Tuesday, May 3, 2016

एक पार्टी, दो राज्य सरकारें और दो नजरिए

 - हेमंत पाल 

  आरक्षण को लेकर हाल ही में दो बड़े फैसले सामने आए! मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण को ख़त्म करने का आदेश दिया! उधर, गुजरात सरकार ने गरीब सवर्णों को भी 10% आरक्षण का आदेश दिया! सामाजिक नजरिए से देखा जाए तो दोनों ही फैसले एक-दूसरे के विपरीत हैं। एक ही पार्टी की एक सरकार सवर्णों को आरक्षण देने की वकालत कर रही है! जबकि, दूसरी सरकार आरक्षित वर्ग के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए कमर कसे है। राजनीति के नजरिए से देखा जाए तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा किसी के गले नहीं उतर रही! वे पदोन्नति में आरक्षण को राजनीतिक मुद्दा बनाने कोशिश कर रहे हैं। ये विचार किए बगैर कि इससे समाज का दूसरा वर्ग प्रभावित हो रहा है!   
   मध्यप्रदेश में हुआ हाई कोर्ट का ये फैसला नई बात नहीं है! उत्तर प्रदेश और बिहार की अदालतें ऐसे फैसले दे चुकी हैं! दोनों राज्य इसे लागू भी कर चुके हैं। पदोन्नति में आरक्षण का फैसला अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय किया गया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। जबकि, संविधान में आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण का कोई जिक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट 2007 में ही इस मामले को डिसाइड कर चुका है। ऐसे में यदि मध्यप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट भी जाती है तो उनका पक्ष कमजोर ही रहेगा! उत्तर प्रदेश सरकार तो इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में हार चुकी है। इलाहबाद हाई कोर्ट ने 4 जनवरी 2013 को इस तरह की आरक्षण व्यवस्था को अनुचित करार दिया था। राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा! सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पदोन्नतियों में आरक्षण खत्म करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी थी। पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने 14 सितंबर 2007 से लागू की थी जिसे 15 जून 1995 से प्रभावी बनाया गया था।
  बिहार की नीतीश सरकार ने भी हाल ही में फैसला लेते हुए सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी के प्रमोशन में आरक्षण को खत्म कर दिया! हाई कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर राज्य सरकार ने यह फैसला लिया! पटना हाईकोर्ट ने अगस्त 2014 में आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार के साल 2012 में जारी संकल्प को निरस्त कर दिया था। हालांकि, सरकारी फैसले में पहले से पदोन्नत कर्मियों को राहत दी गई! जिन कर्मियों का प्रमोशन रूका हुआ था, सामान्य प्रशासन विभाग ने संकल्प जारी कर सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति में एससी-एसटी कर्मियों को वरीयता सहित आरक्षण का लाभ देने का निर्देश जारी किया था! पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने के हाई कोर्ट के फैसले के बाद इस वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी लामबंद होने लगे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार संकल्प पारित कर लोकसभा में आरक्षण बिल पारित करवाए! सरकार ताजा आंकड़ों के आधार पर नए 'पदोन्नति नियम 2016' बनाए। सांसद और विधायक प्रधानमंत्री पर दबाव बनाकर पदोन्नति  नियम बनाए जिन्हें संसद पारित करवाया जाए!
  उधर,  गुजरात सरकार ने हार्दिक पटेल द्वारा उठाए गए पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलन के सामने झुकते हुए प्रदेश में सभी गैर-आरक्षित जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को नौकरी और शिक्षा में 10% आरक्षण की घोषणा की! इस पहल से सवर्ण वर्ग के 6 लाख रुपए से कम आय वाले परिवारों को राज्य सरकार के इस फैसले का लाभ मिलेगा। कहा गया है कि यदि 10% कोटा लागू करने में हम किसी भी कानूनी लड़ाई को तैयार हैं। इससे एससी / एसटी और ओबीसी के लिए मौजूदा 49 प्रतिशत आरक्षण प्रभावित नहीं होगा। गुजरात सरकार ने राजस्थान और हरियाणा में लागू व्यवस्था को देखकर ये फैसला लिया है। राजस्थान और हरियाणा ने गुर्जर और जाट समुदायों के लिए विशेष कोटा घोषित किया गया है। गुजरात सरकार के इस कदम को राजनीतिक रूप से दमदार पाटीदार समाज को संतुष्टï करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य की आबादी में लगभग 12-15 प्रतिशत का योगदान रखने वाले पाटीदारों ने गुजरात में भाजपा सरकार के लिए महत्वपूर्ण समर्थन आधार खड़ा किया है। 
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