Friday, March 11, 2016

'कमल' को शह देने के लिए क्या कमलनाथ पर दांव लगेगा?



हेमंत पाल 


   मध्यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति फिर करवट ले रही है। नेतृत्व को लेकर पत्ते फेंटे जाने लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के विरोधियों ने कमलनाथ के हाथ में प्रदेश की कमान देने की चर्चाओं से सियासत गर्म कर दी है। नई कार्यकारिणी से नाराज हुए नेताओं ने भी इसी रास्ते में अपने तम्बू गाड़ लिए! वैसे तो प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव नवंबर-दिसंबर में चुनाव होना है। लेकिन, लगता है कि कांग्रेस की राजनीति का ऊंट इससे पहले करवट ले सकता है।अध्यक्ष का फैसला संगठन चुनाव से ही तय होना है! किन्तु, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मर्जी के आगे, किसी की कब चली है! यही कारण है कि पार्टी हाईकमान का मिजाज भांपकर कमलनाथ के नाम पर माहौल बनाया जाने लगा! अब तक छिंदवाड़ा को ही सियासत की सीमा मानने वाले कमलनाथ कुछ दिनों से अपने क्षेत्र से बाहर भी सक्रियता दिखा रहे है। दो दशक बाद उन्होंने जबलपुर में युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ व्यापमं घोटाले पर हुए आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी की थी। दो दशक में यह कमलनाथ का पहला मैदानी आंदोलन था। जिसकी पॉजीटिव रिपोर्ट हाईकमान तक भेजी गई!   
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  मध्यप्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ को पार्टी का नेतृत्व सौंपने की मांग तेज होने लगी है। उनके समर्थन में खुलकर नारे लग रहे हैं। कमलनाथ भी कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस 2018 का विधानसभा चुनाव कमलनाथ की अगुवाई में लड़ सकती है। कमलनाथ समर्थक भी दावा कर रहे हैं पार्टी ने अपने सभी मोहरों को आजमा लिया, अब कमलनाथ को चांस दिया जाए! हालात भी ऐसे हैं कि कमलनाथ कांग्रेस के लिए मज़बूरी बनते जा रहे हैं। कुछ दिनों पहले महाकौशल इलाके में कमलनाथ ने अपनी ताकत का अहसास  कराया था! बालाघाट और मंडला में भी कमलनाथ के समर्थन में नारे लगे! प्रदेश कांग्रेस मुखिया बनाए जाने के साथ ही उनको 2018 में मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करने की भी आवाज उठी! बताते हैं कि कमलनाथ ने खुद ही अपने आपको प्रोजेक्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! अगले विधानसभा चुनाव के लिए उनकी ही एक टीम ने सर्वे भी किया। इसका निष्कर्ष है कि यदि कांग्रेस पूरा जोर लगाए तो 2018 में वो प्रदेश की सत्ता में वापसी कर सकती है। यही कारण है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के रास्ते प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री सपना संजोने लगे हैं। 
  प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन ने भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कमलनाथ का नाम उछालकर राजनीतिक हलकों में चर्चा छेड़ दी। आरिफ अकील ने भी खुलकर बाला बच्चन की बात का समर्थन किया! कहा कि यदि कमलनाथ पार्टी अध्यक्ष बनते हैं, तो कांग्रेस का भला होगा! बाला बच्चन के अलावा कमलनाथ को नेतृत्व सौंपे जाने की मांग पर कई और विधायक खुलकर सामने आए! जबलपुर से तरुण भानोत और केवलारी के विधायक रजनीश सिंह खुलकर मांग करने लगे हैं। मंडला में तो तरुण भानोत ने मंच से ‘अबकी बार कमलनाथ’ के नारे तक लगाए। भनोत ने वर्तमान प्रदेश पर ऊँगली उठाते हुए कहा कि व्यापमं की लड़ाई लड़ने में हम कमजोर साबित हुए! इसके पीछे कहीं न कहीं नेतृत्व की कमजोरी रही! कमलनाथ 33 साल से सांसद है! अब कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस संभालना चाहिए! उन्हें अगले मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाना चाहिए। रजनीश सिंह ने भी कहा कि आज प्रदेश कांग्रेस को सशक्त नेतृत्व की जरुरत है! कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस एक होकर मुकाबला कर सकती हैं। ओंकार सिंह मरकाम और संजीव उईके भी उन विधायकों में शामिल हैं जो कमलनाथ को नेतृत्व दिए जाने की मांग कर रहे हैं।
 जब से ये मांग उठी, ये कहा जाने लगा है कि कमलनाथ को कमान सौंपने और अगले चुनाव में कमलनाथ को प्रोजेक्ट करने की मांग एक तय रणनीति के तहत उठी है। पार्टी हाईकमान ने ही कमलनाथ को प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने का इशारा किया हैं। इन्हीं संकेतों के कारण पिछले तीन महीने से कमलनाथ ने सक्रियता बढ़ाई है। हाईकमान की भी मज़बूरी है कि अब उसके पास कमलनाथ के अलावा कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा, जिस पर दांव लगाया जा सके! दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी आजमा ही चुकी है। इन सभी को पार्टी चुनाव में कोई न कोई अहम जिम्मेदारी देकर नतीजे देख लिए हैं। इसके बावजूद 2003 से हार का सिलसिला लगातार जारी है। अब पार्टी के पास अकेले कमलनाथ ही बचे हैं! देखना ये है कि 2018 में कमलनाथ का जादू सर चढ़कर बोलता है या कांग्रेस ये चेहरा भी दूसरों की तरह पिट जाएगा।
   प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ की सक्रियता को इस नजर से देखने वाले भी कम नहीं है कि दिल्ली की राजनीति में वे हाशिए पर आ गए हैं। उम्र के ढलते दौर में उन्हें प्रदेश में राजनीति करना ही बेहतर नजर आ रहा है। कांग्रेस में 33 साल से सांसद इस नेता को राजनीतिक से ज्यादा उद्योगपति समझा जाता है। उनकी पूरी राजनीतिक शैली कार्पोरेट घराने जैसी है। यही कारण है कि वे येन केन प्रकारेण हमेशा अपनी सीट बचाकर रखने में कामयाब हो जाते हैं। जबकि, उन्हीं के छिंदवाड़ा इलाके में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार जाती है। फिलहाल कांग्रेस के सामने पैसे का भी संकट है! यदि उन्हें प्रदेश कांग्रेस का दारोमदार सौंपा जाता है तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को इस चिंता से भी निजात मिल जाएगी! अरुण यादव भी उनसे कम तो नहीं पड़ते, पर अपनी जेब से पार्टी चलाने कौशल में वे पीछे रह जाते हैं। 
  एक सवाल ये भी है कि प्रदेश में कांग्रेस को ऑक्सीजन के लिए जिस ताकतवर नेता की खोज है क्या वो चेहरा कमलनाथ हो सकते हैं? उनके नेतृत्व में क्या कांग्रेस मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार को उखाड़ने का सपना संजो सकती है? देखा जाए तो कांग्रेस के लिए अभी ऐसा कोई भी सपना सच होता नहीं लग रहा! क्योंकि, कांग्रेस के जो तीन क्षत्रप मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं, उनका लक्ष्य तो एक है, पर राह नहीं! वे भाजपा सरकार को तो हटाना चाहते हैं, पर उसका सारा श्रेय किसी एक नेता को मिले, ये सहन नहीं! दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया जब तक नहीं चाहेंगे, कमलनाथ भी कोई चमत्कार नहीं कर सकते! ये तीनों क्षत्रप दिखाने को अरुण यादव के खिलाफ नहीं है, पर उनके खिलाफ बारूद बिछाने मौका भी नहीं छोड़ते! अरुण यादव के खाते में झाबुआ जीत भले ही बड़ी हो, पर मैहर की हार भारी पड़ रही है। ऐसे में यादव विरोधियों को कमलनाथ के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने में दिलचस्पी हो न हो, अरुण यादव को निपटाने की जल्दबाजी ज्यादा है! यदि कांग्रेस हाईकमान कमलनाथ को प्रदेश का दारोमदार सौंप भी देता है तो क्या उनकी ढलती उम्र उन्हें दो साल बाद होने वाले चुनाव से जूझने की इजाजत देगी? एक बात ये भी है कि अभी जो लोग कमलनाथ के कंधे पर बंदूक रखकर अरुण यादव की तरफ निशाना लगाए बैठे हैं, क्या वे हमेशा उनके साथ खड़े होंगे? कमलनाथ के नेतृत्व की मांग जब जोर पकड़ रही है तब दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य जैसे दिग्गजों के समर्थक किस पाले में नजर आते हैं! 
  ये भी नहीं कहा जा सकता कि कमलनाथ को कमान सौंप देने से प्रदेश की मरी पड़ी कांग्रेस में जान आ जाएगी! जो कमलनाथ आज तरोताजा नजर आ रहे हैं, वे वास्तव में वैसे हैं! सच्चाई ये है कि कमलनाथ की राजनीतिक शैली से उनके समर्थकों को हमेशा ही शिकायत रही है! ये भी कारण है कि वे कभी प्रदेश स्तर पर जनाधार वाले नेता नहीं रहे! छिंदवाड़ा और कुछ हद तक महाकौशल से बाहर उनके इक्का-दुक्का ही समर्थक दिखाई देते रहे हैं! इंदौर में सज्जन सिंह वर्मा, शाजापुर में हुकुमसिंह कराड़ा, निमाड़ में बाला बच्चन ही उनके मालवा में पुराने समर्थक रहे हैं! पिछले विधानसभा चुनाव के बाद तो कमलनाथ ने अपने लोकसभा क्षेत्र के बाहर ज्यादा दौरे भी नहीं किए! उनकी राजनीति पूरी तरह दिल्ली से छिंदवाड़ा तक केंद्रित रही! अब वे न तो केंद्रीय राजनीति में हैं और न उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिली! ऐसे में वे अपनी राजनीतिक भूमिका को लेकर जद्दोजहद में हैं। इसी उहापोह में उन्हें मध्यप्रदेश में पार्टी की कमान थामने की कोशिश करना सबसे आसान लगा! लेकिन, फिर भी अभी उनके लिए अभी भोपाल दूर ही लग रहा है।   
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