मध्यप्रदेश के धार शहर में प्राचीन ऐतिहासिक इमारत 'भोजशाला' इन दिनों सांप्रदायिक तनाव का बहाना बनी हुई है! हिन्दू इसे मंदिर मानते हैं और मुस्लिमों का कहना है कि ये मस्जिद है! दोनों अपनी जगह सही हैं! क्योंकि, सरकारी रिकॉर्ड में भी इसका स्पष्ट खुलासा नहीं है। लेकिन, जब कहीं उलझन वाले हालात हों तो वहाँ राजनीति शुरू होने में देर नहीं लगती! यही सब धार में हो रहा है! एक तरफ सरकार के मुखिया शिवराजसिंह चौहान है, जिन्हें 'राजधर्म' का पालन करते हुए बसंत पंचमी पर हिन्दुओं को पूजा करने का समय देना है! दूसरी तरफ मुस्लिमों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए व्यवस्था के तहत नमाज इंतजाम करना है। जबकि, भाजपा के ही कुछ नेता और पार्टी के अनुषांगिक संगठन संघ और विहिप ही उनकी राह में कांटे बो रहे हैं!
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- हेमंत पाल
राजधर्म की राह कभी आसान नहीं होती! इसमें कई तरह की अड़चने आती है। सबसे ज्यादा दिक्कत भी वही लोग पैदा करते हैं, जिनके भरोसे या जिनके साथ राजधर्म का पालन किया जाता है। भोजशाला के मामले में प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता रघुनंदन शर्मा ने कह दिया कि बसंत पंचमी पर मुस्लिम भोजशाला में नमाज नहीं पढ़े! बहुसंख्यकों को पूजा का मौका दें! पिछले कुछ सालों में धार के प्रशासन ने हिन्दुओं के साथ ज्यादतियां की है। उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई! इस बार प्रशासन हिन्दुओं की भावनाओं को समझे! उन्हें बसंत पंचमी पर पूरे दिन भोजशाला में पूजा की अनुमति दें! बसंत पंचमी साल में एक बार आती है और शुक्रवार महीने में 4 या 5 आते हैं। पचास शुक्रवार में से यदि मुस्लिमों को एक दिन नमाज पढ़ने की छूट नहीं मिलेगी, तो उनके साथ अन्याय नहीं होगा। लेकिन, साल में एक बार आने वाली बसंत पंचमी के दिन पर्व न मनाने देना, हिन्दुओं के साथ अन्याय होगा! प्रशासन पूरे दिन पूजा की अनुमति दे, उन्हें बाहर नहीं खदेडें। हिन्दुओं को बाहर खदेड़ना ज्यादती है। अल्पसंख्यक समाज को भी चाहिए कि वह बड़ा दिल करें। अगले शुक्रवार को तीन-चार बार नमाज पढ़ लें! धार की सांसद सावित्री ठाकुर ने भी जन भावनाओं का इशारा देखते हुए, भगवा झंडा थाम लिया! सरदारपुर और धरमपुरी के विधायक भी पूजा के समर्थन में खुलकर सामने आ गए! धार के कई भाजपा नेता भी विहिप और संघ के साथ खड़े हैं! ऐसे हालात में राजधर्म की राह और ज्यादा मुश्किल हो जाती है।
राजधर्म का सीधा सा मतलब है 'राजा का धर्म' यानी उस व्यक्ति का धर्म जिसके हाथ में व्यवस्था की कमान हो! महाभारत में इसी नाम का एक उपपर्व है जिसमें राजधर्म का विवेचन किया गया है। 'धर्मसूत्र' में भी राजधर्म की व्याख्या है। महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद भीष्म पितामह ने शर-शैया पर युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि राजा जिन गुणों को आचरण में लाकर राज्य उत्कर्ष करता है, वे 36 गुण हैं। राजा को चाहिए कि वह इन गुणों से युक्त होने का प्रयास करें। इनमें से एक गुण है 'आस्तिक रहते हुए राजा दूसरे के साथ प्रेम का व्यवहार न छोड़ें।' इसी गुण के तहत राजधर्म का पालन करते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रशासन को हिन्दुओं को पूजा और मुस्लिमों को नमाज के लिए समय का निर्धारण करने की व्यवस्था का आदेश दिया है। जबकि, भाजपा से जुड़े संगठन उन्हें इसी राजधर्म से डिगाने की कोशिश कर रहे हैं।
सत्ता की प्राप्ति जनता के बहुमत से होती है। बहुमत की मांग होती है कि सत्ता न सिर्फ राजधर्म का पालन करे, बल्कि किए गए वादे भी पूरे करे! बहुमत ये भी चाहता है कि सत्ता पर बैठा शिखर पुरुष सिद्धांतों से समझौता किए बिना राजधर्म पालन करे! यही बात प्रदेश के मुख्यमंत्री पर भी लागू होती है। वे राजधर्म निभाते हुए अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि कायम रख पाते हैं या पार्टी के अनुषांगिक संगठनों के दबाव में झुक जाते हैं। प्रदेश में आज जो कुछ हो रहा है, उसके दूरगामी नतीजे सामने आना तय हैं! गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों से दुखी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'राजधर्म' का पालन करने की सलाह दी थी! जबकि, वाजपेयी खुद राजधर्म का पालन करते हुए अपनी सत्ता नहीं बचा सके थे! उन्होंने राजधर्म का ऐसा पालन किया कि अगले करीब एक दशक तक भाजपा केंद्रीय सत्ता से वंचित रही!
भोजशाला का पूरा हिन्दू आंदोलन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के हाथ में हैं! विहिप के नेता सोहनसिंह सोलंकी ने इस आंदोलन की कमान थाम रखी है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ये वही सत्ताधारी दल है, जो 2003 में भोजशाला का गौरव लौटने की बात कर रहे थे! अब क्या हुआ! राजा भोज ने इसी धारा नगरी से अपनी संस्कृति को पूरी दुनिया में पहुँचाया था! भोजशाला में माँ सरस्वती को पुनः लेकर आना है! यहीं इतिहास अब गठित हो रहा है! प्रशासन की व्यवस्थाओं के बारें में उन्होंने कहा कि इतना पुलिसबल देखकर लग रहा है जैसे धार में आपातकाल लगा हो!
प्रदेश की सत्ता पर भाजपा काबिज है और संघ तथा भाजपा के बीच बेहद जुड़ाव वाला रिश्ता है। भाजपा का पुराना अवतार 'भारतीय जनसंघ' था, जिसकी कल्पना 'संघ' के राजनीतिक मोर्चे के रूप में की गई थी। फिर 1980 में भाजपा सम्पूर्ण राजनीतिक दल के रूप में अस्तित्व में आई! आज की भाजपा हो या पुरानी जनसंघ, इसका संगठन सचिव उसे पचास के दशक से संघ से ही मिलता रहा है! ऐसे में संघ के नेता अपनी ही कोटरी वाले सत्ता के मुखिया के खिलाफ खड़े हो जाएँ, तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती ही ये है कि उन्हें राजधर्म निभाते हुए पार्टीधर्म का भी पालन करना है। 2003 में भाजपा की सरकार बनने में भोजशाला आंदोलन का बड़ा योगदान था! लेकिन, सरकार बनने के बाद भोजशाला और हिन्दू समाज की अनदेखी के चलते संघ, विहिप और भाजपा कार्यकर्ताओ में आक्रोश पनप रहा है।
भोजशाला आंदोलन की अगुवाई करने वाली भोज उत्सव समिति का आरोप ये भी है कि शिवराजसिंह चौहान ने 2003 में सांसद रहते तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया था। तब शिवराजसिंह चौहान ने भोजशाला के मस्जिद होने के कोई प्रमाण नहीं होने की बात कही थी! लेकिन, खुद मुख्यमंत्री बनने के बाद क्या हो गया? 2003 में शिवराजसिंह ने जो इच्छाशक्ति बताई थी, वही आज दिखाएं तो एएसआई का आदेश परिवर्तित होने में देर नहीं लगेगी! वे घोषणा कर दें कि मैं नमाज कराऊंगा, तो हम भोजशाला के बाहर पूजा करने को तैयार हैं। दिग्विजय सरकार ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर 2003 में एएसआई का आदेश मानने से इंकार कर दिया था। इसी तरह पहल आज राज्य सरकार भी करे तो आदेश में संशोधन हो सकता है। अपनी बात के प्रमाण में समिति ने शिवराज सिंह के बयान का वीडियाे भी जारी किया। वे उस समय सांसद थे। अपने बयान में वे तत्कालीन दिग्विजयसिंह सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते और भोजशाला में मस्जिद होने का कोई प्रमाण नहीं होने की बात कहते दिख रहे हैं। समिति ने कहा लंदन से मां वाग्देवी की प्रतिमा लाने के लिए पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने सकारात्मक पहल की है। राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही!
इन दिनों एक सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि क्या भाजपा और संघ में दूरियां बढ़ रही है? यह भी सही है कि भाजपा में कई लोग हैं, जिनका संघ से कभी कोई संबंध नहीं रहा! वे संघ से संबंध रखना भी नहीं चाहते! कई लोग हैं, जो चाहते हैं कि भाजपा आरएसएस से अलग न केवल दिखाई दे! बल्कि, यथार्थ में अलग रहे और पार्टी इसी दिशा में बढे। यही सवाल भोजशाला के संदर्भ में भी सामने आ रहा है। यदि मुख्यमंत्री राजधर्म का पालन करते हुए अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं तो वे संघ की आँखों में खटक सकते हैं! लेकिन, ये सब बाद के सवाल होंगे! सबसे पहले तो यही देखना है कि राजधर्म को किस हद तक निभाते हैं?
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