हेमंत पाल
राजनीति का अपना अलग ही अंदाज है। यहाँ सत्ता और विपक्ष में तनातनी भी तभी तक रहती है, जब दोनों के राजनीतिक स्वार्थ टकराते हैं! वरना सत्ताधारी और विपक्ष के नेता हर जगह गलबैयां डाले दिखाई दे सकते हैं। विधानसभा और संसद में इसका नजारा कभी भी देखा जा सकता है। लेकिन, कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है कि दोनों पार्टियों के राजनीतिक अहं टकरा जाते हैं! फिर बीच का रास्ता निकालकर कूटनीतिक मात देने की चाल चली जाती है। ऐसी ही एक घटना पिछले दिनों हुई, जब कांग्रेस ने 'संघ' कार्यालय पर तिरंगा झंडा फहराने का एलान किया! कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि उसकी इस घोषणा का विरोध होगा और उसे राजनीतिक लाभ मिलेगा! पर ज्यादातर स्थानों पर 'संघ' कार्यालयों पर कांग्रेस नेताओं का स्वागत किया गया और तिरंगा फहराने का मौका दिया! कुछ जगह विरोध भी हुआ! यानी न तुम हारे, न हम हारे!
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दिल्ली के जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के मसले की पृष्ठभूमि में जारी सियासी रस्साकशी चली! कांग्रेस को लगा कि जो भाजपा चीख-चीखकर राष्ट्रभक्ति का गुणगान कर रही है, उसी की मातृ संस्था 'संघ' के कार्यालयों पर कभी राष्ट्रध्वज नहीं फहराया जाता! इस नजरिए से कांग्रेस का आइडिया सौ टंच सही था! क्योंकि, यदि 'संघ' अपने कार्यालयों पर झंडा फहराने से इंकार करता तो, कांग्रेस को उस पर ऊँगली उठाने का मिलता! 'संघ' की राष्ट्र भक्ति पर कथित रूप से संदेह किया जाता! कानून-व्यवस्था के मुताबिक ये मामला टकराव वाला भी था और राजनीति में सनसनी लाने वाला भी! कांग्रेस को भरोसा था कि अपनी इस रणनीति से वो भाजपा और 'संघ' दोनों को कटघरे में खड़ा कर देगी! पर, वास्तव में ऐसा हुआ नहीं! 'संघ' की एक चाल ने कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया! इसके बावजूद ये असमंजस बरक़रार रहा कि आखिर इस सबके पीछे 'संघ' की मंशा क्या थी?
कांग्रेस और 'संघ' बनाम भाजपा के बीच सबसे दिलचस्प नजारा इंदौर में हुआ! मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर देशभक्ति के नाम पर महज जुबानी जमा खर्च करने का आरोप लगाया। अध्यक्ष की अगुवाई में करीब 800 कांग्रेस कार्यकर्ता राजबाड़ा क्षेत्र में जमा हुए और जुलूस बनाकर रामबाग़ स्थित 'संघ' कार्यालय की ओर बढे! कुछ दूरी पर पुलिस ने जवानों की तैनाती कर बैरिकेड लगा रखे थे! जुलूस को रोक दिया गया। प्रशासन ने अरुण यादव समेत 20 नेताओं को 'संघ' कार्यालय जाने की अनुमति दी। कांग्रेस नेताओं का यह दल जब संघ कार्यालय पहुंचा तो उसे आश्चर्य हुआ! 'संघ' के पदाधिकारियों ने कांग्रेस नेताओं का लाल-कालीन बिछाकर और तिलक लगाकर स्वागत किया! 'संघ' और भाजपा के सियासी दुश्मनों को चाय-नाश्ता करवाया गया! इसके बाद अरुण यादव को 'संघ' कार्यालय की छत पर ले जाया गया, जहाँ भगवा ध्वज के ठीक पास तिरंगा फहराया! इस दौरान 'संघ' के पदाधिकारी भी मौजूद रहे! यानी कांग्रेस ने जिस टकराव और जवाबी हमले की तैयारी कर रखी थी, वैसा कोई प्रसंग नहीं हुआ!
जबकि, भोपाल में जब कांग्रेस नेताओं ने 'संघ' कार्यालय जाने की कोशिश की तो उन्हें पुलिस ने रोका और झड़प हुई! गुस्साए कार्यकर्ताओं ने संघ प्रमुख मोहन भागवत का पुतला जलाया! 'संघ' और भाजपा के खिलाफ़ नारेबाजी की! कांग्रेस ने संघ के दफ्तर के पास धरना भी दिया। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था। अहतियात के तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पहले ही गिरफ्तार कर लिया। जिला कांग्रेस अध्यक्ष पीसी शर्मा तिरंगा झंडा लेकर रैली के साथ समिधा कार्यालय की बढ़े इससे पहले भारी संख्या में रास्ते में लगे पुलिस बल ने उन्हें रोक लिया। पुलिस ने करीब 100 कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर सेंट्रल जेल ले गई। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। ये सिर्फ भोपाल में ही नहीं हुआ, कई और स्थानों पर भी कांग्रेस और पुलिस बीच झड़प हुई!
तिरंगा फहराने के इस मामले में पूरे प्रदेश में कहीं 'संघ' ने कांग्रेस नेताओं का स्वागत किया! कहीं पुलिस ने उन्हें रोका और लाठियां बरसाई! देवास में स्वागत किया गया, तो दतिया और भिंड में कांग्रेस का विरोध किया गया। आलीराजपुर में पुलिस ने सिर्फ दो कांग्रेस नेताओं को ही 'संघ' कार्यालय जाने दिया। मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर, दतिया, भिंड में कांग्रेस ने संघवाद से मुक्ति दिवस मनाकर विरोध किया। उज्जैन में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पुलिस ने 'संघ' कार्यालय जाने से रोका। इस दौरान कार्यकर्ताओं और पुलिस में झड़प हुई। कांग्रेसी सड़क पर ही बैठ गए। पुलिस ने कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच मौका पाकर कुछ कांग्रेसी तिरंगा ध्वज लेकर 'संघ' कार्यालय पहुंच गए। जहाँ पहले से स्वागत के लिए बैठे 'संघ' पदाधिकारियों ने पुलिस की मौजूदगी में कांग्रेसियों से तिरंगा ध्वज ग्रहण किया। 'संघ' कार्यालय में भारतमाता की प्रतिमा के सामने फहराया गया। राष्ट्रगान हुआ। उसके बाद माहौल सामान्य हो गया।
ये बात समझ से पर है कि इस सबके पीछे आखिर 'संघ' की कूटनीति क्या थी? 'संघ' यदि कांग्रेस की तिरंगा फहराने की घोषणा की हवा निकालना चाहता था, तो 'संघ' कार्यालय के आसपास पुलिस क्यों तैनात करवाई गई? और यदि कांग्रेस के नेताओं को तिरंगा फहराने से रोकना ही था, तो फिर तिलक लगाकर स्वागत क्यों किया गया? भगवा के पास में ही तिरंगा क्यों फहराया गया, वो भी कांग्रेस नेताओं के साथ खड़े होकर? यदि 'संघ' ने कांग्रेस नेताओं के फैसले में सहमति जता ही दी थी, तो फिर भोपाल समेत कुछ स्थानों पर कांग्रेस नेताओं को रोका क्यों गया? पुलिस ने इसे कानून व्यवस्था का मामला समझकर 'संघ' कार्यालय को छावनी क्यों बनाया? तय है कि इस सबके पीछे कहीं न कहीं कोई असमंजस के हालात तो थे ही! ये भी हो सकता है कि तिरंगा फहराने में सहमति बनाने में इतनी देर हो चुकी थी कि न तो पुलिस को हटाना संभव हो सका और न सभी 'संघ' कार्यालयों को समय रहते इसकी सूचना दी जा सकी! वरना 'संघ' की ये दोहरी नीति सामने नहीं आती!
इस पूरे प्रसंग में कांग्रेस इसलिए खुश हुई कि उसने जो कहा, वो किया! जिस 'संघ' कार्यालय पर बरसों से सिर्फ भगवा ध्वज फहराता रहा, वह उसके साथ तिरंगा भी फहराया! फर्क सिर्फ ये पड़ा कि कांग्रेस के नेताओं को तिरंगा फहराने की अपनी घोषणा के वक़्त जिस टकराव उम्मीद थी, वो नहीं हुआ! इसका एक नुकसान ये हुआ कि 'संघ' और भाजपा की राष्ट्रभक्ति को कटघरे में खड़ा करने का अवसर चूक गया! लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष ने संघ कार्यालय पर तिरंगा फहराने के बाद ये जरूर कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं की ओर से लोगों को देशप्रेम की बड़ी-बड़ी सीख दी जा रही है। लेकिन, संघ ने देशप्रेम के नाम पर अब तक जुबानी जमा खर्च ही किया है। 'संघ' को देशभक्ति की अवधारणा को वास्तविक अर्थों में अपनाना चाहिए। हमने संघ कार्यालय पर आज तिरंगा फहराया। हम उम्मीद करते हैं कि कार्यालय में देश का राष्ट्रीय झंडा नियमित तौर पर ठीक उसी तरह फहराया जाता रहेगा, जिस तरह यहां भगवा ध्वज फहराया जाता है।
उधर, 'संघ' ने भी पलटवार किया! इंदौर में जारी विज्ञप्ति में संगठन के विभाग कार्यवाह दिलीप जैन ने कहा कि तिरंगा राजनीति का नहीं, बल्कि भावनात्मक विषय है। देशभर में 'संघ' के स्वयंसेवक सभी राष्ट्रीय पर्वों पर अपने मोहल्लों, बस्तियों, कार्यस्थलों आदि स्थानों पर झंडावंदन कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं। भगवा ध्वज हमारी संस्कृति का प्रतीक है। इसलिए संघ के स्वयंसेवकों ने इसे गुरु का स्थान दिया है। इस सिलसिले में विवाद का कोई विषय नहीं है। संघ कार्यालय में वरिष्ठ प्रचारक प्रकाश सोलापुरकर ने भी कहा कि मुद्दा कोई भी हो, कांग्रेस नेता यहां आए, अच्छी बात है। हमें भी बुलाएंगे तो कांग्रेस भवन में तिरंगा फहराने आएंगे। अर्थात पूरे मामले में न तो कांग्रेस जीती न 'संघ' हारा! दोनों ने ही अपनी-अपनी जीत का जश्न मनाया और पीठ थपथपाई! ये शायद उन चंद राजनीतिक प्रसंगों में से एक है, जब दोनों धुर विरोधी एक झंडे के नीचे खड़े दिखाई दिए हों! कुछ लोगों जहन में ये सवाल भी उठा कि कहीं ये राजनीति की कोई नूरा कुश्ती तो नहीं हुई?
चलते चलते ये भी बता दें कि आखिर 'संघ' और 'तिरंगे' के पीछे की राजनीति क्या है! क्या कारण है कि कांग्रेस को 'संघ' कार्यालय पर तिरंगा फहराना राजनीतिक मुद्दा लगा! दरअसल, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' का इतिहास देखा जाए तो इसकी स्थापना 27 सितम्बर 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। तब से पूरे देश में हर जगह अनेकों शाखाएं और अनुयायी हैं। 'संघ' ने कभी भी तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा नहीं दिया। 'संघ' ने 17 जुलाई 1947 को तिरंगे की जगह भगवा को ही राष्ट्रीय ध्वज बनाने की मांग की थी! जब 22 जुलाई 1947 को तिरंगे को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज की उपाधि दी गई, तो सबसे पहले निंदा करने वाली संस्था 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' ही थी। 14 अगस्त 1947 को इन्होंने अपनी पत्रिका में एक कालम भी छापा 'मिस्ट्री बिहाइंड द भगवा ध्वज।' संघ ने 14 अगस्त 1947 को ही अपने नागपुर कार्यालय में और 26 जनवरी 1950 को तिरंगा फहराया था। उसके बाद से कभी भी किसी भी 'संघ' शाखा में तिरंगा नहीं फहराया गया!
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