Friday, February 19, 2016

तनाव बुआ-भतीजे के रिश्तों में, तड़का लगा संघ और भाजपा का!


- हेमंत पाल     

मध्यप्रदेश की राजनीति में रियासतों की सियासत का कुछ अलग ही अंदाज है। ख़ास बात ये भी कि राज्य के गठन से ही इनका राजनीति में दखल बना हुआ है। रियासतों के बगैर मध्यप्रदेश में किसी भी पार्टी की राजनीति नहीं चली! कांग्रेस हो या भाजपा कोई भी पार्टी इन रियासतदारों को नकार नहीं पाई! इसका कारण उनका अपने इलाके में रसूख भी रहा है और आर्थिक रूप से मजबूत होना भी! राज्य में 18 साल तक तो सत्ता की कमान इनके ही हाथ रही! लेकिन, कभी-कभी इन्हीं रियासतों के झगडे भी पार्टियों को झेलना पड़ते हैं। हाल ही में सिंधिया परिवार का आपसी विवाद भी राजनीतिक नजरिए से सामने आया! भतीजे ज्योतिरादित्य और बुआ यशोधरा के बीच जो बयानी जंग चली, वो दिखाई तो राजनीतिक दी, पर है वो पारिवारिक! इस तरह के झगडे इन रियासतदारों के प्रभाव वाले इलाके में पार्टियों का फ़ायदा करने के साथ ही नुकसान भी करते रहे हैं। 

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  रियासतों का राजनीति से गहरा रिश्ता रहा है। आजादी के बाद जब रियासतें नहीं बची तो उन्होंने सियासत कि राह पकड़ ली और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने लगे! देश के करीब सभी राज्यों में यही हुआ और मध्यप्रदेश में भी! कई रियासतों के राजाओं ने अपनी विचारधारा और सुविधा के मुताबिक अपनी पार्टियां चुन ली! ज्यादातर ने कांग्रेस का हाथ थामा! क्योंकि, आजादी के बाद यही पार्टी सत्ता में थी और उसके बाद भी कई साल तक रही! कुछ ने कांग्रेस विरोध के लिए विपक्ष का हाथ थामा! लेकिन, कुछ रियासतें ऐसी भी रहीं, जो कांग्रेस में भी रहीं और विपक्ष का पल्ला भी पकडे रहीं। तब विपक्ष का मतलब था जनसंघ! ग्वालियर की सिंधिया रियासत ऐसे ही परिवारों में थी, जो दोनों पार्टियों में थी! माँ विजयाराजे सिंधिया जनसंघ में थी और बेटा माधवराव सिंधिया कांग्रेस में! माँ कि तरह तीन में से दो बेटियाँ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया भी जनसंघ का दामन थामे रही! तीसरी बुआ उषा राजे है, जो नेपाल के शमशेर जंग बहादुर राणा की पत्नी है। आज दोनों बुआ भाजपा कि बड़ी नेता हैं! वसुंधरा राजे राजस्थान कि मुख्यमंत्री हैं और यशोधरा राजे मध्यप्रदेश में मंत्री! समय ने पलटा खाया और माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस के बड़े नेता बन गए! लेकिन, अब इनके राजनीतिक मतभेद निजी मनभेदों में बदल गए हैं! इसके पीछे कारण भले निजी हों, पर दर्शाया राजनीतिक ही जाता है।    
   ताजा मामला है बुआ यशोधरा राजे और भतीजे ज्योतिरादित्य के बीच जुबानी जंग का! रिश्तों में भले ही ये दोनों सियासतदार बुआ-भतीजे हैं, लेकिन सियासत के मैदान में एक-दूसरे के राजनीतिक दुश्मन हैं! यही कारण है कि जब भी मौका मिलता है, दोनों वार करने का मौका नहीं चूकते! न शिवपुरी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया मौका गंवाते हैं, न मध्यप्रदेश की उद्योग मंत्री यशोधरा राजे! हाल ही में ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस के एक कार्यक्रम में यशोधरा राजे और भाजपा पर निशाना साधा! उन्होंने कहा कि झूठ बोलना तो भाजपा के डीएनए में है। शिवपुरी विधायक (यानी बुआ यशोधरा राजे) अपने वादे पूरे करने के लिए हमेशा 6 महीने का वक्त मांगती रहती हैं! ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी बुआ और उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का नाम लिए बिना कहा कि यदि प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार होती तो हम विकास कार्यों को पूरा करने के लिए जनता से बार-बार समय नहीं मांगते! झूठे वादे करना भाजपा के डीएनए में है और संघ उन्हें झूठ बोलना सिखाता है। भतीजे के कटाक्ष पर बुआ भी चुप नहीं रही! उन्होंने पलट वार किया कि उन्होंने तो जनता से 6 माह का वक़्त माँगा है! लेकिन, ज्योतिरादित्य तो केंद्र में 8 साल मंत्री रहे, तब उन्होंने क्या किया? मैंने तो सिर्फ 6 महीने का वक्त मांगा है! उन्होंने भतीजे ज्योतिरादित्य को भाषा की मर्यादा और पद की गरिमा का ध्यान रखने की भी नसीहत देने का मौका नहीं चूका! 
  सिंधिया परिवार के अंदरुनी झगडे कभी भी चौखट में कैद नहीं रहे! यदा-कदा बाहर आकर चर्चा का विषय बनते रहे हैं। माँ विजयाराजे सिंधिया और बेटे माधवराव में बरसों तक बोलचाल बंद रही! लेकिन, इसके पीछे कहीं भी राजनीतिक कारण जिम्मेदार नहीं रहे! दो अलग-अलग पार्टियों में होने से दोनों के बीच का तनाव बढ़ता जरूर रहा! अब, जबकि ये दोनों नहीं है, ये मोर्चा फिर भी खुला है। एक तरफ माधवराव सिंधिया के बेटे और कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य हैं, दूसरी तरफ उनकी दो बुआ राजस्थान कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्यप्रदेश कि उद्योग मंत्री यशोधरा राजे हैं! ज्योतिरादित्य से दोनों के ही रिश्तों में खटास है। शिवपुरी का हाल का मामला इसी खटास का एक नमूना भर था! 
  सियासत की आड़ में किए जाने वाले इन सारे हमलों के पीछे सिंधिया खानदान कि संपत्ति का विवाद एक बड़ा कारण है। इस परिवार की ग्वालियर समेत देशभर में करीब 20 हजार करोड़ की संपत्ति है। इस परिवार में संपत्ति को लेकर हमेशा ही विवाद होते रहे हैं। ये कोई नई बात नहीं है। जानकार बताते हैं कि 1971 में प्रिवीपर्स समाप्त होने के बाद सिंधिया परिवार ने अपनी संपत्ति का मौखिक रूप से बंटवारा कर लिया था। लेकिन, फिर 1989 में संपत्ति के दावे को अदालत में चुनौती दी गई। ये प्रकरण पुणे की अदालत में विचाराधीन है। ग्वालियर के किले में स्थित सिंधिया स्कूल को लेकर भी विवाद कि ख़बरें हैं।

   वसुंधरा राजे आज राजस्थान कि मुख्यमंत्री हैं, पर वे कभी मध्यप्रदेश से चुनाव नहीं जीत पाईं! जबकि, मध्यप्रदेश की राजनीति में माधवराव सिंधिया का वर्चस्व बना रहा! वे लगातार चुनाव जीतते रहे। वसुंधरा राजे ने भिंड से 1984 में लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन, वसुंधरा राजे जीत नहीं सकी! इसके बाद उन्होंने कभी मध्यप्रदेश का रुख नहीं किया और राजस्थान को ही अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया! वसुंधरा राजे का राजस्थान से रिश्ता तब का है, जब 1972 में उनका विवाह धौलपुर राजघराने में हुआ था। धौलपुर से ही उन्होंने 1985 में पहली बार विधानसभा चुनाव भी जीता। लेकिन, पहले भाई माधवराव से और बाद में ज्योतिरादित्य से उनकी दूरी बरक़रार रही! ये वैमनस्य यहाँ तक था कि वे राजस्थान की मुख्यमंत्री थी और ज्योतिरादित्य केंद्र में मंत्री, पर कभी दोनों आपस में नहीं मिले! ज्योतिरादित्य कई बार सरकारी कार्यक्रमों में राजस्थान गए, पर बुआ से नहीं मिले!  
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