Friday, June 9, 2017

क्यों चलती है कोई फिल्म?


- हेमंत पाल

  फिल्म इंडस्ट्री का ये सबसे अहम् और चिर सवाल है कि आखिर कोई फिल्म हिट कैसे होती है? एक फिल्म हिट हो जाती है और दूसरी फ्लॉप! इंडस्ट्री में हिट और फ्लॉप का अभी तक न तो कोई निर्धारित फार्मूला है और न कोई इसका कारण ही समझ पाया! फिल्मकारों के लिए दर्शकों की पसंद और नापसंद आज भी एक अबूझ पहेली है। फिल्म की कहानी अच्छी हो तो क्या फिल्म चलेगी, क्या गीत-संगीत से दर्शक आकर्षित होते हैं, संवाद की फिल्म में क्या अहमियत है या फिर जमकर एक्शन हो तो दर्शक खिंचे चले आएंगे? यदि किसी फिल्म में ये सब हों तो क्या फिल्म के हिट होने की गारंटी है? लेकिन, किसी के पास कोई जवाब नहीं है! 
  फिल्म के जानकारों का कहना है कि दर्शकों का बड़ा वर्ग संवादों को ज्यादा महत्व नहीं देता। उनका तर्क है कि फिल्म सिर्फ संवादों से नहीं चलती, कई और कारणों से अच्छी बनती हैं। अगर निर्देशन की बात की जाए तो शांताराम, सोहराब मोदी, केदार शर्मा, नितिन बोस, राज कपूर, चेतन आनंद, विमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी, यश चोपड़ा और सुभाष घई जैसे कई बड़े निर्देशकों की फिल्में पिटी हैं। 1950 के दशक में माना जाता था कि मधुर गीत-संगीत फिल्म को चलाता है। लेकिन, ऐसी दर्जनों मिसाल हैं जब फिल्म का गीत-संगीत लोकप्रिय हो गया, पर फिल्म नहीं चली। 

  बड़े सितारों के भरोसे फिल्म को खींचने की कवायद भी कई बार मात खा चुकी है। इंडस्ट्री में ऐसा कोई स्टार नहीं है, जिसके करियर में कोई फ्लॉप न हो! अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान से लगाकर राजेंद्र कुमार तक की फ़िल्में फ्लॉप हो चुकी है, जिसे जुबली कुमार कहा जाता था। वास्तव में किसी फिल्म की सफलता के कई कारण होते हैं। उनका समानुपातिक तालमेल ही फिल्म को सफल बनाता है। कहानी तो किसी भी फिल्म की जान होती है और उसमें रंग भरती है कसी हुई पटकथा। फिर नंबर आता है गीत-संगीत का। इन सबके बाद निर्देशक की रचनात्मकता से संपूर्ण फिल्म बनती है। लेकिन, ऐसा व्यवस्थित तालमेल कम ही बनता है। यही कारण है कि कभी गीत फिल्म का सहारा बन जाते हैं तो कभी एक्शन से नैया पार लगती है। लेकिन, कभी किसी एक्टर की संवाद अदायगी फिल्म की पहचान बन जाए तो वह सालों तक उसकी याद ताजा रखता है।

 आजादी से पहले तो कुछ फिल्में सिर्फ ओजपूर्ण संवादों की वजह से ही चर्चित हुईं। सोहराब मोदी की ‘पुकार’ व ‘सिकंदर’ इसकी मिसाल हैं। इन फिल्मों के संवादों में गजब की आग थी। केदार शर्मा की ‘चित्रलेखा’ में पाप और पुण्य की व्याख्या करने वाले संवाद चुटीले थे। बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ व ‘इंसाफ का तराजू’ में संवादों से ही कानून व्यवस्था की बखिया उधेड़ी गई थी। लेकिन कई फिल्मों की पहचान ही उनका एक संवाद बन गई। शोले और मुग़ल-ए-आजम को आज संवादों की वजह से ही याद किया जाता है।  
  कुछ फिल्मों के साथ कोई ऐसी घटना जुड़ जाती है जो फिल्म की सफलता का कारण बनती है। ‘मुगल-ए-आजम’ को उसके कांच से बने वैभवशाली शीश महल और उसमें फिल्माए गए रंगीत गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ से याद किया जाता है। ‘मदर इंडिया’ में आग में घिरी नरगिस को सुनील दत्त का बचाना ही यादगार घटना बन गया। ‘कुली’ को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उसकी शूटिंग के दौरान पुनीत इस्सर का घूंसा लगने से अमिताभ बच्चन घायल हो गए थे। उनकी आंत फटना इतनी बड़ी घटना बन गई थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना विदेशी दौरा स्थगित कर स्वदेश लौटना पड़ा था। फिल्म में वो दृश्य रोककर बताया जाता था कि इस दृश्य में अमिताभ को चोट लगी थी। 
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