मध्यप्रदेश में इन दिनों जैसे शांत हालात बाहर से नजर आ रहे हैं, वास्तव में वैसा है नहीं! पिछले कुछ महीनों में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव उभर आना सामान्य बात हो चली है! मुद्दा सिर्फ दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ने तक सीमित नहीं है! अब तो ये सांप्रदायिक तनाव हिंसक हो चले हैं। पूरे प्रदेश में जरा सी बात या अकारण ही आग सुलगती नजर आने लगी है। सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति प्रदेश के पश्चिमी इलाके मालवा की है! मालवा इलाका कई दिनों से बेहद संवेदनशील हैं! इस इलाके के कई जिले बारूद के ढेर पर बैठे लग रहे हैं। जरा सी चिंगारी इसे कभी भी बड़ी आग में तब्दील कर सकती है।
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हेमंत पाल
सांप्रदायिक दंगों क्यों होते हैं, ये सवाल बरसों से पूछा जा रहा है! लेकिन, कोई भी इसका जवाब नहीं खोज पाया! सांप्रदायिक दंगों के कारणों को लेकर कभी शोध भी नहीं हुआ! इसका बड़ा कारण है सही आंकड़ों का सामने न आ पाना और अदालतों में इन दंगों के मामलों का लंबे समय तक चलना! पूर्व आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का मानना था कि दंगे कभी अपने आप नहीं होते! दंगे करवाने के लिए तीन चीज़ें बहुत जरूरी है! नफ़रत पैदा करना, बिल्कुल वैसे जैसे किसी फैक्टरी में कोई वस्तु बनती हो! दूसरा, दंगों में हथियार, जिसका भी ख़ास प्रयोजन होता है! तीसरा है, पुलिस और प्रशासन का सहयोग, जिनके बिना कुछ भी मुमकिन नहीं! उन्होंने एक बार कहा था कि मैं सामाजिक हिंसा का अध्ययन कई सालों से कर रहा हूँ! इस नाते पक्के तौर से कह सकता हूँ कि दंगे होते नहीं, करवाए जाते हैं! उन्होंने बतौर आईएएस कई दंगे देखे थे! अगर दंगा कुछ घंटों से ज़्यादा चले तो मान लें कि वह प्रशासन की सहमति से चल रहा है!
इस बात पर भरोसा न किया जाए, पर आजाद भारत में पहला सांप्रदायिक उन्माद मध्यप्रदेश में ही हुआ था! देश में पहला दर्ज सांप्रदायिक दंगा 1961 में जबलपुर शहर में हुआ था! इसके बाद से अब तक इस तरह के तनाव उभरना आम बात हो गई! देश का जिक्र न करके बात को मध्यप्रदेश तक रखा जाए, तो पिछले एक साल के दौरान छोटी-छोटी बातों पर दोनों समुदाय कई बार आमने-सामने आ चुके हैं! खतरनाक बात ये है कि इस तरह के तनावों का मूल कारण धार्मिक रहा है। प्रदेश में बीते दिनों में जो भी सांप्रदायिक तनाव घटनाएं हुई, उसके पीछे कहीं न कहीं धर्म ही कारण रहा! देश और प्रदेश जब भी सांप्रदायिक उन्माद भड़का, उसके मूल में किसी न किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं का आहत होना! सहनशीलता और धैर्य की कमी के साथ-साथ और क्रिया का प्रतीकारात्मक उत्तर देना शामिल है।
प्रदेश में इन दिनों संभावित दंगों की सुगबुगाहट स्पष्ट सुनाई दे रही है। उस पर भी मालवा क्षेत्र में बिगड़ते हालात प्रशासन की पकड़ से दूर नजर आ रहे हैं! आश्चर्य इस बात पर कि पुलिस का खुफिया तंत्र और मुखबिरी का नेटवर्क भी इस सुगबुगाहट को भाँपने में फेल हो रहा है! इंदौर में पिछले दिनों हुई घटना के अलावा देवास, धार, आगर, खरगोन, नीमच और खंडवा में दिखाई दी! हाल ही में देवास में संघ की शाखा में बच्चों को खेलते हुए कुछ युवाओं ने मारपीट की! प्रशासन ने कार्रवाई की तो कुछ लोगों पक्षपात पूर्ण माना! दूसरे दिन जब शौर्य यात्रा निकल रही थी, तो उसपर ईंट फेंकी गई। झंडा भी निकालकर फाड़ दिया, जिससे दूसरे समुदाय के लोग भड़क गए! लेकिन, इन दिनों मालवा का धार जिला सबसे ज्यादा संवेदनशील है। जिला मुख्यालय के अलावा धामनोद, धरमपुरी, बाग़ और अब मनावर में ऐसी ही घटना हुई! प्रशासन के लिए तो अब ये नियमित अभ्यास जैसा बन गया है! मालवा इलाका लम्बे समय से 'सिमी' के बेस कैंप के रूप में जाना जाता है। खंडवा के बाद अब इस नेटवर्क से जुड़े लोग धार जिले में सक्रिय नजर आ रहे हैं! भोजशाला के कारण ये संगठन यहाँ कभी भी बड़ा सांप्रदायिक तनाव फैला सकता हैं!
नीमच जिले के जावद कस्बे में ऐसा ही तनाव हनुमान जयंती के मौके पर हुआ, जब जुलूस पर पथराव हो गया! इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से मारपीट हुई। इसके बाद भड़की हिंसा पर काबू में पाने के लिए प्रशासन ने कर्फ्यू लगाना पड़ा! धार जिले के मनावर में विश्व हिन्दू परिषद की शौर्य यात्रा के दौरान नारेबाजी और पथराव के बाद सांप्रदायिक तनाव फैला। भीड़ ने दर्जनभर दुकानों और कुछ वाहनों में आग लगा दी। इन लोगों ने दो बसें भी आग हवाले कर दी! खरगोन में तो एन दशहरे के दिन रावण दहन के बाद निकले विजय जूलूस पर पथराव के दौरान हिंसा भड़क गई थी! घटना के बाद कर्फ्यू तक लगाया गया! गड़बड़ियों की आशंका देख 'शूट एंड साइट' के भी आदेश दिए गए थे!
एक कड़वा सच यह भी है कि दोनों समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द्र की राह में इस तरह के सांप्रदायिक दंगे रोड़ा बनकर उभरते हैं। साथ ही मानवता पर ऐसा गहरा घाव छोड़ जाते हैं, जिससे उबरने में कई साल लग जाते हैं। मध्य प्रदेश में इस तरह के तनाव के भड़कने का एक कारण सोशल मीडिया को भी माना जा रहा है। ये निष्कर्ष इसलिए निकाला गया, क्योंकि प्रदेश में सांप्रदायिक घटनाओं की जो वारदातें सामने आई हैं, उनमें से अधिकांश में सोशल मीडिया की भूमिका नजर आई! धार और खंडवा में सांप्रदायिक हिंसा की जो वारदातें रहीं उनमें व्हाट्सएप्प और फेसबुक से ख़बरें फैलाई गई! संसद में दंगों को लेकर हुई बहस में गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने भी स्वीकार किया है कि ज़्यादातर सांप्रदायिक दंगे सोशल मीडिया पर आपत्ति जनक पोस्ट, लिंग संबंधी विवादों और धार्मिक स्थान को लेकर होते हैं। सन 2015 में प्रदेश के 29 जिलों में करीब 50 सांप्रदायिक वारदातें हुईं। इन घटनाओं में से 18 घटनाएं सिर्फ इंदौर जोन में हुईं! जबकि, जबलपुर जोन में 12, भोपाल में एक, उज्जैन जोन में 7 वारदात हुई।
एक गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक सांप्रदायिक तनाव उभारने वालों की साजिश का पता लगाने में पुलिस का इंटेलिजेंस नेटवर्क बेहद कमज़ोर है। ऐसी कई घटनाएं सामने आईं, जबकि पुलिस का खुफिया तंत्र सक्रिय होता तो उन्हें रोका जा सकता था! लिहाज़ा दंगों के हालात बन गए। खरगोन और सिवनी में बने दंगों के हालात के बाद पुलिस मुख्यालय ने ये रिपोर्ट तलब की थी! जिसमें इस बात का स्पष्ट ज़िक्र था कि दोनों जगहों पर पुलिस को पहले से नहीं पता था, कि हालात बेकाबू हो जाएंगे। खरगोन में दशहरे के मौके पर एक समुदाय के लोग इकट्ठा होकर पथराव करने की तैयारी में थे! खबर इंटेलिजेंस को नहीं लगी! ख़ुफ़िया तंत्र कमज़ोर होने से घंटों तक खरगोन में सांप्रदायिक तनाव बना रहा! सिवनी के बरघाट में भी पुलिस को बस स्टैंड,थाने में एक समुदाय विशेष की भीड़ इकट्ठा होने की खबर नहीं लगी! ये सलाह भी उस रिपोर्ट का हिस्सा है, जो खरगोन और सिवनी दंगों के बाद आई है।
सरकार और प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती धार में बसंत पंचमी का त्यौहार शांति से मन जाना है। भोजशाला के कारण यहाँ एक बार फिर सांप्रदायिक तनाव के हालात बनते दिखाई दे रहे हैं। 2006 और 2013 के बाद इस बार भी बसंत पंचमी शुक्रवार के दिन है! इस दिन हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय विवादित भोजशाला में अपने-अपने धार्मिक कार्यक्रम करेंगे! आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) इस कथित विवादित स्थान की देखभाल करता है! उसने हिंदुओं को मंगलवार और मुसलमानों को शुक्रवार को इस जगह आने की अनुमति दी है। 12 फ़रवरी को शुक्रवार है और इस दिन बसंत पंचमी के चलते दोनों समुदाय यहां पर आएंगे। दोनों ही समुदाय यहां प्रार्थना करने पर अड़े हैं। 2013 में भी शुक्रवार के दिन ही बसंत पंचमी थी। तब भी काफी तनाव हुआ था। इस दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी थी! क्योंकि, हिंदुओं ने नमाज के लिए भोजशाला खाली करने से इनकार कर दिया था। इस बार फिर ऐसे हालात न बनें, इसकी कोशिशें की जा रही है। सरकार और प्रशासन के सामने ये चुनौती सिर्फ कानून व्यवस्था तक सीमित नहीं है। मूल मुद्दा है दोनों समुदायों में सद्भाव कायम रखते हुए बसंत पंचमी की चुनौती को जीत लेना!
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