- हेमंत पाल
विधानसभा चुनाव का मतदान होने के बाद अब इस बात लगाए जा रहे हैं कि किस सीट पर किसका पलड़ा भारी है और क्यों? लोगों की बातचीत का विषय इस बात पर केंद्रित हो गया है कि इंदौर की 9 विधानसभा सीटों की स्थिति क्या होगी! ख़ास बात ये कि वास्तविक मतदाता मौन रहा! उसने खुलकर न तो किसी पार्टी का विरोध किया न समर्थन! मतदाताओं की ख़ामोशी ने कयास लगाने वालों के सामने सवालिया निशान लगा दिया है। लेकिन, निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि इस बार के नतीजे पिछले चुनाव जैसे एक तरफ़ा नहीं होंगे। पिछली बार भाजपा ने 8 सीटें जीती थी और कांग्रेस को सिर्फ राऊ की सीट जीतकर संतोष करना पड़ा था। इस बार लग रहा है, कि 9 में से 5 सीटें भाजपा को मिल सकती हैं, जबकि 4 पर कांग्रेस जीतेगी। हो सकता है, नतीजे इसके उलट भी हों! फिलहाल तो ये सिर्फ संभावना ही है।
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इंदौर का चुनावी माहौल, लोगों की बातचीत, मतदान के बढ़े प्रतिशत और उम्मीदवारों को कोशिशों को देखकर लग रहा है कि इस बार इंदौर की 9 में से 7 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता लाख दावे करें, पर जमीनी हकीकत बता रही है कि इस बार के चुनाव में कांग्रेस उतनी कमजोर नहीं है, जितना उसे आँका जा रहा है। कई सीटों पर कांग्रेस टक्कर की स्थिति में है और कई पर वो जीत भी रही है। भाजपा की झोली में जो दो सीटें साफ़-साफ जाती दिखाई दे रही हैं, वे हैं क्षेत्र क्रमांक-2 जहां से रमेश मेंदोला उम्मीदवार हैं और क्षेत्र क्रमांक-4 जहाँ से महापौर मालिनी गौड़ तीसरी बार मैदान में हैं। अब पड़ताल की जाए इंदौर की सभी 9 सीटों की, जहाँ कांग्रेस और भाजपा दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी। है
इंदौर की क्षेत्र क्रमांक-1 सीट से भाजपा उम्मीदवार सुदर्शन गुप्ता पिछले दो बार चुनाव जीते हैं। एक बार ऐसा भी अवसर आया जब वे मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले थे, पर एक वक़्त पर पांसा पलट गया और वे शपथ नहीं ले सके। लेकिन, इस बार के चुनाव में उनकी स्थिति कुछ कमजोर नजर आ रही है। कांग्रेस में बगावत थमने और विष्णु शुक्ला के खिलाफ सुदर्शन गुप्ता की बयानबाजी से माहौल पर असर पड़ा! माना जा रहा है कि ये सीट कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला खाते में दर्ज हो सकती है। क्षेत्र क्रमांक-2 बरसों तक शहर का मिल मजदूरों का इलाका रहा है। यहाँ से पिछले कई विधानसभा चुनाव भाजपा के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय जीतते रहे हैं। लेकिन, दो चुनाव रमेश मेंदोला ने जीते और पार्टी ने मेंदोला को तीसरी बार फिर उम्मीदवार बनाया है। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस के मोहन सेंगर हुआ! करीब महीनेभर लम्बे चुनाव प्रचार और माहौल देखकर संकेत मिलता है कि जीत तो रमेश मेंदोला की होगी, लेकिन पिछले चुनाव की तरह हार-जीत में 90 हज़ार वाला अंतर शायद न हो! क्योंकि, मोहन सेंगर ने भी पूरे जोश से चुनाव लड़ा है। इस क्षेत्र में मतदान कम होने से जीत का अंतर भी ज्यादा नहीं होगा। लेकिन, इस बार इस इलाके में कांग्रेस ने पूरी दमदारी से मैदान संभाला, इसमें कोई शक नहीं!
अब आते हैं, इंदौर की क्षेत्र क्रमांक-3 सीट पर जो इस बार सबसे ज्यादा टक्कर और प्रतिष्ठा वाली मानी जा रही है। इसलिए कि यहां से भाजपा के उम्मीदवार आकाश विजयवर्गीय हैं, जो बड़े भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के अश्विन जोशी, जो तीन बार इसी क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। मुकाबला जितना कड़ा भी है, उतना ही प्रतिष्ठापूर्ण भी! यही कारण है सभी की नजरें इसी सीट के नतीजों पर टिकी है। अभी यहाँ किसी की हार-जीत के स्पष्तः कयास नहीं लगाए जा सकते। लेकिन, मुस्लिम इलाकों में ज्यादा मतदान को कांग्रेस अपने पक्ष में बता रही है, पर नतीजे ही बताएँगे कि पलड़ा किसके पक्ष में झुका। शहर का क्षेत्र क्रमांक-4 भी भाजपा के लिए प्रतिष्ठा वाली सीट है। यहां से भाजपा उम्मीदवार मालिनी गौड़ हैं, जो इंदौर की महापौर भी हैं। शहर को दो बार साफ़-सफाई में देश में नम्बर-वन बनाने की उपलब्धि उनके खाते में दर्ज है। लेकिन, स्मार्ट सिटी के नाम पर उनके क्षेत्र में हुई तोड़फोड़ भी उनके ही खाते में है। तोड़फोड़ वाला मामला उनके विपरीत जा सकता है। यहाँ उनके सामने कांग्रेस उम्मीदवार सुरजीतसिंह चड्ढ़ा हैं, पर उनसे किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद कम ही की जा रही है। चुनाव में जीत के दावे तो उन्होंने भी किए पर उनके दावों में भरोसा कुछ कम। उनके पिता उजागरसिंह चड्ढा भी शहर कांग्रेस के नेता रहे थे।
शहर का क्षेत्र क्रमांक- 5 आधुनिक इंदौर का चेहरा है। यहाँ से पिछले तीन बार से भाजपा के महेंद्र हार्डिया विधायक चुने जाते रहे हैं। अबकी बार उनके सामने कांग्रेस ने सत्यनारायण पटेल को मैदान में उतारा है। पटेल की इस क्षेत्र में बस यही उपलब्धि है, कि उनका क्षेत्र में पुराना और बड़ा स्कूल है और इस नजरिए से उनके कई परिवारों से जीवंत संपर्क हैं। राजनीतिक परिवार से जुड़े सत्यनारायण पटेल को यदि कोई लाभ मिला तो भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी का ही मिल सकता है। इस इलाके में भी बड़ी मुस्लिम बस्तियाँ हैं, जहाँ काफी अच्छा मतदान हुआ है। यदि इसे संकेत माना जाए तो हार-जीत का अंतर काफी काम हो सकता है।
इंदौर की 9 में से 4 विधानसभा सीटें ग्रामीण हैं। राऊ को भी ग्रामीण कहा जाता है, जबकि इस विधानसभा क्षेत्र का बड़ा इलाका शहर में आता है। मोदी लहर में भी यहाँ से पिछला चुनाव जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार जीतू पटवारी फिर मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा ने मधुकर वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन, जीतू पटवारी की स्थिति बहुत ज्यादा दमदार नजर नहीं आ रही। भाजपा उम्मीदवार का संघ परिवार से जुड़ा होने के कारण प्रचार के दौरान यहाँ संघ की काफी सक्रियता देखी गई, जो नतीजों को प्रभावित कर सकती है। इंदौर की यही एक सीट है जहाँ संघ के कार्यकर्ताओं ने काम किया है। जीतू पटवारी की वाचालता और अनर्गल बयानबाजी से कुछ लोग नाराज भी हुए! जबकि, भाजपा उम्मीदवार मधुकर वर्मा अपेक्षाकृत सौम्य हैं।
ग्रामीण इलाके की दूसरी सीट महू है। यहाँ से लगातार दो बार कैलाश विजयवर्गीय विधायक रहे हैं। उनके राजनीतिक कद के कारण बाहरी होते हुए भी उनका विरोध नहीं हुआ। लेकिन, इस बार यहाँ से पिछला चुनाव इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-3 से जीतने वाली उषा ठाकुर को उम्मीदवार बनाया गया है, जिससे महू के स्थानीय नेता नाराज हैं। इस वजह से महू में भाजपा का पलड़ा काफी हल्का नजर आ रहा है। क्योंकि, स्थानीय नेता को उम्मीदवार न बनाए जाने का विरोध बाहर से तो नजर नहीं आ रहा, पर सेबोटेज की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। यहां से उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार के अंतरसिंह दरबार से कड़ी चुनौती मिली है। मतदान के दो दिन बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए उषा ठाकुर के एक वीडियो ने इस आशंका की पुष्टि कर दी कि नतीजे उनके पक्ष में नहीं होने वाले! उन्होंने भाजपा में वंशवाद और खुद को इंदौर से महू धकेले जाने पर अपना रोष व्यक्त किया है।
ग्रामीण इलाके की एक सीट देपालपुर भी है, जिस पर कलौता समाज का वर्चस्व रहा है। यहाँ से भाजपा ने दो बार के विधायक रहे मनोज पटेल को तीसरी बार मैदान में उतारा है। उनके सामने कांग्रेस ने विशाल पटेल पर दांव लगाया और ये सही भी लग रहा है। मनोज पटेल को लेकर क्षेत्र में चुनाव से पहले ही काफी विरोध देखा गया, ऐसे में उनकी जीत के आसार कम ही दिखाई दे रहे हैं। जबकि, पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे विशाल पटेल का पलड़ा भारी है। जिले की सांवेर भी ग्रामीण इलाके में आती है। जहाँ से कांग्रेस ने पिछले कई चुनाव में तुलसी सिलावट को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। इस बार भी वही मैदान में हैं। उनके सामने हैं, पिछले विधायक और भाजपा उम्मीदवार डॉ राजेश सोनकर। प्रचार के दौरान यहाँ जो माहौल नजर आया उसके मुताबिक इस सीट पर कांग्रेस भारी है। यहाँ के किसानों में भाजपा के प्रति नाराजी होने के साथ उम्मीदवार के व्यवहार से भी शिकायत है। इस कारण डॉ सोनकर को प्रचार के दौरान कई जगह विरोध का सामना भी करना पड़ा। जबकि, तुलसी सिलावट को वहां के लोग उनके व्यवहार के कारण ज्यादा पसंद करते हैं। महीनेभर के चुनाव प्रचार के हंगामे और जिले की जमीनी हालात को देखकर लगता है कि मतदाता की ख़ामोशी अपना असर जरूर दिखाएगी। मतदाता का मौन को सुना जाए तो आने वाले नतीजों का अंदाजा हो जाता है।
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