Wednesday, February 27, 2019

परदे पर अभी कोई यादगार बाप नहीं जन्मा!


- हेमंत पाल 

   समाज में पिता और संतान के बीच दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले संबंध हैं। इन पर बॉलीवुड निर्माताओं की नजर पड चुकी है। इसी के चलते कई फिल्मों में पिता की भूमिकाओं को जोरदार तरीके से सिल्वर स्क्रीन पर पेश किया। पचास से साठ के दशक के बीच बनी हिन्दी फिल्मों में पिता एक स्टीरियो टाइप कैरेक्टर हुआ करते थे। ऐसी भूमिकाओं को निभाने का जिम्मा नजीर हुसैन और मनमोहन कृष्ण ने बखूबी निभाया। इन दोनों कलाकारों ने उस दशक के सितारों राज कपूर, देव आनंद, शम्मी कपूर , दिलीप कुमार से लेकर राजेन्द्र कुमार के पिता की भूमिका खूब निभाई। इसके बाद हिन्दी फिल्मो में बाप की भूमिका में प्राण भरने वाले अभिनेताओं में मोतीलाल, कन्हैयालाल, जयंत और ओमप्रकाश का दौर आया। रहमान और सप्रू ने भी इस परम्परा को आगे बढाया। यदि 'मुगले आजम' में पृथ्वीराज कपूर ने एक दमदार बाप की भूमिका निभाई, तो वक्त में समय की मार झेल रहे बाप की भूमिका में बलराज साहनी ने गजब का परफार्मेस दिया।
  सत्तर और अस्सी का दशक आते आते हिन्दी फिल्मों के बाप भी बदले और उनकी भूमिकाएं भी समय के अनुसार बदली। जो सितारे साठ के दशक में नायक थे उनमे से कई 70 और 80 के दशक में फिल्मी बाप बनकर पर्दे पर दिखाई दिए। इसी क्रम में संजीव कुमार ने 'त्रिशुल' में अमिताभ के बाप बनकर जलवा बिखेरा तो दिलीप कुमार ने 'शक्ति' और 'कर्मा' में बाप की भूमिका को यादगार बना दिया। साठ के दशक के राजकपूर सत्तर के दशक में अपने ही बेटे की फिल्म कल आज और कल में उनके बाप बने तो शम्मी कपूर ने अपनी फिल्म जंगली की नायिका सायरा बानु के बाप बनकर जमीर से दूसरी पारी की शुरूआत की। उसके बाद वे 'बेताब' और 'प्रेमरोग' में प्रभावी बाप बनकर परदे पर छा गए। छठे दशक के विलेन प्राण उम्र की ढलान पर 'अमर अकबर एंथोनी' में बाप बने तो अमजद ने 'लावारिस' में उस अमिताभ के बाप की भूमिका की, जिसके साथ वह पहली बार 'शोले' में खूंखार विलेन बनकर आए थे। इस दौर में इन पुराने सितारों के साथ साथ ओम शिवपुरी, इफ्तेखार, एके हंगल और जगदीश राज ने कई फिल्मों में बाप बनकर फिल्मों को गति प्रदान की!
   महेश भट्ट की फिल्म 'सारांश' से एक दुखी बाप की यादगार भूमिका कर लोकप्रियता बटोरने वाले अनुपम खेर आज सबके चहेते बाप है। 'दिल' से लेकर 'दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे' में उन्होंने कभी नायक तो कभी नायिका के बाप बनकर अपने किरदार को स्वाभाविक बनाया है। आलोक नाथ तो लगता है बाप के किरदार के लिए ही पैदा हुए है। उन्होने हम साथ साथ है, मैने प्यार किया, हम आपके कौन हैं में बाप बनकर अपनी रोजी रोटी कमाई तो अमरीश पुरी ने जिस दबंगई से खलनायक की भूमिका की उतनी ही दबंगई से दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे सहित कई फिल्मों में बाप को दमदार बनाकर पेश किया। उनका साथ देने ओमपुरी, नसीरूद्यीन शाह,कादरखान, सईद जाफरी ने बाप बनकर हिन्दी सिनेमा के बापों की कमी पूरी की।
   इसके बाद उन सितारों ने बाप का लिबास ओढा जो कभी सिल्वर स्क्रीन पर बतौर सफल अभिनेता अपना डंका पिटने में माहिर थे। इसे समय का तकाजा कहा जाए या कुछ! लेकिन, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना , विनोद खन्ना और यहां तक कि बाल कलाकार की भूमिका से कैरियर आरंभ करने वाले ऋषि कपूर भी कुछ खट्टी कुछ मीठी राजू चाचा, हम तुम में बाप बनकर आए। सुनील दत्त ने मुन्ना भाई एमबीबीएस में संजय दत्त के पिता की भूमिका की तो धर्मेन्द्र भी अपने पुत्तरों के बाप बनकर बडे पर्दे पर दिखाई दिए।
हमारी फिल्मों में बाप बनकर अच्छे अच्छे सितारे आए, लेकिन अभी तक कोई ऐसी फिल्म अभी तक नहीं बनी जो इस बाप के चरित्र को उस ऊंचाई तक नहीं ले गया जो ऊंचाई 'मदर इंडिया' ने एक फिल्मी मां को दी थी। हालांकि, दिलीप कुमार ने 'शक्ति' में बाप की भूमिका को दमदार बनाया था। 'दंगल' में आमिर खान ने बच्चों की सेहत के लिए हानिकारक होते हुए भी एक यादगार बाप को रूपहले पर्दे पर पेश कर बाप की गरिमा को बढाने का काम जरूर किया है।
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