- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में इन दिनों राजनीति के बाजार में सबसे ज्यादा शोर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा का है। जो यात्रा गैर-राजनीतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक है, उसकी राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा है। भाजपा इस यात्रा के संभावित निष्कर्षों को भांपने कोशिश कर रही है, तो कांग्रेस में भी नए-नए कयास लगाए जा रहे हैं। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस यात्रा में शामिल होने के बाद राजनीतिक विघ्नसंतोषियों की जुबान भी बंद है। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के पत्र ने संघ और भाजपा को परेशान कर दिया। इस यात्रा से दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता जिस तरह बढ़ रही है, उससे भाजपा के साथ कांग्रेस के नेता भी सहम गए! क्योंकि, विधानसभा चुनाव से पहले यदि दिग्विजय के राजनीतिक पुनर्वास के हालात मजबूत हो गए तो कई कांग्रेस नेताओं की नींव दरक सकती है। जबकि, भाजपा और संघ दोनों में इस यात्रा को लेकर घबराहट नजर आने लगी है।
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राजनीति से जुड़े हर नेता की नजर इस यात्रा पर लगी है। नर्मदा परिक्रमा के मायने ढूंढ जा रहे हैं। लेकिन, अभी तक किसी के हाथ ऐसा कोई सूत्र नहीं लगा, जिससे दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा की अबूझ तिजोरी को खोला जा सके! दिग्विजय ने खुद भी स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल राजनीति पर कोई बात नहीं! अभी सिर्फ नर्मदा और परिक्रमा के बारे में चर्चा कीजिए। वे यात्रा के दौरान तो कोई राजनीतिक चर्चा नहीं कर रहे! पर, परिक्रमा के बाद वे सरकार पर बड़ा हमला बोलेंगे, ये तय है। दिग्विजय की इस यात्रा को राजनीति की चौंसर पर 'मास्टर स्ट्रोक' माना जा रहा है। क्योंकि, प्रदेश के राजनीतिक हलकों में दिग्विजय सिंह लम्बे समय से खामोश हैं! उन्हें पता है कि मतदाताओं के बीच अभी उनकी छवि चुनाव जिताने वाली नहीं है। लेकिन, प्रदेश में सबसे बड़ी कांग्रेस लॉबी आज भी उनके पास है। गाँव-गाँव में उनके समर्थकों की फ़ौज है। इस परिक्रमा के बाद इसमें इजाफा हो रहा है।
कांग्रेस मान रही है कि भले ही ये दिग्विजय की ये यात्रा निजी हो, पर इससे पार्टी को ताकत मिलेगी और विधानसभा चुनाव में पार्टी उभरकर सामने आएगी! लेकिन, जब कोई नेता धार्मिक या आध्यात्मिक यात्रा करे और राजनीति से विलग रहे, ये संभव नहीं है? राजनीति में चौंकाना हमेशा ही दिग्विजय सिंह का शगल रहा है। तय है कि असली दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा के बाद ही सामने आएंगे! तब उनके पास भाजपा सरकार के खिलाफ बोलने के लिए बहुत कुछ होगा! उनकी ख़ामोशी में भी एक गर्जना छुपी होती है, बस उसे सुनने और समझने वाले चाहिए! इस यात्रा के बाद जो दिग्विजय सिंह सामने आएंगे, वो शायद उनका नया रूप होगा।
नर्मदा परिक्रमा का अहम पहलू यह है कि दिग्विजय यात्रा पूरी होने तक नर्मदा का तट छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। ये शिवराजसिंह चौहान की उस शाही नर्मदा परिक्रमा से अलग है, जो टुकड़ों-टुकड़ों में जश्न माहौल में पूरी हुई थी। दिग्विजय ने अपनी इस यात्रा में कांग्रेस के झंडे तक का इस्तेमाल नहीं किया। क्योंकि, वे इस यात्रा पर कोई सियासी लेबल लगाना नहीं चाहते, पर यही वो तरीका था जिससे वो लगातार चर्चा में भी बने हुए हैं। उनकी नर्मदा परिक्रमा ने दलगत राजनीति को पीछे छोड़ दिया है। इसका नतीजा ये हुआ कि आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, भाजपा समर्थित लोग भी उनके स्वागत के लिए आगे आ गए। दिग्विजय की कार्यशैली दर्शाती है कि उनसे नेताओं के वैचारिक मतभेद राजनीतिक दलों की भिन्न विचारधारा की वजह से है, किसी दुश्मनी से नहीं!
दिग्विजय सिंह ने इस यात्रा को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप दिया है। यही कारण है कि वे राजनीतिक भेदभाव भी नहीं कर रहे। ये भी एक कारण है कि भाजपा में घबराहट है। परिक्रमा करते-करते वे भाजपा के बड़े नेता प्रह्लाद पटेल के घर भी पहुंच गए! प्रह्लाद ने मौका मिला तो नर्मदा भक्त होने के नाते वे भी इस परिक्रमा यात्रा में शामिल होंगे। भाजपा के पूर्व विधायक राणा रघुराज सिंह तोमर ने भी इस परिक्रमा के दौरान दिग्विजय सिंह का स्वागत करके सियासी हड़कंप मचा दिया। तोमर इन दिनों भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह से मुलाकात के लिए वे राजनीति की स्क्रीन पर दिखाई दिए। दिग्विजय सिंह जब सिंगाजी पहुँचे तो राणा रघुराज सिंह तोमर उनके स्वागत में खड़े थे। तोमर को देखते ही दिग्विजय सिंह ने उन्हे गले लगा लिया।
भाजपा और संघ में इसलिए भी तनाव है कि हरिद्वार स्थित भारत माता मंदिर के संस्थापक और पूर्व शंकराचार्य ज्योर्तिमठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने दिग्विजय सिंह को पत्र लिखकर उनकी नर्मदा परिक्रमा की सराहना की। सत्यमित्रानंद को संघ के काफी नजदीक माना जाता है। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि नर्मदा की परिक्रमा का महत्व हमारे शास्त्रों में वर्णित है। यह यात्रा एक आदर्श की स्थापना में सहायक होगी! मेरी नर्मदा माता से प्रार्थना है कि वे आपका मनोरथ पूरा करने की कृपा करें। सत्यमित्रानंद ने अपने पत्र में परिक्रमा में शामिल होने की भी इच्छा भी व्यक्त की। जवाब में दिग्विजय ने उन्हें लिखा कि आपकी उपस्थिति और प्रत्यक्ष आशीर्वाद मेरे लिए एक अद्वितीय और अनमोल उपहार होगा। लेकिन, आपके स्वास्थ्य और हरिद्वार से मां नर्मदा के तट की दूरी को दृष्टिगत रखते हुए मैं आपसे प्रार्थना करूंगा कि आप इतनी दूर आने का कष्ट न उठाएं! परिक्रमा पूरी होने पर आशीर्वाद के लिए मैं स्वयं हरिद्वार आऊँगा। सत्यमित्रानंद गिरी और दिग्विजय सिंह के बीच पत्राचार की खबर के सामने आने के बाद संघ में हलचल हुई, उसकी लहर को सभी ने महसूस किया। इस पत्राचार के तत्काल बाद संघ प्रमुख मोहनराव भागवत ने अपनी इंदौर यात्रा के दौरान स्वामी सत्यमित्रानंद से मुलाकात की, जिसके ख़ास मायने हैं।
दिग्विजय सिंह की छह महीने लंबी नर्मदा परिक्रमा से पहले ये नहीं समझा गया था कि ये खामोश यात्रा सियासत को झकझोरने लगेगी! पर ये होता दिखाई देने लगा है। जैसे-जैसे परिक्रमा आगे बढ़ती जा रही है, उसके सियासी मंतव्य खोजे जाने लगे हैं। इसके चलते संघ और भाजपा के साथ कांग्रेस में भी मंथन होता दिखाई देने लगा है। दिग्विजय सिंह ने तो इसे निजी और नितांत धार्मिक यात्रा पर बताया और राजनीतिक चर्चा से भी उन्होंने दूरी बना रखी है! लेकिन, उनके हर इशारे को सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है। सरकार भी इस परिक्रमा पर नजर रखने में कोई कोताही नहीं बरत रही। सरकार पर यात्रा के असर का अंदाज़ इससे लगाया जा सकता है, कि कई अधिकारियों ने लाइव अपडेट के लिए दिग्विजय सिंह के 'फेसबुक' पेज को लाइक किया है। परिक्रमा से पहले सरकार इस मसले पर तवज्जो नहीं दे रही थी, लेकिन अब वो स्थिति नहीं है।
इस यात्रा में पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के शामिल होने के बाद इसके सियासी मतलब निकाले जाने लगे हैं। लेकिन, यदि ज्योतिरादित्य और कमलनाथ नहीं आते, तो दूसरी तरह की चर्चाओं का दौर चलता। ज्योतिरादित्य खंडवा जिले के मोरटक्का में दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा में शामिल हुए और करीब 7 किलोमीटर साथ चले। जबकि, कमलनाथ खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में इस यात्रा का हिस्सा बने। दोनों कांग्रेस नेताओं ने नर्मदा परिक्रमा को दिग्विजय की संकल्प यात्रा बताया। इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीति को समझने वालों नजर रही। क्योंकि, ये तीनों बड़े नेता प्रदेश में कांग्रेस में सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी माने जाते हैं। इन तीनों के साथ आने से जहाँ कांग्रेस को ताकत मिली, वहीं भाजपा की रात की नींद भी हराम हुई है। क्योंकि, ये मिलन कहीं न कहीं भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
अपनी सियासी मुखरता के लिए चर्चित दिग्विजय सिंह की परिक्रमा के दौरान ख़ामोशी को गंभीरता से समझा जा रहा है। परिक्रमा के दौरान राजनीति को लेकर मीडिया के सवालों पर उनका मौन किसी बड़े धमाके का संकेत है। वे बाद में भी खामोश रहेंगे, वे ऐसा भी नहीं भी नहीं कहते! लेकिन, वे जो बोलेंगे वो सरकार के लिए बड़ी परेशानी का कारण ही बनेगा। यह यात्रा मध्यप्रदेश के 110 और गुजरात के 20 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। जब ये नर्मदा परिक्रमा प्रदेश के करीब आधे विधानसभा क्षेत्रों की जमीनी हकीकत का जायजा लेकर बरमान घाट पर पूरी होगी, तब चुनाव की बिसात बिछ चुकी होगी। इसके बाद जब दिग्विजय सिंह अपने वादे के मुताबिक़ खुलासे करेंगे, तब चुनाव सामने होंगे। दिग्विजय सिंह खुद तो चुनाव नहीं लड़ेंगे, मगर चुनाव में वो जो बोलेंगे उसके कुछ ठोस मायने होंगे, जिनका भाजपा के पास जवाब नहीं होगा! इस परिक्रमा के बहाने मध्यप्रदेश की राजनीति में वो चेहरा फिर प्रासंगिक हो गया जिसे दौड़ से बाहर समझ लिया गया था।
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मध्यप्रदेश में इन दिनों राजनीति के बाजार में सबसे ज्यादा शोर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा का है। जो यात्रा गैर-राजनीतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक है, उसकी राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा है। भाजपा इस यात्रा के संभावित निष्कर्षों को भांपने कोशिश कर रही है, तो कांग्रेस में भी नए-नए कयास लगाए जा रहे हैं। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस यात्रा में शामिल होने के बाद राजनीतिक विघ्नसंतोषियों की जुबान भी बंद है। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के पत्र ने संघ और भाजपा को परेशान कर दिया। इस यात्रा से दिग्विजय सिंह की लोकप्रियता जिस तरह बढ़ रही है, उससे भाजपा के साथ कांग्रेस के नेता भी सहम गए! क्योंकि, विधानसभा चुनाव से पहले यदि दिग्विजय के राजनीतिक पुनर्वास के हालात मजबूत हो गए तो कई कांग्रेस नेताओं की नींव दरक सकती है। जबकि, भाजपा और संघ दोनों में इस यात्रा को लेकर घबराहट नजर आने लगी है।
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राजनीति से जुड़े हर नेता की नजर इस यात्रा पर लगी है। नर्मदा परिक्रमा के मायने ढूंढ जा रहे हैं। लेकिन, अभी तक किसी के हाथ ऐसा कोई सूत्र नहीं लगा, जिससे दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा की अबूझ तिजोरी को खोला जा सके! दिग्विजय ने खुद भी स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल राजनीति पर कोई बात नहीं! अभी सिर्फ नर्मदा और परिक्रमा के बारे में चर्चा कीजिए। वे यात्रा के दौरान तो कोई राजनीतिक चर्चा नहीं कर रहे! पर, परिक्रमा के बाद वे सरकार पर बड़ा हमला बोलेंगे, ये तय है। दिग्विजय की इस यात्रा को राजनीति की चौंसर पर 'मास्टर स्ट्रोक' माना जा रहा है। क्योंकि, प्रदेश के राजनीतिक हलकों में दिग्विजय सिंह लम्बे समय से खामोश हैं! उन्हें पता है कि मतदाताओं के बीच अभी उनकी छवि चुनाव जिताने वाली नहीं है। लेकिन, प्रदेश में सबसे बड़ी कांग्रेस लॉबी आज भी उनके पास है। गाँव-गाँव में उनके समर्थकों की फ़ौज है। इस परिक्रमा के बाद इसमें इजाफा हो रहा है।
कांग्रेस मान रही है कि भले ही ये दिग्विजय की ये यात्रा निजी हो, पर इससे पार्टी को ताकत मिलेगी और विधानसभा चुनाव में पार्टी उभरकर सामने आएगी! लेकिन, जब कोई नेता धार्मिक या आध्यात्मिक यात्रा करे और राजनीति से विलग रहे, ये संभव नहीं है? राजनीति में चौंकाना हमेशा ही दिग्विजय सिंह का शगल रहा है। तय है कि असली दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा के बाद ही सामने आएंगे! तब उनके पास भाजपा सरकार के खिलाफ बोलने के लिए बहुत कुछ होगा! उनकी ख़ामोशी में भी एक गर्जना छुपी होती है, बस उसे सुनने और समझने वाले चाहिए! इस यात्रा के बाद जो दिग्विजय सिंह सामने आएंगे, वो शायद उनका नया रूप होगा।
नर्मदा परिक्रमा का अहम पहलू यह है कि दिग्विजय यात्रा पूरी होने तक नर्मदा का तट छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। ये शिवराजसिंह चौहान की उस शाही नर्मदा परिक्रमा से अलग है, जो टुकड़ों-टुकड़ों में जश्न माहौल में पूरी हुई थी। दिग्विजय ने अपनी इस यात्रा में कांग्रेस के झंडे तक का इस्तेमाल नहीं किया। क्योंकि, वे इस यात्रा पर कोई सियासी लेबल लगाना नहीं चाहते, पर यही वो तरीका था जिससे वो लगातार चर्चा में भी बने हुए हैं। उनकी नर्मदा परिक्रमा ने दलगत राजनीति को पीछे छोड़ दिया है। इसका नतीजा ये हुआ कि आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, भाजपा समर्थित लोग भी उनके स्वागत के लिए आगे आ गए। दिग्विजय की कार्यशैली दर्शाती है कि उनसे नेताओं के वैचारिक मतभेद राजनीतिक दलों की भिन्न विचारधारा की वजह से है, किसी दुश्मनी से नहीं!
दिग्विजय सिंह ने इस यात्रा को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप दिया है। यही कारण है कि वे राजनीतिक भेदभाव भी नहीं कर रहे। ये भी एक कारण है कि भाजपा में घबराहट है। परिक्रमा करते-करते वे भाजपा के बड़े नेता प्रह्लाद पटेल के घर भी पहुंच गए! प्रह्लाद ने मौका मिला तो नर्मदा भक्त होने के नाते वे भी इस परिक्रमा यात्रा में शामिल होंगे। भाजपा के पूर्व विधायक राणा रघुराज सिंह तोमर ने भी इस परिक्रमा के दौरान दिग्विजय सिंह का स्वागत करके सियासी हड़कंप मचा दिया। तोमर इन दिनों भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह से मुलाकात के लिए वे राजनीति की स्क्रीन पर दिखाई दिए। दिग्विजय सिंह जब सिंगाजी पहुँचे तो राणा रघुराज सिंह तोमर उनके स्वागत में खड़े थे। तोमर को देखते ही दिग्विजय सिंह ने उन्हे गले लगा लिया।
भाजपा और संघ में इसलिए भी तनाव है कि हरिद्वार स्थित भारत माता मंदिर के संस्थापक और पूर्व शंकराचार्य ज्योर्तिमठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने दिग्विजय सिंह को पत्र लिखकर उनकी नर्मदा परिक्रमा की सराहना की। सत्यमित्रानंद को संघ के काफी नजदीक माना जाता है। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि नर्मदा की परिक्रमा का महत्व हमारे शास्त्रों में वर्णित है। यह यात्रा एक आदर्श की स्थापना में सहायक होगी! मेरी नर्मदा माता से प्रार्थना है कि वे आपका मनोरथ पूरा करने की कृपा करें। सत्यमित्रानंद ने अपने पत्र में परिक्रमा में शामिल होने की भी इच्छा भी व्यक्त की। जवाब में दिग्विजय ने उन्हें लिखा कि आपकी उपस्थिति और प्रत्यक्ष आशीर्वाद मेरे लिए एक अद्वितीय और अनमोल उपहार होगा। लेकिन, आपके स्वास्थ्य और हरिद्वार से मां नर्मदा के तट की दूरी को दृष्टिगत रखते हुए मैं आपसे प्रार्थना करूंगा कि आप इतनी दूर आने का कष्ट न उठाएं! परिक्रमा पूरी होने पर आशीर्वाद के लिए मैं स्वयं हरिद्वार आऊँगा। सत्यमित्रानंद गिरी और दिग्विजय सिंह के बीच पत्राचार की खबर के सामने आने के बाद संघ में हलचल हुई, उसकी लहर को सभी ने महसूस किया। इस पत्राचार के तत्काल बाद संघ प्रमुख मोहनराव भागवत ने अपनी इंदौर यात्रा के दौरान स्वामी सत्यमित्रानंद से मुलाकात की, जिसके ख़ास मायने हैं।
दिग्विजय सिंह की छह महीने लंबी नर्मदा परिक्रमा से पहले ये नहीं समझा गया था कि ये खामोश यात्रा सियासत को झकझोरने लगेगी! पर ये होता दिखाई देने लगा है। जैसे-जैसे परिक्रमा आगे बढ़ती जा रही है, उसके सियासी मंतव्य खोजे जाने लगे हैं। इसके चलते संघ और भाजपा के साथ कांग्रेस में भी मंथन होता दिखाई देने लगा है। दिग्विजय सिंह ने तो इसे निजी और नितांत धार्मिक यात्रा पर बताया और राजनीतिक चर्चा से भी उन्होंने दूरी बना रखी है! लेकिन, उनके हर इशारे को सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है। सरकार भी इस परिक्रमा पर नजर रखने में कोई कोताही नहीं बरत रही। सरकार पर यात्रा के असर का अंदाज़ इससे लगाया जा सकता है, कि कई अधिकारियों ने लाइव अपडेट के लिए दिग्विजय सिंह के 'फेसबुक' पेज को लाइक किया है। परिक्रमा से पहले सरकार इस मसले पर तवज्जो नहीं दे रही थी, लेकिन अब वो स्थिति नहीं है।
इस यात्रा में पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के शामिल होने के बाद इसके सियासी मतलब निकाले जाने लगे हैं। लेकिन, यदि ज्योतिरादित्य और कमलनाथ नहीं आते, तो दूसरी तरह की चर्चाओं का दौर चलता। ज्योतिरादित्य खंडवा जिले के मोरटक्का में दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा में शामिल हुए और करीब 7 किलोमीटर साथ चले। जबकि, कमलनाथ खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में इस यात्रा का हिस्सा बने। दोनों कांग्रेस नेताओं ने नर्मदा परिक्रमा को दिग्विजय की संकल्प यात्रा बताया। इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीति को समझने वालों नजर रही। क्योंकि, ये तीनों बड़े नेता प्रदेश में कांग्रेस में सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी माने जाते हैं। इन तीनों के साथ आने से जहाँ कांग्रेस को ताकत मिली, वहीं भाजपा की रात की नींद भी हराम हुई है। क्योंकि, ये मिलन कहीं न कहीं भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
अपनी सियासी मुखरता के लिए चर्चित दिग्विजय सिंह की परिक्रमा के दौरान ख़ामोशी को गंभीरता से समझा जा रहा है। परिक्रमा के दौरान राजनीति को लेकर मीडिया के सवालों पर उनका मौन किसी बड़े धमाके का संकेत है। वे बाद में भी खामोश रहेंगे, वे ऐसा भी नहीं भी नहीं कहते! लेकिन, वे जो बोलेंगे वो सरकार के लिए बड़ी परेशानी का कारण ही बनेगा। यह यात्रा मध्यप्रदेश के 110 और गुजरात के 20 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। जब ये नर्मदा परिक्रमा प्रदेश के करीब आधे विधानसभा क्षेत्रों की जमीनी हकीकत का जायजा लेकर बरमान घाट पर पूरी होगी, तब चुनाव की बिसात बिछ चुकी होगी। इसके बाद जब दिग्विजय सिंह अपने वादे के मुताबिक़ खुलासे करेंगे, तब चुनाव सामने होंगे। दिग्विजय सिंह खुद तो चुनाव नहीं लड़ेंगे, मगर चुनाव में वो जो बोलेंगे उसके कुछ ठोस मायने होंगे, जिनका भाजपा के पास जवाब नहीं होगा! इस परिक्रमा के बहाने मध्यप्रदेश की राजनीति में वो चेहरा फिर प्रासंगिक हो गया जिसे दौड़ से बाहर समझ लिया गया था।
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