Sunday, December 30, 2018

दो राजनीतिक चरित्रों का सिनेमाई चेहरा!


- हेमंत पाल

  सिनेमा की दुनिया हमेशा ही राजनीति से बचकर चलती है। क्योंकि, सिनेमा का मकसद सिर्फ लोगों का मनोरंजन होता है। लेकिन, इसे संयोग माना जाना चाहिए कि आने वाले दिनों में दो ऐसी फ़िल्में रिलीज हो रही है, जो पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है या इन फिल्मों को इसी नजरिए से देखा जाएगा! ये वो समय होगा, जब राजनीतिक पार्टियाँ लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस रही होंगी, तभी ये फ़िल्में परदे पर आएंगी। जनवरी में ही रिलीज होने वाली राजनीतिक मकसद वाली इन दो फिल्मों का कथानक कहीं न कहीं मौजूदा राजनीतिक हालात को प्रभावित करता है। दो फिल्मों 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' और 'ठाकरे' के ट्रेलर भी साथ ही रिलीज हुए हैं। इन दोनों फिल्मों के कथानक भारतीय राजनीति के दो बड़े नेताओं की लाइफ स्टाइल बताते हैं। जनवरी में ही रिलीज वाली दो अन्य फ़िल्में हैं सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी फिल्म 'उड़ी' और देशभक्त‍ि की भावना वाली फिल्म 'मणि‍कर्णि‍का' जिसका कथानक झाँसी की रानी पर आधारित है।
    'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री बनने की कहानी है और 'ठाकरे' महाराष्ट्र के शिव सेना नेता बाल ठाकरे की जिंदगी पर बनी है। ये दोनों फ़िल्में बायोपिक हैं, पर एक-दूसरे के विपरीत! जहाँ बाल ठाकरे को हिंदूवाद और क्षेत्रीयता का कट्टर समर्थक और अपने विरोधियों पर जोरदार प्रहार के लिए जाना जाता है, वहीं मनमोहन सिंह पूरी तरह अराजनीतिक चेहरा थे। 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में यही साबित करने की कोशिश की गई है कि उनका प्रधानमंत्री पद तक पहुँचना महज एक हादसा था।
 जहाँ तक फिल्म की बात है ट्रेलर देखकर लगता है कि 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह की भूमिका पूरी शिद्दत से निभाई है। अनुपम को भाजपा के प्रति निष्ठावान माना जाता है, लेकिन बतौर एक्टर उन्होंने मनमोहन सिंह को पूरी जीवंतता से परदे पर उतारा है। फिल्म का ट्रेलर इस संवाद के साथ शुरू होता है 'महाभारत में दो फैमिली थीं, इंडिया में तो एक ही है।' इस संवाद के भी अपने कई मायने निकाले जा सकते हैं। सफ़ेद दाढ़ी और नीली पगड़ी में अनुपम खेर ने दर्शकों को यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि 2004 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह पर गाँधी-परिवार ने किस तरह का अत्याचार किया। ये फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब पर उसी नाम से बनी है। फिल्म का अधिकांश हिंसा सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के आसपास घूमता है।
     दूसरी फिल्म 'ठाकरे' में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बाल ठाकरे का किरदार बहुत जोरदार तरीके से निभाया है। फिल्म में अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के दिए बाल ठाकरे के कुछ बयानों और दक्षिण भारतीयों के लिए दिए गए उनके कुछ बयानों को लेकर सेंसर बोर्ड को आपत्ति थी। इसमें शक नहीं कि इस फिल्म के जरिए शिव सेना को अपने को हिंदूवाद और मराठा मानुष समर्थक पार्टी के रूप में स्थापित करने का मौका मिलेगा।
   राजनीति पर पहले भी कई फ़िल्में बन चुकी हैं। सबसे पहले इस तरह की जिस फिल्म का ध्यान आता है. वह है गुलजार की 'आंधी' जिसके बारे में प्रचारित किया गया था कि ये फिल्म इंदिरा गाँधी के जीवन से प्रभावित थी। ये फिल्म ज़बरदस्त चर्चा में रही, इस पर प्रतिबंध भी लगा! सालभर पहले 'इंदू सरकार' नाम से भी एक फिल्म आई थी, इसके बारे में भी कहा गया था कि ये इंदिरा गाँधी पर बनी थी। 'द  एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर' के चर्चित होने का एक कारण ये भी है कि इस फिल्म के ट्रेलर को भाजपा ने अपने अधिकृत ट्विटर हेंडल पर डाला है। ये ट्रेलर दिलचस्पी भी जगाता है, क्योंकि, इसमें सोनिया गाँधी को खलपात्र बताने की कोशिश की गई है। लेकिन, इस फिल्म से किसी राजनीतिक पार्टी को फ़ायदा होगा और किसी को नुकसान, अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता! क्योंकि, फिल्म दर्शकों के लिए होती है उससे राजनीति के शतरंज का खेल नहीं खेला जा सकता! इसलिए थोड़ा इंतजार तो करना होगा!
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