- हेमंत पाल
इंदौर। सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शराब व्यवसाय से प्राप्त होता है। लेकिन, इस बार सबसे ज्यादा घाटा शराब से मिलने वाले राजस्व से ही होने वाला है। ये भी हो सकता है कि जो दुकानें ठेकेदारों ने नहीं ली है, वहाँ सरकार को खुद ही शराब बेचना पड़े! जानकर बताते हैं कि इस साल सरकार को शराब ठेकों से करीब सवा 6 हजार करोड़ रुपए मिलने का अनुमान था! लेकिन, संभव नहीं कि सरकार इस आंकड़े के आसपास भी पहुँच पाएगी! सरकार को इस साल 1200 करोड़ के ज्यादा के राजस्व का नुकसान होगा! ताजा हालात ये हैं कि सरकार ने अपने बजट में शराब व्यवसाय से जितनी आय का अनुमान लगाया था, उसमें 25% की कमी तो उसने स्वीकार कर ही ली!
अभी तक सरकार 6 बार शराब दुकानों की नीलामी के लिए निविदाएं आमंत्रित कर चुकी हैं, लेकिन, अभी भी कई दुकानें नीलामी से बची रही! शराब व्यवसाय से जुड़े कई ग्रुप इस बार कन्नी काट गए! प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहाँ एक भी टेंडर नहीं आया है। कुछ जिलों में 2 या 3 टेंडर ही आए। आबकारी महकमा कितनी भी कोशिश कर ले, पर सरकार को इस साल बड़ा राजस्व नुकसान होना ही था। ख़ास बात ये है कि इस साल आबकारी के जानकारों ने आबकारी-नीति बनाने में कुछ ख़ास मेहनत की थी! वे मान रहे थे कि जिन ठेकेदारों के पास दुकानें हैं, उन्हें 15 प्रतिशत बढ़ाकर आसानी से रिनुवल किया जा सकेगा! लेकिन, उनका भ्रम जल्दी ही टूट गया! अधिकांश ठेकेदारों ने रिनुवल में रूचि नहीं दिखाई! वे सरकार से और कम दर पर ठेके लेने का दबाव बनाते रहे! क्योंकि, शराब व्यवसाय भी पिछले 2 साल में लगातार 10 से 20 प्रतिशत घटा है। 2015-16 वित्त वर्ष में ही प्रदेश में कई जगह शराब ठेकेदारों ने दुकानें बीच में छोड़ दी थी! वहां सरकार को खुद शराब बेचना पड़ी!
जब दुकानों के ठेके नहीं हुए तो आबकारी विभाग थोड़ा नरम पड़ा और 15% बढाकर रिनुवल करने की जिद छोड़ी! दबाव और ज्यादा बढ़ा और ठेकेदार सामने नहीं आए तो वर्ष 2015-16 से 10 प्रतिशत कम पर दुकानें देने को राजी हो गए! लेकिन, फिर भी स्थिति ये है कि कई दुकानों के लिए ठेकेदार सामने नहीं आए! सरकार की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि उसने अपने सालाना बजट में आबकारी से अनुमानित आय का आकलन पहले ही बढाकर कर लिया है! पिछले साल की कुल आय में 15% की बढ़ोतरी का उसे सहज अनुमान था, जो गलत भी नहीं था! अब रिनुवल के 15% कम तो सरकार ने कर ही दिए, पिछले साल से 10% और कम करने को राजी हो गई! यानी 25% का राजस्व घाटा सरकार को सामने नजर आ रहा है!
प्रदेश में पिछले कई सालों से ठेकेदारों के ग्रुप सरकार के साथ मिलकर व्यवसाय कर रहे थे। लेकिन, सरकार ने कभी भी करोड़ों का राजस्व देने वाले इन ठेकेदारों को अपना नहीं माना! उन्हें हमेशा प्रशासन ने भी दबाया, पुलिस ने भी और आबकारी विभाग तो खैर दूध देती गाय समझता ही है। 2016-17 वर्ष के लिए जो आबकारी नीति बनाई गई, उसमें सरकार ने ठेकेदारों को विश्वास में नहीं लिया! अफसरों को लगा कि वे जो चाहेंगे, ठेकेदार वो मानने को मजबूर होंगे! लेकिन, ऐसा नहीं हुआ! अफसरों ने जो तय किया उसका ठेकेदार विरोध करने की स्थिति में तो नहीं थे, इसलिए उन्होंने हाथ खींच लिए! उनका इतना करना था कि सरकार सकते में आ गई! सरकार की यह नीति पूरी तरह असफल साबित हुई। प्रदेश के सभी ठेकेदारों के लामबंद होने का अफसरों को अंदाजा नहीं था! एक बात ये भी कि चालू वित्त वर्ष में जो नए शराब व्यवसाई इस बिजनेस में कूदे थे, वे कहीं नजर नहीं आ रहे!
-----------------------------
No comments:
Post a Comment