Thursday, November 26, 2020

मुखौटेबाज नेताओं को पहचानकर सजा देने की चुनौती!

     मध्यप्रदेश के उपचुनाव में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस बहुत पीछे रही! पार्टी के जो नेता पहले सभी 28 और बाद में कम से कम 20 सीटें जीतने के दावे कर रहे थे, पर हाथ आई सिर्फ 9 सीटें! कांग्रेस की ये हार किसी एक नेता की नहीं, पूरे संगठनात्मक ढांचे की हार है। पार्टी को भी अब इस बात का अहसास हो गया कि उसका बेहद संगठन कमजोर है। यही कारण है कि कांग्रेस ने संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव का फैसला किया। हवाबाज, झांकीबाज और अख़बारों में फोटो राजनीति करने वाले नेताओं की संगठन से छुट्टी करने का मन बना लिया गया है। साथ ही कई जिलों के निष्क्रिय पार्टी अध्यक्षों को भी बदलने की तैयारी है। उन मुखौटेबाज नेताओं की पहचान भी की जा रही है, जिन्होंने उपचुनाव में कांग्रेस की टोपी लगाकर भाजपा को चुनाव में जिताने का काम किया। क्योंकि, कांग्रेस के कुछ नेता और कार्यकर्ता तो सिंधिया समर्थकों के साथ भाजपा में चले गए, पर कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने कांग्रेस में रहकर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवारों की मदद की! अब समय आ गया, जब कांग्रेस को ऐसे चेहरों की पहचान करके उन्हें बेनकाब करना होगा।                 
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- हेमंत पाल 

     प्रदेश में 28 उपचुनाव के नतीजे आने के साथ ही कमलनाथ के खिलाफ पार्टी में गुबार उठने लगा था। उनकी नेतृत्व क्षमता पर उंगली उठाई जाने लगी थी। जब नतीजों के रुझान आ रहे थे, तभी कांग्रेस नेता गोविंद सिंह ने कमलनाथ को निशाने पर भी लिया। उनका कहना था कि टिकट बंटवारे में कमलनाथ ने किसी किसी की नहीं सुनी! अपनी मर्जी से सर्वे की आड़ में ही टिकट बांट दिए गए। बाद में सीहोर के एक कांग्रेस नेता हरपालसिंह ठाकुर ने खुले आम मांग की, कि कमलनाथ को इस्तीफा देना चाहिए। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अब वक्त है कि पार्टी के किसी नए नेता को मौका दिया जाए। ये दो नेता तो खुलकर बोले, पर पार्टी में ऐसा सोचने वालों की भी कमी नहीं है। क्योंकि, जब से कांग्रेस ने कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कमान सौंपी, वे कोई कमाल नहीं करते हुए भी कुर्सी पर जमे हैं। प्रदेश में सरकार होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में पार्टी को बहुत बुरी हार मिली। लेकिन, कमलनाथ की कुर्सी हिली तक नहीं! उसके बाद पार्टी में इतनी बड़ी बगावत हुई, पर अध्यक्ष पद उनसे नहीं लिया गया। उपचुनाव की सारी जिम्मेदारी भी उन्हें दे दी गई। अब, जबकि पार्टी उपचुनाव में बुरी तरह पिछड़ गई, उन्हें नए सिरे से संगठन खड़ा करने का काम दिया गया है।  
   अब समय आ गया, जब कमलनाथ को अपनी संगठनात्मक क्षमता को साबित करना होगा। उसके लिए जरुरी है कि प्रदेश में बदली राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस संगठन अपने उन हवाबाज और नकली नेताओं से मुक्ति पाए, जो कहीं न कहीं इस उपचुनाव में हार का कारण बने। पार्टी ने संगठन के उन चेहरों की पहचान भी कर ली है, जिनके होने या न होने से पार्टी में फर्क नहीं पड़ेगा। सुवासरा में पार्टी की हार के जिम्मेदार कुछ नेताओं को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया! निशाने पर वे लोग पहले हैं, जो उपचुनाव में हारी हुई 19 सीटों के प्रभारी थे। पार्टी को ये भी पुख्ता खबर है, कि कांग्रेस के सभी नेता और कार्यकर्ता सिंधिया समर्थकों के साथ भाजपा में नहीं गए! जो बच गए, उन्होंने उपचुनाव में कांग्रेस के लिए काम नहीं किया। कांग्रेस का मुखौटा लगाकर उन्होंने भाजपा को जिताने में पूरी मदद की और नतीजा सामने है। बताते हैं कि सेबोटेज दोनों पार्टियों में हुआ, पर कांग्रेस में कुछ ज्यादा। ग्वालियर-चंबल इलाके में भाजपा के वोटों में सेंध लगी, तो मालवा-निमाड़ में कांग्रेस उम्मीदवार को हराने में छुपे कांग्रेसियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। कमलनाथ ने हारी हुई सभी 19 सीटों के प्रभारियों और जिला अध्यक्षों से हार कारणों पर एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इन्हीं रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस संगठन में फेरबदल की रुपरेखा तय होगी। इसका कारण ये भी है कि सारी स्थितियां अनुकूल होने के बावजूद पार्टी उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी।   
    उपचुनाव में हार के बाद कमलनाथ से खुन्नस खाने वाले पार्टी नेताओं ने उन्हें जिम्मेदार बताकर रास्ते से हटाने की कोशिश की थी, पर पार्टी ने फ़िलहाल ऐसा कोई फैसला नहीं किया कि कमलनाथ प्रदेश से बाहर जाएंगे। हार के बाद भी पार्टी ने उनपर भरोसा बनाए रखा है। इसका आशय यह कि संगठन में बदलाव की चाभी भी उन्हीं के हाथ में होगी। यही कारण है कि कमलनाथ फिर चुनावी मूड में दिखाई दे रहे हैं। उनकी सक्रियता से लग रहा है कि पंचायत और नगर निकाय चुनाव की कमान भी उन्हीं के हाथ में होगी। उपचुनाव में दावे से कम सीटें जीतने के बाद उन्होंने खुन्नस खाए नेताओं से कहा कि मैं मध्यप्रदेश छोड़कर नहीं जा रहा! 2023 का चुनाव हम मिलकर लड़ेंगे। इसका स्पष्ट आशय है, कि कमलनाथ न सिर्फ पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे, उन्हें संगठन में बदलाव के लिए भी फ्री हेंड रहेगा। कमलनाथ ने भी साफ़ कर दिया कि पार्टी ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं को बख्शने के मूड में नहीं है, जिन्होंने उपचुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया और दूसरी बार कांग्रेस को धोखा दिया। पार्टी में इस बात की सुगबुगाहट भी है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस उन काली भेड़ों पहचान कैसे करेगी। चुनौती मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं! कांग्रेस के सामने फ़िलहाल स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव की चुनौती है। उपचुनाव में सेबोटेज के बावजूद यदि पार्टी ने मुखौटेबाजों पर कार्रवाई को रोका है, तो उसका कारण यही चुनाव है। संगठन शायद नए दुश्मन खड़े करना नहीं चाहती, इसलिए अभी खामोश है। इस चुनाव में 50 जिला पंचायतों के 843 और 313 जनपद पंचायतों के 6816 जनपद सदस्यों का निर्वाचन होना है। प्रदेशभर में पंचायतों की संख्या 23040 है, जिनमें से 22795 पंचायतों में चुनाव होना है। इन चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी जीत तय करना चाहते है।  
   कमलनाथ को हमेशा राजनीतिक प्रयोगों के लिए जाना जाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने कई प्रयोग किए थे, जिससे पार्टी को बढ़त मिली थी! लेकिन, बाद की स्थितियाँ अनुकूल नहीं रही और पार्टी को बगावत के साथ सत्ता से हाथ धोना पड़ा। लेकिन, उपचुनाव में भी वे उतनी सीटें नहीं जीत सके कि सत्ता फिर उनके हाथ आ जाए। लेकिन, अब वे पार्टी में परफॉरमेंस ऑडिट की परंपरा शुरू कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन लोगों को संगठन में सही जिम्मेदारी वाले पद दिए जाएं, जो उस योग्य हैं! अब जो गाइड लाइन बनाने की योजना है, उसमें योग्यता के आधार पर ही प्रदेश कांग्रेस और जिला कांग्रेस में नेताओं को पद सौंपे जाएंगे। उनकी जिम्मेदारी भी तय की जाएगी, ताकि वे अनुशासन में बंधे रहें। बताते हैं कि सभी पदाधिकारियों का परफॉरमेंस कार्ड बनाया जाएगा। प्रदेश में ब्लॉक तक के पदाधिकारियों के कामकाज की साल में दो बार समीक्षा होगी! जिनका काम सही होगा, उन्हें ही आगे जिम्मेदारी दी जाएगी। ये भी कहा जा रहा है कि सिफारिश के आधार पर पद बांटने का काम बंद किया जा रहा है। लेकिन, ये सब आसानी से हो सकेगा, इसमें शक है। क्योंकि, कांग्रेस में गुटबाजी और अनुशासन का कोई दायरा तय नहीं है और नेताओं की जुबान पर लगाम भी नहीं लगी। कमलनाथ यदि अपने नेताओं की जुबान पर नकेल डाल सकें, तो यही उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। 
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