Tuesday, December 19, 2023

मोहन यादव के नाम ने चौंकाया पर क्यों!

- हेमंत पाल 

     मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम जिस तरह घोषित किया गया वो किसी सस्पेंस भरी फिल्म के क्लाइमेक्स से कम नहीं था। सारी पटकथा दिल्ली में पहले से लिखी जा चुकी थी। सस्पेंस का खुलासा करने वाले पात्र भी तय हो चुके थे। किसे क्या करना है सब पहले से तय हो गया। किसी को बताया नहीं गया कि कथानक का अंत क्या है! लेकिन, जब मुख्यमंत्री का नाम घोषित हुआ, तो सबका चौंकना स्वाभाविक था। क्योंकि, ये नाम किसी के अनुमान में शामिल नहीं था। भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में यह घटना संदेश की तरह है कि यहां कभी, कुछ भी होने पर आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए!  
      इस प्रसंग से ये संदेश दिया कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कुछ भी कर सकता है। अभी तक ये सिर्फ कहा जाता रहा, पर अब मध्यप्रदेश में जो हुआ वो निश्चित रूप से चौंकाने वाली घटना कही जाएगी। सारे अनुमानों, कयासों, संभावनाओं और जानकारों के विश्लेषणों को धता बताते हुए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मोहन यादव को विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षकों के जरिए मुख्यमंत्री घोषित करवा दिया। चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद किसी ने नहीं सोचा होगा कि उज्जैन (दक्षिण) के विधायक मोहन यादव को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।  
      विधायक दल की बैठक में केंद्रीय पर्यवेक्षक और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने डॉ मोहन यादव के नाम की घोषणा की। जबकि, पिछले 8 दिनों में मोहन यादव को मुख्यमंत्री जैसा अहम पद दिए जाने की संभावना किसी ने व्यक्त नहीं की थी। जो संभावित नाम सामने थे, उनमें शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने या फिर प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी का नाम लगभग तय समझा जा रहा था। लेकिन, विधायक दल की बैठक में जो हुआ उस नाम ने उन विधायकों को भी निश्चित रूप से चौंकाया होगा, जो इस बैठक में मौजूद थे। क्योंकि, लगता नहीं कि किसी भी विधायक ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मंशा जाहिर की होगी। लेकिन, जो हुआ वह निश्चित रूप से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का थोपा हुआ नाम ही माना जाएगा। लेकिन, इस पर भी नाटक पूरा हुआ।  
      पर्यवेक्षकों के सामने शायद ही किसी ने मोहन यादव का नाम लिया होगा। विधायकों ने जो नाम लिए होंगे उनमें वे ही पांच नाम होंगे, जो दौड़ सामने थे। यदि उन पांच नामों में 10 नाम और भी जोड़ दिए जाएं, तब भी शायद उनमें मोहन यादव का नाम नहीं आएगा। क्योंकि, न तो उनमें कभी उनमें नेतृत्व की अपार क्षमताओं को आंका गया और न पार्टी में उन्हें इस पद के योग्य समझा गया। चुनाव प्रचार के दौरान भी कांग्रेस उम्मीदवार को मंच से अपशब्द बोलने को लेकर भी वे मीडिया में चर्चा में रहे। उज्जैन के मास्टर प्लान में उनकी जमीन को लेकर भी सालभर पहले बड़ा विवाद हुआ। फिर वे ओबीसी का इतना बड़ा चेहरा भी नहीं है, कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता। लेकिन, जब पार्टी ने विधायकों के जरिए उन्हें मुख्यमंत्री घोषित कर ही दिया तो उन्हें स्वीकारना ही पड़ेगा। 
     शिवराज सिंह चौहान की सरकार में डॉ मोहन यादव उच्च शिक्षा मंत्री थे। साल 2013 में वह पहली बार उज्जैन (दक्षिण) सीट से विधायक चुने गए थे। 2018 में वे फिर इसी सीट से विधायक चुने गए थे। 2023 में तीसरी बार वे फिर उज्जैन (दक्षिण) से उम्मीदवार बनाए गए और उन्होंने कांग्रेस के चेतन प्रेम नारायण यादव को 12941 वोटों से हराया। उज्जैन के महाकाल महाराज को वहां का राजा माना जाता है। राजा के सामने कभी कोई दूसरा राजा नहीं बनता। यही कारण है कि उज्जैन में कभी कोई मुख्यमंत्री या इस स्तर का नेता रात रुकने की हिम्मत भी नहीं करता। लेकिन, अब उज्जैन के विधायक मोहन यादव को पार्टी ने मुख्यमंत्री बना दिया, तो सवाल उठता है कि एक राजा के होते दूसरे राजा का क्या होगा! महाकाल के राज में क्या वे उज्जैन में रात बिताएंगे या नहीं! क्योंकि, महाकाल के राज में कोई दूसरा राजा विश्राम नहीं करता। 
'यादव' होने से लोकसभा में फ़ायदा मिलेगा  
    मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आ रहा, वो है लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश और बिहार की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना। बात सिर्फ ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की होती, तो शिवराज सिंह और प्रहलाद पटेल भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं। लेकिन, उनका सरनेम 'यादव' नहीं है जो उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा असर करेगा। यही कारण है कि उन्हें तय रणनीति के तहत मौका दिया गया। इसे भी संयोग माना जा सकता है कि प्रदेश के दिल्ली से भेजे गए चुनाव प्रभारी भी 'यादव' (भूपेंद्र यादव) ही थे।   
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