबार को हफ़्तों में नहीं करोड़ों की कमाई में गिना जाता है। जो फिल्म 100 करोड़ का कारोबार कर ले, वही सफलता की सीढ़ी पर चढ़ी फिल्म मानी जाती है।
ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से बात शुरू करें तो 1943 में आई बॉम्बे टॉकीज़ की 'किस्मत' को उम्मीद से ज्यादा कमाई वाली फिल्मों में गिना जाता है। कोलकाता के एक ही सिनेमाहाल में ये बोल्ड फिल्म लगातार तीन साल चली। इसे हिंदी फिल्म इतिहास की पहली ब्लाक बस्टर भी कहा जाता है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता कि तब फिल्म ने एक करोड़ रुपये का बिजनेस किया था, जो आज के 65 करोड़ के बराबर है। 1949 में राज कपूर के निर्देशन में बनी 'बरसात' की सफलता ने आरके स्टूडियो की स्थापना की नींव डाली थी। फिल्म ने एक करोड़ 10 लाख का कारोबार करके छह साल पहले बनी 'किस्मत' का रिकार्ड तोड़ दिया था। राजकपूर की ही 1951 में बनी 'आवारा' ने भी कमाई का रिकॉर्ड बनाया था। अमेरिकी 'टाइम' मैगजीन की 'ऑल टाइम ग्रेट 100 फिल्म्स' की लिस्ट में यह 22वें नंबर पर है। इस फिल्म ने एक करोड़ 25 लाख का कारोबार करके अपने बैनर की ही पिछली फिल्म 'बरसात' का रिकार्ड ध्वस्त किया था। दिलीप कुमार के कॅरियर की सफल फिल्मों में 1952 में बनी 'आन' को गिना जाता है। इस फिल्म ने तब डेढ़ करोड़ की कमाई की थी।
1955 में बनी 'श्री 420' से राज कपूर और नरगिस की जोड़ी परवान चढ़ी। इस फिल्म के जरिए आरके फिल्म्स ने एक बार फिर अपनी सफलता का परचम लहराया। अपने समयकाल में 'श्री 420' ने दो करोड़ रुपए कमाए थे। लेकिन, 1960 में बनी 'मुगले आज़म' उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी और इसने कमाई भी अच्छी की! इस फिल्म ने पाँच करोड़ रुपए कमाए थे जिसका रिकॉर्ड टूटने में 15 साल लगे। लेकिन, 1974 में आई 'शोले' ने सफलता की इतनी लम्बी लकीर खींच दी थी, उससे आगे निकलने में फिल्मकारों को बरसों लग गए। न्यूयार्क टाइम्स जैसे नामचीन अखबार में इस फिल्म को हिन्दी फिल्म मेकिंग में क्रांतिकारी और पटकथा को लेखन में पेशेवर शुरुआत के तौर पर देखा। 65 करोड़ का कारोबार करने वाली ये फिल्म आज भी मील का पत्थर है।
इसके बार 1994 में आई राजश्री की 'हम आपके हैं कौन' की अपार सफलता ने 100 करोड़ रुपए के बिजनेस का ऐसा मापदंड स्थापित कर दिया कि आज हर फिल्म की सफलता को इसी पैमाने से आंका जाता है। इसके बाद तो धूम, ग़दर, गजनी ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का रिकॉर्ड ही बना डाला। लेकिन, 2009 में आई 'थ्री इडियट्स' ने 200 करोड़ कमाकर दिखा दिए। अब वक़्त था रिकॉर्ड टूटने का। 'पीके' ने इंडिया और ओवरसीज मिलाकर 792 करोड़ का बिजनेस किया। 'बाहुबली' सीरीज पहली फिल्म ने 540 करोड़ कमाकर दिखा दिए। लेकिन, हाल ही में रिलीज हुई 'बाहुबली-2' ने तो वो इतिहास रच दिया, जिसका कोई तोड़ नजर नहीं आता। इस फिल्म ने रिलीज के पहले दिन ही 120 करोड़ का कारोबार किया और हफ्ता बीतने से पहले ही देश और दुनिया में 810 करोड़ रुपए का टोटल कारोबार का आंकड़ा छू लिया। फिल्म ट्रेड के जानकार कहते हैं कि ये फिल्म एक हज़ार करोड़ से ज्यादा का बिजनेस कर सकती है। यानी अब 100 करोड़ क्लब के सदस्य भी इस फिल्म के आगे बौने दिखने लगे!
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