- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन के सामने नई मुसीबत है 75 पार वाले नेताओं को चुनाव न लड़ने के लिए समझाना। क्योंकि, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बुजुर्ग नेताओं को चुनाव से अयोग्य ठहराए जाने की संभावना इंकार किया है। इसके बाद बाबूलाल गौर ने तो खुला एलान कर दिया कि वे अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा सरताज सिंह और राघवजी के भी चुनाव मैदान में उतरने के संकेत हैं। राघवजी यौन शोषण के आरोपी होने के कारण भाजपा से निष्काषित हैं। ख़ास बात यह कि ये सभी अपने दम पर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार हैं। गौर ने तो ये भी कहा कि सभी को टिकट देना पार्टी की मजबूरी है। लेकिन, अभी ये यक्ष प्रश्न है कि पार्टी का अंतिम फैसला क्या होगा! क्योंकि, भले 75 साल की उम्र वाले नेताओं को चुनाव लड़ने से पार्टी नहीं रोके, पर किसे टिकट देना है और किसे नहीं, ये तो पार्टी को ही तय करना है।
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भाजपा संगठन के बारे में कहा जाता है कि इनके नियम-कायदे सुविधाजनक स्थितियों को देखकर बनाए और बदले जाते हैं। ये फार्मूला केंद्र से राज्यों तक अपनाया जाता है। 75 पार के नेताओं को राजनीतिक वानप्रस्थ आश्रम भेजने का फार्मूला भी कुछ ऐसा ही है। केंद्र सरकार से पिछले साल दो बुजुर्ग नेताओं नजमा हेपतुल्ला और जीएम सिद्धेश्वरा को इसी फॉर्मूले के तहत हटाया था। हेपतुल्ला के पास अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का काम था और सिद्धेश्वरा भारी उद्योग मंत्रालय से जुड़े थे। जबकि, मध्यप्रदेश से बाबूलाल गौर और सरताज सिंह की छुट्टी हुई थी। एक महिला मंत्री कुसुम मेहदेले को भी जाना था, पर वे कुछ साल देर से जन्मी थीं, इसलिए बच गईं। तब से उन भाजपा नेताओं की गिनती की जाने लगी थी, जो अपनी उम्र की प्लैटिनम जुबली मनाने के नजदीक हैं। ये नेता जहाँ से जीतते आए हैं, वहां उनका विकल्प भी ढूंढा जाने लगा। लेकिन, अचानक हालात बदल गए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के एक बयान से पूरे मामले में नया पेंच आ गया।
अपनी भोपाल यात्रा के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट किया था कि पार्टी में 75 साल की उम्र पार करने वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है। पार्टी अध्यक्ष का ये बयान से सालभर पहले के फॉर्मूले के बिल्कुल उलट है। इस फॉर्मूले ने मध्यप्रदेश की सियासत में पिछले साल भारी हलचल मचाई थी। लेकिन, बदली परिस्थितियों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की मुसीबत बढ़ गई है। शिवराज सिंह मंत्रिमंडल से जून, 2016 में दो मंत्री बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को 75 साल की उम्र पूरी होने पर हटाए गए थे। उनसे कहा गया था कि ये पार्टी हाईकमान का निर्देश है। लेकिन, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के मुताबिक पार्टी ने न तो ऐसा नियम बनाया है और न ऐसी कोई परंपरा कि 75 की उम्र पार कर चुके नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जाएगा। आशय साफ़ है कि इस उम्र के बुजुर्ग नेता भी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
अमित शाह के इस बयान के बाद से बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को हटाने के फैसले पर सवाल उठाने लगे हैं! कहा जा रहा है कि क्या इन दोनों से झूठ बोलकर इस्तीफ़ा लिया गया था? लेकिन, गौर के हाल के बयान ने चिंगारी को फिर भड़का दिया। उन्होंने खुद के अलावा सरताज सिंह के भी विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए। पार्टी से निष्कासित राघवजी और लक्ष्मीकांत शर्मा को लेकर भी उनका बयान सरकार और पार्टी को परेशान करने वाला ही माना जाएगा। गौर ने फिर इस बात को दोहराया कि वे शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट हैं। पार्टी अध्यक्ष ने भी साफ़ कर दिया कि 75 साल से ऊपर के लोगों के चुनाव न लड़ाने की कोई योजना नहीं है। सरताज सिंह ने भी कहा है कि शाह के बयान ने सारे भ्रम दूर कर दिए। अब इस सवाल का जवाब माँगा जा रहा है कि इन दोनों नेताओं से आखिर इस्तीफ़ा क्यों लिया गया? विवादस्पद बयानबाजी के विख्यात प्रदेश के पार्टी के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने पल्ला झाड़ते हुए तत्काल कहा था कि जिसे जो कहना है, वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने बात रखें।
प्रदेश भाजपाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने पिछले साल कहा था कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की उम्र को लेकर बनाई गई गाइड लाइन को सख्ती से लागू किया जाएगा। उनका ये बयान तब आया था जब बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को मंत्रिमंडल से हटाया गया था। उन्होंने ये भी कहा था कि पार्टी के ऐसे नेता, जिनकी उम्र 75 साल पूरी हो चुकी है, उन्हें टिकट नहीं मिल पाएगा। उनके इस बयान से लगने लगा था कि इस स्थिति में पार्टी के मौजूदा नेताओं में से आधा दर्जन से ज्यादा नेताओं को राजनीतिक वानप्रस्थ की और गमन करना पड़ेगा। लेकिन, जितनी तेजी से हालात बदले हैं चक्र उल्टा घूमता नजर आ रहा है।
पार्टी की रीति-नीति से इत्तफाक न रखने वाले भाजपा के कुछ नेता दबी जुबान से कहते कि पार्टी में कोई नैतिकता नहीं है। यहाँ नियम इसलिए गढ़े जाते हैं कि किसे साइड लाइन करना है और किसे लाइन में आगे लाना है। जब गौर और सरताज को मंत्रिमंडल से हटाना था तो 75 साल वाला फार्मूला ले आए। लेकिन, प्रदेश की राजनीति में बाबूलाल गौर और सरताज सिंह कार्यकर्ताओं में सम्मान आज भी बरकरार है। उन्हें पद से जबरन हटाने का भी विरोध हुआ था। अब जबकि, दोनों चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, उनके बयान का स्वागत भी हुआ! दोनों नेताओं ने जो सवाल किए उसके जवाब में उनसे संगठन ने कहा कि ये हाईकमान का फैसला है। अब, जबकि पार्टी अध्यक्ष के फैसले से स्थिति स्पष्ट हो गई इन दोनों नेताओं ने चुनाव के लिए कमर कस ली है। हो सकता है प्रदेश अध्यक्ष को इस सवाल का जवाब देना पड़े कि इन दोनों को किसके निर्देश पर हटाया गया था।
यदि वास्तव में 75 साल वाला फार्मूला गंभीरता से लागू होता तो कुसुम मेहदेले के अलावा कैलाश जोशी, रुस्तम सिंह को भी चुनावी राजनीति से बाहर होना पड़ेगा। मेहदेले इस चुनाव के दौरान 75 साल की उम्र पूरी कर लेंगी। बाबूलाल गौर और सरताज सिंह तो चुनाव लडऩे के लिए योग्य माने ही नहीं जाएंगे। कैलाश जोशी के लिए भी संभावनाएं लगभग खत्म ही हो जाएंगी। रुस्तम सिंह विधानसभा चुनाव के दौरान 73 वें साल में रहेंगे। यदि उन्हें चुनाव का टिकट मिलता भी है तो सरकार बनने और मंत्री बनने की स्थिति में उन्हें बीच कार्यकाल से हटाया जा सकता है। लेकिन, अमित शाह ने जो बयान दिया उससे लगता है कि पार्टी चुनाव जीतने के लिए पार्टी के अंदर कोई असंतोष पैदा होने देना नहीं चाहती। इसीलिए 75 पार वाले नेताओं को चुनाव से अयोग्य घोषित किए जाने के फॉर्मूले से पार्टी दो कदम पीछे हटी है। अब ये अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में बाबूलाल गौर समेत सभी पकी उम्र के नेता लाठी टेकते हुए वोट की अपील करते नजर आएंगे। यानी उन पेड़ों में फिर से हरियाली लौटेगी, जो सूखकर गिरने वाले थे!
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