- हेमंत पाल
इंदौर के देश में सफाई में नंबर-1 होने पर मनाए जाने वाले जश्न ने शहर की भाजपा राजनीति को उलझा दिया। सांसद सुमित्रा महाजन उर्फ़ 'ताई' इसका श्रेय लेने के लिए अपने अराजनीतिक सलाहकारों की जेबी संस्था के बैनर पर कार्यक्रम करवाना चाहती थी! लेकिन, एनवक्त पर मामला बिगड़ गया और 'ताई' को पीछे हटना पड़ा! शहर में हर कोई ये सवाल करता नजर आ रहा है कि नगर निगम और जिला प्रशासन की उपलब्धि का सेहरा कोई निजी संस्था अपने सर पर क्यों बांधना चाहती है? वो भी ऐसी संस्था जिसका अपना कोई राजनीतिक और सामाजिक वजूद नहीं है! अब ये कार्यक्रम बड़े स्तर पर सरकार खुद कर रही है। इस एक घटना ने शहर में भाजपा की राजनीति के समीकरणों को भी उलट-पलट दिया। मुख्यमंत्री से निकटता ने महापौर मालिनी गौड़ उर्फ़ 'भाभी' के नंबर तो बढ़ा दिए। लेकिन, 'ताई' को राजनीति के अखाड़े में पटखनी खाना पड़ी। वो भी सिर्फ इसलिए कि उनकी राजनीतिक सलाहकार मंडली ऐसे लोगों की है जो समीकरणों को संतुलित करना तक नहीं जानते।
सफाई के मामले में इंदौर देश में नम्बर-वन रहा! ये हर इंदौरवासी के लिए ख़ुशी की बात है। लेकिन, इसका श्रेय कौन ले, ये फकत राजनीति है। भाजपा के बड़े नेता इस उपलब्धि का सेहरा अपने सर बांधना चाहते हैं। जबकि, सीधे-सीधे तो ये तमगा नगर निगम और महापौर के अलावा किसी और को दिया जा सकता! इसके अलावा कोई इस सफलता का हिस्सेदार है तो वो हैं यहाँ के सफाई कर्मचारी! लेकिन, सांसद सुमित्रा महाजन ने भी इसमें भी अपनी हिस्सेदारी बांटना चाही। उनके समर्थकों की जेबी संस्था 'महानगर विकास परिषद्' ने इंदौर के सफाई में अव्वल होने की घोषणा के साथ ही एलान कर दिया था कि उनकी संस्था नगर निगम और सफाई कर्मियों का सम्मान करेगी! सवाल उठता है कि सम्मान करने का श्रेय किसी निजी संस्था को क्यों मिले? हास्यास्पद बात ये भी है कि स्वयं सुमित्रा महाजन ने भी अपने बयान में शहर में साफ़-सफाई की शुरुआत दिवाली पर उनकी संस्था द्वारा किए गए धार्मिक स्थलों की साफ़ सफाई को माना!
नेताओं में इसका श्रेय लेने की होड़ ने राजनीति को मजाक बनाकर रख दिया। मुख्यमंत्री कहने पर नगर निगम ने सफाई कर्मियों के सम्मान में 17 मई को होने वाला 'प्रणाम-इंदौर' कार्यक्रम निरस्त कर दिया। क्योंकि, इसमें सांसद सुमित्रा महाजन को तवज्जो नहीं दी गई थी। जैसे ही कार्यक्रम निरस्त होने की घोषणा हुई 'महानगर विकास परिषद' ने बयान जारी करके कार्यक्रम 5 जून को करने का एलान कर दिया। जबकि, सच्चाई ये है कि नगर निगम से इस संस्था की कार्यक्रम को लेकर कोई बात भी तब तक नहीं हुई थी। ये सब इसलिए कि 'ताई' नहीं चाहती कि इंदौर के नंबर-वन बनने के तमगे से वे कहीं भी वंचित जाएँ। नगर निगम 17 मई से पहले भी दो कार्यक्रम बना चुका था, जिसमें शिवराजसिंह चौहान को आना था, पर वे भी निरस्त हो गए। नगर निगम ने प्रस्तावित आयोजन में सुमित्रा महाजन को आमंत्रित तक नहीं किया था और न आमंत्रण पत्र में उनका नाम था। 'ताई' ने इसपर आपत्ति ली तो मुख्यमंत्री को कार्यक्रम ही निरस्त करना पड़ा। ये सारा विवाद जब दिल्ली पहुंचा तो नगरीय विकास मंत्री वैंकैया नायडू ने मोर्चा संभाला।
सवाल ये उठता है कि सफाई के मामले में इंदौर के नंबर-वन बनने पीछे नगर निगम और जिला प्रशासन की मेहनत है तो 'महानगर विकास परिषद' जैसी जेबी संस्था सबका सम्मान करने वाली कौन होती है? वो भी नगर निगम से बिना पूछे कार्यक्रम करने और सम्मानित करने वाली? 'महानगर विकास परिषद' ने अपनी मर्जी से नगर निगम के साथ साझा कार्यक्रम क्या जारी किया, शहर की भाजपा राजनीति मानो भूचाल आ गया! बताते हैं कि जब महापौर के जरिए बात मुख्यमंत्री तक पहुंची तो सारा माजरा ही पलट गया। क्योंकि, इधर सुमित्रा महाजन की टीम और उधर महापौर के लोग एक दूसरे की बयानबाजी दिल्ली तक पहुंचा रहे थे। इस वजह से शहर में पार्टी और बड़े नेताओं की खिल्ली उड़ने लगी थी। अंततः तय हुआ कि इंदौर के सफाई में नंबर-वन बनने का जश्न न तो महानगर विकास परिषद् करेगी और न अकेली नगर निगम! अब ये कार्यक्रम राज्य सरकार कर रही है और इसमें शहरी विकास मंत्री वैंकैया नायडू को बुलाया गया है। दरअसल, 'ताई' और महापौर के बीच शीतयुद्ध की शुरुआत तो तभी हो गई थी, जब सोशल मीडिया में महापौर मालिनी गौड़ को इंदौर का अगला सांसद उम्मीदवार बनाए जाने की आवाज उठी थी।
इंदौर से 8 बार सांसद बनने वाली सुमित्रा महाजन 'ताई' के कामकाज की शैली और राजनीतिक नुकसान फायदों को लेकर अकसर सवाल किए जाते रहे हैं। क्योंकि, उनकी छवि कभी भी सर्वमान्य जननेता की नहीं बन सकीं! वे हमेशा ही एक ख़ास सभ्रांत वर्ग की नेता बनी रहीं। लगातार 8 बार सांसद बनने के बाद भी उनके आसपास गैर-राजनीतिक लोगों का जमावड़ा ही ज्यादा होता है। इस बार सम्मान समारोह के आयोजन को लेकर जो कुछ हुआ, उसके पीछे भी राजनीतिक अपरिपक्वता स्पष्ट नजर आती है। इंदौर में सफाई के लिए जनजागरण में 'महानगर विकास परिषद' ने कितनी पहल की, ये किसी से छुपा नहीं है। इंदौर जैसे जागरूक शहर में कोई बयानबाजी करके असली नेता बन जाए ये संभव भी नहीं है। यहाँ वे ही नेता जनता के दिल में जगह बना पाते हैं, जो सड़क की राजनीति
इंदौर लोकसभा सीट से सुमित्रा महाजन 'ताई' 1989 से लगातार लोकसभा के चुनाव जीतती आ रही है! लेकिन, शहर के लिए कुछ करने के बारे में उनका खाता खाली ही नजर आता है। वे स्वयं लोकसभा अध्यक्ष के पद तक पहुँच गईं पर शहर को वे कुछ नहीं दे सकीं और न उनके साथ काम करने वालों को वे कोई पहचान दिला सकीं। उन्होंने जब कोशिश की, उन्हें सफलता नहीं मिली। इंदौर में जो काम कैलाश विजयवर्गीय ने अपने विधानसभा क्षेत्र और अपने कार्यकर्ताओं के लिए किया उसके मुकाबले 'ताई' की उपलब्धियां शून्य हैं। अपने बेटे को राजनीति में लाने के लिए 'ताई' प्रयास किसी से छुपे नहीं हैं, पर वे इसमें भी कामयाब नहीं हो सकीं। उनके वर्चस्व को किसी ने कभी चुनौती नहीं दी! क्योंकि, उनके कामकाज का तरीका आक्रामक नहीं रहा। लेकिन, उन्होंने अपनी 'चौकड़ी' में किसी को घुसने भी नहीं दिया! उनकी सारी सक्रियता रेलवे को चिट्ठी-पत्री करने तक ही सीमित रही। सक्रियता से बचकर रहना 'ताई' की आदत रही है! लोग उनकी इस राजनीतिक शैली से कभी खुश नहीं रहे, पर मज़बूरी है कि सामने कोई विकल्प भी नहीं रहा! सफाई के मामले में इंदौर की उपलब्धि को अपने खाते में शामिल करने की उनकी कोशिश की जो हार हुई, वो उनके लिए एक सबक है। कमजोर सिपाहियों के भरोसे कभी किले फतह नहीं होते।
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