- हेमंत पाल
एक अपराधी के रूप में संजय दत्त जेल से सजा काटकर रिहा हो गया! पर, पुणे के यरवदा जेल के बड़े दरवाजे से वो अभिनेता बनकर निकला! जेल के दवाजे से ही उसने एक्टिंग शुरू कर दी! कहा जा रहा है कि एक अपराधी का जेल से बाहर आने का सीन भी उनकी आने वाली किसी फिल्म का हिस्सा होगा! लेकिन, संजय दत्त की रिहाई को लेकर जिस तरह का मीडिया हाइप क्रिएट किया गया, वो समझ से पर था! मीडिया ने भी उस संजय दत्त को भुला दिया, जिसे अवैध हथियार रखने के आरोप में 5 साल की सजा हुई थी! दो हिस्सों में सजा काटकर वो आठ महीने पहले बाहर आ गया! उसके साथ जेल प्रशासन ने भी अपराधी के बजाए अभिनेता जैसा व्यवहार किया! पैरोल, फरलो की मनचाही छुट्टी के बाद उसे अच्छे व्यवहार के कारण सजा पूरी होने से पहले छोड़ दिया गया!
संजय दत्त की रिहाई का टीवी के परदे पर लाइव प्रसारण किया गया! लगा जैसे संजय का जेल से बाहर आना देश की किसी समस्या के हल होने जैसा हो! सोशल मीडिया पर हर तरफ से स्वागत के विचार उमड़ रहे हैं! जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, उससे लग रहा है कि कानून ने संजय के साथ बहुत नाइंसाफी की! इस अभिनेता ने पुणे में यरवडा जेल से निकलते ही राष्ट्रध्वज को बिल्कुल फ़िल्मी अंदाज में सलाम किया। उनका ये अंदाज हैरान करने वाला था! क्योंकि, शायद ही किसी मुजरिम ने जेल से रिहाई के बाद तिरंगे को सलाम किया हो! हैरान करने वाली बात इसलिए कि संजय दत्त जब पहली बार 2007 में जमानत मिलने के बाद जब इसी जेल से बाहर आए थे, तब उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया था। अपना सामान उठाए दोस्त युसूफ नलवाला के साथ बाहर निकल आए थे।
संजय दत्त को भले ही टाडा जज प्रमोद कोदे ने टाडा के आरोप से बरी कर दिया था। लेकिन, अवैध हथियार रखने के आरोप में उन्होंने 44 महीने की सजा काटी है, ये दाग उनकी पहचान से कभी जुदा नहीं हो सकता! शुरू में संजय दत्त का नाम 1993 के बम धमाकों से जिस तरह जुड़ा था, वो उनके माथे पर कलंक था। इसलिए भी कि वे उस सुनील दत्त के बेटे हैं, जिनकी देश में पहचान समाज सेवक और भले आदमी के रूप में रही है! वे सजा काटकर जेल बरी हो गए हों, फिर भी ये दाग जीवनभर उनका पीछा करता रहेगा! जब भी संजय दत्त पैरोल और फरलो पर जेल से छूटकर आए, तो मीडिया में उल्लेख 1993 बम धमाकों से जोड़कर ही होता था। क्योंकि, लोगों के लिए कानून की इस बारीकी को समझना मुश्किल ही है। यही वजह है कि संजय दत्त की रिहाई के पहले और बाद में कुछ लोग 'देशद्रोही' लिखे बैनर लेकर उनकी रिहाई का विरोध करते भी दिखे। लेकिन, उन्हें कैमरे ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। रिहाई के बाद संजय दत्त ने बार-बार कहा कि मैं आतंकवादी नहीं हूँ! मीडिया से विनती करता हूँ कि मेरा नाम 1993 के धमाकों से नहीं जोड़ें। ये भी कहा कि वे 23 साल से जिस आज़ादी के लिए तरस रहे थे, वो उन्हें अब मिली! लेकिन, मुझे पता है कि खुद को ये दिलासा देने में अभी वक्त लगेगा कि मैं अब आज़ाद हूँ!
दरअसल, संजय दत्त की रिहाई को भी फ़िल्मी सीन की तरह देशभक्त के जेल से बाहर आने जैसा साबित करने की कोशिश की गई! उन्होंने 'तिरंगे को सलाम' भी राष्ट्रभक्ति के एक प्रतीक की तरह किया! ताकि, पूरे देश में ये संदेश जाए कि सजा के बाद भी उनकी देशभक्ति में कमी नहीं आई! संभव है कि संजय की रिहाई को लेकर भी कोई कथानक लिखा गया हो! इस मौके को भुनाने के लिए वास्तविक हालात को ही फ़िल्मी सेट बना लिया गया हो! एक सजायाफ्ता अपराधी की एक नई छवि बनाने का पूरा सीन तैयार किया गया हो! इस सीन में पुणे से मुंबई आने के बाद सबसे पहले सिद्धिविनायक मंदिर और फिर मां नरगिस की कब्र पर जाने का जिक्र भी होगा! क्योंकि, संजय दत्त को मालूम है कि वे आम आदमी नहीं हैं, जो जेल से निकालकर दुनिया की भीड़ में गुम जाए! उनका हर कदम लोगों की नजर में होगा! इसीलिए जेल से बाहर आते ही झुककर धरती को छूना और जेल के दरवाजे के ऊपर फहराते तिरंगे को एक सैनिक की तरह सलामी देना सामान्य बात नहीं है! लेकिन, ये बात छुपाकर रखी गई, ताकि सब कुछ सहज लगे और हैरान करे, मीडिया में खबर भी बने? भले ही संजय दत्त का ये अंदाज फ़िल्मी हो और किसी फिल्म का हिस्सा भी बने, पर जेल जाने के बाद रिहाई को भी इस अभिनेता ने कैश तो कर ही लिया! इसीलिए गुप्त कथानक में उनका देशभक्त दिखना सेलुलॉइड में भी दर्ज हो गया! जो 'देशद्रोही' लिखे नारे लिखे बैनर लेकर खड़े थे, वे खलनायक बनकर कोने तक सीमित हो गए! उमा भारती भी संजय दत्त को कोसकर मीडिया की सुर्खी बनना चाहती थी, पर कहीं नजर भी नहीं आई!
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