मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन इतनी बड़ी भी नहीं कि बहुमत जुटा ले! उसने अपने 4 बागी, जो निर्दलीय चुनाव जीते उनके अलावा बसपा और सपा विधायकों के सहयोग से सरकार बनाई है। 2013 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले कांग्रेस को लगभग दोगुनी सीटें मिली है। पिछली बार कांग्रेस ने जितनी सीटें पाई थी, उतनी ही सीटें इस बार भाजपा ने गंवा दी! पिछले चुनावों में कांग्रेस को 58 और भाजपा को 165 सीटें मिली थीं। इस बार कांग्रेस की सीटों में 56 की बढ़ोतरी हुई और उसकी सीटें 114 हो गई! वहीं, भाजपा की सीटें 165 से घटकर 109 हो गई! मुद्दे की बात ये कि भाजपा अपने सबसे बड़े गढ़ मालवा-निमाड़ में ही कांग्रेस से पिछड़ गई! पिछली बार 66 में से 57 सीटें जीतने वाली भाजपा 27 पर ही सिकुड़ गई!
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- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीटों की घट-बढ़, प्रदेश में कांग्रेस के उदय और भाजपा के पतन के पीछे क्या कारण रहे, सबसे अहम् सवाल है! मतदान के पहले भाजपा और खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 'अबकी बार 200 पार' का जोरदार नारा लगाया था! पर, वो 100 के पार जाते ही थम गई! कांग्रेस का 'इस बार 150 पार' का नारा भी उसे बहुमत के लायक सीट नहीं दिला सका? इसका सीधा सा आशय यही है कि जनता ने कांग्रेस को सत्ता जरूर दी, पर लगाम लगाकर और भाजपा को सबक सिखाया कि वो हवा में उड़ना छोड़े!
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 114, भाजपा को 109 और 7 सीटें अन्य को मिली हैं। प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 27 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें जीती थी। बाद में दिलीपसिंह भूरिया के निधन से खाली हुई, झाबुआ-रतलाम सीट कांतिलाल भूरिया ने भाजपा से छीन ली थी। लेकिन, विधानसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं, यदि उसके हिसाब-किताब को समझा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 16 और भाजपा के खाते में 13 सीटें जा सकती हैं। पिछली बार मध्यप्रदेश में आज कांग्रेस के खेवनहार बने कमलनाथ और उनके सामने मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार बनकर खड़े हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ही लोकसभा का मुंह देख पाए थे। बाकी सारे रणबांकुरे खेत रहे थे। फिलहाल के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस मालवा-निमाड़ में ही भाजपा से उज्जैन, खरगोन, धार और इंदौर जैसी लोकसभा सीटें छीन सकती है। क्योंकि, उज्जैन की 8 में 5 विधानसभा सीटें कांग्रेस के खाते में गई है। खरगोन की सभी 5 सीटें और धार की 7 में से 6 सीटें कांग्रेस ने जीती हैं। खंडवा समेत निमाड़ के चार आदिवासी जिलों खरगोन, बड़वानी, धार, झाबुआ में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। भाजपा सरकार के दो मंत्रियों को भी हार का मुँह देखना पड़ा। कुल मिलाकर प्रदेश में अब कांग्रेस का पलड़ा पहले के मुकाबले काफी भारी हो चुका है।
अब जरा भाजपा का गढ़ रहे मालवा-निमाड़ पर नजर दौड़ाई जाए जो इस बार प्रदेश में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा आधार बना! भाजपा को पिछले चुनावों की अपेक्षा 27 सीटों का नुकसान हुआ और कांग्रेस ने 26 सीटें ज्यादा जीती। निर्दलियों के खाते में भी इस बार 3 सीटें गई। इस बार भाजपा को 27 और कांग्रेस को 35 सीटें मिली। इस क्षेत्र में 66 में से 31 सीटें एससी, एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 24 जीती थीं, पर कांग्रेस के खाते में मात्र 6 सीट गई थीं, एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। अबकी बार भाजपा 14 सीट हार गई। भाजपा को 10 सीटें मिली, तो कांग्रेस ने 20 जीती। 31 में से 9 सीटें एससी के लिए हैं। पिछली बार भाजपा ने इस वर्ग की सभी 9 सीटें जीती थीं। जबकि, इस बार उसे 4 जगह ही जीत मिली, 5 सीटें कांग्रेस ने छीन ली। एसटी आरक्षित यहाँ 22 सीटें हैं! 2013 में 15 सीटों पर भाजपा का झंडा गड़ा था और 6 पर कांग्रेस का, पर इस बार 15 सीट कांग्रेस ने जीती और 6 भाजपा ने। एससी सीटों पर भाजपा को जातीय समीकरणों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। भाजपा के राज में दलितों पर हमले बढ़े, जिससे दलित खफ़ा रहे! दूसरी तरफ एट्रोसिटी एक्ट में भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के संशोधन ने सवर्णों को उससे खफ़ा कर दिया। इलाके में एससी सीटों पर दोनों ही वर्गों का मतदाता उससे नाराज़ रहा।
यहां कि 42 ग्रामीण सीटों में से 21 कांग्रेस ने जीती! भाजपा की गलती ये रही कि उसने मालवा-निमाड़ को अपना गढ़ समझकर जीतने का पूरा दम नहीं लगाया! 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा ने मालवा-निमाड़ के शहरी और ग्रामीण की कई सीटें गंवाईं हैं। यही कारण था कि सत्ता उसके हाथ से निकल गई थी। इस बार कांग्रेस ने ग्रामीण इलाके में 24 सीटों पर जीत का झंडा गाड़ा! पिछले चुनाव में भाजपा ने 66 में से 57 सीटें जीती थीं। भाजपा को सबसे बड़ा झटका खरगोन और बुरहानपुर जिले में लगा, जहाँ से भाजपा पूरी तरह ही साफ़ हो गई। इंदौर जैसे भाजपा में गढ़ में भी भाजपा 9 में से 4 सीटें हार गई! जबकि, 2013 में यहाँ उसने 8 सीट जीती थी।
ग्वालियर-चंबल की 34 सीटों में से शहरी क्षेत्र की 7 और ग्रामीण क्षेत्रों में 8 सीटों का कांग्रेस को फायदा हुआ। बुंदेलखंड में तो कांग्रेस को शहरी इलाकों में एक और ग्रामीण इलाके की 2 सीटों का फायदा हुआ। विंध्य के परिणाम जरूर भाजपा के पक्ष में गए। यहां भाजपा ने दस साल पुराने प्रदर्शन को दोहराया और 24 सीटें जीती! मध्य क्षेत्र की बात की जाए, तो 36 सीटों में से शहरी इलाकों में कांग्रेस को 7 और ग्रामीण इलाकों में एक सीट का फायदा हुआ। कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान रीवा-सीधी और सतना में हुआ। जबकि, कांग्रेस को ग्रामीण क्षेत्रों में 8 सीटों का नुकसान हुआ। महाकौशल में जरूर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। यहां शहरी क्षेत्र में कांग्रेस को 11 सीटों का फायदा हुआ। जबकि, भाजपा ने यहाँ शहरी इलाके की 11 सीटें गंवा दी।
इस चुनाव के बाद अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच मंथन शुरू हो गया है। कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा से तीन राज्यों में सत्ता छीनी है, उसने भाजपा के नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी, बल्कि पार्टी को भी ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि, अगले साल होने वाले चुनाव में उसकी सत्ता में वापसी होगी या नहीं! यदि वापसी करना है तो पार्टी को क्या रणनीति अपनाना होगी! कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर भाजपा हमेशा से ही सवाल उठाती रही है। लेकिन, तीन राज्यों के चुनाव नतीजों ने इस सोच में बड़ा बदलाव किया। अब भाजपा ये कहने की स्थिति में भी नहीं है, कि वो अपनी गलतियों से हारी है और न ये कह सकती है कि कांग्रेस की रणनीति ने उसे हराया! यही कारण है कि भाजपा अपनी हार को पचा नहीं पा रही है! अभी भी भाजपा के नेता सत्ता पाने की जुगत में लगे हैं और इसी पाँच साल में फिर सरकार बनाने का दावा भी करने लगे!
गौर करने वाली बात ये भी है कि इस बार दोनों ही पार्टियों के नामी नेताओं के अनुमान फेल हो गए! जहाँ शिवराजसिंह चौहान ने एग्ज़िट पोल के नतीजों के बाद ख़ुद को सबसे बड़ा सर्वेयर बताकर सरकार बनाने का दावा किया था! वहीं वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने 142 एयर दिग्विजय सिंह को 132 सीटों का अनुमान था। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जो मालवा-निमाड़ के प्रभारी थे, उन्होंने भी 'अबकी बार 200 पार' का नारा बुलंद किया था, पर अंत में वे भी खिसककर 130 पर आ गए थे। लेकिन, इन सारे अनुमानों का ध्वस्त होना, अगले साल के मध्य में होने वाले लोकसभा चुनाव पर खासा असर डाल सकता है, इसमें शक नहीं! कांग्रेस अपने प्रदर्शन में और ज्यादा सुधार करेगी, जो लग भी रहा है! लेकिन, भाजपा के दिल्ली दरबार को भी अब संभलकर कदम उठाना होंगे! क्योंकि, बात सिर्फ मध्यप्रदेश में सरकार न बना पाने की नहीं, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी खोने की है।
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- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीटों की घट-बढ़, प्रदेश में कांग्रेस के उदय और भाजपा के पतन के पीछे क्या कारण रहे, सबसे अहम् सवाल है! मतदान के पहले भाजपा और खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 'अबकी बार 200 पार' का जोरदार नारा लगाया था! पर, वो 100 के पार जाते ही थम गई! कांग्रेस का 'इस बार 150 पार' का नारा भी उसे बहुमत के लायक सीट नहीं दिला सका? इसका सीधा सा आशय यही है कि जनता ने कांग्रेस को सत्ता जरूर दी, पर लगाम लगाकर और भाजपा को सबक सिखाया कि वो हवा में उड़ना छोड़े!
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 114, भाजपा को 109 और 7 सीटें अन्य को मिली हैं। प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 27 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें जीती थी। बाद में दिलीपसिंह भूरिया के निधन से खाली हुई, झाबुआ-रतलाम सीट कांतिलाल भूरिया ने भाजपा से छीन ली थी। लेकिन, विधानसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं, यदि उसके हिसाब-किताब को समझा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 16 और भाजपा के खाते में 13 सीटें जा सकती हैं। पिछली बार मध्यप्रदेश में आज कांग्रेस के खेवनहार बने कमलनाथ और उनके सामने मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार बनकर खड़े हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ही लोकसभा का मुंह देख पाए थे। बाकी सारे रणबांकुरे खेत रहे थे। फिलहाल के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस मालवा-निमाड़ में ही भाजपा से उज्जैन, खरगोन, धार और इंदौर जैसी लोकसभा सीटें छीन सकती है। क्योंकि, उज्जैन की 8 में 5 विधानसभा सीटें कांग्रेस के खाते में गई है। खरगोन की सभी 5 सीटें और धार की 7 में से 6 सीटें कांग्रेस ने जीती हैं। खंडवा समेत निमाड़ के चार आदिवासी जिलों खरगोन, बड़वानी, धार, झाबुआ में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। भाजपा सरकार के दो मंत्रियों को भी हार का मुँह देखना पड़ा। कुल मिलाकर प्रदेश में अब कांग्रेस का पलड़ा पहले के मुकाबले काफी भारी हो चुका है।
अब जरा भाजपा का गढ़ रहे मालवा-निमाड़ पर नजर दौड़ाई जाए जो इस बार प्रदेश में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा आधार बना! भाजपा को पिछले चुनावों की अपेक्षा 27 सीटों का नुकसान हुआ और कांग्रेस ने 26 सीटें ज्यादा जीती। निर्दलियों के खाते में भी इस बार 3 सीटें गई। इस बार भाजपा को 27 और कांग्रेस को 35 सीटें मिली। इस क्षेत्र में 66 में से 31 सीटें एससी, एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 24 जीती थीं, पर कांग्रेस के खाते में मात्र 6 सीट गई थीं, एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। अबकी बार भाजपा 14 सीट हार गई। भाजपा को 10 सीटें मिली, तो कांग्रेस ने 20 जीती। 31 में से 9 सीटें एससी के लिए हैं। पिछली बार भाजपा ने इस वर्ग की सभी 9 सीटें जीती थीं। जबकि, इस बार उसे 4 जगह ही जीत मिली, 5 सीटें कांग्रेस ने छीन ली। एसटी आरक्षित यहाँ 22 सीटें हैं! 2013 में 15 सीटों पर भाजपा का झंडा गड़ा था और 6 पर कांग्रेस का, पर इस बार 15 सीट कांग्रेस ने जीती और 6 भाजपा ने। एससी सीटों पर भाजपा को जातीय समीकरणों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। भाजपा के राज में दलितों पर हमले बढ़े, जिससे दलित खफ़ा रहे! दूसरी तरफ एट्रोसिटी एक्ट में भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के संशोधन ने सवर्णों को उससे खफ़ा कर दिया। इलाके में एससी सीटों पर दोनों ही वर्गों का मतदाता उससे नाराज़ रहा।
यहां कि 42 ग्रामीण सीटों में से 21 कांग्रेस ने जीती! भाजपा की गलती ये रही कि उसने मालवा-निमाड़ को अपना गढ़ समझकर जीतने का पूरा दम नहीं लगाया! 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा ने मालवा-निमाड़ के शहरी और ग्रामीण की कई सीटें गंवाईं हैं। यही कारण था कि सत्ता उसके हाथ से निकल गई थी। इस बार कांग्रेस ने ग्रामीण इलाके में 24 सीटों पर जीत का झंडा गाड़ा! पिछले चुनाव में भाजपा ने 66 में से 57 सीटें जीती थीं। भाजपा को सबसे बड़ा झटका खरगोन और बुरहानपुर जिले में लगा, जहाँ से भाजपा पूरी तरह ही साफ़ हो गई। इंदौर जैसे भाजपा में गढ़ में भी भाजपा 9 में से 4 सीटें हार गई! जबकि, 2013 में यहाँ उसने 8 सीट जीती थी।
ग्वालियर-चंबल की 34 सीटों में से शहरी क्षेत्र की 7 और ग्रामीण क्षेत्रों में 8 सीटों का कांग्रेस को फायदा हुआ। बुंदेलखंड में तो कांग्रेस को शहरी इलाकों में एक और ग्रामीण इलाके की 2 सीटों का फायदा हुआ। विंध्य के परिणाम जरूर भाजपा के पक्ष में गए। यहां भाजपा ने दस साल पुराने प्रदर्शन को दोहराया और 24 सीटें जीती! मध्य क्षेत्र की बात की जाए, तो 36 सीटों में से शहरी इलाकों में कांग्रेस को 7 और ग्रामीण इलाकों में एक सीट का फायदा हुआ। कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान रीवा-सीधी और सतना में हुआ। जबकि, कांग्रेस को ग्रामीण क्षेत्रों में 8 सीटों का नुकसान हुआ। महाकौशल में जरूर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। यहां शहरी क्षेत्र में कांग्रेस को 11 सीटों का फायदा हुआ। जबकि, भाजपा ने यहाँ शहरी इलाके की 11 सीटें गंवा दी।
इस चुनाव के बाद अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच मंथन शुरू हो गया है। कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा से तीन राज्यों में सत्ता छीनी है, उसने भाजपा के नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी, बल्कि पार्टी को भी ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि, अगले साल होने वाले चुनाव में उसकी सत्ता में वापसी होगी या नहीं! यदि वापसी करना है तो पार्टी को क्या रणनीति अपनाना होगी! कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर भाजपा हमेशा से ही सवाल उठाती रही है। लेकिन, तीन राज्यों के चुनाव नतीजों ने इस सोच में बड़ा बदलाव किया। अब भाजपा ये कहने की स्थिति में भी नहीं है, कि वो अपनी गलतियों से हारी है और न ये कह सकती है कि कांग्रेस की रणनीति ने उसे हराया! यही कारण है कि भाजपा अपनी हार को पचा नहीं पा रही है! अभी भी भाजपा के नेता सत्ता पाने की जुगत में लगे हैं और इसी पाँच साल में फिर सरकार बनाने का दावा भी करने लगे!
गौर करने वाली बात ये भी है कि इस बार दोनों ही पार्टियों के नामी नेताओं के अनुमान फेल हो गए! जहाँ शिवराजसिंह चौहान ने एग्ज़िट पोल के नतीजों के बाद ख़ुद को सबसे बड़ा सर्वेयर बताकर सरकार बनाने का दावा किया था! वहीं वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने 142 एयर दिग्विजय सिंह को 132 सीटों का अनुमान था। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जो मालवा-निमाड़ के प्रभारी थे, उन्होंने भी 'अबकी बार 200 पार' का नारा बुलंद किया था, पर अंत में वे भी खिसककर 130 पर आ गए थे। लेकिन, इन सारे अनुमानों का ध्वस्त होना, अगले साल के मध्य में होने वाले लोकसभा चुनाव पर खासा असर डाल सकता है, इसमें शक नहीं! कांग्रेस अपने प्रदर्शन में और ज्यादा सुधार करेगी, जो लग भी रहा है! लेकिन, भाजपा के दिल्ली दरबार को भी अब संभलकर कदम उठाना होंगे! क्योंकि, बात सिर्फ मध्यप्रदेश में सरकार न बना पाने की नहीं, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी खोने की है।
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