मध्यप्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा से सिर्फ प्रदेश की सत्ता ही नहीं छीनी, बल्कि लोकसभा चुनाव की रणनीति को भी झकझोर दिया है। कांग्रेस को जो सफलता मिली, उससे भाजपा की 12 लोकसभा सीटों पर भी सीधा असर पड़ा! इनमें से 8 पर तो कांग्रेस को काफी ज्यादा वोट मिले हैं! जबकि, 4 सीटों पर लाखों वोटों का अंतर घटकर हज़ारों में सिमट गया! प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं, इनमें से सिर्फ 3 कांग्रेस के पास हैं और 26 पर भाजपा का कब्ज़ा है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के कब्जे वाली छिंदवाड़ा, गुना और झाबुआ सीटों को छीनने की तैयारी की थी! लेकिन, लगता है अब भाजपा को अपना लक्ष्य बदलना पड़ेगा! उसे कांग्रेस से सिर्फ तीन सीट ही नहीं छीनना है, अपनी भी 12 सीटें बचाने जुगत भी लगाना पड़ेगी! भाजपा की खतरे वाली सीटों में भाजपा के दिग्गज नेता नरेंद्र तोमर, फग्गनसिंह कुलस्ते, अनूप मिश्रा और नंदकुमार सिंह चौहान की सीटें भी है!
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- हेमंत पाल
चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा आराम की स्थिति में नहीं है! विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा की बराबरी का मुकाबला किया है, उसका असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ना तय है। 2013 के विधानसभा चुनाव 56 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास इस चुनाव में 114 सीटें हैं। निश्चित रूप से वोटों का ये गणित भाजपा के चुनावी समीकरण बिगाड़ेगा! प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का होना भी कहीं न कहीं चुनाव पर प्रभाव तो डालेगा ही! नरेंद्र मोदी की आंधी की वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 29 में से 27 सीटें जीती थीं। लेकिन, सालभर में ही झाबुआ-रतलाम लोकसभा सीट के सांसद दिलीपसिंह भूरिया के निधन के कारण यहाँ उपचुनाव हुए! भाजपा को पहला झटका तभी लग गया था, जब इस उपचुनाव में कांग्रेस ने ये सीट फिर जीत ली।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस तरह बढ़त मिली है, उससे भाजपा की 12 लोकसभा सीटें सीधे-सीधे खतरे में नजर आ रही हैं। ग्वालियर के सांसद और भाजपा के दिग्गज नेता नरेंद्रसिंह तोमर की सीट भी डेंजर झोन में हैं। अनूप मिश्रा, फग्गन सिंह कुलस्ते, भागीरथ प्रसाद, प्रहलाद पटेल, रोडमल नागर, सुमित्रा महाजन और सावित्री ठाकुर को भी सीट बचाने के लिए जोर लगाना पड़ेगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी जबलपुर सीट पर चक्रव्यूह में घिरे नजर आ रहे हैं। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की खंडवा सीट भी अब उनके लिए आसान नहीं दिख रही।
नरेंद्र तोमर ने पिछला लोकसभा चुनाव ग्वालियर सीट से 29,699 वोट से जीता था। लेकिन, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहाँ की 7 विधानसभा सीटें जीत ली। जबकि, संसदीय क्षेत्र में भाजपा 5 विधानसभा सीटों से लुढ़ककर एक पर आ गई! भाजपा ने सिर्फ ग्वालियर ग्रामीण पर पार्टी का परचम लहराया है। जबकि, कांग्रेस ने ग्वालियर, ग्वालियर-पूर्व, ग्वालियर-दक्षिण, भितरवार, डबरा, करेरा और पोहरी सीटें जीती है। वोटों के अंतर से देखा जाए तो यहाँ कांग्रेस 1,33,936 वोट से आगे है। चंबल इलाके की ही भिंड लोकसभा सीट पर भी भाजपा की हालत खस्ता है। यहाँ से सांसद भागीरथ प्रसाद की सीट खतरे में पड़ गई! यहाँ की 8 में से 4 विधानसभा सीटें इस बार भाजपा ने गँवाई है, उसे सिर्फ दतिया और अटेर सीटों पर ही जीत हांसिल हुई! जबकि, कांग्रेस ने लहार, मेहगांव, गोहद, सेवढ़ा और भांडेर सीटें जीती! भिंड की सीट बसपा के खाते में गई! विधानसभा में वोटों के अंतर परखा जाए तो इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस 99,280 वोटों से आगे है। भाजपा के ही एक बड़े नेता अनूप मिश्रा की मुरैना सीट से भी खतरे की घंटी सुनाई दे रही है। यहाँ कांग्रेस ने श्योपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी और अंबाह को मिलाकर 7 सीटों पर कब्ज़ा जमाया है। भाजपा को सिर्फ विजयपुर की जीत से संतोष करना पड़ा। यहाँ कांग्रेस 1,26,842 वोटों से आगे है।
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा के एक और बड़े नेता और सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते की चिंता भी बढ़ा दी। क्योंकि, मंडला संसदीय क्षेत्र की 6 सीटों शाहपुर, डिंडोरी, बिछिया, निवास, लखनादौन और गोटेगांव पर कांग्रेस जीती है। भाजपा के हिस्से में मंडला और केवलारी सीटें आई! इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस 1,21,688 वोटों से आगे है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की खंडवा भी अब सुरक्षित नहीं रही! यहाँ कांग्रेस 26,294 वोटों से आगे है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 7 सीटें जीतने वाली भाजपा 3 सीटों (खंडवा, पंधाना, बागली) पर सिमट गई! जबकि, कांग्रेस ने 4 सीटें नेपानगर, भीकनगांव, बड़वाह और मंधाता पर झंडा गाड़ा! बुरहानपुर सीट कांग्रेस के बागी उम्मीदवार ने जीतकर भाजपा सरकार मंत्री रही अर्चना चिटनिस को हरा दिया!
धार की लोकसभा सीट 2014 के चुनाव में भाजपा की सावित्री ठाकुर ने जीती थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास 6 सीट थीं। अब इतनी ही सीटें कांग्रेस के पास है। कांग्रेस के पास सरदारपुर, कुक्षी, गंधवानी, मनावर, बदनावर और धरमपुरी सीटें हैं! जबकि, भाजपा को सिर्फ धार और महू सीटों पर ही जीत हांसिल हुई! इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस 2,20,070 वोटों से आगे है। यही स्थिति राजगढ़ लोकसभा सीट की है, जहाँ से 2014 का चुनाव भाजपा के रोडमल नागर ने जीता था। इस बार यहाँ से कांग्रेस ने 5 सीटें राजगढ़, खिलचीपुर, चांचौड़ा, ब्यावरा और राधौगढ़ जीती है। भाजपा के हिस्से में नरसिंहगढ़ और सारंगपुर ही आए! कांगेस के बागी ने सुसनेर सीट पर कब्ज़ा जमा लिया! यहाँ भी कांग्रेस 1,85,010 वोटों से आगे है। बैतूल लोकसभा की सांसद ज्योति धुर्वे की भी लुटिया सलामत नहीं लग रही! 2013 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा के खाते में 6 सीटें थीं, जो अब घटकर अब 4 (अमला, हरदा, हरसूद, टिमरनी) रह गई हैं। कांग्रेस के खाते में भी मुलताई, बैतूल, घोड़ाडोंगरी और भैंसदेही सीट आई है। बैतूल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस 40676 वोटों से आगे है।
ये तो वो लोकसभा सीटें हैं, जहाँ भाजपा की हालत स्पष्ट खस्ता नजर आ रही है। लेकिन, इंदौर, जबलपुर, दमोह और उज्जैन ऐसी सीटें हैं जहाँ विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बहुत ज्यादा घटे हैं। इंदौर सीट से पिछला लोकसभा चुनाव साढ़े 4 लाख से जीतने वाली सुमित्रा महाजन की इस सीट पर अब वोटों का अंतर घटकर 95,380 वोट रह गया है। यहाँ पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली कांग्रेस के पास अब 4 सीटें हैं। जबलपुर लोकसभा सीट से 2 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीतने वाले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की भी हालत पतली नजर आ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में यहाँ भाजपा के पास 6 सीटे थीं और कांग्रेस के पास 2 थी। लेकिन, इस बार दोनों पार्टियों में सीटें आधी-आधी बंट गई है। वोट का अंतर भी भाजपा के पक्ष में घटकर 37,833 रह गया!
दमोह लोकसभा सीट के सांसद प्रहलाद पटेल भी मुश्किल में हैं। क्योंकि, 2 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीतने वाले इस दिग्गज भाजपा नेता के पास अब सिर्फ 11 हज़ार वोटों की लीड बची है। इस संसदीय क्षेत्र की 8 में से 4 सीटें (बंडा, देवरी, मलहरा, दमोह) कांग्रेस ने जीत ली! भाजपा के खाते में रेहली, जबेरा और हटा गई! जबकि, पथरिया सीट बसपा ने जीती। उज्जैन लोकसभा सीट 3 लाख से जीतने वाले चिंतामणी मालवीय के सामने भी राह आसान नहीं है। मालवीय 3 लाख वोट से जीते थे। 2013 में आठों सीट भाजपा जीती थी, अब कांग्रेस ने 5 सीटें छीन लीं। यहाँ वोटों का अंतर 14,643 रह गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में सभी 8 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार उज्जैन-उत्तर, उज्जैन-दक्षिण और महिदपुर सीट मिली। कांग्रेस ने 5 (बड़नगर, नागदा-खाचरौद, तराना, घटिया, आलोट) पर जीत दर्ज की है।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में शाजापुर-देवास से सांसद मनोहर ऊंटवाल को आगर, खजुराहो के सांसद नागेंद्रसिंह को नागौद व मुरैना के सांसद अनूप मिश्रा को भितरवार से टिकट दिया था। ऊंटवाल व नागेंद्रसिंह ने तो विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। वहीं, अनूप मिश्रा विधानसभा चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव से बदले समीकरणों ने भाजपा के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया। जिन लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा के वोट घटे हैं, क्या वहाँ उम्मीदवारों को बदला जाएगा? ऐसे में नए उम्मीदवारों को खोजना भी आसान नहीं होगा! भाजपा इस मुश्किल से कैसे निकलती है, इसका जवाब कुछ दिन बाद मिलेगा।
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