Saturday, December 30, 2017

क्या 'दिग्गी राजा' अब ठाकुर राजनीति करेंगे?

- हेमंत पाल
  कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह की गिनती उन नेताओं में होती है, जिनकी कोई थाह नहीं पा सकता! उनके बयानों की धार भी काफी तेज होती है। इन दिनों वे नर्मदा परिक्रमा पर हैं और करीब आधी दूरी तय कर चुके हैं। मुद्दे की बात ये कि इस यात्रा में वे ठाकुरों से कुछ ज्यादा ही नजदीकी बढ़ा रहे हैं। अधिकांश जगह उनका खान-पान और विश्राम ठाकुरों के घरों में हुआ! रास्ते में पड़ने वाले गांवों में जो भी राजे-रजवाड़े मिले, दिग्विजय सिंह उनसे जरूर मिले! स्वागत के लिए लगने वाले मंचों में क्षत्रिय संगठनों के मंच ही लगे। इसका एक साफ़ इशारा ये भी है कि क्या वे ठाकुरों के नेता बनने की कोशिश में हैं? 

    उनकी इस यात्रा को अराजनीतिक कहा जा रहा है। इसलिए कि इस पूरी यात्रा के दौरान वे कोई राजनीतिक चर्चा नहीं कर रहे! उनकी यात्रा में कांग्रेस का झंडा भी दिखाई नहीं देता। रास्ते में भी वे मिलने-जुलने वालों से कोई राजनीतिक परहेज भी नहीं करते। कई जगह उनका स्वागत भाजपा के नेताओं ने भी किया। लेकिन, ये ज्यादातर नेता भी ठाकुर ही थे। कहने वालों का तो ये भी इशारा है कि कांग्रेस जिस सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है, ये यात्रा उसी संदर्भ में हैं। गुजरात में राहुल गाँधी का मंदिरों में जाना और दिग्विजय सिंह का नर्मदा परिक्रमा करना! रास्ते के हर मंदिर में माथा टेकना ये सब कांग्रेस की बदलती भविष्य की रणनीति का संकेत है। 
  राजनीति में ठाकुरों की एक बड़ी लॉबी रही है और अच्छा ख़ासा दबदबा भी! कांग्रेस और भाजपा के साथ ही हर राजनीतिक पार्टी में ठाकुर नेताओं का वर्चस्व रहा है। लेकिन, धीरे-धीरे ज्यादातर ठाकुर नेता परिदृश्य से गायब होते गए। जबकि, नए ठाकुर नेताओं के सामने न आने से ये लॉबी सिकुड़ती गई! मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह के बाद कोई बड़ा ठाकुर चेहरा उभरकर सामने नहीं आया! दिग्विजय सिंह ने भी कभी कोशिश नहीं की कि वे ठाकुर नेता की तरह पहचाने जाएं! अजय सिंह उर्फ़ राहुल भैया विंध्य से आगे नहीं निकल सके! उत्तरप्रदेश में विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद ठाकुरों के वोट बंटकर भाजपा के राजनाथ सिंह की तरफ खिसक गए। गुजरात में कांग्रेस के माधवसिंह सोलंकी के बाद से ह वहाँ शून्य है! राजस्थान में भाजपा के भैरोसिंह शेखावत के बाद भी किसी बड़े ठाकुर नेता का उदय नहीं हुआ! समाजवादी पार्टी में जब तक अमर सिंह रहे, ठाकुरों की राजनीति करते रहे! पर, अब वे भी हाशिये पर हैं। 
  ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि दिग्विजय सिंह धीरे-धीरे ठाकुरों को एक मंच पर लाने की कोशिश में हैं। अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान उनका ठाकुर घरानों से मेलजोल भी ज्यादा बढ़ा दिखाई दिया! दरअसल, दिग्विजय सिंह को राजनीति का बड़ा खिलाड़ी माना जाता है जो दर्शाते कुछ हैं और करते कुछ हैं। उनकी नर्मदा परिक्रमा को भले ही धार्मिक यात्रा कहा गया हो, पर इस बात को कोई भी हल्के में नहीं ले रहा! कैरम के खेल में जिस तरह स्ट्राइगर से रिबाउंड मारकर गोट ली जाती है, दिग्विजय सिंह की राजनीति का अंदाज कुछ उसी तरह का है। वे इन-डाइरेक्ट शॉट ज्यादा मारते हैं।
  दिग्विजय सिंह पर अकसर अल्पसंख्यकों की राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं। वे इससे इंकार भी नही करते! ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने खुलकर मुस्लिमों का पक्ष लिया और भाजपा पर हमले किए! लेकिन, अब लगता है कि वे अपना राजनीतिक अंदाज बदल रहे हैं! उनकी इस नर्मदा परिक्रमा के बाद जो राजनीतिक निष्कर्ष बाहर आएगा, वो दिग्विजय सिंह का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। ये भी हो सकता है कि वे कांग्रेस में ठाकुर राजनीति को आगे बढ़ाएं और खुद उसके अगुआ बन जाएं! इसमें कोई बुराई भी नहीं है। वे खुद भी ठाकुर हैं और राजघराने से आते हैं, तो ठाकुर राजनीति करें भी तो क्या है!   
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