- हेमंत पाल
जब भी किसी राज्य की सत्ता में बदलाव होता है, सभी की नजरें मुख्यमंत्री के चेहरे पर टिकती है। क्योंकि, सबकी उम्मीदों का केंद्र मुख्यमंत्री की सत्ताशैली होती है। इस नजरिए से मध्यप्रदेश में भाजपा से कांग्रेस को हुए सत्ता हस्तातंरण में लोगों का कमलनाथ से उम्मीदें बांधना स्वाभाविक था! कांग्रेस के लिए सुकून की बात ये रही कि दो महीने की कमलनाथ सरकार के फैसलों को सराहा जा रहा है। इस दौरान सरकार ने कई ऐसे फैसले किए, जो भविष्य में मील का पत्थर साबित होंगे! लेकिन, ये सच है कि सरकार के कामकाज में कमलनाथ का अनुभव साफ़ झलकता है। फिजूलखर्ची और मनमर्जी की घोषणाओं पर अंकुश लगाकर उन्होंने ये संकेत दे दिया कि उनकी सरकार की नीति क्या होगी! पिछली सरकार के बेतुके फैसलों को भी उन्होंने रोकने का साहस किया है। केबिनेट की बैठक में भी उनके सख्त फैसले और उनकी जवाबदेही तय करने के तरीके से भी नौकरशाही सकते में हैं।
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किसी भी सरकार को चलाने में सबसे बड़ी जरुरत होती है राजनीतिक इच्छाशक्ति की! उसमें भी खासकर मुख्यमंत्री की, जिनके फैसलों से सरकार का नजरिया और प्राथमिकताएं झलकती हैं! प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ भले ही उम्र में 70 पार हैं, लेकिन फैसलों में उनकी चुस्ती, फुर्ती और तत्परता उनकी उम्र की चुगली करती है। पद संभालते ही उन्होंने जिस तरह के फैसले लिए, उससे उनकी इच्छाशक्ति का इशारा मिलता है। किसानों की कर्ज माफ़ी का फैसला भले ही 10 दिनों की समय सीमा में लिया जाना हो, पर बाकी फैसलों में उनका अनुभव और दूरदृष्टि झलकती है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कमलनाथ जैसी प्रशासनिक और राजनीतिक समझने वाला कोई नेता प्रदेश में नहीं है। जब कमलनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया था, तब कई लोगों ने उनकी प्रादेशिक नेतृत्व क्षमता पर उंगली उठाई थी! राजनीति में ये सब स्वाभाविक भी हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये था कि करीब पौने दो लाख करोड़ के कर्ज में डूबे प्रदेश को उबारा कैसे जाएगा और उन चुनावी वादों का क्या होगा, जो कांग्रेस ने अपने मतदाताओं से किए हैं। लेकिन, सरकार जिस तरह संभल संभलकर कदम रख रही है, उससे लगता है कि उसे कोई जल्दबाजी नहीं है!
सरकार के मुखिया की कुर्सी संभालने के तत्काल बाद उन्होंने किसानों की कर्जमाफी के फरमान पर तो दस्तख़त किए ही, कन्या विवाह की अनुदान राशि भी 28 हज़ार बढ़ाकर 51 हजार रुपए कर दी। कमलनाथ ने सत्ता के विकेंद्रीकरण का भी पूरा ध्यान रखा। शिवराज सरकार के दौरान प्रदेश में जिस अफसरशाही के हावी होने की शिकायत की जाती थी, इस सरकार ने उस पर नकेल डालने में कसर नहीं छोड़ी! अपने सख्त लहजे का कमलनाथ ने नजारा दिखाते हुए अफसरों को स्पष्ट कह दिया कि गांव और जिलों की वे समस्याएं जो वहीं हल हो सकती हैं, राजधानी तक नहीं आना चाहिए! यदि ऐसा कुछ हुआ तो इसकी जिम्मेदारी अफसरों की होगी। उन्होंने सरकारी मशीनरी को समझाइश देते हुए एक बार कहा भी था कि 'उनकी चक्की देर से जरूर चलती है, मगर पीसती बारीक है!'
मुद्दे की बात यह कि उन्होंने अपनी राजनीतिक शैली अपने पूर्ववर्ती शिवराज सिंह से बिल्कुल उलट बनाए रखी है। शिवराज सिंह को फिजूलखर्ची और मनमानी घोषणाओं की आदत थी, जबकि कमलनाथ को मुट्ठी बंद रहती है। सरकार के दो महीने के कार्यकाल के दौरान न तो उन्होंने कोई घोषणा की और न किसी मंत्री की ऐसा करने हिम्मत हुई! सरकार ने जो भी फैसले किए वे सब पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों में फेरबदल करके ही किए गए। कन्या विवाह अनुदान राशि बढ़ाने के साथ ही उन्होंने ऐसा कोई सरकारी आयोजन न करने का फैसला किया। कंट्रोल की दुकानों से गरीबों को मिलने वाले राशन की पैचीदा नीति को आसान कर दिया। गायों के लिए हर पंचायत में गौशाला खोलने का फैसला भी भाजपा सरकार को चिढ़ाने वाला ही कहा जाएगा! मुख्यमंत्री ने पुलिसकर्मियों को नए साल से वीकली ऑफ देने का फैसला करके करीब एक लाख पुलिसकर्मियों के परिवारों को भी खुश कर दिया। उनके इन फैसलों से ये जनता में ये संदेश तो गया ही है कि उनके काम करने का स्टाइल थोड़ा अलग है। मुख्यमंत्री ने खर्चों पर अंकुश तो रखा, पर जनप्रिय फैसलों में कमी नहीं आने दी! क्योंकि, चार महीने बाद लोकसभा चुनाव होना है और मार्च के शुरूआती दिनों में आचार संहिता लगने से सरकार के हाथ बंध जाएंगे!
कमलनाथ ने शिवराज सरकार के कई बेहूदा फैसलों को भी बदल दिया, जिसके तहत भजन मंडलियों को 57 करोड़ रुपए जारी कर दिए गए थे। कलेक्टरों व जिला पंचायत के सीईओ के माध्यम से दी गई यह राशि भजन मंडलियों को ढोल-मंजीरे व अन्य वाद्य यंत्रों की खरीद में खर्च करनी थी। शिवराज सरकार ने जुलाई 2018 में प्रदेश की 22 हजार 824 ग्राम पंचायतों में भजन मंडलियों को प्रोत्साहन देने के लिए 57.60 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। लेकिन, आचार संहिता लगने से ये बंट नहीं पाए! नई सरकार ने ये राशि वापस मांग ली है। इसके अलावा नई सरकार ने पूर्व सरकार के चरागाह की जमीन को गोल्फकोर्स बनाने के लिए आवंटित की जमीन को भी निरस्त कर दिया। तत्कालीन भाजपा सरकार ने भोपाल के नजदीक बुलमदर फार्म की 650 एकड़ जमीन के एक बड़े हिस्से को गोल्फ कोर्स के लिए आरक्षित करने का फैसला किया था। जबकि, कमलनाथ सरकार ने फैसले को उलट दिया। सरकार के मुताबिक प्रदेश में कहीं भी गायों के चरागाह की जमीन का अन्य कोई इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।
जहाँ तक कमलनाथ की राजनीतिक शैली की बात है तो चुनाव लड़ने से लगाकर सरकार चलाने तक का उनका अंदाज सबसे जुदा है। वे तुरत-फुरत फैसले करने या जल्दबाजी वाले काम कम ही करते हैं! हर मामले में उनके सोचने का तरीका अलग होता है। वे न तो किसी के प्रति ज्यादा आसक्ति दर्शाते हैं और न किसी को नाराज करने में विश्वास करते हैं। वे कम बोलते हैं और जो बोलते हैं सोच-समझकर बोलते हैं! यही कारण है कि वे अपने बयानों को लेकर विवादों में नहीं उलझते! इसे उनकी राजनीतिक सफलता का राज भी कहा जा सकता है। यही कारण है कि कमलनाथ के स्तर की राजनीतिक और प्रशासनिक समझ का नेता फिलहाल राज्य में दूसरा आसानी से खोज सकना मुश्किल है। राजनीतिक और प्रशासनिक चुनौतियों के इस दौर में वे जिस तरह से सरकार चला रहे हैं, वो उनकी अपनी काबलियत और अनुभव है। बहुमत के किनारे पर बैठी उनकी सरकार के सामने चुनौतियाँ बहुत है और ऐसे में उन्हें एक-एक कदम संभलकर रखना है। खतरा इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि सत्ता खोने से बिफराती भाजपा किसी मौके की तलाश में है, पर उसे कोई मौका मिल नहीं रहा!
जिसे सरकार को विरासत में खाली खजाना खाली मिला हो, उसके बाद भी उसका आत्मविश्वास सर चढ़कर बोले तो लगता है कि नेतृत्व सही हाथों में है। कमलनाथ का कहना है कि भाजपा यह मानती है कि उसने कांग्रेस को खाली खजाना सौंपा है, मगर फिर भी कांग्रेस सरकार अपने वचन पर खरी उतरेगी! दरअसल, कमलनाथ की राजनीति का यही अंदाज उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता है। कमलनाथ ने बाहर से आकर छिंदवाड़ा को अपना घर बना लिया और लोगों के दिलों उतर गए! उम्मीद की जानी चाहिए कि वे बहुत जल्द अपनी कार्यशैली से प्रदेश की जनता मन मोह लेंगे!
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