Friday, January 8, 2016

ये कांग्रेस के टर्निंग पॉइंट का संकेत तो नहीं?



 रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में जीत के बाद 8 निकाय चुनाव में कांग्रेस की जीत ने कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार किया है। उसे प्रदेश की सत्ता और करीब आती नजर आने लगी है! अब कांग्रेस के सामने मैहर विधानसभा सीट का उपचुनाव चुनौती की तरह है! पार्टी के सभी गुटों के क्षत्रप भी एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। ये हालात बिहार विधानसभा के नतीजों के बाद बदले हैं! यदि कांग्रेस की जीत का परचम मैहर में भी लहरा गया तो भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक होगा! क्योंकि, राजनीति में मतदाताओं की मानसिकता को समझना और उसी के मुताबिक फैसले लेना सबसे जरुरी होता है! शायद इसी मानसिकता को समझने में भाजपा से कहीं चूक हो रही है!
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 हेमंत पाल 
  किसी राजनीतिक पार्टी की सत्ता आखिर कितने समय तक सकारात्मक नतीजे दे सकती है? इस सवाल का जवाब यही हो सकता है कि जब तक उसे मतदाता स्वीकारते रहेंगे! शिवराजसिंह चौहान इस समय मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी की तरफ से मुखिया के रूप में तीसरी पारी खेल रहे हैं! वे चौथी पारी खेलेंगे या नहीं, ये इस बात पर निर्भर है कि मतदाताओं की मनः स्थिति क्या कह रही है? और जहाँ तक मतदाताओं की मानसिकता की बात है तो ताजा संकेत भाजपा के लिए सकारात्मक नहीं लग रहे! रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट का उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस जिस तरह बल्लियों उछल रही थी, उसे इसी तरह का उत्साह दिखाने का एक मौका और मिल गया! प्रदेश में 8 नगर परिषदों के चुनाव में कांग्रेस ने 5 पर जीत दर्ज कराकर डंका बजा दिया! देश के 8 स्थानीय निकायों के 193 वार्डों में चुनाव हुए! इनमें से भाजपा को 93 वार्डों पर विजय मिली, जबकि कांग्रेस के खाते में 60 वार्ड आए। लेकिन, नतीजे में कांग्रेस ने 8 में से 5 स्थानीय निकायों पर विजय दर्ज की! जबकि, भाजपा 3 निकाय तक सीमित रही। जबकि पिछली बार 8 स्‍थानों में से 7 स्थान भाजपा ने जीत मिली थी। यानि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को बड़ा झटका देते हुए भाजपा से 4 नगरीय निकाय छीने हैं।
  रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव की जीत को कांग्रेस मध्यप्रदेश में अपनी खोई सत्ता फिर से पाने की कुंजी मानकर उत्साहित है। इस जीत को कांग्रेस प्रदेश में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत होने का टर्निंग पाईंट भी मान रही है। पहले बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा सीट पाने के बाद कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में रतलाम-झाबुआ सीट की जीत संजीवनी से कम नही है। अब इस जीत के उत्साह पर 8 में से 5 निकाय चुनाव जीत  लगा दी! इन सफलताओं से जहाँ प्रदेश के कांग्रेसी गुटों में एकता का स्वर गूंजा, वहीँ गुटों के सरदार माने जाने वाले नेताओं के बीच की दूरियां भी कुछ हद तक घटी! वास्तव में ये दूरी भले ही कम हुई हो या नहीं! मगर इस जीत के बाद वे एक मंच पर आकर भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी में जरूर लग गए हैं। अब कांग्रेस की इस जीत की सही परीक्षा मैहर विधानसभा उपचुनाव में होगी! यदि कांग्रेस यह सीट जीत लेती है, तो वास्तव में भाजपा को अगली जीत के लिए गंभीरता से सोचना होगा और नए सिरे से जतन करना पड़ेंगे! 
  भाजपा के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस का शहरी इलाकों में जीतना! मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ के शहरी निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस की जीत ने भाजपा नेताओं की नींद उड़ा दी! क्योंकि, अभी तक कांग्रेस शहरी इलाके में भाजपा के वर्चस्व को चुनौती नहीं दे सकी थी। शहरी इलाकों में कांग्रेस की जीत का सीधा सा मतलब है शहरी, मध्यम वर्गीय मतदाताओं में भाजपा से नाराजी बढ़ी है! बिहार विधानसभा में भी जदयू की जीत और कांग्रेस के सफल प्रदर्शन के बाद से हालात तेजी से बदले हैं। जबकि, वास्तविकता ये है कि बिहार में राजद और जदयू ने कूटनीति के तहत कांग्रेस को ज्यादा सीटें शहरी इलाके की सीटें दी थीं! उसका मानना था कि भाजपा शहरों में ज्यादा ताकतवर है, वहां उसके सामने कांग्रेस नहीं टिकेगी! लेकिन, जब नतीजे सामने आए तो वो हैरान करने वाले रहे। कांग्रेस ने शहरी इलाकों के साथ ही सवर्ण मतदाताओं की बहुलता वाले इलाकों में भी भाजपा को चित किया! 
  बिहार उपचुनाव की उस हवा का ही असर है कि मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ के शहरी निकाय में कांग्रेस ने भाजपा को हराया है। 11 शहरी निकायों में हुए चुनाव में कांग्रेस 8 में जीती है और भाजपा को मिले 3 निकाय! जबकि, इन निकायों में हुए पिछले चुनाव में भाजपा ने 11 में से 7 निकायों में झंडे गाड़े थे! बदलाव की यही बयार मध्यप्रदेश में दिखी जहाँ 8 में से 5 निकाय में कांग्रेस जीती! कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन की बात बिहार, छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश तक ही सीमित नहीं है। तीन और राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र के विधान परिषद चुनावों में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा मुताबिक भाजपा की बदली हुई बयार जो बिहार से चली, वो झाबुआ पहुंची और अब नगर निकाय चुनाव में इन पांच स्थानों पर उसे नकारात्मक संदेश मिला! नगरीय निकायों में कांग्रेस की जीत से पूरे प्रदेश की राजनीतिक फिजां बदलेगी! प्रदेश में भाजपा का पतन शुरू हो गया है। यह जीत चुनिंदा क्षेत्रों की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की जीत है। क्योंकि, ये पांचों नगरीय निकाय प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के हैं। 
  पहले रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव की जीत, फिर निकाय चुनाव में मिली सफलता ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के लिए भी संजीवनी का काम किया! उनको पद से हटाने की कोशिशों में कमी भी आती दिखाई दी! लेकिन, ये दावे से कहा नहीं जा कि उनकी कुर्सी कितने दिन सुरक्षित रहेगी! अब सबसे बड़ी चुनौती ये है कि क्या कांग्रेस मैहर विधानसभा उपचुनाव में भी कमाल दिखा पाएगी? यदि कांग्रेस मोर्चा जीत लेती है, तो इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि कांग्रेस के गुटों में बंटे सरदारों का साथ आना सही कदम था! क्योंकि, अभी तक तक के चुनावों में तो कांग्रेस ही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी रही है। यदि वास्तव में कांग्रेस गुटबाजी को किनारे रखकर एकता दिखाने में कामयाब रही, तो उसके लिए चुनौती मुश्किल नहीं है। 
   मैहर विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई थी! वे भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा ने उनको भाजपा प्रत्याशी बनाकर मैदान में भी उतारा है। इस सीट पर मुकाबला सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नहीं है! बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी भी अपनी दावेदारी दिखाने में पीछे नहीं है। क्योंकि, बसपा पहले ही यहाँ अपना ख़म ठोंक चुकी है। सतना संसदीय सीट से एक बार बसपा कांग्रेस और भाजपा दोनों को चित कर चुकी है। यहाँ से विधायक भी बसपा के खाते में बने हैं! बसपा का इस इलाके में अलग ही आधार है। ऐसी स्थिति में बसपा उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा दोनों के सामने त्रिकोणीय हालात पैदा कर सकता है। 2013 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार ने कुछ ऐसा ही चुनावी संघर्ष बनाया था। वे भी कांग्रेस से अचानक बसपा में चले गए थे। यही सब नारायण त्रिपाठी ने भी किया! वे बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए और चुनाव जीत गए! मगर बाद में उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजयसिंह का विरोध किया और कांग्रेस की विधायकी से इस्तीफा दे दिया! वास्तव में ये चुनाव जीतना भाजपा के लिए इसलिए जरुरी है कि उसे अपना आत्मविश्वास फिर अर्जित करना है! कांग्रेस की जीत उसके लिए टर्निंग पॉइंट का स्पष्ट संकेत होगा।   
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