- हेमंत पाल
फिल्मों के सदाबहार एक्टर देवआनंद में और उनकी फिल्मों में बहुत समानता है। उनकी ही तरह उनकी कुछ फिल्में सर्वकालिक और सदाबहार रही! समय की गर्द जिन्हें धुंधला नहीं सकी। ऐसी ही फिल्मों में पचास साल पहले आई 'जाॅनी मेरा नाम' ऐसी ही फिल्म है, जिसने साल के अंतिम महीने में प्रदर्शित होने के बावजूद साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म का दर्जा हांसिल किया था। उस साल ये फिल्म कमाई के मामले में पहले पांच स्थानों में रही फिल्मों सच्चा झूठा, आन मिलो सजना, पूरब और पश्चिम और ‘जीवन मृत्यु’ को पछाडते हुए पहली पायदान काबिज हुई थी। ‘जॉनी मेरा नाम’ पहली फिल्म है जिसने हिंदी सिनेमा के इतिहास में हर वितरण क्षेत्र में 50 लाख रुपए या उससे ज्यादा का कारोबार किया। इस फिल्म के लिए विजय आनंद ने अपनी निर्देशन फीस छह लाख तय की थी! ये हिंदी सिनेमा में किसी निर्देशक को तब मिली सबसे बड़ी फीस थी। वैसे तो ‘जॉनी मेरा नाम’ की दो भाइयों के मिलने, बिछडने और हीरों की तस्करी जैसे फिल्मी फार्मूले पर बनी थी! लेकिन, जिस तरह से विजय आनंद ने केए नारायण की कहानी का चुस्त स्क्रीन प्ले और एडीटिंग की, उसने इसे एक अलग ही फिल्म बना दी, जिसने ढाई घंटे की लम्बाई के बावजूद दर्शकों को एक पल भी सीट से हिलने नहीं दिया था।
इस फिल्म को गुलशन राय ने बनाया था, जिनका निर्माता बनने का किस्सा भी बहुत रोचक है। वे देवआनंद की नवकेतन फिल्म्स की फिल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन किया करते थे और देव आनंद के काफी करीबी भी थे। बताते हैं कि एक फ़िल्मी पार्टी में राज कपूर ने उन पर फिकरा कसते हुए फिल्म वितरण के बजाए फिल्म बनाने की चुनौती दे डाली, जो उन्हें चूभ गई! उन्होंने यह बात देवआनंद को बताई, जिसके बाद 'जाॅनी मेरा नाम' फिल्म का प्लॉट बना और राज कपूर की चुनौती को स्वीकारते हुए इस फिल्म का नाम भी 'मेरा नाम जोकर' की तर्ज पर 'जाॅनी मेरा नाम' रखा गया। इसमें करण जौहर के ताऊ और यश जौहर के बड़े भाई आईएस जौहर ने ट्रिपल रोल किए। यहीं से फिल्म में तिहरे रोल की शुरूआत मानी जाती है। बाद में दिलीप कुमार ने फिल्म बैराग, मेहमूद ने हमजोली और अमिताभ बच्चन ने ‘महान’ फिल्म में ट्रिपल रोल किए।
जाॅनी मेरा नाम ने कमाई के साथ कई और भी कीर्तिमान बनाए। इसी फिल्म से देवआनंद और हेमा मालिनी की सफल जोडी बनी, जिसने हेमा को स्टार का दर्जा दिया। गुलशन राय को बतौर निर्माता भी इसी फिल्म ने स्थापित किया। उस समय बिहार जैसे राज्यों में शूटिंग का इंतजाम करना आसान नहीं था। लेकिन, विजय आनंद ने इस चुनौती को स्वीकार किया और नालंदा जाकर 'ओ मेरे राजा' गीत को फिल्माया जो फिल्म की जान बना। विजय आनंद ने समय बदलने के लिए भी स्टॉप फ्रेम का बहुत खूबसूरत इस्तेमाल किया है। इस कला में विजय आनंद का कोई सानी नहीं था। वे समय के साथ अपनी संपादन कैंची को इतनी तेजी से चलाते हैं कि दर्शक समझ नहीं पाता कि कब बच्चे बडे हो गए और कब भारत से नेपाल पहुंच गए।
'जाॅनी मेरा नाम' को सुपर हिट बनाने में राजेन्द्र कृष्ण के गीतों और कल्याणजी आनंदजी के संगीत का योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता। सिनेमा हाल में पहली बार सुनने पर गीतों में जो ताजगी मिलती है, वही ताजगी आज भी बरकरार है। फिल्म के सभी गाने सुमधुर होने के साथ इनका फिल्मांकन भी निर्देशक विजय आनंद ने जिस तरह किया, वह एक मिसाल है। ‘पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही’ में कैमरा एक खिड़की से दूसरी खिड़की होता हुआ घूमता रहता है। कैमरे के फ्रेम खत्म हो जाते हैं, लेकिन खिड़कियां खत्म नहीं होती! इसके अलावा 'ओ मेरे राजा' की लोकेशन भी शानदार है। 'छुप छुप मीरा रोये' जहां ईश्वरीय प्रेम का प्रतीक है, तो 'बाबुल प्यारे' बाप-बेटी के प्रगाढ़ रिश्तों की गहराई को दर्शाता है। जिस नशीले अंदाज में आशा भौंसले ने ‘हुस्न के लाख रंग ...’ गीत को गाया, उससे कहीं बेहतर अंदाज में पद्मा खन्ना ने इसे परदे पर प्रस्तुत किया। फिल्म का ये गीत अपनी रिलीज के दिनों का नंबर वन आइटम नंबर बना था। जिस जमाने में हाफ स्वीव्स ब्लाउज पहनना भी अंग प्रदर्शन का बड़ा कदम माना जाता हो, उस दौर में पद्मा खन्ना गाने में एक-एक करके अपने कपड़े उतारते दिखती हैं। मर्द और औरत की नीयत के इस मुकाबले में पद्मा खन्ना इक्कीस पड़ी! कहा जाता है कि इस गीत के फिल्मांकन के दौरान प्रेमनाथ बेकाबू हो गए गए थे! पर्दे पर गीत को देखते हुए दर्शकों ने चिल्लर लुटाने का सिलसिला भी इसी गाने से शुरू किया!
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसके ढेर सारे धांसू सितारों का जमावड़ा भी रहा! हर एक्टर की भूमिका दमदार और फिल्म की गति बढाने में जरूरी लगती है। देव आनंद, प्राण, प्रेमनाथ, सज्जन, जीवन, इफ्तिखार, श्याम कुमार, रंधावा, तीन-तीन आईएस जौहर, हेमा मालिनी और पद्मा खन्ना पर विजय आनंद ने जिस तरह से नियंत्रण रखा, वो बेमिसाल है। 'जाॅनी मेरा नाम' जितने रंग बदलती है, दर्शक बार-बार चौंकता रहता है। क्लाइमेक्स के पहले प्री-क्लाइमेक्स, फिर फ़र्स्ट क्लाइमेक्स, सेकंड क्लाइमेक्स और थर्ड क्लाइमेक्स बुनने का जो फॉर्मूला विजय आनंद ने इस फिल्म में ईजाद किया, उसे बाद में तमाम फिल्मों के निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में इस्तेमाल किया। फिल्म के टाइटल म्यूजिक के साथ क्लाइमेक्स का बैक ग्राउंड म्यूजिक भी बहुत लोकप्रिय हुआ था। कुल मिलाकर 'जाॅनी मेरा नाम' अजीब से नाम के बावजूद सफलता और सदाबहारता की एक नई इबारत लिख गई, जो आज भी धुंधली नहीं पड़ी है।
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