Monday, January 28, 2019

सुमित्रा महाजन की नौवीं दावेदारी पर उठे सवाल!

   इंदौर की लोकसभा सीट से भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा, इसकी दावेदारी शुरू हो गई! बीते 30 सालों में हुए 8 लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सबसे सुरक्षित सीटों में एक इंदौर सीट भी रही है। यहाँ की सांसद सुमित्रा महाजन (ताई) ही इस बार चुनाव लड़ेंगी या फिर किसी नए चेहरे को मौका दिया जाएगा, यह सवाल अभी जवाब का इंतजार कर रहा है। 'ताई' 9वीं बार अपनी किस्मत आजमाना चाहती हैं। उन्होंने पिछले दिनों चुनाव लड़ने के संकेत भी दे दिए। वे इस बारे में विधानसभाओं की बैठकें भी कर चुकी हैं। जबकि, इससे 2014 वाले चुनाव में उन्होंने साफ कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। 'ताई' के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी लोकसभा चुनाव के लिए सक्रिय हो गए! उन्होंने भी कार्यकर्ताओं की बैठकें लेना शुरू कर दी। इस सीट की तीसरी दावेदार महापौर मालिनी गौड़ हैं। उनके पक्ष में भी कुछ सशक्त कारण हैं, जो उनकी दावेदारी को मजबूत बनाते हैं।   
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- हेमंत पाल 
      लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन क्या अगला चुनाव लड़ेंगी? ये सवाल सिर्फ इंदौर ही नहीं, मध्यप्रदेश की राजनीति में गरमागरम मुद्दा बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार के तौर पर इंदौर से आठ बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी सुमित्रा ताई के बारे में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। भाजपा के कई बड़े नेता उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सुमित्रा महाजन उर्फ़ 'ताई' अगला लोकसभा चुनाव न लड़ें! इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं! ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि संभवतः पार्टी आलाकमान ही उन्हें उम्र के फॉर्मूले के आधार पर टिकट देने से इंकार कर दे! इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हैं, जो अब 'ताई' की राजनीति के सूर्यास्त की तरफ संकेत कर रहे हैं।
   मध्यप्रदेश भाजपा की बड़ी महिला नेता सुषमा स्वराज, उमा भारती ने अगले लोकसभा चुनाव की उम्मीदवारी से इंकार कर दिया! दोनों ने इसके पीछे अपनी सेहत को कारण बताया है! लेकिन, इंदौर की आठ बार की सांसद और फिलहाल लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन (ताई) ने ऐसा कोई एलान नहीं किया! यहाँ तक कि उन्होंने पिछले चुनाव के दौरान कही गई अपनी बात को भी झुठला दिया कि वे अब चुनाव नहीं लड़ेंगी! अब अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 'ताई' न सिर्फ तैयार हैं, बल्कि इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी!
   सुमित्रा महाजन ने पिछले लोकसभा चुनाव साढ़े चार लाख के अंतर से जीता था! लेकिन, अब राजनीति की वो कहानी बदल गई! 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों में वोट अंतर भी घटकर 95 हज़ार पर आ गया! ये आंकड़ा 'ताई' के लिए अच्छा संकेत नहीं दे रहा! कुछ लोगों का ये भी मानना है कि लोकसभा अध्यक्ष के पद पर रहने के बाद 'ताई' को चुनावी राजनीति से खुद अलग हो जाना चाहिए। लगातार आठ बार सांसद रहने के बाद भी वे पार्टी की नंबर दो की लाइन आगे बढ़ ही नहीं पाई। इंदौर में भी उनके पास कोई लॉबी नहीं है। इसका खामियाजा पार्टी को अगले चुनावों में भुगतना पड़ सकता हैं। राजनीतिक जानकारों का भी अंदाजा है कि यदि 'ताई' को फिर मैदान में उतारा गया, तो उनकी स्थिति सत्यनारायण जटिया और लक्ष्मीनारायण पांडेय जैसी हार हो सकती है। मध्यप्रदेश में सरकार भी बदल गई, ये भी एक कारण है कि लोकसभा चुनाव पर असर होगा। सारे हालात देखते हुए पार्टी को मैदान में कोई नया चेहरा उतरना चाहिए।
   इंदौर में लोकसभा चुनाव की उम्मीदवारी के दूसरे सबसे सशक्त दावेदार भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय यानी 'भाई' हैं। 'ताई' यानी सांसद सुमित्रा महाजन और 'भाई' यानी कैलाश विजयवर्गीय के बीच तनातनी के किस्से बहुत पुराने हैं। इंदौर की राजनीति में ऐसे कई प्रसंग हैं, जब इन दोनों के बीच राजनीतिक छापामारी की जंग चली। ये जंग अभी बंद नहीं हुई। इस बार 'ताई' की जगह कैलाश विजयवर्गीय को लोकसभा का उम्मीदवार बनाए जाने की बात उठने लगी है। लेकिन, अब इंदौर में भाजपा राजनीति में गुटबाजी और मतभेदों की एक और नई कथा का वाचन होने लगा। इस कथा की प्रमुख पात्र सांसद सुमित्रा महाजन और महापौर मालिनी गौड़! राजनीतिक अनुभव में इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-4 की विधायक और इंदौर नगर निगम की महापौर मालिनी गौड़ और सांसद सुमित्रा महाजन में कोई साम्य नहीं है। लगातार 8 बार की सांसद और लोकसभा अध्यक्ष महाजन उस कुर्सी पर हैं, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उन्हें सम्मान देना पड़ता है। लेकिन, स्वच्छता के मामले में इंदौर के दो बार देश में नम्बर होने से महापौर के तौर पर मालिनी गौड़ का रुतबा बढ़ गया। दिल्ली में भी उनका सिक्का चलने लगा। उनके बढ़ते क़दमों की आहट से सबसे ज्यादा प्रभावित यदि कोई हुआ तो वो सांसद महाजन ही हैं। क्योंकि, मालिनी गौड़ को अगले लोकसभा चुनाव में सांसद की कुर्सी का प्रबल दावेदार माना जाने लगा है।
   महापौर मालिनी गौड़ को पूर्व मुख्यमंत्री के खेमे का नेता समझा जाता रहा है। लेकिन, दोनों महिला नेत्रियों के बीच तलवारें तब निकली, जब देश में 'स्वच्छ इंदौर' का तमगा पाने के बाद होने वाले एक कार्यक्रम को लेकर दोनों ने अड़ीबाजी की। इंदौर को जब पहली बार स्वच्छता का खिताब मिला, तब महापौर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को स्वच्छ इंदौर पर आयोजित एक कार्यक्रम 'प्रणाम इंदौर' के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन, कहते हैं कि ये कार्यक्रम सांसद सुमित्रा महाजन ने निरस्त करवा दिया था। सांसद सुमित्रा महाजन ने तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू से बात करके उन्हें इंदौर आमंत्रित किया। सुमित्रा महाजन की योजना अपने इस कार्यक्रम में महापौर, निगम आयुक्त और उनकी पूरी टीम का सम्मान करना था। लेकिन, महापौर ने उनकी प्लानिंग बिगाड़ दी। स्थिति यहाँ तक आ गई कि शिवराज सिंह को इसमें दखल देना पड़ा था। अंततः नई तारीख तय की गई, लेकिन, जिस दिन कार्यक्रम होना तय हुआ था, उस दिन घनघोर बारिश हुई और कार्यक्रम नहीं हो पाया। यही कारण है कि इन सारे समीकरणों के बीच मालिनी गौड़ और सुमित्रा महाजन के बीच तालमेल गड़बड़ा गया।
  इंदौर लोकसभा सीट से सुमित्रा महाजन 1989 से लगातार चुनाव जीतती आ रही है! पार्टी में उनके वर्चस्व को किसी ने चुनौती भी नहीं दी! क्योंकि, उनके कामकाज का तरीका आक्रामक नहीं रहा कि वे किसी का रास्ता काटें! लेकिन, उन्होंने अपनी 'चौकड़ी' में कभी किसी को घुसने भी नहीं दिया! वे चंद गैर-राजनीतिक लोगों से घिरी रहती हैं! वे ही उनके राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभाते हैं और वे ही उनके लिए बयानबाजी भी करते हैं! 'ताई' ने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में ऐसी कोई उपलब्धि भी इंदौर के लिए नहीं जुटाई कि लोग उसके नाम से याद उन्हें याद करें! लेकिन, कुछ मामलों में दखल देकर काम बिगाड़ने का काम जरूर किया! उनकी सारी सक्रियता रेलवे को चिट्ठी लिखने तक ही दिखाई देती रही है। सक्रियता से बचकर रहना 'ताई' की आदत रही है! लोग भी उनकी इस राजनीतिक शैली से कभी खुश नहीं रहे, पर मज़बूरी है कि सामने कोई विकल्प भी नहीं रहा! प्रकाशचंद्र सेठी के बाद कांग्रेस के पास इंदौर में कोई ऐसा नेता नहीं रहा, जो शहर की राजनीति कमांड कर सके! महेश जोशी ने कोशिश जरूर की, पर वे भी गुटबाजी से बाहर नहीं निकल सके!
  'ताई' ने तीन दशक के अपने राजनीतिक जीवन में कभी किसी नेता को पनपने नहीं दिया! बल्कि, कुछ आगे बढ़ते नेताओं को रोकने की कोशिश जरूर की! उनके होते हुए सिर्फ कैलाश विजयवर्गीय 'भाई' ही अकेले ऐसे नेता रहे, जिन्होंने भाजपा में अपनी अलग राह बनाई! पहले महापौर और बाद में लगातार मंत्री बनते रहे! यही कारण रहा कि जिस भाजपा नेता की पटरी 'ताई' से नहीं बैठी उसने 'भाई' का हाथ थाम लिया! इसके बाद इंदौर में भाजपा की राजनीति दो ध्रुवों पर केंद्रित हो गई! कई बार अपने समर्थकों के लिए दोनों के बीच विवाद भी हुए, पर कभी दोनों आमने-सामने आए हों, ऐसा नहीं हुआ! लेकिन, अब लगता है वो समय आ गया है, जब 'ताई' और 'भाई' आमने-सामने होंगे! इंदौर की लोकसभा सीट से भाजपा की उम्मीदवारी का सवाल भी तभी हल होगा! 
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