Wednesday, March 9, 2016

अपराध का मनोरंजन बन जाना

हेमंत पाल 

    हर बाजार की तरह खबर और मनोरंजन का भी एक बड़ा बाजार है। जब से छोटे परदे की अहमियत बढ़ी है, ये बाजार और ज्यादा फला-फूला है। इसी बाजार का एक प्रमुख आइटम है 'अपराध।' समाज में घटने वाली सामान्य अपराधिक घटनाओं को सनसनी बनाकर पेश करने में छोटे परदे को महारथ हांसिल कर ली है! जब टीवी पर ख़बरों की दुनिया का विस्तार हुआ, तब अपराध से जुडी ख़बरों को इतनी ज्यादा अहमियत नहीं थी! लेकिन, धीरे-धीरे जब अपराध की ख़बरें बिकाऊ माल लगने लगी, तो इन पर कार्यक्रम बनने लगे! ख़बरों में भी हिंसा वाली घटनाओं का हिस्सा अलग दिखाया जाने लगा! जब चैनल वालों का इस पर भी मन नहीं भरा तो अपराधिक ख़बरों को नए कलेवर में स्टोरी बनाकर पेश किया जाने लगा! आजतक पर 'जुर्म', एबीपी न्यूज पर 'सनसनी', एनडीटीवी पर 'डायल 100', जी न्यूज पर 'क्राइम रिपोर्टर', आईबीएन 7 पर 'क्रिमिनल', ईटीवी पर 'दास्ताने-जुर्म' और इंडिया टीवी पर 'एसीपी अर्जुन'। ऐसा भी समय आया था जब रिमोट पर किसी भी खबरिया चैनल का बटन दबाओ देखने को 'क्राइम न्यूज़' ही मिलती थी!

  इसके बाद यही दौर मनोरंजन चैनलों पर भी आ गया! सोनी-टीवी पर 'सीआईडी' को चलते-चलते 17 साल हो गए हैं। ये शो इस चैनल के सबसे लोकप्रिय शो में से एक है। इसी चैनल पर 'क्राइम पेट्रोल' भी समाज में घटे अपराधों के नाट्य रूपांतरण वाला शो है, जिसे दर्शकों काफी सराहा है। इसी तरह 'लाइफ-ओके' पर 'सावधान-इंडिया' जैसा शो चल रहा हैं। इन शो की टीआरपी अन्य शो से कहीं बेहतर है। इस तरह के टीवी शो की शुरुवात 1997 में सुहैब इलियासी ने की थी! वे सबसे पहले जी-टीवी पर 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' शो लेकर आए। उन्हें टीवी पर ऐसा क्राइम शो बनाने की प्रेरणा लंदन के चैनल-फोर पर दिखाए जाने वाले शो से मिली थी। भारतीय दर्शकों में ये टीवी शो बेहद लोकप्रिय हुआ था। 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' का हर एपिसोड किसी एक फरार 'मोस्ट वांटेड' अपराधी पर होता था! अपराधी की वास्तविक तस्वीर के साथ उस कारनामे की कहानी को नाट्य रूपांतरण बनाकर दिखाया जाता था! तब इस शो की लोकप्रियता का आलम ये था कि कई बड़े फरार अपराधी दर्शकों की मदद से दबौच लिए गए! यही टीवी शो बाद में 'फ्यूजिटिव मोस्ट वांटेड' नाम से 'दूरदर्शन' के परदे पर भी दिखाया गया। इसके बाद सुहैब इलिसासी इस शो को 'इंडिया टीवी' पर भी लाए थे।
  धीरे-धीरे छोटे परदे के ये क्राइम शो इतने लोकप्रिय हो गए कि इनका एक अलग दर्शक वर्ग तैयार हो गया! ये क्राइम शो हॉरर मूवी जैसा कथा संसार रचते थे। इन शो को देखने का जूनून कुछ वैसा ही था जैसा कभी अपराध पत्रिकाएं 'मनोहर कहानियां' और 'सत्यकथा' पढ़कर लोग पूरा करते थे। जब अन्य मनोरंजन चैनलों पर सास, बहू मार्का सीरियलों की धूम थी, तब 'सोनी-टीवी' पर 'सीआईडी' ने अपनी धाक जमाई! मनगढ़ंत अपराध कथाओं की गुत्थी को नाटकीय तरीके से सुलझाने वाली एससीपी प्रद्युम्न की टीम को इतना पसंद किया गया कि ये सीरियल आज 17 साल बाद भी टीआरपी खींचने की ताकत रखे है। 'लाइफ-ओके' चैनल पर इसी तरह का क्राइम-शो 'सावधान-इंडिया' भी पसंद किया जाना शो है। 'सोनी' के 'क्राइम पेट्रोल' में भी अपराधों की चीरफाड़ की जाती है, ताकि दर्शक अपराधी की मानसिक स्थिति को भी समझ सकें! नए चैनल 'एंड-टीवी' पर 'एजेंट राघव' भी इसी कलेयर का क्राइम शो है।   
  सवाल ये उठता है कि क्या अपराधों को ग्लैमराइस तरीके से पेश किया जाना जरुरी है? जब लोग टीवी पर समाज में घटने वाले अपराध को सिर्फ खबर की तरह देखना चाहते हैं, तो उसे बढ़ा-चढ़ाकर क्यों दिखाया जाता है? ख़बरों में अपराध, मनोरंजन में अपराध के बाद फिर अपराधों का नाट्य रूपांतरण! मनोरंजन चैनलों पर तो इस तरह के शो बार-बार रिपीट किए जाते हैं! दर्शाया ये जाता है कि लोग इस तरह की ख़बरों से सीख लेकर सजग रहें! जबकि, वास्तव में ऐसा होता कहाँ है? बल्कि, इस तरह के शो से अपराधिक लोगों ने जरूर सीख लेना शुरू कर दी! वे पुलिस कार्रवाई को भी समझने लगे और क़ानूनी दांव पेंचों को भी! इससे ये बात भी साबित हो गई कि अपराध सबसे ज्यादा बिकने वाला विषय है! फिर उसे अखबारों में अपराध कथाओं की तरह पेश किया जाए! पत्रिकाओं में सत्यकथा बनाकर या फिर टीवी की ख़बरों में क्राइम रिपोर्ट बनाकर! पर सबसे ज्यादा घातक है अपराध का मनोरंजन जाना! वही आज सच बनकर सामने भी आ रहा है!
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