Monday, February 8, 2016

प्रयोगों का मोहताज रहा फिल्म संगीत!


- हेमंत पाल 

  फिल्मों की सफलता के पीछे कौन-कौन से कारणों को जिम्मेदार माना जाता है? इस सवाल का कोई सटीक जवाब खोज पाना आसान नहीं है! लेकिन, यदि तलाशा जाए तो जो मूल कारण सामने आएंगे, उनमें एक संगीत भी होगा! पहले, यह माना जाता था कि अगर फिल्म के गीत हिट हो जाते हैं तो फिल्म भी चल पड़ती है! पर, वक़्त के साथ कई बार ये कारण सही नहीं निकला! ऐसी कई फिल्मों के नाम याद किए जा सकते हैं, जिनके गीतों ने धूम मचाई, पर फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर पानी भी नहीं माँगा! लेकिन, पिछले कुछ सालों में फ़िल्मी गीत, संगीत का रूप काफी बदल चुका है। पहले जहां गीतों पर थिएटर में सिक्कों की बरसात होती थी, पर अब वो दिन लद गए! आजकल तो ‘तू मेरे अगल-बगल है' और ‘सुन रहा है न तू, रो रहा हूं मैं' जैसे गीतों पर भी तालियां नहीं बजती! दरअसल, फिल्म संगीत का एक पूरा दौर ही बदल गया।

 एक वक़्त था जब फिल्म संगीत में प्रयोगों का जिक्र आता था, तो आरडी बर्मन का नाम जुड़ा होता था। उन्होंने हिंदी फिल्मों के संगीत को यूरोपीय संगीत की झलक दी! 70 और 80 के दशक में जब हिन्दी फिल्मों का संगीत पतन के दौर में था, जब ‘एक दो तीन' और ‘जुम्मा चुम्मा' जैसे नए ट्रेंड के गानों के साथ उन्होंने प्रयोग किए! ये आसान बात नहीं थी, पर बाद में ये ट्रेंड बन गया! इस समय के संगीत ने भारतीय सामाजिक स्थितियों को भी समझा और उसी के मुताबिक अपने संगीत को दिशा दी! पर, ये दौर भी लम्बा नहीं चला! लोग उस समय तो इन गानों पर खूब थिरके, लेकिन वे चाहने वालों की याद से नहीं जुड़ सके!
  कुछ साल पहले आई फिल्म ‘आशिकी-2' के गीतों को भी बहुत पसंद किया गया! वास्तव में ये भी एक प्रयोग ही था! इस फिल्म का संगीत किसी एक संगीतकार ने नहीं, बल्कि नए 5 संगीतकारों की एक टीम दिया था! जिसमें मिथोन, जीत गांगुली और अंकित तिवारी थे। जबकि, अमित त्रिवेदी ने देव डी, और वेकअप सिड जैसी फिल्मों में संगीत देकर अपनी एक पहचान बना ली थी! फिल्म संगीत के मामले में महिलाओं का नाम कम ही आता है। उषा खन्ना के अलावा किसी का नाम बरसों तक याद भी नहीं आया! लेकिन, अब संगीत में महिलाएं भी सामने आ रही है। स्नेहा खानविलकर को ‘गैंग ऑफ वासेपुर' से ‘वुमनिया' के संगीत के लिए पहचाना जाता है। स्नेहा बॉलीवुड की चौथी महिला संगीतकार हैं। उनसे पहले एक्ट्रेस नर्गिस कि माँ जद्दन बाई, सरस्वती देवी और उषा खन्ना रही हैं। स्नेहा का कहना हैं कि महिलाएं भी इस क्षेत्र बहुत आगे आ चुकी हैं! अब संगीत में पुरुषों का एकाधिकार नहीं है। वे ओए लकी लकी ओए, लव,-सेक्स और धोखा और भेजा फ्राइ-2 में भी संगीत दे चुकी हैं। ख़ास बात ये है कि इनकी पृष्ठभूमि छोटे शहर-कस्बे और गांव ही रहे हैं।
  बदलते समाज के साथ फिल्म संगीत भी बदलता है! कुछ बदलते संगीत के साथ समाज की पसंद बदलती जाती है। लेकिन, माना जाता है कि सच्चा संगीतकार वही है, जो सुनने वालों की पसंद को अपने प्रयोगों से बदल दे! क्योंकि, आज दुनियाभर के संगीत को सुनने तक सभी की पहुंच है! टेक्नोलॉजी ने सबकुछ आसान कर दिया! लोग प्रयोगों के लिए, कुछ नया सुनने के लिए भी तैयार हैं! यही कारण है कि आज के समय को हिंदी फिल्म संगीत का सबसे रोचक दौर कहा जा सकता है!
  आजादी के पहले पहले के संगीतकारों में कई पाकिस्तानी गायक शामिल थे! ये वही थे, जो पुराने संगीत घरानों से जुड़े थे! उनके संगीत में उर्दू का प्रभाव था! आज वही काम राहत फतेह अली खान और शफकत अमानत अली जैसे कलाकारों के फिल्म संगीत से जुड़ने से उर्दू और उन घरानों से रिश्ता रखने वाले गायक मिले हैं। यहीं संगीत ने एक तरह की करवट भी ली है। हिंदी फिल्मों के गीत दुनियाभर में सुने जाते हैं।
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