- हेमंत पाल
हिंदी फिल्मों के दर्शक बरसों से एक जैसी कहानियों में मनोरंजन ढूंढ रहे हैं! हर फिल्म में नायक और नायिका के बीच प्रेम कथा गढ़ी जाती है! खलनायक का किरदार निभाने वाला पात्र उनके प्रेम में अड़ंगे डालता है और अंत में नायक, नायिका मिलन जाता है। फिल्मों में प्यार, रोमांस, दिल्लगी, दीवानगी और थोड़ा एक्शन सफलता और असफलता का फार्मूला हैं। हिंदी सिनेमा का भूत, वर्तमान और भविष्य सब प्रेम की बुनियाद पर ही टिका है। सिर्फ फ़िल्मी कहानियाँ ही नहीं, कलाकारों के प्यार-मोहब्बत के चर्चे और रिश्ते टूटने की कहानियाँ भी सबसे बिकाऊ विषय हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से फिल्मों का परदा और कलाकारों का जीवन प्यार और नफरत के अलग-अलग रूपों से दर्शकों को आकर्षित करता रहा है। कभी ये प्रेम सही होता है, कभी इस प्रेम के पीछे कोई मकसद छुपा होता है।
ये सच है कि फिल्म की स्क्रिप्ट के मुताबिक कलाकार सिर्फ किरदार भूमिका निभाते हैं! लेकिन, परदे पर प्रेम का अभिनय करते हुए कब ये कलाकार सही में भी प्यार के बंधन में बंध जाते हैं, पता ही नहीं चलता! जिस प्रेम का वे सिर्फ परदे पर अभिनय करते हैं, उस मोहपाश में वे निजी जिंदगी में भी प्यार कर बैठते हैं! लेकिन, तीन घंटे की फिल्म की तरह ये मुहब्बत भी ज्यादा नहीं चलती! हालात ऐसे हो जाते हैं कि रिश्ते दरकने लगते हैं। हिंदी सिनेमा को सौ साल से ज्यादा हो गए, लेकिन वक़्त के साथ जिस तरह से फिल्म की तकनीक बदलती गई, उसी तरह प्रेम का व्याकरण भी बदल गया। हॉलीवुड सिनेमा का ही असर है कि प्रेम सिर्फ रोमांस में बदल गया और शगूफों के सहारे प्यार के अधकचरेपन की व्याख्या होने लगी। हिंदी सिनेमा में एक वो भी वक़्त था जब राज कपूर-नरगिस, दिलीप कुमार-कामिनी कौशल, देवआनंद-सु रैया, गुरुदत्त-वहीदा रहमान और राजेन्द्र कुमार-सायरा बानो की मुहब्बत के अफसानों पर बहुत कुछ कहा जाता रहा! लेकिन, आज ऐसी कौनसी प्रेम जोड़ी है, जिसके प्रेम के चर्चे हों? शायद अमिताभ-जया और ऋषि कपूर-नीतू सिंह के अलावा कौनसी ऐसी जोड़ी है, जो परदे पर बनी और निजी जिंदगी में भी आजतक बनी हुई है!
हिंदी सिनेमा परदे पर पचास के दशक में मुहब्बत जो सफर शुरु हुआ था, वो आज पूरी तरह कमर्शियल हो गया! मुद्दे की बात ये भी कल की प्रेम कथाएं जहाँ दर्शकों के लिए भी प्रेरणा बनी! असल प्रेम की कथाएं फिल्मों की कहानियों तक बनी! सारे प्रसंग फिल्मों के कलात्मक पक्ष बढ़ाने वाले साबित हुए! लेकिन, अब ये सब फिल्मों की चटखारेदार ख़बरें और शिगूफे बनकर रह गए! कहा भी जाता है कि फ़िल्मी दुनिया रोमांस के चटखारों की एक ऐसी पुड़िया है, जिसके खुलते ही हवा में अफवाहें तैरने लगती हैं। ऐसे कई किस्से हैं जब फिल्म में साथ काम करने की वजह से नायक और नायिका की मुहब्बत के किस्से परवान चढऩे लगे! आजकल जैसे 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर' और 'कपूर एंड संस' में साथ काम करने वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा और आलिया भट्ट की मुहब्बत के किस्सों से फ़िल्मी आसमान अटा पड़ा है! कभी-कभी मुहब्बत के ये किस्से महज फिल्म के प्रचार के लिए गढ़े जाते हैं! जैसे ही फिल्म प्रदर्शित हुई ये चर्चाएं दम तोड़ देती हैं! विधु विनोद चोपड़ा ने जब '1942 ए लव स्टोरी' फिल्म के लिए अनिल कपूर और मनीषा कोइराला को लिया, तो कई तरह की चर्चाएं खबर बनी! फिल्म की सफलता के इरादे से बहुत कुछ किया गया! देखते ही देखते इस जोड़ी के रोमांस की चर्चा आम हो गई। इस तरह के एक नहीं कई उदाहरण हैं, जब प्रायोजित मुहब्बत की धुन पर फिल्म की सफलता के गीत लिखे गए!
सिनेमा ने मुहब्बत और रोमांस के भ्रमजाल में एक लम्बा सफर पूरा कर लिया है। नकली खबरों को अफवाह बनाकर फिल्म की सफलता की राह तलाशी जाती है। मुद्दा ये है कि क्या निजी रिश्तों को अफवाह बनाकर अभिनय के सशक्त पक्ष को बरकरार रखा जा सकता है? क्या प्रेम का व्यवसायीकरण करके नकली रिश्तों का ग्लैमराइजेशन करना ठीक है? वास्तव में परदे की दुनिया के कलाकारों के लिए मुहब्बत और रोमांस की खबरें स्टेटस सिंबल की तरह हैं। नई हीरोइनें तो खुद को स्थापित करने के लिए सबसे पहले बड़े कलाकारों या क्रिकेट खिलाडियों के साथ अपने रोमांस की ख़बरें जानबूझकर उछालती हैं। निजी संबंधों और अंतरंगता के मनगढंत किस्सों को जोड़ती रहती हैं। नकली रोमांस की आड़ में खुद को प्रचारित करती हुई झुठलाती रहती हैं। केटरीना केफ-रणवीर कपूर, अनुष्का-विराट और सुशांत-अंकिता की बनती बिगड़ती प्रेम कहानियों के पीछे भी कुछ ऐसी ही सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता! सफलता को पुख्ता बनाने के लिए मनगढ़ंत किस्से फैलाने के लिए कई तिकड़में की जाती हैं। फ़िल्मी स्क्रिप्ट की नकली प्रेम कहानियों की तरह ही निजी जीवन में भी नकली प्रेम कथाओं के किस्से ज्यादा दिन सांस नहीं लेते! जिस तरह फिल्म का पोस्टर उतरते ही प्रेम कहानियाँ दम तोड़ देती वही हश्र अफवाहों वाली प्रेम कथाओं का भी होता है!
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