- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में धार की राजनीतिक जागरूकता बेजोड़ है! प्रदेश के जिन इलाकों को अपनी राजनीतिक चैतन्यता के लिए उँगलियों पर गिना जाता है, उनमें धार भी है। इंदौर की जीवन शैली से प्रभावित और आदिवासी इलाके की सीमा से लगे धार को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के नेताओं का गढ़ माना जाता है। यहाँ की राजनीतिक जागरूकता का आलम ये है कि
मध्यप्रदेश में धार की राजनीतिक जागरूकता बेजोड़ है! प्रदेश के जिन इलाकों को अपनी राजनीतिक चैतन्यता के लिए उँगलियों पर गिना जाता है, उनमें धार भी है। इंदौर की जीवन शैली से प्रभावित और आदिवासी इलाके की सीमा से लगे धार को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के नेताओं का गढ़ माना जाता है। यहाँ की राजनीतिक जागरूकता का आलम ये है कि
यहाँ के लोग हर वक़्त राजनीति में ही जीते हैं। राजनीति को ही ओढ़ते हैं और वही बिछाते भी हैं। यही कारण है कि ये शहर हमेशा ही राजनीति की ख़बरों में की सुर्ख़ियों में रहता है। आजादी के बाद ये शहर बरसों तक हिन्दू महासभा के प्रभाव में रहा। इसके बाद यहाँ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी जड़ें जमाई! भाजपा के पितृपुरुष कहे जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे, बसंतराव प्रधान और विक्रम वर्मा जैसे बड़े नेता इसी शहर से राजनीति के शिखर पर पहुँचे! बरसों तक यहाँ की राजनीति में केशरिया रंग घुला रहा! लेकिन, सुरेंद्रसिंह नीमखेड़ा, शिवभानुसिंह सोलंकी, जमुनादेवी और प्रतापसिंह बघेल जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने भी समय-समय पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई! फिलहाल धार अपने नाम के अनुरूप फिर चर्चा में है। यहाँ की भाजपा विधायक नीना वर्मा के चुनाव को अदालत ने लगातार दूसरी बार शून्य घोषित कर दिया।
मध्यप्रदेश में धार की राजनीतिक जागरूकता बेजोड़ है! प्रदेश के जिन इलाकों को अपनी राजनीतिक चैतन्यता के लिए उँगलियों पर गिना जाता है, उनमें धार भी है। इंदौर की जीवन शैली से प्रभावित और आदिवासी इलाके की सीमा से लगे धार को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के नेताओं का गढ़ माना जाता है। यहाँ की राजनीतिक जागरूकता का आलम ये है कि
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धार विधानसभा क्षेत्र का पिछला चुनाव नतीजा एक बार फिर सुर्खियों में है। हाई कोर्ट ने इस बार भी भाजपा विधायक नीना वर्मा का चुनाव शून्य घोषित कर दिया। वे
ये लगातार दूसरी बार है, जब हाई कोर्ट ने नीना वर्मा का चुनाव तकनीकी आधार पर रद्द किया है। धार के मतदाता और कर सलाहकार सुरेशचंद्र भंडारी ने
अदालत द्वारा भाजपा विधायक नीना वर्मा का विधानसभा चुनाव शून्य घोषित किया जाना एक न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि जिस भाजपा विधायक का चुनाव शून्य घोषित किया गया, उनके पति विक्रम वर्मा खुद पाँच बार विधायक, राज्यसभा सदस्य और राज्य तथा केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। यदि उनकी पत्नी का ही चुनाव नामांकन फॉर्म गलत भरा जाए, ये बात आसानी से गले नहीं उतरती! दूसरा सवाल ये है कि यदि नामांकन फॉर्म में कोई खामी थी, तो तत्कालीन चुनाव अधिकारी ने उस अधूरे भरे नामांकन फॉर्म को किस आधार पर स्वीकार किया? उम्मीदवार की इस गलती को तो हाई कोर्ट में मान लिया और सजा भी सुना दी, पर उस चुनाव अधिकारी की गलती की सजा कौन देगा, जिसने अधूरे भरे नामांकन फॉर्म को स्वीकार किया था? पिछले विधानसभा चुनाव में भी अदालत ने नीना वर्मा का निर्वाचन शून्य घोषित किया था। तब भी तकनीकी त्रुटि को आधार माना गया था। डाक मतपत्रों की गिनती करते समय जो मतपत्र सही पाए गए थे, बाद में उनमें से तीन मतपत्रों को रद्द करके नीना वर्मा को एक वोट से विजयी घोषित किया गया था। बाद में अदालत ने उन मतपत्रों को वैध माना और कांग्रेस के निकटतम प्रतिद्वंदी बालमुकुंद गौतम को विधानसभा की सदस्यता दिलाने का आदेश दिया।
इससे पहले 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भी नीना वर्मा मात्र एक वोट से विजयी घोषित हुई थीं। दूसरे नंबर पर आने वाले कांग्रेस के बालमुकुंद गौतम ने इसको लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। अंततः अदालत ने नीना वर्मा का निर्वाचन रद्द करके गौतम को विधायक पद की शपथ दिलाने के निर्देश दिए थे। 2013 में फिर विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा उम्मीदवार के तौर पर नीना वर्मा ने अपने पिछले प्रतिद्वंदी बालमुकुंद गौतम को दस हज़ार से ज्यादा बड़े अंतर से उन्हें हराकर चुनाव जीता और विधायक बनी। लेकिन, इस बार फिर दो चुनाव याचिकाएं लगाई गई। एक याचिका सुरेशचंद्र भंडारी की थी, जिसपर फैसला आ गया, जबकि दूसरी याचिका पराजित कांग्रेस उम्मीदवार बालमुकुंद गौतम की है। सुरेशचंद्र भंडारी की याचिका पर तो हाई कोर्ट ने फैसला सुना दिया। पर, अभी बालमुकुंद गौतम की याचिकाओं पर फैसला आना बाकी है।
बालमुकुंद गौतम ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि मतदान से ठीक पहले 72 ईवीएम मशीनें बदली गई। जब निर्वाचन अधिकारी को इस बारे में शिकायत की गई, तो उन्होंने इससे इंकार किया, लेकिन बाद में इस बात को स्वीकार किया कि ईवीएम मशीनों की कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट बदली गई थी। गौतम की इसी याचिका में नीना वर्मा को भ्रष्ट आचरण के तहत अयोग्य घोषित करने की भी मांग की गई है। चुनाव प्रचार के दौरान गौतम को अपंग कांग्रेस का उम्मीदवार बताया गया, जिसका कोई तार्किक आधार नहीं बनता! गौतम के कारोबार को चुनाव प्रचार का मुद्दा बनाया गया, जो कि चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अनुचित है। एक अन्य चुनाव प्रचार भाषण में कांग्रेस उम्मीदवार गौतम को 'भूत' कहकर उसे बोतल में बंद करके गाड़ने तक की बात कही गई! अभी इस याचिका पर फैसला लंबित है। वास्तव में ये फैसला चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और निर्वाचन व्यवस्था के लिए भी एक सबक है।
नीना वर्मा के निर्वाचन के खिलाफ लगी याचिका में जो फैसला आया, इसके बाद धार प्रदेश में एक पहली ऐसी विधानसभा बन गई, जहां लगातार दो बार चुनाव याचिका के कारण परिणाम प्रभावित हुए हैं। हालांकि, विधायक नीना वर्मा को 45 दिन का स्टे मिला हुआ है। इस समयावधि में वे विधायक रहेंगी। वहीं वे सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी जा सकती हैं। इन सबके बावजूद ये विधानसभा क्षेत्र न केवल प्रदेश में बल्कि देशभर में इस तरह के फैसले के मामले में सुर्खियों में आ गया। धार विधानसभा में चुनाव याचिकाएं 2008 से ही चली आ रही हैं। आमतौर पर यह माना जाता था कि चुनाव याचिकाओं को लेकर परिवर्तन की स्थिति नहीं बनती! लेकिन, धार विधानसभा ऐसा क्षेत्र बन गया हैं, जहां पर लगातार दो बार हाईकोर्ट ने फैसले देकर स्थितियों को पलटा है।
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