Saturday, December 9, 2017

शांति के टापू पर दुष्कर्म और अपराधों की लहलहाती फसल

- हेमंत पाल

   मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने दो साल पहले दिल्ली में एक सेमिनार में कहा था 'मध्यप्रदेश शांति का टापू' है। यहाँ उद्योग लगाने वालों को 'शांति का माहौल' मिलेगा! लेकिन, प्रदेश में जिस तरह से अपराध बढ़ रहे हैं, वो 'शांति के टापू' की कलई खोलते हैं! मध्यप्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा का दावा करने के बावजूद सबसे ज्यादा बढ़ोतरी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की ही है! नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामले में भी प्रदेश देश में अव्वल है। इस मामले में प्रदेश ने एक बार फिर देशभर में बाजी मार ली! नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकार्ड्स (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। अन्य आपराधिक घटनाओं में भी उत्तरप्रदेश के बाद मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर है। लगता है प्रदेश की कानून व्यवस्था का अपराधियों पर कोई अंकुश नहीं रहा! क्या कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति सरकार की चिंता का कारण नहीं है?
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    किसी भी प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति जानने का सबसे अच्छा जरिया होता है 'नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकार्ड्स' (एनसीआरबी) की सालाना रिपोर्ट। ब्यूरो के आंकड़े राजनीतिक बयानबाजी से परे सच का आईना होते हैं। हाल ही में पिछले साल देशभर में हुए अपराधों का राज्यवार ब्यौरा सामने आया है, जिसमें मध्यप्रदेश में महिला दुष्कर्म को लेकर होने वाले अपराधों के जो आंकड़े सामने आए, वो आँख खोलने वाले हैं। इन आंकड़ों के नजरिए से ही सामने आया कि शांति का ये कथित टापू अशांति का जंगल बनता जा रहा है! सबसे ज्यादा ख़राब स्थिति महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की है! ये तो वे मामले हैं, जिनकी शिकायत दर्ज हुई! ऐसे भी कई मामले होंगे, जिनमें पीड़िता सामाजिक कारणों और बदनामी के भय से पुलिस के पास तक नहीं आती! ये आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश में महिलाएं कितनी सुरक्षित और निर्भीक हैं! सरकार, प्रशासन, पुलिस और जानकारों का यह दावा है कि मध्यप्रदेश में शत-प्रतिशत अपराध थानों में पंजीबद्ध किए जाते हैं, इसलिए यह आंकड़ा ज्यादा नजर आता है। अन्य राज्यों में तो दुष्कर्म से लेकर अन्य गंभीर अपराध दर्ज ही नहीं किए जाते। यदि यह बात मान भी ली जाए, तो इसका मतलब यही हुआ कि अपराध तो मध्यप्रदेश में हुए ही हैं, जो बकायदा थानों पर दर्ज भी किए गए!
  एनसीआरबी की 2016 की रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं, उसमें मध्यप्रदेश दुष्कर्म के मामले में देशभर में सबसे ऊपर है। 2016 में दुष्कर्म के 4882 मामले दर्ज किए गए, जो  2015 के मुकाबले 12.5 प्रतिशत अधिक हैं। यानी कम होने के बजाए ये आंकड़ा बढ़ा ही है! दुष्कर्म के मामलों में उत्तरप्रदेश दूसरे नंबर पर है, जहां 4816 मामले दर्ज किए गए। यह 2015 के मुकाबले 12.4 प्रतिशत अधिक हैं। तीसरा नंबर महाराष्ट्र का आता है, जहां 10.7 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 4189 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य अपराधिक घटनाओं में उत्तर प्रदेश के बाद मध्यप्रदेश का ही नाम है। उत्तरप्रदेश सभी तरह के अपराधों के मामले में पूरे भारत में सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में अकेले पूरे भारत के 9.5 प्रतिशत अपराध हुए हैं। जबकि, मध्यप्रदेश 8.9 प्रतिशत के साथ दूसरे, महाराष्ट्र 8.8 प्रतिशत के साथ तीसरे और 8.7 प्रतिशत के साथ केरल चौथे नंबर पर है। आबादी के नजरिए से देखा जाए तो उत्तरप्रदेश की आबादी मध्यप्रदेश से बहुत ज्यादा है। 
  यदि आंकड़ों के बजाए आबादी के हिसाब से अपराधों का औसत निकाला जाए, तो मध्यप्रदेश ही अव्वल होगा! फिर ये 'शांति का टापू" कैसे रहा? इसके साथ ही नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामले में भी मध्यप्रदेश देश में अव्वल स्थान पर है। मध्यप्रदेश में इस तरह के 2479 मामले दर्ज किए गए। जबकि, इस मामले में महाराष्ट्र 2310 और उत्तरप्रदेश 2115 के आंकड़े के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे नंबर पर है। इस अवधि में पूरे भारत में 16,863 नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए हैं। प्रदेश सरकार का 'विजन-2018' घरेलू हिंसा की तो बात करता है, लेकिन उसमें भी वह सिर्फ उनके लिए चलाई जा रही योजनाओं को बताता है! कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि सरकार महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए क्या कदम उठा रही है! 
  2001 में दुष्कर्म के 2851 मामले सामने आए थे। जबकि, 2013 में 4335 मामले दर्ज किए गए। ये वे मामले हैं, जो पुलिस के रिकॉर्ड में आए! कई बार तो लोग पुलिस कार्रवाई और कोर्ट के चक्करों से बचने के लिए शिकायत तक नहीं करते! महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर तो मध्यप्रदेश हमेशा ही सुर्ख़ियों में रहा है! लेकिन, अब प्रदेश में नाबालिग अपराधियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ये बाल अपराधी लूट, अपहरण, छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में भी पीछे नहीं हैं! एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक नाबालिगों के खिलाफ दर्ज अपराधों में प्रदेश 2014-15 में देश में सबसे ऊपर रहा था! नाबालिगों पर दर्ज 7,802 अपराधों में सबसे ज्यादा बाल अपराधी इंदौर, ग्वालियर जैसे बड़े शहरों से हैं! प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर का नाम सबसे ऊपर हैं। संस्कारधानी कहे जाने वाले शहर जबलपुर के नाबालिग भी संस्कार नहीं पा सके!   
  अपराधों के मामले में प्रदेश का सबसे आधुनिक शहर इंदौर लगातार असुरक्षित होता जा रहा है! अमन पसंद और चैन की जिंदगी जीने वालों का ये शहर कुछ सालों से हत्या, लूटपाट,अवैध हथियारों और ड्रग्स के कारोबार, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और भू-माफिया के विवादों के कारण लगातार चर्चित है! जमीन की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि और रियल इस्टेट कारोबार बढ़ने के कारण अवैध वसूली करने वाले गुंडे राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे हैं! इस कारण इंदौर को अपराधों के मामले में देश के शीर्ष 10 शहरों में लाकर खड़ा कर दिया है। अकसर होने वाली लूटपाट से कारोबारियों का इंदौर पर से भरोसा उठने भी लगा! अपराधों के बढ़ते आंकड़ों के कारण इंदौर एक तरह से आपराधिक राजधानी बनता जा रहा है। महिलाओं से होने वाली लूटपाट आम बात हो गई! एक काला सच ये भी है कि शरीफ लोग तो अपनी बात कहने थाने जाने से ही घबराते हैं! सरकार थानों का माहौल ऐसा नहीं बना सकी कि आम शहरी निश्चिंत होकर शिकायत लिखवाने थाने जा सके! जब तक थानों का खौफ नहीं घटेगा, अपराध कैसे कम होंगे?
  आदतन अपराधियों के आंकड़ों से अलग नजर दौड़ाएं तो मध्यप्रदेश में एक और अपराधी गिरोह पनप रहा है 'खनन माफिया' का! इनमें सबसे सक्रिय है 'रेत माफिया!' प्रतिबंध के बावजूद नदियों से रेत निकालकर बेचने वाले इस गिरोह को लगता है किसी का खौफ नहीं है! न पुलिस का, न खनिज विभाग का और न प्रशासन का! सरकार ने भले ही मशीनों से रेत निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया हो, पर चोरी-छुपे और सरकारी संरक्षण में ये धंधा आज  बेख़ौफ़ जारी है। ये अवैध कारोबार करने वालों ने अपराधियों का एक गिरोह खड़ा कर लिया है, जो अफसरों और पुलिस पर भी हमले करने से बाज नहीं आता! प्रदेश में खनन माफिया का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा! मुद्दे बात ये कि इस तरह के अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने के आरोप भी लगते रहते हैं! 
   प्रदेश में बढ़ते अपराधों का सबसे बड़ा कारण छोटे शहरों के संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव है। राजनीतिक संरक्षण, पुलिसकर्मियों की अपराधियों से सांठगांठ, अपर्याप्त पुलिस बल और कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाने वाले पुराने कानून इस मसले को और गंभीर बना रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं कि राजनीति संरक्षण प्रदेश में अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण है! नेताओं के आस-पास समर्पित कार्यकर्ताओं के बजाए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न गुंडों की भीड़ बढ़ती जा रही है! राजनीति से भयभीत होकर पुलिस भी उनपर हाथ डालने से डरती है! यही कारण है कि अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है! ऐसे में सरकार का ये दावा कहाँ गया कि मध्यप्रदेश 'शांति का टापू' है?
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