- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में नई सरकार बनने के बाद से ही ये मामला तूल पकड़ रहा है कि प्रदेश सरकार के खाली खजाने का क्या होगा? किसानों के दो लाख तक के कर्ज को माफ़ करने की घोषणा तो कर दी, पर ये ये पैसा आएगा कहाँ से? सरकार का खर्च कैसे चलेगा? सरकारी कर्मचारियों का वेतन और भत्ते समय पर देने में कोई परेशानी तो नहीं होगी और बाकी खर्चों की पूर्ति का रास्ता कहाँ से निकलेगा! कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही खर्चों में कमी का एलान तो किया, पर मितव्ययिता की भी एक सीमा होती है! नई सरकार के सामने वित्तीय संकट का सबसे बड़ा कारण ये रहा कि पहले वाली सरकार ने मुक्त हस्त से खजाना लुटाकर उसे खाली कर दिया! इस वजह से कमलनाथ को विरासत में जो सत्ता मिली उसकी तिजोरी लुटी हुई थी!
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विधानसभा चुनाव से पहले जो मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चा में था, वो मध्यप्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति को लेकर ही रहा है। पिछली शिवराज-सरकार ने चुनाव से पहले हर वर्ग को साधने की कोशिश की! इन कोशिशों का सीधा असर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय था और वही हुआ भी! चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने इस स्थिति को लेकर सरकार पर निशाना साधा था। तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और आज के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि प्रदेश भीषण आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रदेश पर ओवर ड्रॉफ्ट का खतरा मंडरा रहा है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर राज्य सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए! उन्होंने अपनी इस मांग को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था, लेकिन इसका उन्हें कोई जबाव नहीं मिला! आज जब वे प्रदेश के मुखिया हैं, ये सारा संकट उनके सामने खड़ा हो गया! उस समय कमलनाथ का आरोप था कि प्रदेश पर करीब पौने दो लाख करोड़ का कर्ज है। वित्तीय वर्ष में तीन बार सरकार बाजार से कर्ज ले चुकी है। सरकार 11 हजार करोड़ का अनुपूरक बजट भी लेकर आई थी।
मुख्यमंत्री कमलनाथ के पद संभालते ही सबसे बड़ा सियासी भूचाल ये आया कि किसानों की कर्ज माफ़ी का रास्ता कहाँ से निकलेगा? मुख्यमंत्री ने पार्टी के चुनावी वादे मुताबिक किसानों का 2 लाख तक का बैंक कर्ज को माफ़ करने के आदेश तो कर दिए, पर ये काम होगा कैसे? क्योंकि, उन्हें विरासत में सरकार का खजाना तो पूरी तरह से खाली मिला! जबकि, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कहना है कि राज्य की वित्तीय स्थिति बेहतर है। उन्होंने ने तो ये भी कहा कि किसानों की कर्जमाफी नहीं चाहिए, वे अपने पसीने की पूरी कीमत चाहते हैं! लेकिन, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हिम्मत नहीं हारी है! उन्होंने कहा कि मैं केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्री रह चुका हूँ! मुझे पता कि अर्थव्यवस्था कैसे चलती है! प्रदेश के 70% लोगों का जीवन-यापन खेती पर निर्भर है। मामला सिर्फ खेतों में उपज उपजाने का ही नहीं है। बहुत से ऐसे लोग हैं, जो गाँव में सब्जी बेचते या खेतिहर मजदूर हैं। उनका यह भी कहना था कि यदि उद्योगपतियों का कर्ज माफ़ हो सकता है, तो सरकार किसानों की कर्ज माफ़ी क्यों नहीं कर सकती!
कमलनाथ ने शपथ ग्रहण करने से पहले जब सरकार की प्राथमिकताएं एवं योजनाएं बताईं, तभी शिवराज-सरकार के वित्तमंत्री जयंत मलैया ने कह दिया था कि यदि किसानों का कर्ज माफ किया, तो कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ जाएंगे! कमलनाथ ने भी इसका जवाब दिया कि उन्हें पता है कि पैसा कहाँ से आएगा! प्रदेश सरकार का खजाना खाली पड़ा है, बड़ा कर्ज है। प्रदेश में वित्तीय संकट की स्थिति है। शीघ्र ही हम इस पर कोई निर्णय लेंगे। कर्ज माफी के लिए हम नई सोच से संसाधन जुटाएंगे। सरकार कमान संभालने से ही कमलनाथ प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन में कसावट लाकर विकास योजनाओं के लिए धन जुटाने की बात कहते रहे हैं। उन्होंने मीडिया का बजट रोककर कह दिया, कि मुझे अपनी छवि चमकाने की जरूरत नहीं है। हालांकि, ये बात भी सही है कि दो लाख करोड़ के बजट में मीडिया पर खर्च की जाने वाली राशि ऊंट के मुँह में जीरे की तरह होती है। जबकि सड़कों, फ्लाईओवर और अन्य योजनाओं पर खर्च की जाने वाली धनराशि हजारों करोड़ की होती है। इसके बावजूद मीडिया पर प्रहार करने से जनता को ये संदेश देने में सफलता जरूर मिली कि सरकार धीरे-धीरे अपना वित्तीय प्रबंधन सुधार रही है। लेकिन, नाराज मीडिया को संतुष्ट करना भी तो मुख्यमंत्री का ही काम है।
ये सच है कि किसानों की कर्ज माफ़ी से सरकारी खजाने पर बोझ जरूर आया है। यही कारण है कि किसानों की कर्ज माफी हमेशा ही चुनावों में बड़ा मुद्दा रही है। लेकिन, इस घोषणा पर अमल आसान नहीं होता! इसलिए कई पार्टियां किसानों की कर्ज माफ़ी के मुद्दे बचती हैं। भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे शिवराजसिंह चौहान का ये कुतर्क कुछ अलग ही है! वे कहते हैं कि किसान कभी मुफ्त का कुछ भी नहीं चाहते, वे तो पसीने की पूरी कीमत चाहते हैं। किसानों कभी खैरात पसंद नहीं करते! किसानों की गरिमा का सम्मान करते हुए मैंने कई योजनाएं शुरू की, जिससे किसानों के खाते में पैसा जाए। दरअसल, ये शिवराज सिंह की वो राजनीतिक कुंठा है, जो चुनाव हारने के बाद निकल रही है। कांग्रेस की एक घोषणा से चुनाव न जीत पाने की अपनी नाकामयाबी को वे इस तरह जाहिर कर रहे हैं।
प्रदेश के खाली खजाने को लेकर जो सियासी तूफ़ान उठा वो धीरे-धीरे बवंडर बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार के वित्तीय संकट को सियासी हथियार बनाया तो शिवराजसिंह ने राज्य की कंगाली की स्थिति का खंडन करते हुए कहा कि यह गलत है। खजाना में भरपूर भण्डार है। इसके लिए मैं कभी भी और कहीं भी बहस कर सकता हूँ। शिवराज ने यह भी कहा कि मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति किसी भी दूसरे प्रदेशों से बेहतर है। हम अपनी सरकार के दौरान कभी दूसरे राज्यों की तरह ओवरड्राफ्ट नहीं हुए। नई सरकार के लिए भरापूरा खजाना छोड़ा है। ये कितना सही है, ये बात जयंत मलैया के उस बयान से साबित होती है कि हमने खजाना खाली करके छोड़ा है! जिस सरकार में वित्त मंत्री रहे मलैया जब्व खजाने के खाली होने का दावा कर रहे हैं, तो शिवराज सिंह के इस दावे की कोई अहमियत नहीं रह जाती कि खजाना भरा है!
पिछली सरकार के समय से ही प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़कर करीब 2 लाख करोड़ रुपए है। जिस पर 6,000 करोड़ रुपए का सालाना ब्याज देना पड़ रहा है। पिछली सरकार के अंतिम शीतकालीन सत्र में शिवराज सरकार ने 8,000 करोड़ रुपए का दूसरा अनुपूरक बजट पेश किया था। इस पहले भी करीब 14 हजार करोड़ का एक अनुपूरक बजट पेश किया जा चुका था। जबकि, 1.58 लाख करोड़ रुपए का मूल सालाना बजट इसके अतिरिक्त था। अर्थशास्त्र के जानकारों के अनुसार अनुपूरक बजट का मतलब यही है कि प्रदेश का अर्थ-तंत्र कहीं न कहीं गड़बड़ा रहा हैं। इसके अलावा शिवराज-सरकार ने बाजार से भी करीब 15,500 करोड़ रुपए का कर्ज उठाया था। इन स्पष्ट खुलासों के बाद शिवराज सिंह के इन दावों का कोई मतलब नहीं रह जाता कि खजाना भरापूरा है! हालात जो भी हों, पर सियासी झगड़ों ने सरकार के खजाने को खोलकर जनता को जरूर दिखा दिया!
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