Friday, March 4, 2016

कंजूस विधायक कैसे खर्च करेंगे 2 करोड़?


- हेमंत पाल 

   राजनीति के अपने ही रंग हैं! यहाँ सत्ता और विपक्ष के बीच रस्साकशी भी समय के मुताबिक होती है। विपक्ष के विधायकों को यदि लगता है कि सत्ताधारी विधायकों के साथ खड़े होने से फ़ायदा हो सकता है तो वे ये मौका भी नहीं गंवाते! ये प्रसंग हाल ही में आया, जब विधायक निधि बढ़ाने को लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा के हर रंग के विधायक एक हो गए! सभी ने मुख्यमंत्री से कहा कि हमारी विधायक निधि बढ़ाई जाए! मुख्यमंत्री ने मांग के मुताबिक 5 करोड़ तो नहीं की, पर अब विधायकों को 77 लाख के बजाए, 2 करोड़ रुपए सालाना मिला करेंगे! बात अलग है कि जो विधायक सालभर में 77 लाख रुपए भी ठीक से खर्च नहीं कर पाते हैं, वो 2 करोड़ को ठिकाने कैसे लगाएंगे? इस साल भी विधायक अपनी निधि को अभी तक पूरा खर्च नहीं कर सके हैं। इसमें भी संदेह है कि पूरी राशि खर्च हो भी पाएगी या नहीं?
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   बेवजह के मामलों को लेकर सदन में सत्ताधारी पक्ष और विपक्ष अकसर लड़ते नजर आते हैं! लेकिन, जब खुद के वेतन और विधायक निधि का मामला आता है, तो एकजुट हो जाते हैं। विधायक निधि बढ़वाने के लिए पिछले दिनों भाजपा, कांग्रेस और बसपा के विधायक एकजुट हो गए! सत्ताधारी और विपक्ष के करीब 30 विधायकों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर विधायक निधि बढ़ाकर 5 करोड़ करने की मांग की थी! इनका कहना था कि 85 लाख रुपए पूरे नहीं पड़ते! इसमें 77 लाख रुपए विकास कार्यों पर खर्च किए जाते हैं, जबकि 8 लाख रुपए स्वेच्छानुदान है। पिछले सत्र में राऊ विधायक जीतू पटवारी ने भी सभी दलों के विधायकों के साथ मुख्यमंत्री से मिलकर विधायक निधि बढ़ाने की मांग की थी। तब भी मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि राशि जल्द बढ़ाई जाएगी। मुख्यमंत्री ने भी विधायकों को भरोसा दिलाया कि सरकार इस पर विचार कर रही है। विधानसभा उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी विधायक निधि की राशि 5 करोड़ करने की सिफारिश की है! किन्तु, प्रदेश की माली हालात देखते हुए वित्त विभाग विधायक निधि मद में डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा देने को तैयार नहीं था! इसके बाद अंतिम फैसला मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री किया! नतीजा ये निकला कि विधायक निधि 77 लाख से बढाकर 2 करोड़ रुपए साल कर दी गई! 

  मुद्दे की बाते ये है कि प्रदेश के 230 विधायक प्रदेश की सवा सात करोड़ जनता पर इस साल की 177 करोड़ की विधायक निधि भी पूरी खर्च नहीं कर सके! फ़रवरी मध्य तक 161 करोड़ रुपए की विधायक निधि खर्च नहीं हो पाई थी! इस हिसाब से देखा जाए तो 77 लाख रुपए सालाना विधायक निधि को कम बताने वाले विधायक इस राशि का 10% भी खर्च नहीं कर पाए! इसी से लगता है कि विधायकों की मांग और वास्तविकता में कितना अंतर है! विधायक निधि की राशि का 10% भी खर्च नहीं होने का सीधा सा मतलब है कि इस साल इस राशि का अधिकांश हिस्सा लैप्स हो जाएगा! विधायकों को हर साल उनके निर्वाचन क्षेत्र में निर्माण कार्यों के लिए 77.34 लाख रुपए दिए जाते हैं। इस वित्त वर्ष में फरवरी के मध्य तक विधायक निधि के खर्च की स्थिति बताती है कि विधायकों को सिर्फ अपनी निधि बढ़वाना थी! काम करने में उनकी कोई रूचि नहीं है। 
   जानकारी के मुताबिक प्रदेश के 230 विधायकों को इस साल खर्च के लिए 177 करोड़ 87 लाख रुपए का राज्य सरकार ने प्रावधान किया है। जबकि, विधायकों ने खर्च किए 16 करोड़ 84 लाख रुपए! यह कुल राशि का 9.46% है। संभव है पिछले 15 दिनों में ये राशि कुछ बढ़ गई हो, पर पूरी विधायक निधि खर्च हो सकेगी, इसके आसार नहीं है। ये पहली बार नहीं हुआ! पिछले साल भी विधायक निधि की बड़ी राशि विधायकों द्वारा समय पर अनुशंसा नहीं किए जाने के कारण चलते लैप्स हो गई थी। बाद में विधायकों के दबाव में सरकार ने तीसरे अनुपूरक बजट में लैप्स हुए 7 करोड़ 24 लाख की रकम को फिर से बजट में शामिल कर खर्च की अनुमति दी! 
  विधायक निधि में पारदर्शिता को लेकर भी अकसर उँगलियाँ उठती रहती है। कई बार ये मीडिया की सुर्खियां भी बनती रही हैं। काम के मानक स्तर, अनावश्यक खर्च और अपने वाले ठेकेदारों को काम देने को लेकर विधायकों को कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है। ये बातें सिर्फ आरोप ही नहीं होते, कई बार ये बातें सही भी होती हैं। लेकिन, सरकार के पास विधायक निधि से होने वाले निर्माण कार्यों को लेकर पारदर्शिता का कोई फार्मूला नहीं है! जिला योजना समिति और कलेक्टर समेत कई माध्यमों से होकर इस राशि का उपयोग होता है! लेकिन, कोई फुल-प्रूफ फार्मूला नहीं है, जो मतदाता के सामने खर्च होने राशि को स्पष्ट करे! 
    इस मामले में दिल्ली की केजरीवाल सरकार की सराहना करना पड़ेगी, जिसने इसके लिए एक फार्मूला निकाला। है पारदर्शिता के मामले में दिल्ली की 'आप' पार्टी सरकार ने विधायक निधि की जानकारी ऑनलाइन कर दी है। ऐसा करने वाला दिल्ली देश का पहला राज्य बन गया है! किस विधायक ने कितनी राशि खर्च की है, इसकी पाई-पाई का हिसाब जनता के सामने होगा। इस व्यवस्था के लागू होने से सबसे बड़ा फ़ायदा ये होगा कि विधायक निधि में पारदर्शिता आएगी! जनता का कोई भी व्यक्ति विधायक निधि के बारे में जानकारी ले सकता है। उसे ये भी पता होगा कि उसके इलाके में बनने वाली सड़क पर कितना पैसा खर्च किया जा रहा है और कौन सा ठेकेदार ये काम करवा रहा है। ये भी पता होगा कि काम कितने दिन में पूरा हो जाएगा! 
   इसका एक लाभ ये भी होगा कि जनता जागरूक होगी कि उनका विधायक काम ठीक से करवा रहा है या नहीं! विधायक अपने दफ्तर या घर में बैठकर ही बजट जारी किए जाने के लिए अनुरोध कर सकेंगे। इस प्रक्रिया व्यवहार में आने के बाद विकास कार्य में तेजी आ सकेगी। दिल्ली के विधायक यदि रात में भी अपने मोबाइल या लैपटाप से अपने निधि से सड़क बनाने का अनुरोध भेजेगा, तो उसे पोर्टल के माध्यम से संदेश मिलेगा कि आपका अनुरोध पंजीकृत कर लिया गया है। इस व्यवस्था को दिल्ली अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी (डूडा) से जोड़ा गया है। यदि इस तरह की कोई व्यवस्था मध्यप्रदेश में भी लागू की जाती है, तो ये सच भी मतदाताओं के सामने आ जाएगा कि उनका निर्वाचित प्रतिनिधि कितना सजग है और विधायक निधि खर्च करने में कितना ईमानदार है!     
  विधायक निधि को लेकर कई राज्यों में कई विवाद भी हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में इस निधि से विधायकों को 20 लाख रुपए तक की कार खरीदने तक की अनुमति देने का मामला हो चुका है! बाद में भारी विरोध के बाद ये फैसला बदल दिया गया था! बिहार में तो विधायक निधि को बदनामी की जड़ मानते हुए 2010 से रोक ही लगा दी गई! मध्यप्रदेश में ये व्यवस्था करीब तीन दशक पहले एक लाख रुपए सालाना से शुरू हुई थी, जो 77 लाख से होकर 2 करोड़ तक पहुँच गई! सुलगता सवाल ये है कि जो विधायक अपनी 77 लाख रुपए सालाना निधि को खर्च करने में ही कंजूसी बरतते हों, उनसे 2 करोड़ रुपए कहाँ और कैसे खर्च होंगे? 
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