- हेमंत पाल
इन दिनों टीवी सीरियल और विज्ञापनों की दुनिया में बच्चे एक अहम किरदार अदा कर रहे हैं। सीरियलों में तो बच्चे दिखाई दे ही रहे हैं! विज्ञापन के जरिए घरेलू प्रोडक्ट भी बच्चों से बिकवाने की कोशिश हो रही है। वाशिंग पाउडर से लगाकर इलेक्ट्रॉनिक सामानों के विज्ञापन भी बच्चे कर रहे हैं, जिनका उनसे कोई वास्ता नहीं होता! यही स्थिति सीरियलों और कुछ हद तक फिल्मों की भी है। बाल कलाकारों के बगैर तो कोई सीरियल ही पूरा नहीं होता! लेकिन, शायद कभी किसी ने नहीं सोचा कि बाल किरदार अदा करते-करते इन बाल कलाकारों का बचपन छिनता जा रहा है। न तो इन बच्चों की पढाई पूरी हो पा रही है और न वे अपने बचपन को ही जी पा रहे हैं! ये सभी बाल कलाकार बाल मजदूर बनकर रह गए! इस बात से इंकार नहीं कि बच्चे जिंदगी के हर पहलू में सबसे अहम रोल अदा करते हैं! तो फिर टीवी सीरियल और विज्ञापन उनके बिना कैसे पूरे होंगे? टीवी पर तो बच्चे इन दिनों मुख्य भूमिका में हैं।ये बाल कलाकार टीवी के परदे से पर ही नहीं, फिल्मों तक में करिश्मा कर रहे हैं। टीवी सीरियलों में तो बच्चे बड़े कलाकारों जैसा ही अहम रोल निभा रहे हैं। उड़ान, ये जो है मोहब्बतें, बाल हनुमान, महाराणा प्रताप जैसे सीरियलों को जरा याद कीजिए! सर्फ़ एक्सेल, महेन्द्रा ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स के विज्ञापनों में भी बच्चे ही तो अहम है। फ़िल्में भले ही सौ-सौ करोड़ रुपए का कारोबार कर रही हो, पर देश में सिनेमा से कई गुना ज्यादा दर्शक टीवी के हैं! यही कारण है कि पिछले कुछ समय से बच्चों को केंद्र में रखकर ही सीरियलों में उनके लिए रोल लिखे जा रहे हैं! विज्ञापन भी बच्चों को केंद्र में रखकर बनाए जा रहे हैं। सीरियल के अलावा रियलिटी शो भी बच्चों पर बन रहे हैं। वक्त बदल गया है। बच्चे अब बड़े कलाकार हैं, बड़ों से भी बड़े। लेकिन, इस सारी कवायद में उनका बचपना छिन गया और वे वक़्त से पहले बड़े हो गए!
विज्ञापनों और सीरियलों में इन बाल कलाकारों के ज्यादा काम करने से उनके आराम, पढाई, विकास और बचपन पर खासा असर हो रहा है। क्योंकि, इन बच्चों के माता-पिता को भी बच्चों की कमाई का ज्यादा ध्यान है! ऐसे ही एक बाल कलाकार के परिजन का कहना है कि यह सब जीवन का हिस्सा है। इससे बच्चों का बचपन खिलकर सामने आ रहा है। उनकी कमियां तलाशने के बजाए, बच्चे जिस तरह से टीवी इंडस्ट्री को चला रहे हैं, उसे उनकी सफलता के नजरिए से देखा जाना चाहिए! जबकि, एक सीरियल निर्देशक का मानना है कि अब टीवी में बच्चों के लिए स्कोप बहुत बढ़ गया है। उनके सपने भी बड़े हो गए! इसे गलत भी नहीं कहा जा सकता! लेकिन, ये नजरिया रखने वाले निर्देशक भी हैं, जिनका मामना है कि इन कलाकार बच्चों के सपने बड़े नहीं होते! ये सपने उनके घरवाले अपने दिमाग में लेकर चलते हैं। बच्चे टीवी में एक्टर बनने नहीं आते, वो तो इसलिए आते हैं क्योंकि परिजन उनको इसके लिए प्रेरित करते हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने एक बार इस तरह का सवाल उठने पर सीरियलों में काम करने वाले बाल कलाकारों से काम लेने वाले निर्माताओं और उनके माता पिता पर कार्रवाई करने का ऐलान किया था। इसलिए कि सरकार को लगा कि बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लिया जा रहा हैं। ये बालश्रम कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आता है। बाल श्रम (रोकथाम और नियमन) कानून 1986 के अनुसार इनके काम की अवधि 6 घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ख़ास बात ये कि काम की जानकारी भी सरकार को देनी होती है। लेकिन, ग्लैमर के दबाव में ऐसा कुछ हो नहीं सका!
बच्चों और उनके परिजनों को सीरियल में काम करना अच्छा लग रहा है। बच्चों की कमाई से परिजन निहाल हो रहे हैं! सीरियल और रियलिटी शो भी मजे से चल रहे हैं, तो कानून को कौन तवज्जो दे! बच्चे कितने घंटे काम करते हैं, कैसा काम कर रहे हैं, कितना कमा रहे हैं! सरकार को इसकी जानकारी कोई नहीं देता! कोई देता भी है, तो उसमें झूठ ज्यादा होता है। 'बालिका वधु' सीरियल का प्रमुख किरदार निभाने वाली अविका गौर ने 2008 में इस सीरियल में काम करना शुरू किया था! इस दौरान उन्हें एक की भी दिन छुट्टी नहीं मिली। इससे अविका की सेहत पर असर पड़ा! बताते हैं कि उसे अस्थमा भी हो गया। उसे कभी मुंबई में शूटिंग करना पड़ती, कभी कभी साउथ में! छुट्टी के बारे में सोचना भी अविका के लिए गुनाह जैसा था! ये तो सिर्फ एक उदाहरण है, ये कहानी हर उस बच्चे की है जो परदे पर हमें दिखाई दे रहा है! क्या कोई कभी उनकी खुशियों के बारे में भी सोचता होगा? क्योकि, उनके घरवालों के लिए तो वो पैसे कमाने की मशीन है!
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