Wednesday, December 6, 2023

जन 'मन' की थाह न ले पाया कोई!

    मध्य प्रदेश का अगले पांच साल का राजनीतिक भविष्य तय हो गया। भाजपा ने उम्मीद से ज्यादा सीटें पाकर यह साबित कर दिया कि चुनाव में रणनीति ही सबसे ज्यादा कामयाब होती है। भाजपा ने उसके सबूत भी दे दिए। उम्मीदवारों की जल्दी घोषणा करना, चुनाव से पहले एक बड़ी जनहितकारी योजना की घोषणा और उम्मीदवारों के चयन में सतर्कता ही भाजपा की कामयाबी का सबसे बड़ा कारण रहा। इसके विपरीत कांग्रेस हर मोर्चे पर कमजोर साबित हुई। कांग्रेस को उसका अतिआत्मविश्वास ले डूबा। 
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- हेमंत पाल

   ध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों ने उन सारे अनुमानों को पलट दिया, जो इस बार बीजेपी के सत्ता से बाहर जाने की संभावना जता रहे थे। जिस तरह के नतीजे सामने आए, उससे निश्चित रूप से खुद भाजपा भी अचरज में होगी! क्योंकि, जनता के मन में जो था, वो भाजपा के अनुमानों से भी अलग निकला। मध्य प्रदेश में बीजेपी फिर सरकार बनाएगी, इस बात के आसार तो पार्टी को थे, पर उसके इस विश्वास में कहीं न कहीं शंका-कुशंका थी। क्योंकि, 18 साल से ज्यादा लंबे शासनकाल में एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को भी सोचकर चला जा रहा था। बीजेपी के नेताओं को लग रहा था कि जनता कि खामोशी कहीं उनके खिलाफ न जाए! पर, ऐसा नहीं हुआ। जो नतीजे सामने आए और बीजेपी को जितनी सीटें मिली, वो उसके अनुमान से कहीं ज्यादा मानी जाएगी। इसलिए कि बीजेपी को कांटाजोड़ मुकाबले में 130 से 135 सीटों का अनुमान था, पर आंकड़ा 160 से आगे तक पहुंच जाएगा, ये सोचा नहीं गया था। वास्तव में जो हुआ, वो राजनीतिक जानकारों के लिए एक तरह से शोध का विषय हो सकता है, कि इतने लंबे शासनकाल के बाद भी कोई पार्टी जनता के दिल में कैसे बसी हुई है! जबकि, पड़ौसी छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मतदाताओं ने बाजी पलट दी। 
     मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार की वापसी के लिए पार्टी ने इस बार हर संभव प्रयास किए। सबसे बड़ा प्रयोग यह था कि पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव के अलावा सात सांसदों को भी चुनाव लड़ाया गया। इनमें अधिकांश वे सीटें थी, जहां से बीजेपी पिछले दो या तीन चुनाव हारी थी। अधिकांश जगह बीजेपी की स्थिति इस बार भी बेहतर नहीं बताई गई थी। यही कारण रहा कि यहां सांसदों को चुनाव लड़ाया गया और इसका नतीजा अच्छा रहा। जहां से सांसदों को मैदान में उतारा गया उन जिलों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा। चुनाव की घोषणा से पहले 39 उम्मीदवारों की घोषणा करना भी बीजेपी की एक महत्वपूर्ण चुनाव रणनीति का हिस्सा रहा। लेकिन, फिर भी कहीं न कहीं भाजपा के मन में यह भय तो था कि हम जीतेंगे या नहीं! क्योंकि, शुरुआती राजनीतिक जानकारियां बता रही थी, कि बीजेपी इस बार सौ का आंकड़ा भी शायद पार न करे। ऐसी स्थिति में बीजेपी सरकार से बाहर हो जाएगी और कांग्रेस को मौका मिल जाएगा। लेकिन, चुनाव नतीजों ने स्पष्ट कर दिया था कि बीजेपी ने फिर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।  
    अब सवाल यह उठता है कि एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का क्या हुआ? मतदाताओं में इतने साल बाद भी यह भरोसा क्यों बना रहा, कि उसके लिए बीजेपी का ही सरकार में बने रहना जरूरी है। निश्चित रूप से इस सवाल का एक ही जवाब है कि कांग्रेस सारी कोशिशों के बाद भी लोगों का भरोसा नहीं जीत सकी। लेकिन, अब यदि इसी सवाल को ज्यादा कुरेदा जाए, तो जवाब मिल जाएगा कि कांग्रेस की हार के लिए कोई और नहीं खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है। उसकी हार का सबसे बड़ा कारण यह माना जाना चाहिए कि कांग्रेस ने सिर्फ भाजपा की गलतियों में ही अपनी जीत को ढूंढने की कोशिश की। भाजपा के नेता हमेशा यही देखते रहे कि भाजपा कहां गलती कर रही है और उसे कैसे पटखनी दी जाए! खुद को आगे बढ़ाने या जनता का विश्वास जीतने के लिए उतने गंभीर प्रयास नहीं किए, जितने किए जाना चाहिए। जबकि, चुनाव जीतने के लिए प्रतिद्वंदी पार्टी को पीछे छोड़ने के अलावा खुद के आगे बढ़ने का माद्दा भी होना चाहिए, जो कांग्रेस नहीं कर सकी। कांग्रेस के पास भविष्य की जनहितकारी योजनाओं का कोई ठोस खाका भी नहीं था। यहां तक कि बीजेपी की 'लाड़ली बहना योजना' से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने भी योजना की घोषणा की, पर वो विश्वास के धरातल पर खरी नहीं उतरी।
     मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ महीने पहले 'लाडली बहना योजना' की बड़ी घोषणा की थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस योजना ने प्रदेश में बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह योजना एक तरह से बीजेपी के लिए 'मास्टरस्ट्रोक' साबित हुई। साल भर पहले बीजेपी को ये अंदाजा हो गया था, कि इस बार का चुनाव आसान नहीं है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने गरीब महिलाओं को हर महीने हजार रुपए देने की घोषणा की और इसे आगे बढ़ाकर तीन हजार करने का भरोसा दिलाया। इसका व्यापक असर हुआ। 'लाडली बहना योजना' ने न सिर्फ बीजेपी की स्थिति को संभाला, बल्कि चुनाव में आसमान फाड़ जीत भी दिला दी। 
    शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं की एक सभा में मंच घुटनों के बल बैठकर इस योजना की घोषणा की थी। इसमें बीजेपी ने प्रदेश की 1.32 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को पहले 1000 रुपए फिर 1250 रुपए महीने देना शुरू किया। यही नहीं, लाड़ली बहनों को घर देने तक का ऐलान किया। महिलाओं को फायदा होने का मतलब है कि परिवार को फायदा। इस योजना ने एक परिवार के औसतन 5 वोट पर असर डाला जो सीधे बीजेपी के खाते में गए। जबकि, पहले कहा जा रहा था कि बीजेपी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं थी। लेकिन, बीजेपी को महिलाओं की इस योजना ने जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस योजना को मुख्यमंत्री ने जिस तरह प्रचारित किया, उसने अपना अलग असर छोड़ा। 
     इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पिछड़ने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी माना जा सकता है, कि उसकी मध्य प्रदेश की राजनीति पूरी तरह दिग्विजय सिंह और कमलनाथ पर केंद्रित होकर रह गई है। पार्टी की राजनीति के हर फैसले कमलनाथ या दिग्विजय सिंह पर केंद्रित रहे। कोई भी तीसरा नेता या यूथ लीडरशिप को कांग्रेस ने आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया। यहां तक कि यूथ कांग्रेस अध्यक्ष डॉ विक्रांत भूरिया भी इसलिए अध्यक्ष बनाए गए कि वे कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं। कांग्रेस ने इस आदिवासी युवा को अध्यक्ष बनाकर यह बताने की कोशिश जरूर की, कि वो आदिवासियों के संवेदनशील है। लेकिन, यूथ लीडरशिप में जो जुझारूपन होना चाहिए, वो उनमें कहीं नजर नहीं आया। खुद विक्रांत भूरिया अपना कोई असर नहीं छोड़ पाए और वह झाबुआ तक सीमित होकर रह गए। इसके विपरीत बीजेपी के पास युवा नेताओं की कमी नहीं है। उसके पास एक दर्जन से ज्यादा ऐसे नेता हैं, जो पार्टी का नेतृत्व करने में सक्षम है। 
     इस बार बीजेपी ने एक नया प्रयोग यह भी किया कि किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में सामने नहीं लाया गया। चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासन में चुनाव लड़ा गया, वे पार्टी के स्टार प्रचारक भी रहे, उनकी योजनाओं और उनकी ही चुनावी योजनाओं पर चुनाव लड़ा गया, लेकिन वे मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किए गए। पार्टी ने चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष भी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर को बनाया। इसके अलावा भाजपा ने कई समितियां बनाकर यह चुनाव लड़ा, इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाजपा रणनीतिक तौर पर कांग्रेस से बहुत आगे रही। साथ ही जनता को यह विश्वास दिलाने में भी सफल रही कि मध्यप्रदेश और यहां के लोगों के हित के लिए भाजपा का चुनाव जीतना ज्यादा जरूरी है। इसका फायदा भी साफ दिखाई दिया, जब भाजपा ने सरकार बनाने लायक बहुमत से आगे जाकर सम्मानजनक आंकड़ा पा लिया। जबकि, कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ही रणनीति बनाते और चुनाव लड़ाने के साथ खुद भी सार्वजनिक रूप से लड़ते रहे। इस नजरिए से कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं कांग्रेस की रणनीति इस बार बुरी तरह फेल हुई और वे जनता में अपना विश्वास कायम नहीं रख सके। 
      इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि बीजेपी की इस जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने प्रदेश में धुआंधार जनसभाएं कीं। आदिवासी इलाके झाबुआ, अलीराजपुर के अलावा मालवा-निमाड़ में जहां भी कांग्रेस को जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, वहां नरेंद्र मोदी की जनसभाओं ने मतदाताओं को प्रभावित करने में कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि वो हर राज्य में अलग रणनीति के साथ आगे बढ़ती है। किसी राज्य में वो मुस्लिम वोटों को लुभाने की कोशिश करती है, तो किसी राज्य में 'सनातन' के आधार पर वोट पाने की रणनीति अपनाती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कमलनाथ हनुमान जी के भक्त हैं। लेकिन, वे सिर्फ चुनाव के दौरान ही अपनी भक्ति दिखाते हैं। वहीं दिग्विजय सिंह अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण कई बार आलोचनाओं का शिकार हो चुके हैं। ये और ऐसे बहुत से कारण है जो कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत का कारण बने। अब कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा कि उनकी हार का कारण क्या रहा! क्या कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का जादू अब मध्यप्रदेश में पूरी तरह ख़त्म हो गया!    
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