Saturday, December 9, 2023

दिखावे की दुनिया में मिसाल बना ये विवाह

    फ़िल्मों की दुनिया में दिखावा बड़ी चीज है। जो जितना बड़ा अभिनेता, वो उतना बड़ा आभामंडल रचता है। जब इनका विवाह होता है या बच्चा जन्म लेता है तो वो खबर मीडिया से सात तालों में छुपाई जाती है। विवाहों में मीडिया के आने पर तो रोक होती ही है, जो चुनिंदा मेहमान किसी दूर रिसोर्ट या महल में आमंत्रित किए जाते हैं उनसे भी मोबाइल रखवा लिया जाता है। यदि बच्चे का जन्म हो, तो उसका चेहरा नहीं दिखाया जाता। लेकिन, एक अभिनेता ऐसा है जिसने ऐसे प्रपंचों से अपने विवाह को दूर रखा। उन्होंने दुनिया के सामने मणिपुर के मैतेई समुदाय की रस्मों से वहीं की अपनी प्रेयसी से विवाह किया।  
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- हेमंत पाल

    रणदीप हुड्डा को फिल्मों में अलग तरह का अभिनेता माना जाता है। उन्होंने फिल्मों में कई तरह के किरदार निभाए और अपनी ऐसी पहचान बनाई कि उन्हें किसी दायरे में नहीं बांधा गया। उन्होंने अपने अभिनय के साथ ही अपना विवाह भी कुछ इस तरह किया कि उनकी मिसाल दी जा रही है। एक तरफ जब फिल्म कलाकार अपने विवाह को इवेंट की तरह करके दिखावा करते हैं। जिन दर्शकों ने उन्हें सितारा बनाया उन्हीं से अपने विवाह के फोटो और वीडियो छुपाकर ऐसा आभामंडल रचा जाता है, जैसे वे सबसे अलग हों। पर, रणदीप ने जिस सादगी और बिना किसी दिखावे या छुपाव के अपना विवाह किया उसे बेहद सराहा जा रहा है। 
     रणदीप हुड्डा ने मणिपुर की अपनी प्रेयसी लिन लैशराम से वहां के परंपरागत मैतेई रीति-रिवाज के साथ विवाह किया। जब इस विवाह की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई, तब लोगों को जानकारी मिली। न कोई माहौल बनाया और न कुछ छुपाया गया। इस विवाह का सबसे बड़ा आकर्षण रहा दूल्हा और दुल्हन का लिबास। देश के ज्यादातर लोग मैतेई रीति-रिवाज से अनजान थे। दुल्हन लिन लैशराम की पौशाक में इतना सम्मोहन था कि जिसने भी तस्वीरें और वीडियो देखे, सबका ध्यान उधर चला गया। लिन लैशराम ने अपनी शादी के लिए पोटलोई आउटफिट चुना, जिसमें वे बेहद खूबसूरत दिखाई दीं। मैतेई हिंदू दुल्हन अपनी शादी में पोटलोई या पोलोई ड्रेस ही पहनती हैं। यही उनका पारंपरिक परिधान है।
      रणदीप हुड्डा और लिन लैशराम दोनों पिछले चार साल से एक-दूसरे को डेट कर रहे थे। उनकी पहली मुलाकात नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप 'मोटले' में काम के दरमियान हुई। उस समय रणदीप उनके सीनियर कलाकार थे। दोनों काफी समय तक अच्छे दोस्त रहे। दोनों में दोस्ती बहुत गहरी हो गई तो उन्होंने इसे विवाह में बदलने का फैसला किया। कुछ दिन पहले दोनों ने एक साझा बयान में अपने रिलेशन को ऑफिशियल किया था। रणदीप और लिन ने इंफाल के शन्नापुंग रिसोर्ट में विवाह की रस्में अदा दी। इसमें दोनों के परिवार और रिश्तेदार शादी में शामिल हुए। 
   देश में हिंदू धर्म में कई छोटे-बड़े कई ऐसे समुदाय हैं, जिनका हिंदू रीति-रिवाज में अपना अलग रिवाज होता है। उन्हीं में से एक है मणिपुर के मैतेई समुदाय के रीति-रिवाज। एक्टर रणदीप हुड्डा ने अपनी गर्लफ्रेंड लिन लेशराम से इसी रिवाज में विवाह किया। इस रस्म में दुल्हन के परिवार की बड़ी तीन महिलाएं दूल्हे की फैमिली का स्वागत करती हैं। केले के पत्ते से लपेटी हुई एक थाली में पान सुपारी रखकर स्वागत किया जाता है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन ख़ास तरह की पौशाक में होते हैं। दुल्हन पोटलोलई परिधान पहनती हैं और दूल्हा सफेद धोती-कुर्ता। तुलसी के पौधों को साक्षी मानकर विवाह की रस्में पूरी की जाती है। दुल्हा-दुल्हन को एक घेरे में बैठाकर, लोग उन्हें पैसे देकर सम्मानित करते हैं। दुल्हन दूल्हे को वरमाला पहनाकर नमस्ते करती है। इस मैतई विवाह रस्म के कई अलग-अलग नाम हैं, जो मणिपुरी विवाह, लुहोंगबा और यम पानबा है।
      रणदीप हुड्डा के इस विवाह से उनके पैतृक गांव जसिया गांव के लोग भी खुश हैं। उन्होंने रणदीप के विवाह की जानकारी मिलने पर जमकर खुशियां मनाईं। गांव के सरपंच ओम प्रकाश हुड्डा ने कहा कि गांव के लाडले रणदीप ने देश-दुनिया में गांव का नाम रोशन किया। नव दंपत्ति जब गांव में आएंगे तो उनके लिए आशीर्वाद समारोह किया जाएगा। रणदीप के शादी के बंधन में बंधने पर जसिया गांव में रहने वाली उनकी चाची-ताईयों व बहनों सहित सभी ग्रामीणों में खुशी है। रणदीप की चाची ने बताया कि रणदीप जमीन से जुड़े हुए हैं। वे जब गांव आते हैं तो सभी से हंसी खुशी मिलते हैं। दो माह पहले भी वे गांव में आए थे तो सभी से मिले थे। अब वो बहुत बड़े आदमी हो गए हैं। वे सब उनसे पहले भी शादी करने की बात कहते थे। अब रणदीप का विवाह होने से गांव वालों में बहुत खुशी है।
      रणदीप हुड्डा ने अपनी अभिनय करियर की शुरुआत 2001 की मीरा नायर की फिल्म 'मानसून वैडिंग' फ़िल्म से की थी। अच्छे अभिनय के बावजूद रणदीप को अगली फिल्म के लिए चार साल तक इंतजार करना पड़ा। 2005 में आई राम गोपाल वर्मा की फ़िल्म 'डी' में उन्हें अपने किरदार के लिए बहुत प्रशंसा मिली थी। 'डी' के बाद हुड्डा ने कई फ़िल्में की जो चली नहीं। 2010 में आई मिलन लुथरिया की फ़िल्म 'वन्स अपोन अ टाइम इन मुंबई' से उन्हें फिर अपनी खोई मंजिल मिली। इसके बाद उन्होंने साहिब-बीवी और गैंगस्टर (2011), जन्नत-2 (2012) और रंग रसिया (2014) में महत्वपूर्ण किरदार निभाए। फिल्म 'लाल रंग' में शकंर की भूमिका को काफी सराहा गया। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि हाई-वे (2014), सरबजीत (2016) और स्वातंत्र्य वीर सावरकर से मिली।  
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