मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भाजपा के उन बड़े नेताओं में से एक हैं, जो डेढ़ दशक के अपने शासनकाल में अपनी धर्मनिरपेक्ष पहचान बनाने में सफल रहे हैं। वे हिंदूवादियों को भी पुचकारते रहते हैं और धर्मनिरपेक्षता की वकालत करने वालों के पक्ष में भी खड़े दिखाई देते हैं! जबकि, उनकी पार्टी भाजपा पर हमेशा कट्टरपंथियों का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं! शिवराज ने अपने शासन से यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी राजनीतिक शैली धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है। वे संघ को राष्ट्रवादी बताने से भी नहीं कतराते! वहीँ मुस्लिमों के विकास के लिए योजनाओं की घोषणा करने से नहीं चूकते! प्रदेश को 'शांति का टापू' बताने की शिवराज सिंह की कोशिशें कुछ हद तक कामयाब भी हुई! लेकिन, हाल कुछ घटनाओं से इस पर दाग भी लगाया! अब बसंत पंचमी पर धार के भोजशाला में होने वाली पूजा और नमाज सरकार लिए सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा है! शिवराज सरकार की धर्मनिरपेक्ष छवि के लिए लिटमस टेस्ट जैसा होगा!
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हेमंत पाल
भाजपा हमेशा से इस बात का दम भरती रही है कि उसके राज में सांप्रदायिक तनाव के हालात नहीं बनते! क़ानून व्यवस्था काबू में रहती है और पार्टी की हिंदूवादी छवि होते हुए भी मुस्लिम समुदाय भी खुद को ज्यादा सुरक्षित पाता है। इसके पक्ष में हमेशा आंकड़ों के तर्क दिए जाते हैं! पिछले एक दशक से शिवराजसिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, और उनके स्थायित्व का एक कारण भी यही माना जाता है! लेकिन, क्या आंकड़ों से किसी सरकार और मुख्यमंत्री को धर्मनिरपेक्ष साबित किया जा सकता है? ये ऐसा सवाल ऐसा है, जिसे लेकर सरकार और विपक्ष के बीच हमेशा तकरार चलती रहती है! यही सब मध्यप्रदेश में अभी भी जारी है! सरकार पास अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि साबित करने लिए सिर्फ सरकारी आंकड़े और घोषणाएं होती हैं! विपक्ष इन आंकड़ों को इस आधार पर झुठलाता रहा है कि सांप्रदायिक तनाव के हालातों को रिकॉर्ड में सही दर्ज नहीं किया जाता, इस कारण वास्तविकता और आंकड़ों में फर्क होता है!
पिछले एक दशक में शिवराजसिंह चौहान ने अपनी जो धर्मनिरपेक्ष पहचान बनाई है, उसका लाभ भी उन्हें मिला! लेकिन, अब इस पहचान पर आरोपों के छींटे पड़ने लगे हैं! पिछले कुछ दिनों में प्रदेश में ऐसी कई घटनाएँ हुई, जो प्रदेश के अंदर खलबलाते हालात का अंदाजा देती हैं। कुछ महीनों से प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल तेज़ी से बिगड़ा है! हरदा, देवास, नीमच, सिवनी और मनावर इसी बात का सबूत है। सिर्फ यही नहीं, प्रदेश में और भी शहर और कस्बे हैं जहाँ इन दिनों तनाव का लावा अंदर ही अंदर खदबदा रहा है! जब भी मौका मिला, ये लावा उबलकर बाहर निकल सकता है! ऐसा ही एक शहर है धार, जहाँ भोजशाला के बहाने वातावरण गरमा रहा है। बसंत पंचमी पर हिन्दू पूरा दिन पूजा करने को अड़े हैं। जबकि, शुक्रवार होने से मुस्लिमों को दो घंटे नमाज पड़ने की छूट मिली है। ऐसे में सरकार है, जो मध्यस्थ बनकर सद्भाव के लिए हज़ारों पुलिस जवानों की तैनाती में दोनों धार्मिक आयोजन करवाना चाहती है!
सरकार के लिए ये सब आसान नहीं है कि दोनों धर्मावलम्बी जो चाहते हैं, वो किया जाए सके! क्योंकि, भोजशाला ऐसा कथित विवादस्पद धर्मस्थल है, जिसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) मस्जिद मानता है! लेकिन, स्थानीय लोग इसे राजा भोज द्वारा निर्मित सरस्वती मंदिर मानते हैं और इसे 'भोजशाला' कहते हैं। बरसों से यहाँ के लोग भोजशाला परिसर में बसंत पंचमी उत्सव मनाते रहे हैं! लेकिन, करीब 15 साल से यहाँ दोनों सम्प्रदायों के बीच तनातनी होने लगी! हिंदू संगठनों के मुताबिक ये सरस्वती मंदिर है, यहाँ नमाज़ नहीं हो सकती! जबकि, मुस्लिम संप्रदाय इसे मस्जिद बताता रहा है! दोनों के पास अपनी बात साबित करने के लिए तर्क हैं! एएसआई ने बीच का रास्ता निकालकर 2003 में एक व्यवस्था दी थी! इसके मुताबिक मंगलवार को हिन्दुओं को दो घंटे पूजा के लिए दिए और शुक्रवार को दो घंटे मुस्लिमों को नमाज के लिए दिए गए हैं! लेकिन, साल में सिर्फ एक दिन बसंत पंचमी को हिन्दुओं को सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूजन की छूट दी गई है! यहाँ एएसआई से एक गलती ये हो गई कि यदि शुक्रवार को बसंत पंचमी आए तो व्यवस्था क्या होगी? इसका कोई उल्लेख एएसआई के आदेश में नहीं है! यही कारण है कि यदि बसंत पंचमी शुक्रवार को आती है तो तनाव उभर जाता है। 2006 में भी यही हुआ था और 2013 में भी! डेढ़ दशक में दो बार धार में बसंत पंचमी शुक्रवार के दिन आई! ऐसे में हिन्दुओं उत्साह दोगुना हो जाता है। इस साल फिर बसंत पंचमी (12 फ़रवरी) शुक्रवार को है और यही सरकार की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा भी! हज़ारों खाकी वर्दीधारियों की तैनाती से दबाव जरूर बनाया जा सकता है, पर सद्भाव का माहौल कतई नहीं बन सकता! पिछले दो अनुभव से ये बात स्पष्ट भी हो चुकी है।
शिवराजसिंह चौहान ने भी कहा है कि किसी भी स्थिति में धार के हालात बिगड़ने नहीं दिए जाएंगे! मध्य प्रदेश हमेशा से 'शांति का टापू' रहा है और रहेगा! किसी को भी प्रदेश के हालात बिगाड़ने की छूट नहीं दी जाएगी। अधिकारियों को निर्देश हैं कि जो भी माहौल बिगाड़ने की कोशिश करे, उसके ख़िलाफ सख़्त कार्रवाई की जाए! प्रदेश के मुखिया के तौर पर शिवराज सिंह का बयान अपनी जगह सही भी है और मौजूं भी! लेकिन, पहली बार भोजशाला विवाद में भाजपा के कुछ नेता और संघ भी खुलकर सामने आ गया हैं। ऐसे में क्या मुख्यमंत्री उनकी जिद को अनदेखा कर उनके खिलाफ कार्रवाई आदेश दे पाएंगे? यदि बसंत पंचमी पर धार में कोई तनाव उभरता है, तो इसके छींटे सरकार की धर्मनिरपेक्ष पहचान को भी प्रभावित करेंगे! एक दबा-छुपा सच ये भी है कि इस मामले में परदे के पीछे से राजनीति का खेल भी खेला जा रहा है! पार्टी में शिवराजसिंह चौहान विरोधी गुट भोजशाला की आड़ में मुख्यमंत्री पर निशाना साधकर बैठा है! उसे लग रहा है कि यदि धार में कोई बड़ा बवाल होता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे डाली जा सकती है!
प्रदेश में सिर्फ यही एक घटना नहीं है जिससे सरकार की छवि प्रभावित होगी! हरदा की घटना भी बिगड़ते हालात का उदहारण है! हरदा के खिरकिया स्टेशन पर ट्रेन में बीफ़ होने के शक में एक मुस्लिम दंपत्ति की पिटाई तक कर दी गई थी! इसके बाद कुछ हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार किए जाने पर 'गोरक्षा कमांडो समिति' के एक नेता का एक ऑडियो भी सामने आया था, जिसमें उन्होंने हरदा के एसपी पर हिंदुओं के ख़िलाफ़ ग़लत कार्रवाई का आरोप लगाते हुए उन्हें धमकाया था! उन्होंने खिरकिया में 2013 की तरह फिर दंगे की चेतावनी भी दी थी! याद दिला दें कि खिरकिया में सितंबर 2013 में एक बछड़े को मारने की अफ़वाह के बाद क़रीब 70 अल्पसंख्यकों के घरों और दुकानों में आग लगा दी गई थी! बाद में बछड़े की मौत का कारण पॉलिथीन खाना पाया गया था!
धार ज़िले के मनावर क़स्बे में पिछले दिनों विश्व हिंदू परिषद की शौर्य यात्रा के दौरान भी हिंसा भड़क गई थी! दोनों समुदाय ने एक-दूसरे पर पथराव किया! धामनोद, धरमपुरी और बाग़ भी इसी जिले के कस्बे हैं, जहाँ कुछ महीनों में किसी न किसी कारण तनाव हुआ है! वैसे प्रदेश का मालवा, निमाड़ इलाक़ा हमेशा से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील समझा जाता रहा है। छोटी सी बात पर यहाँ बड़ा तनाव उभर जाता है! लेकिन, अब प्रदेश के दूसरे इलाकों में भी ऐसी चिंगारी से आग भड़कने लगी है। ग्वालियर में भी हाल ही में साप्रंदायिक घटना हुई! पिछले साल खरगोन में कर्फ़्यू लगाने तक की नौबत आ गई थी! देवास में पिछले दिनों एक व्यक्ति की मौत के बाद कर्फ़्यू लागू करना पड़ा था। सिवनी जिले के बरघाट में ज़मानत पर छूटे एक संप्रदाय के तीन लोगों को जुलूस बनाकर गांव आने पर दूसरे संप्रदाय के लोगों ने हमला बोल दिया था! इसमें एक की मौत भी हो गई। अब सारी नजरें धार पर टिकी हैं कि बासंती रंगों के परिधान और बासंती व्यंजनों के लिए पहचानी जाने वाली 'बसंत पंचमी' पर धार में वास्तव में सद्भाव कायम रह पाता है, या हमेशा कि तरह खाकी का आतंक और दबाव बनाकर पूजा और नमाज की औपचारिकता भर पूरी जाती है? क्योंकि, हिंदूवादियों ने भी भोजशाला में पूरे दिन पूजन के लिए कमर कस ली है! उनके तेवर ढीले पड़ते नहीं दिख रहे! मुस्लिम संगठन भी एएसआई के आदेश के पालन को नमाज का आधार बना रहे हैं! ऐसे में बीच में खड़ी सरकार का फैसला ही उसे इस परीक्षा में पास करेगा या फेल!
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(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)
संपर्क : 09755499919
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