Sunday, February 14, 2016

छद्म हिंदूवाद के सामने धार का असली गुस्सा



- हेमंत पाल 

    धार में बसंत पंचमी के दिन जो हुआ वो न तो सांप्रदायिक सद्भाव था, न शांति की कोई पहल! वो सिर्फ अंडर हैंड डीलिंग थी। सरकारी नुमाइंदों और छद्म हिंदूवादियों के बीच! दोनों के बीच एक तात्कालिक समझौता था। इसके तहत दिखावे का ऐसा प्रपंच किया गया कि सबकुछ असली जैसा लगा! भोजशाला में हिन्दुओं ने पूजा भी की, मुस्लिमों ने नमाज भी पढ़ी! दिखावा इस तरह किया गया, जैसे हिन्दुओं ने गढ़ जीत लिया हो! अखंड पूजा और हवन को प्रचारित किया गया! ये भी कहा गया कि नमाज तो हुई ही नहीं! जबकि, सबकुछ एक अलिखित समझौते की तरह स्पष्ट था! धार के लोग भी इस सच्चाई को समझ रहे थे! पर, मजबूर थे। क्योंकि, जिनके हाथ लोगों ने अपनी धार्मिक भावनाओं की लगाम सौंपी थी, वे उनके ही हाथों ठगे भी गए। 

  दूसरे दिन उन्हीं छद्म हिंदूवादियों के खिलाफ जो गुस्सा फूटा, वो असली था। 
इस गुस्से को न तो किसी का नेतृत्व था और कोई इसकी अगुवाई कर रहा था! कोई मीटिंग नहीं, कोई योजना नहीं और न किसी ने आगे आकर उकसाया! संघ और हिन्दू जागरण मंच के जो नेता अपनी उग्र भाषा और तर्कों से जिस हिंदूवाद की अगुवाई कर रहे थे, ये नाराजी उनके खिलाफ थी! नाराजी उन लोगों की भी थी, जिनके यहाँ बसंत पंचमी के मुहूर्त में होने वाली शादियाँ शहर में किसी अनहोनी की आशंका में टाल दी गई थी! बैंड-बाजे वाले, हलवाई, गैस-बत्ती लादने वाले गरीब भी दुखी थे! उन व्यापारियों का भी गुस्सा उबल आया, जिनकी दुकानें कई दिन तक बंद रही! दस दिन तक स्कूल बंद होने से बच्चों की पढाई का जो नुकसान हुआ, ये गुस्सा उन माता-पिता का था! उन गरीबों का भी था, जिनकी दो हफ्ते की मजदूरी मारी गई!  
  तात्पर्य यह कि जब सबकुछ इतनी आसानी से ही होना था, तो 8 हज़ार पुलिस जवानों से इस अमन पसंद शहर को छावनी बनाने की जरुरत क्या थी? यदि पहले से तय था कि भोजशाला कि छत पर नमाज पढ़वाना है और परिसर में नीचे सरस्वती पूजा और हवन होना है तो है तो आपत्ति किसे थी? सरकार के नुमाइंदे के तौर पर प्रभारी मंत्री और संघ के नेता की अगुवाई में हिंदूवादियों ने बंद कमरे में कोई फार्मूला निकाल लिया था, तो लोगों को उससे अनभिज्ञ क्यों रखा गया? सुबह हिन्दुओं को भोजशाला में पूजा करने से रोकने के पीछे क्या कारण था? शोभायात्रा के दोपहर एक बजे भोजशाला पहुँचने के बाद ही लोगों को अंदर क्यों ले जाया गया? शहर काजी के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज था, उसे दो दिन पहले ख़त्म क्यों किया गया? क्या ये सब एक तयशुदा योजना के तहत नहीं किया गया?  ये वो सवाल हैं, जिनका जवाब खोजने के लिए ही आज आम लोग सड़क पर पत्थर लेकर उतर आए और जहाँ-तहाँ अपना गुस्सा निकाला!       
   भोजशाला का मसला महज चार दिन का है। अब शुक्रवार और बसंत पंचमी का संयोग बरसों बाद आएगा! इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले कथित हिंदूवादी नेता किसी और काम में व्यस्त हो जाएंगे! आज जो अधिकारी और नेता तनाव वाले इस मामले को सुलझाने इनके घर तक आ गए, वो शायद कल इन्हें पहचानेंगे भी नहीं! यही सच जानकर इन हिंदूवादी नेताओं ने बीच का फार्मूला निकाला और अपने प्रभाव में सरकार और प्रशासन को दबाने का पाखंड किया! जो हुआ, उसमें सब शामिल रहे! सरकार भी, प्रशासन भी और ये छद्म हिंदूवादी भी! भोजशाला में नमाज न होने देने का नकली दबाव बनाया गया! जबकि, छत पर नमाज की तैयारियों कि खबर सभी को थी! जब तय समय के मुताबिक नमाज हो गई, तो हिन्दूओं की शोभायात्रा भोजशाला पहुंची! रैलिंग तोड़ने का नाटक करके भीड़ को अंदर जाया गया! बताया ये गया कि प्रशासन ने हमारी मर्जी  मुताबिक व्यवस्था कर दी, इसलिए हम अब पूजा करने भोजशाला के अंदर प्रवेश कर रहे हैं! अब भावनात्मक रूप से धार के छले और ठगे गए लोगों कि नजरें इस पर लगेंगी कि भोजशाला मामले को शांति से निपटा देने के किसे क्या ईनाम मिलता है!  
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(लेखक 'सुबह सवेरे' के राजनीतिक संपादक हैं)
09755499919 
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