Tuesday, March 28, 2017

हिना से गले मिलने वाले थे भुलक्कड़ कृष्णा!

 - हेमंत पाल 

  मौकापरस्ती, स्वार्थ और धोखेबाजी को यदि एक शब्द में अभिव्यक्त करने को कहा जाए तो सबसे अच्छा शब्द होगा 'राजनीति।' जब तक किसी राजनीतिक दल का सिक्का चलता है, उसका ढोल बजाने वालों की कमी नहीं रहती! लेकिन, जब वही पार्टी मुसीबत में होती है, तो सबसे पहले वही भागते नजर आते हैं, जो अच्छे दिनों में मलाई खाते नजर आते हैं। इन दिनों कांग्रेस में भगदड़ जैसा माहौल बन रहा है। उत्तरप्रदेश चुनाव के समय रीता बहुगुणा समेत वहां के कुछ नेताओं ने कांग्रेस से पल्ला झटका था, अब बारी कर्नाटक की है। क्योंकि, वहाँ अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। 
   एसएम कृष्णा पहले कांग्रेसी नेता हैं, जिन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा का दामन थामा! जिनकी रगों में करीब साठ साल तक कांग्रेसी रक्त का संचार हुआ, उनको अब भाजपा की थाली में ज्यादा घी नजर आने लगा। खराब सेहत के नाम पर कांग्रेस छोड़कर आराम का बहाना करने वाले सोमनाहल्ली मल्लैया कृष्णा उर्फ एसएम कृष्णा ने सात हफ्ते बाद ही भाजपा का झंडा थाम लिया। दक्षिण में पैर फैलाने की कोशिश कर रही भाजपा ने कृष्णा को पार्टी में शामिल करके दांव खेला है। उन्होंने 29 जनवरी को जब कांग्रेस से इस्तीफे की घोषणा की थी, तब कहा था कि पार्टी इस बारे में भ्रम की स्थिति में है कि उसे नेताओं की जरूरत है या नहीं? लेकिन, भाजपा की सदस्यता के समय कृष्णा बोले कि वे ऐसी पार्टी में आकर अपने आपको सम्मानित महसूस कर रहे हैं, जिसमें देश को ऊंचाई पर ले जाने वाले नरेंद्र मोदी जैसे नेता हैं।  
  कृष्णा सार्वजनिक कार्यक्रमों में सो जाने के लिए चर्चित रहे हैं। संसद में दूसरों के भाषण सुनते-सुनते में सो जाने की भी उनकी आदत रही है। एक बार संसद में कृष्णा से अजमेर की जेल में बंद एक पाकिस्तानी कैदी के बारे में सवाल पूछा गया था! साथ बैठे किसी मंत्री ने उन्हें उठाया तो जवाब था 'पाकिस्तान में बंद भारतीय कैदी की जानकारी दे दी गई थी।' वे नींद में सवाल ही नहीं समझ पाए कि किस देश के कैदी के बारे पूछा गया है! जब भुल्लकड़ मंत्री के जवाब पर हंगामा मचा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोर्चा संभाला और सरकार को सदन में बेइज्जत होने से बचाया। बाद में राज्यसभा के सभापति ने इसे रिकार्ड में इस जवाब को न दर्ज करने का आदेश दे दिया। लेकिन, मंत्री के रूप में उनकी सजगता और गंभीरता सबके सामने जरूर आ गई! ऊम्र के जिस पड़ाव पर कृष्णा हैं, उसे देखकर समझा गया था कि राजनीति से उनका मोहभंग हो गया है। इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़कर राजनीति को अलविदा कह दिया। क्योंकि, वे अब न तो पार्टी को वोट दिलवाने की हैसियत रखते हैं और न वोट कटवाने की! उनकी ये दोनों क्षमताएं चुक गई है। लेकिन, भाजपा में उनके जाने के कदम ने सबको चौंका दिया! 
   कर्नाटक के इस नेता को याद करने के लिए उनकी खासियतों पर नजर दौड़ाने की जरुरत नहीं पड़ती! उनके भुल्लकड़पन और खब्तियों जैसे जवाब ही उन्हें याद करने के लिए काफी हैं। ये वही कृष्णा हैं, जो बरसों तक मनमोहन सिंह सरकार में विदेश मंत्री रहे। वे जब विदेश जाते थे, तो ये तक भूल जाते थे कि वे किस देश में पहुँचे हैं और यहाँ क्या बात करना है। उनके साथ जाने वाले विदेश मंत्रालय के अफसरों को उन्हें बार-बार याद भी दिलाना पड़ता था। फरवरी 2011 में तो वे संयुक्त राष्ट्र में भारत का भाषण पढ़ने के बजाए पुर्तगाल का भाषण पढ़ आए थे! जब उन्हें इस गलती का अहसास कराया गया तो अफसोस जताने के बजाए  उनका कहना था कि क्या फर्क पड़ता है, संयुक्त राष्ट्र में सभी विदेश मंत्रियों के भाषण एक जैसे ही तो होते हैं। लेकिन, उनको केंद्र में मंत्री बनाए रखना कांग्रेस की मजबूरी था। 
  उनकी खराब याददाश्त के और भी बहुत से नमूने हैं। एक बार न्यूयॉर्क में एसएम कृष्णा की पाकिस्तान की तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी से मुलाकात तय थी। कूटनीतिक बातचीत के लिए मंत्रालय ने पूरी तैयारी कर दी। इस बातचीत में कृष्णा ने एक शेर को बहुत रटा!  लेकिन,फिर भी बातचीत के समय उसी शेर को गलत बोल गए। इससे बातचीत का अर्थ से अनर्थ हो गया। हिना नाराज होकर चली गई थी। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर कृष्णा ने हिना से कहा था हालात कैसे भी क्यों न हो, बातचीत चलती रहनी चाहिए! जैसे किसी शायर ने कहा है कि भले ही दिल मिले न मिले, गले मिलते रहिए। कृष्णा का इतना कहना था कि हिना रब्बानी मुंह बिचकाते हुए चल दी। कृष्णा को जब मामला समझ में आया, तो उन्होंने हिना से अपनी शेर को लेकर समझ के बारे में बातचीत भी की! उम्र का लिहाज करते हुए, हिना ने बात ज्यादा नहीं बढ़ाई! 
   कांग्रेस और कृष्णा के बीच दूरी तभी से बढ़ गई थी, जब पिछले चुनाव में उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने से पार्टी हाईकमान ने इंकार कर दिया था। विदेश मंत्री के बाद सक्रिय राजनीति में उनकी एक और पारी खेलने की इच्छा थी! मगर, कांग्रेस ने इसे सही नहीं माना। जब कृष्णा की कोशिश बेकार गई, तो वे चुप बैठ गए। लेकिन, पार्टी हाईकमान और उनके बीच दूरी बढ़ती गई। अब जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की निकटता देखते हुए उन्हें मौका मिला तो उन्होंने इसे भुनाने में देर नहीं की! लेकिन, जिस भाजपा ने 75 साल की ऊम्र से ऊपर के नेताओं को घर बैठने का फैसला कर लिया हो, वो 85 साल के कृष्णा को कब तक और क्यों झेलेंगे? लालकृष्ण आडवाणी आराम फरमा रहे हैं। मुरलीमनोहर जोशी भी बुढ़ापे में सुस्ता ही रहे हैं। नजमा हेपतुल्ला को मंत्रिमंडल से हटाकर राज्यपाल बना दिया गया। कलराज मिश्र भी जल्दी ही रिटायर कर दिए जाएंगे। जब भाजपा घर के बुजुर्गों को राजनीतिक विश्राम दे रही है, तो एसएम कृष्णा भाजपा के किस फॉमूर्ले में फिट होंगे?
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