आबकारी राजस्व में मध्यप्रदेश सरकार को बड़ा नुकसान
- हेमंत पाल
इस वित्तीय वर्ष (2015-16) में मध्यप्रदेश के करीब सभी शराब ठेकेदारों ने बड़ा घाटा उठाया! अनुमान से कहीं बहुत ज्यादा! इतना कि शराब ठेकेदारों के करीब सभी ग्रुप्स इस घाटे से घबरा गए! क्योंकि, पिछले साल उन्होंने जितनी महंगी कीमत पर ठेका लिया था, उसी ने उन्हें बड़ा घाटा दिया! इसके पीछे मूल कारण था, वे नए शराब व्यवसाई जिनकी नासमझी ने ठेकों की दरें बढ़वाई थी, इस साल वे नदारद हो गए! सरकार उसी कीमत में 15% बढाकर ठेके देने पर अड़ी थी! जबकि, ठेकेदार उस कीमत से बचते रहे! क्योंकि, अनुमान के मुताबिक शराब की खपत घट रही है! सूखे, बेमौसम बरसात जैसी आपदाएं भी शराब की खपत पर असर डालती है। यही अंदेशा इस साल भी है। यदि आबकारी के नीति नियंताओं ने ये आकलन किया होता, तो उन्हें आसानी से सच्चाई का अंदाजा हो जाता!
वित्त वर्ष 2015-16 में प्रदेश में ठेके सबसे महंगे गए! क्योंकि, दूसरे व्यवसाय से जुड़े लोगों को शराब का धंधा ज्यादा मलाईदार लगा! रियल एस्टेट, ट्रांसपोर्टर, खनिज व्यवसायी, बड़े बिजनेसमैन और पुश्तैनी रईसों ने भी महंगे ठेके लिए! कहीं कहीं बेनामी भी! 2015-16 में जब सरकार ने ठेकों की दर 15% बढ़ाई तो नौसिखियों ने पुराने ठेकेदारों को मात देने के लिए आगे बढ़कर दरें 70-80% बढ़ाकर दुकानें ले ली! नतीजा ये हुआ कि सरकार के खजाने में अनुमान से ज्यादा राजस्व आया! सरकार को भी विश्वास नहीं था कि उसे अनुमान से इतनी ज्यादा कमाई होगी! यही कारण था कि सरकार ने इस बार भी 2015-16 के ही आंकड़े में 15% बढ़ाने का दांव चला, जो उल्टा पड़ गया!
क्योंकि, नए ठेकेदारों को जल्दी ही पता चल गया था कि शराब का धंधा उनके बस की बात नहीं है! ये काम इतना आसान भी नहीं है, जितना उन्होंने समझा था! हर सरकारी कर्मचारी के सामने झुकना पड़ता है! नेताओं के लिए भी शराब व्यवसाई आसान टारगेट होते हैं! कई जगह चंदा देना पड़ता है और कई तरह के 'इंतजाम' करना पड़ते हैं। यही कारण था कि इस बार ज्यादातर नौसिखिए शराब व्यवसाई गायब हो गए! कई ने तो बीच में ही दुकानें सरकार को सौंप दी और किनारे हो लिए! लेकिन, उन्होंने पुराने ठेकेदारों के सामने मुसीबत जरूर खड़ी कर दी!
आबकारी महकमे ने ठेकों के 2015-16 के आंकड़ों में ही 15% जोड़कर ठेकेदारों को नई दर पर ठेके लेने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया! इंदौर जैसे बड़े शहरों जहाँ खपत अच्छी थी, वहाँ मुश्किल नहीं आई, पर ज्यादातर स्थानों पर ठेकेदारों के ग्रुप राजी नहीं हुए! क्योंकि, दुकानों की जो दरें बढ़ी थी, उसका खामियाजा वो भुगतने को राजी नहीं थे! बात इसलिए भी सही थी कि धंधे में आए नए ठेकेदारों ने बिना सोचे समझे महंगी दुकाने ली और कमाई होते नहीं दिखी तो पल्ला झाड़ लिया! अब परंपरागत ठेकेदार 2015-16 की दरों में कटौती चाहते हैं! सरकार ने दबाव में 15% बढ़ी दर तो कम तो की ही, मूल ठेका दर में भी 10% की कमी कर दी! लेकिन, फिर भी बात नहीं बनी! वास्तव में इस बिन्दू पर न तो सरकार गलत है न ठेकेदार! सरकार को ठेकों की वही कीमत सही लगी, जिसके उसे देनदार मिले थे! जबकि, ठेकेदारों को लगा कि उनके घाटे का सबसे बड़ा कारण ही ऊँची कीमत पर ठेके लेना था! इसलिए बार वे कोई रिस्क लेना नहीं चाहते! यही सब वजह रही कि प्रदेश की कई दुकानें बच गई! अब मज़बूरी में इन शराब दुकानों को सरकार को संचालित करना पड़ेगा!
कोई भरोसा करे या नहीं, पर शराब के धंधे पर मौसम का सबसे ज्यादा असर होता है! जब सूखा पड़ता है, तो ग्रामीण इलाकों में लोग रोजी-रोटी की जुगाड़ में लग जाते हैं! ऐसे में वे शराब का सेवन नहीं करते या बहुत कम करते हैं! काम की तलाश में पलायन भी होता है, इससे भी शराब की खपत प्रभावित होती है! बेमौसम बरसात से फसल भी ख़राब हुई, जिससे किसान को नुकसान हुआ और शराब व्यवसाई को भी! इस धंधे से जुड़े जानकारों के मुताबिक 2014-15 और 2015-16 में शराब का धंधा 15 से 20 प्रतिशत घटा है! आने वाले वित्त वर्ष में भी यही स्थिति रहने का अनुमान है। ऐसे में यदि ठेकेदार महँगी दर पर दुकानें लेते हैं, तो उन्हें फिर घाटा होना तय है! इसीलिए वे अंत तक सरकार की कीमत पर ठेका लेने से बचते रहे!
को-ऑपरेशन सिस्टम
जानकारी के मुताबिक पुराने ठेकेदारों के ग्रुप के रवैये को देखकर सरकार ने 'को-ऑपरेशन सिस्टम' लागू करने का फैसला किया है। यदि ऐसा हुआ तो आबकारी विभाग के कर्मचारी शराब बेचते नजर आएंगे। 'को-ऑपरेशन सिस्टम' के तहत सरकार ही आबकारी अमले से दुकानों में शराब बिकवाती है। जिला स्तर पर एक समिति गठित की जाती है। जिसकी देखरेख में ये शराब दुकानें संचालित की जाती हैं। बताते हैं कि सरकार ने घोषणा तो नहीं की, पर इसकी तैयारी जरूर कर ली!
तमिलनाडु में ऐसे ही हालात 1998 में निर्मित हुए थे! तब ठेकेदारों ने अपनी कीमत पर सरकार से ठेके लेना चाहे थे! वित्तीय वर्ष पूरा होने पर उन्होंने न्यूनतम दर (लोएस्ट रेट) पर टेंडर लेने की प्रक्रिया की गई थी। मजबूर होकर तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा में विधेयक लाकर 'को-ऑपरेशन सिस्टम' लागू किया था। जिसके तहत विभाग ने खुद शराब की बिक्री शुरू कर दी थी।
ऐसे बिकेगी शराब
यदि मज़बूरी में प्रदेश में को-ऑपरेशन सिस्टम लागू होता है तो हर जिले में शराब दुकानों पर जिला प्रशासन के साथ ही आबकारी विभाग का नियंत्रण होगा। विभाग द्वारा बनाई समितियों द्वारा दुकान का संचालन राशन दुकानों की तर्ज पर किया जाएगा। रोज की आय को सरकारी खजाने में जमा करना होगा। आय-व्यय का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना होगा। सकता है कि नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से शराब बेचीं जाए! आबकारी विभागीय के सूत्रों का भी कहना है कि यदि शराब दुकानें शर्तों के मुताबिक नीलाम नहीं हुईं, तो सरकार नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से भी शराब बिकवाने का फैसला कर सकती है।
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फैक्ट फाइल
- मध्यप्रदेश में 1060 अंग्रेजी शराब और 2624 देशी शराब की दुकानें हैं।
- 2002-03 में देशी शराब की खपत 390.58 लाख लीटर और विदेशी शराब की खपत 350 लाख लीटर थी! मार्च 2015 तक 1103.69 लाख लीटर देशी तथा 1439.77 लाख लीटर विदेशी की खपत हुई।
- 2004 से अब तक प्रदेश में शराब की खपत चार गुना और शराब से होने वाली आय दस गुना बढ़ी!
- देश में शराब से होने वाला राजस्व डेढ़ लाख करोड़ रुपए ज्यादा है।
- यह व्यवसाय 30% सालाना की दर से बढ़ रहा है।
- देश में हर साल शराब की खपत 19 अरब लीटर है। इससे हर साल 1.45 लाख करोड़ रुपए का कारोबार होता है।
- भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा शराब बाजार है। साथ ही ये सबसे तेजी से बढ़ता बाजार भी है।
- दुनिया में भारत व्हिस्की का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। शराब की कुल खपत का 80% हिस्सा देसी-विदेशी व्हिस्की का है।
- राज्य सरकारों के कुल राजस्व का 16 से 20% हिस्सा उन्हें शराब से ही आता है।
- तमिलनाडु सरकार को शराब पर राजस्व से हर साल में 21 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की प्राप्ति होती है।
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