- हेमंत पाल
केरल के थालास्सेरी जिले के ब्रेनन कॉलेज में जारी हुई एक मैगजीन को लेकर विवाद पैदा हो गया! 'पैलेट' नाम से छपी इस मैगजीन के 12-13 वें पेज पर एक स्कैच को प्रकाशित किया गया, जिसमें दो लोगों को अनैतिक आग्रह करते दर्शाया गया जबकि थियेटर में राष्ट्रगान बजता दिखाया जा रहा है। आरोप लगा कि मैगजीन में इस स्कैच को राष्ट्रगान का अपमान करने के नियत से शामिल किया है। जबकि, स्टूडेंट यूनियन का कहना है कि मैगजीन में केवल समकालीन मुद्दों पर चर्चा की गई है। राष्ट्रगान बजाने और उसके सम्मान में खड़े होने की परंपरा कहां से आ गई! क्या संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है कि लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना ही चाहिए? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर सिनेमाहाल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाया जाएगा और मौजूद दर्शकों को खड़ा होना होगा!
राष्ट्रगान के सम्मान और अपमान को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं। कोई पीड़ित होता है तो कई प्रताड़ित। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में भी सिनेमा हाल और थिएटरों में राष्ट्रगान बजाने की प्रथा है। देश में आजादी के कुछ समय बाद तक यह प्रथा सिनेमा हॉल में लागू थी। फिल्म समाप्त होने के तत्काल बाद परदे पर झंडा लहराता था और नेपथ्य में राष्ट्रगान बजता! लेकिन, फिल्म समाप्त होने के बाद ऐसी प्रथा होने के कारण लोग घर जाने की जल्दी में रुकना पसंद नहीं करते थे। एक प्रकार से राष्ट्रगान के समय लोग सिनेमा हॉल से बाहर जाने लगते! यह राष्ट्रगान के अपमान के समान था। कुछ आपत्तियों करीब चार दशक पहले यह प्रथा बंद कर दी गई थी। लेकिन, पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट का राष्ट्रगान संबंध में नया आदेश एक जनहित याचिका पर आया! इसे मध्यप्रदेश के सेवानिवृत्त इंजीनियर श्यामनारायण चौकसे ने दायर किया था। पिछले 16 साल से लड़ाई लड़ रहे 76 साल के चौकसे के लिए यह फैसला न सिर्फ़ खुशियों भरा था, बल्कि काफ़ी भावनात्मक था।
वास्तव में तो चीन के आक्रमण के बाद सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने की परम्परा आरंभ हुई थी। फिर सरकार ने ही एक आदेश जारी किया जिसके बाद सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजाए जाने को रोका गया। सरकार का यह आदेश इसी वजह से आया था कि कई लोगों ने शिकायत की थी कि सिनेमा घरों में राष्ट्रगान का अपमान होता है। सिनेमा घरों में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने से कई विवाद भी हुए। कोई इससे राष्ट्रगान के अपमान की बात कहता। कोई न बजाने से अपमान की बात कहता है। कोई कहता है कि इससे देश में राष्ट्रभक्ति की भावना बढ़ेगी। कोई कहता है कि ऐसा करने से देश का भी अपमान होता है। यही वजह है कि सिनेमा घरों में राष्ट्रगान बजते वक़्त जब कोई खड़ा नहीं हुआ, तब विवाद हो गया। कभी किसी दिव्यांग के खड़े न होने से भी विवाद हुए।
देखा जाए तो सिनेमाहाल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने से पहले किसी को एतराज नहीं है। लेकिन, अतिवादिता के चलते अकसर विवाद की स्थितियां निर्मित होती है। वैसे तो राष्ट्रगान के दौरान खड़े होना अच्छा है। लेकिन, कभी विकलांगता या गर्भवती महिला या अति बुजुर्ग द्वारा अचानक उठने मे समस्या होती है जिसे कुछ लोग राष्ट्रगान का अपमान कर मारपीट या गालीगलौच पर उतर आते है। बाद में सरकार ने स्पष्ट किया कि विकलांगों या असहायों को इस दौरान खड़े होने की अनिवार्यता नहीं है। ऐसा भी होता है कि सिनेमा घरों में बैठी भीड़ बिना कारण जाने विवाद पैदा करने लगती है, जिससे इसके विरोध जैसी हालत निर्मित होती है। इसके बावजूद यदि कोई मैगज़ीन राष्ट्रगान पर अपमानजनक प्रतिक्रिया व्यक्त करे तो मुद्दा सोच का है।
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