Sunday, March 5, 2017

फ़िल्मी बोली में रंगों की दुनिया

- हेमंत पाल 
  जीवन में रंगों का अपना एक अलग ही महत्व है। रंगों के बिना जिंदगी बेरंग ही है। रंग की सिर्फ अपनी पहचान ही नहीं होती, वे उनका उपयोग उपमाएं देने के लिए भी किया जाता है। यदि बात फिल्मों की कि जाए तो नायिका की खूबसूरती का बखान करने के लिए रंगों से अच्छी शायद कोई जुबान नहीं होती! जब नायक प्रेमपाश में बांधकर नायिका की तारीफ करना शुरू करता है, तो नायिका का हर अंग रंगों में रंग जाता है। कत्थई आँखों वाली एक लड़की, ये काली-काली आँखें, नीला दुपट्टा पीला सूट, जैसे कई गीत रचे जा चुके हैं, जो रंगों की कूची से नायिका की खूबसूरती की रचना करते हैं। ये चलन सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं है। पुराने ग्रंथों, नाटकों और कविताओं में भी रंग सदियों से छाए रहे हैं। 
  अब ज्यादातर लोकप्रिय लेखन फिल्मों के लिए होता है, इसलिए रंगों की दुनिया पूरी तरह फ़िल्मी गीतों में समा गई। अनिल कपूर ने '1942 ए लव स्टोरी' में 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' गाकर नायिका की खूबसूरती को चार दर्जन उपमाओं से सराहा तो शाहरुख़ खान ने 'डुप्लीकेट' में गाया 'कत्थई आँखों वाली एक लड़की।' 'बाजीगर' में फिर शाहरुख़ ने फिर कहा 'ये काली-काली आँखें, ये गोरे-गोरे गाल।' थोड़ा पीछे जाएँ तो राजेश खन्ना याद आते हैं, जिन्होंने 'द ट्रेन' में नंदा के लिए कहा था 'गुलाबी आँखे जो तेरी देखी शराबी ये दिल हो गया।' कई बार ऐसा भी हुआ कि नायिका ने खुद अपनी आँखों का रंग बताकर अपनी लाचारी प्रकट की। 'खुद्दार' फिल्म के गीत 'ये नीली-नीली आँखें मेरी मैं क्या करूँ' में करिश्मा कपूर की आँखों के रंग की लाचारी साफ़ नजर आती है।
   फ़िल्मी गीतों में बात सिर्फ नायिका की अंगों की व्याख्या तक ही नहीं रहती उससे आगे भी निकल जाती है। 'प्रेम नगर' में राजेश खन्ना अपनी शराब की आदत से परेशान होकर गया उठते हैं 'ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा।' कभी-कभी तो नायिका अपनी फरमाइश ही रंगों से जोड़कर करती है। 'आज का अर्जुन' में जयाप्रदा ने अमिताभ बच्चन से कहा भी था 'गोरी है कलाईयाँ तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियां।' नायिका की ड्रेस के रंग भी गीतों में समाते रहे हैं। 'हमेशा' के इस गीत को याद कीजिए जिसमें सैफ अली काजोल को देखकर गाते हैं 'नीला दुपट्टा पीला सूट कहाँ चली तू दिल को लूट।' बॉबी देओल भी 'बादल' में रानी मुखर्जी को देखकर गाते हैं 'झूम-झूम के घूम-घूम के इसने सबको मारा ... ले ले सबकी जान, गरारा....लाल गरारा।' 
   रंगों का ये जादू यदि नायिका की सुंदरता ही नहीं दर्शाता, नायिका की छेड़खानी का बहाना भी बन जाता है। 'आई मिलन की रात' में काला सा काला, अरे काले हैं दिलवाले गोरियन दफा करो' याद कीजिए। 'देवदास' का भी एक गीत बहुत चर्चित है 'हमपे ये किसने हरा रंग डाला' तात्पर्य ये कि रंगों के बहाने कोई भी बात की है। लेकिन, दिल की व्यथा भी यही रंग बताते हैं। 'कोरा कागज' का गाना मेरा जीवन कोरा कागज़, कोरा ही रह गया' अपने आपमें मनःस्थिति और दिल की पीड़ा को उजागर कर देता है। लेकिन, 'आनंद' के मुकेश के गाए गाने 'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने' में नायिका के प्रति नायक के समर्पण का पूरे भाव हैं। पर, अब ऐसे गीत कहाँ सुनाई देते हैं। 
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